लूकॉस 1:57-80 HCV

लूकॉस 1:57-80

बपतिस्मा देनेवाले योहन का जन्म

एलिज़ाबेथ का प्रसवकाल पूरा हुआ और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया. जब पड़ोसियों और परिजनों ने यह सुना कि एलिज़ाबेथ पर यह अनुग्रह हुआ है, तो वे भी उनके इस आनंद में सम्मिलित हो गए.

आठवें दिन वे शिशु के ख़तना के लिए इकट्ठा हुए. वे शिशु को उसके पिता के नाम पर ज़करयाह पुकारने लगे. किंतु शिशु की माता ने उत्तर दिया; “नहीं! इसका नाम योहन होगा!”

इस पर उन्होंने एलिज़ाबेथ से कहा, “आपके परिजनों में तो इस नाम का कोई भी व्यक्ति नहीं है!”

तब उन्होंने शिशु के पिता से संकेत में प्रश्न किया कि वह शिशु का नाम क्या रखना चाहते हैं? ज़करयाह ने एक लेखन पट्ट मंगा कर उस पर लिख दिया, “इसका नाम योहन है.” यह देख सभी चकित रह गए. उसी क्षण उनकी आवाज लौट आई. उनकी जीभ के बंधन खुल गए और वह परमेश्वर की स्तुति करने लगे. सभी पड़ोसियों में परमेश्वर के प्रति श्रद्धा भाव आ गया और यहूदिया प्रदेश के सभी पर्वतीय क्षेत्र में इसकी चर्चा होने लगी. निःसंदेह प्रभु का हाथ उस बालक पर था. जिन्होंने यह सुना, उन्होंने इसे याद रखा और यह विचार करते रहे: “क्या होगा यह बालक!”

ज़करयाह का मंगल-गान

पवित्र आत्मा से भरकर उनके पिता ज़करयाह इस प्रकार भविष्यवाणियों का वर्णानुभाषण करना शुरू किया:

“धन्य हैं प्रभु, इस्राएल के परमेश्वर,

क्योंकि उन्होंने अपनी प्रजा की सुधि ली और उसका उद्धार किया.

उन्होंने हमारे लिए अपने सेवक दावीद के वंश में

एक उद्धारकर्ता पैदा किया है,

(जैसा उन्होंने प्राचीन काल के अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से प्रकट किया)

शत्रुओं तथा उन सबसे,

जो हमसे घृणा करते हैं, बचाए रखा

कि वह हमारे पूर्वजों पर अपनी कृपादृष्टि प्रदर्शित करें

तथा अपनी पवित्र वाचा को पूरा करें;

वही वाचा, जो उन्होंने हमारे पूर्वज अब्राहाम से स्थापित की थी:

वह हमें हमारे शत्रुओं के हाथ से छुड़ाएंगे,

कि हम पवित्रता और धार्मिकता में

निर्भय हो जीवन भर उनकी सेवा कर सकें.

“और बालक तुम, मेरे पुत्र, परम प्रधान परमेश्वर के भविष्यवक्ता कहलाओगे;

क्योंकि तुम उनका मार्ग तैयार करने के लिए प्रभु के आगे-आगे चलोगे,

तुम परमेश्वर की प्रजा को

उसके पापों की क्षमा के द्वारा उद्धार का ज्ञान प्रदान करोगे.

हमारे परमेश्वर की अत्यधिक कृपा के कारण,

स्वर्ग से हम पर प्रकाश का उदय होगा,

उन पर, जो अंधकार और मृत्यु की छाया में हैं;

कि इसके द्वारा हमारा मार्गदर्शन शांति के मार्ग पर हो.”

बालक योहन का विकास होता गया तथा वह आत्मिक रूप से भी बलवंत होते गए. इस्राएल के सामने सार्वजनिक रूप से प्रकट होने के पहले वह बंजर भूमि में निवास करते रहे.

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