मार्कास 6:30-56 HCV

मार्कास 6:30-56

पांच हज़ार को भोजन

प्रेरित लौटकर मसीह येशु के पास आए और उन्हें अपने द्वारा किए गए कामों और दी गई शिक्षा का विवरण दिया. मसीह येशु ने उनसे कहा, “आओ, कुछ समय के लिए कहीं एकांत में चलें और विश्राम करें,” क्योंकि अनेक लोग आ जा रहे थे और उन्हें भोजन तक का अवसर प्राप्‍त न हो सका था.

वे चुपचाप नाव पर सवार हो एक सुनसान जगह पर चले गए. लोगों ने उन्हें वहां जाते हुए देख लिया. अनेकों ने यह भी पहचान लिया कि वे कौन थे. आस-पास के नगरों से अनेक लोग दौड़ते हुए उनसे पहले ही उस स्थान पर जा पहुंचे. जब मसीह येशु तट पर पहुंचे, उन्होंने वहां एक बड़ी भीड़ को इकट्ठा देखा. उसे देख वह दुःखी हो उठे क्योंकि उन्हें भीड़ बिना चरवाहे की भेड़ों के समान लगी. वहां मसीह येशु उन्हें अनेक विषयों पर शिक्षा देने लगे.

दिन ढल रहा था. शिष्यों ने मसीह येशु के पास आकर उनसे कहा, “यह सुनसान जगह है और दिन ढला जा रहा है. अब आप इन्हें विदा कर दीजिए कि ये पास के गांवों में जाकर अपने लिए भोजन-व्यवस्था कर सकें.”

किंतु मसीह येशु ने उन्हीं से कहा, “तुम ही दो इन्हें भोजन!”

शिष्यों ने इसके उत्तर में कहा, “इतनों के भोजन में कम से कम दो सौ दीनार लगेंगे. क्या आप चाहते हैं कि हम जाकर इनके लिए इतने का भोजन ले आएं?”

मसीह येशु ने उनसे पूछा, “कितनी रोटियां हैं यहां? जाओ, पता लगाओ!”

उन्होंने पता लगाकर उत्तर दिया, “पांच—और इनके अलावा दो मछलियां भी.”

मसीह येशु ने सभी लोगों को झुंड़ों में हरी घास पर बैठ जाने की आज्ञा दी. वे सभी सौ-सौ और पचास-पचास के झुंडों में बैठ गए. मसीह येशु ने वे पांच रोटियां और दो मछलियां लेकर स्वर्ग की ओर आंखें उठाकर उनके लिए धन्यवाद प्रकट किया. तब वह रोटियां तोड़ते और शिष्यों को देते गए कि वे उन्हें भीड़ में बांटते जाएं. इसके साथ उन्होंने वे दो मछलियां भी उनमें बांट दीं. सभी ने भरपेट खाया. शिष्यों ने शेष रह गए रोटियों तथा मछलियों के टुकड़े इकट्ठा किए तो बारह टोकरे भर गए. जिन्होंने भोजन किया था, उनमें पुरुष ही पांच हज़ार थे.

मसीह येशु का पानी के ऊपर चलना

तुरंत ही मसीह येशु ने शिष्यों को जबरन नाव पर बैठा उन्हें अपने से पहले दूसरे किनारे पर स्थित नगर बैथसैदा पहुंचने के लिए विदा किया—वह स्वयं भीड़ को विदा कर रहे थे. उन्हें विदा करने के बाद वह प्रार्थना के लिए पर्वत पर चले गए.

रात हो चुकी थी. नाव झील के मध्य में थी. मसीह येशु किनारे पर अकेले थे. मसीह येशु देख रहे थे कि हवा उल्टी दिशा में चलने के कारण शिष्यों को नाव खेने में कठिन प्रयास करना पड़ रहा था. रात के चौथे प्रहर6:48 चौथे प्रहर करीब रात 3 बजे मसीह येशु झील की सतह पर चलते हुए उनके पास जा पहुंचे और ऐसा अहसास हुआ कि वह उनसे आगे निकलना चाह रहे थे. उन्हें जल सतह पर चलता देख शिष्य समझे कि कोई दुष्टात्मा है और वे चिल्ला उठे क्योंकि उन्हें देख वे भयभीत हो गए थे.

इस पर मसीह येशु ने कहा, “मैं हूं! मत डरो! साहस मत छोड़ो!” यह कहते हुए वह उनकी नाव में चढ़ गए और वायु थम गई. शिष्य इससे अत्यंत चकित रह गए. रोटियों की घटना अब तक उनकी समझ से परे थी. उनके हृदय निर्बुद्धि जैसे हो गए थे.

झील पार कर वे गन्‍नेसरत प्रदेश में पहुंच गए. उन्होंने नाव वहीं लगा दी. मसीह येशु के नाव से उतरते ही लोगों ने उन्हें पहचान लिया. जहां कहीं भी मसीह येशु होते थे, लोग दौड़-दौड़ कर बिछौनों पर रोगियों को वहां ले आते थे. मसीह येशु जिस किसी नगर, गांव या बाहरी क्षेत्र में प्रवेश करते थे, लोग रोगियों को सार्वजनिक स्थलों में लिटा कर उनसे विनती करते थे कि उन्हें उनके वस्त्र के छोर का स्पर्श मात्र ही कर लेने दें. जो कोई उनके वस्त्र का स्पर्श कर लेता था, स्वस्थ हो जाता था.

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