फ़िलिप्पॉय 1:27-30, फ़िलिप्पॉय 2:1-11 HCV

फ़िलिप्पॉय 1:27-30

विश्वास के लिए संघर्ष

ध्यान रखो कि तुम्हारा स्वभाव केवल मसीह के ईश्वरीय सुसमाचार के अनुसार हो. चाहे मैं आकर तुमसे भेंट करूं या नहीं, मैं तुम्हारे विषय में यही सुनूं कि तुम एक भाव में स्थिर तथा एक मन होकर ईश्वरीय सुसमाचार के विश्वास के लिए एक साथ मेहनत करते हो. विरोधियों से किसी भी प्रकार भयभीत न हो—यह उनके विनाश का, किंतु तुम्हारे उद्धार का सबूत है और वह भी परमेश्वर की ओर से. तुम्हारे लिए मसीह के कारण यह वरदान दिया गया है कि तुम न केवल उनमें विश्वास करो, परंतु उनके लिए दुःख भी भोगो; उसी जलन का अनुभव करते हुए, जिसे तुमने मुझमें देखा तथा जिसके मुझमें होने के विषय में तुम अब सुन रहे हो.

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फ़िलिप्पॉय 2:1-11

मसीह की विनम्रता का अनुकरण

इसलिये यदि मसीह में ज़रा सा भी प्रोत्साहन, प्रेम से उत्पन्‍न धीरज, आत्मा की सहभागिता तथा करुणा और कृपा है, तो एक मन, एक सा प्रेम, एक ही चित्त तथा एक लक्ष्य के लिए ठान कर मेरा आनंद पूरा कर दो. स्वार्थ और झूठी बड़ाई से कुछ भी न करो, परंतु विनम्रता के साथ तुममें से प्रत्येक अपनी बजाय दूसरे को श्रेष्ठ समझे. तुममें से हर एक सिर्फ अपनी ही भलाई का नहीं परंतु दूसरों की भलाई का भी ध्यान रखे.

तुम्हारा स्वभाव वैसा ही हो, जैसा मसीह येशु का था:

जिन्होंने परमेश्वर के स्वरूप में होते हुए भी,

परमेश्वर से अपनी तुलना पर अपना अधिकार बनाए रखना सही न समझा;

परंतु अपने आपको शून्य कर,

दास का स्वरूप धारण करते हुए,

और मनुष्य की समानता में हो गया.

और मनुष्य के शरीर में प्रकट होकर,

अपने आपको दीन करके मृत्यु—

क्रूस की मृत्यु तक,

आज्ञाकारी रहकर स्वयं को शून्य बनाया.

इसलिये परमेश्वर ने उन्हें सबसे ऊंचे पद पर आसीन किया,

तथा उनके नाम को महिमा दी कि वह हर एक नाम से ऊंचा हो,

कि हर एक घुटना येशु नाम की वंदना में झुक जाए,

स्वर्ग में, पृथ्वी में और पृथ्वी के नीचे,

और हर एक जीभ पिता परमेश्वर के प्रताप के लिए स्वीकार करे,

कि मसीह येशु ही प्रभु हैं.

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