अय्योब 8:1-22, अय्योब 9:1-35, अय्योब 10:1-22 HCV

अय्योब 8:1-22

बिलदद द्वारा परमेश्वर की सच्चाई की पुष्टि

तब शूही बिलदद ने कहना प्रारंभ किया:

“और कितना दोहराओगे इस विषय को?

अब तो तुम्हारे शब्द तेज हवा जैसी हो चुके हैं.

क्या परमेश्वर द्वारा अन्याय संभव है?

क्या सर्वशक्तिमान न्याय को पथभ्रष्ट करेगा?

यदि तुम्हारे पुत्रों ने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है,

तब तो परमेश्वर ने उन्हें उनके अपराधों के अधीन कर दिया है.

यदि तुम परमेश्वर को आग्रहपूर्वक अर्थना करें, सर्वशक्तिमान से

कृपा की याचना करें,

यदि तुम पापरहित तथा ईमानदार हो, यह निश्चित है

कि परमेश्वर तुम्हारे पक्ष में सक्रिय हो जाएंगे

और तुम्हारी युक्तता की स्थिति को पुनःस्थापित कर देंगे.

यद्यपि तुम्हारा प्रारंभ नम्र जान पड़ेगा,

फिर भी तुम्हारा भविष्य अत्यंत महान होगा.

“कृपा करो और पूर्व पीढ़ियों से मालूम करो,

उन विषयों पर विचार करो,

क्योंकि हम तो कल की पीढ़ी हैं और हमें इसका कोई ज्ञान नहीं है,

क्योंकि पृथ्वी पर हमारा जीवन छाया-समान होता है.

क्या वे तुम्हें शिक्षा देते हुए प्रकट न करेंगे,

तथा अपने मन के विचार व्यक्त न करेंगे?

क्या दलदल में कभी सरकंडा उग सकता है?

क्या जल बिन झाड़ियां जीवित रह सकती हैं?

वह हरा ही होता है तथा इसे काटा नहीं जाता,

फिर भी यह अन्य पौधों की अपेक्षा पहले ही सूख जाता है.

उनकी चालचलन भी ऐसी होती है, जो परमेश्वर को भूल जाते हैं;

श्रद्धाहीन मनुष्यों की आशा नष्ट हो जाती है.

उसका आत्मविश्वास दुर्बल होता है

तथा उसका विश्वास मकड़ी के जाल समान पल भर का होता है.

उसने अपने घर के आश्रय पर भरोसा किया, किंतु वह स्थिर न रह सका है;

उसने हर संभव प्रयास तो किए, किंतु इसमें टिकने की क्षमता ही न थी.

वह सूर्य प्रकाश में समृद्ध हो जाता है,

उसकी जड़ें उद्यान में फैलती जाती हैं.

उसकी जड़ें पत्थरों को चारों ओर से जकड़ लेती हैं,

वह पत्थरों से निर्मित भवन को पकड़े रखता है.

यदि उसे उसके स्थान से उखाड़ दिया जाए,

तब उससे यह कहा जाएगा: ‘तुम्हें मैंने कभी देखा नहीं!’

अय्योब, ध्यान दो! यही है परमेश्वर की नीतियों का आनंद;

इसी धूल से दूसरे उपजेंगे.

“मालूम है कि परमेश्वर सत्यनिष्ठ व्यक्ति को उपेक्षित नहीं छोड़ देते,

और न वह दुष्कर्मियों का समर्थन करते हैं.

अब भी वह तुम्हारे जीवन को हास्य से पूर्ण कर देंगे,

तुम उच्च स्वर में हर्षोल्लास करोगे.

जिन्हें तुमसे घृणा है, लज्जा उनका परिधान होगी

तथा दुर्वृत्तों का घर अस्तित्व में न रहेगा.”

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अय्योब 9:1-35

अय्योब के साथ में मनुष्य एवं परमेश्वर के मध्य मध्यस्थ कोई नहीं

तब अय्योब ने और कहा:

“वस्तुतः मुझे यह मालूम है कि सत्य यही है.

किंतु मनुष्य भला परमेश्वर की आंखों में निर्दोष कैसे हो सकता है?

यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर से वाद-विवाद करना चाहे,

तो वह परमेश्वर को एक हजार में से एक प्रश्न का भी उत्तर नहीं दे सकेगा.

वह तो मन से बुद्धिमान तथा बल के शूर हैं.

कौन उनकी हानि किए बिना उनकी उपेक्षा कर सका है?

मात्र परमेश्वर ही हैं, जो विचलित कर देते हैं,

किसे यह मालूम है कि अपने क्रोध में वह किस रीति से उन्हें पलट देते हैं.

कौन है जो पृथ्वी को इसके स्थान से हटा देता है,

कि इसके आधार-स्तंभ थरथरा जाते हैं.

उसके आदेश पर सूर्य निष्प्रभ हो जाता है,

कौन तारों पर अपनी मोहर लगा देता है?

कौन अकेले ही आकाशमंडल को फैला देता है,

कौन सागर की लहरों को रौंदता चला जाता है;

किसने सप्‍त ऋषि, मृगशीर्ष, कृतिका

तथा दक्षिण नक्षत्रों की स्थापना की है?

कौन विलक्षण कार्य करता है?

वे कार्य, जो अगम्य, आश्चर्यजनक एवं असंख्य भी हैं.

यदि वे मेरे निकट से होकर निकलें, वह दृश्य न होंगे;

यदि वह मेरे निकट से होकर निकलें, मुझे उनका बोध भी न होगा.

यदि वह कुछ छीनना चाहें, कौन उन्हें रोक सकता है?

किसमें उनसे यह प्रश्न करने का साहस है, ‘यह क्या कर रहे हैं आप?’

परमेश्वर अपने कोप को शांत नहीं करेंगे;

उनके नीचे राहाब9:13 राहाब एक पौराणिक समुद्री राक्षस जो प्राचीन साहित्य में अराजकता का प्रतिनिधित्व करता है के सहायक दुबके बैठे हैं.

“मैं उन्हें किस प्रकार उत्तर दे सकता हूं?

मैं कैसे उनके लिए दोषी व निर्दोष को पहचानूं?

क्योंकि यदि मुझे धर्मी व्यक्ति पहचाना भी जाए, तो उत्तर देना मेरे लिए असंभव होगा;

मुझे अपने न्याय की कृपा के लिए याचना करनी होगी.

यदि वे मेरी पुकार सुन लेते हैं,

मेरे लिए यह विश्वास करना कठिन होगा, कि वे मेरी पुकार को सुन रहे थे.

क्योंकि वे तो मुझे तूफान द्वारा घायल करते हैं,

तथा अकारण ही मेरे घावों की संख्या में वृद्धि करते हैं.

वे मुझे श्वास भी न लेने देंगे,

वह मुझे कड़वाहट से परिपूर्ण कर देते हैं.

यदि यह अधिकार का विषय है, तो परमेश्वर बलशाली हैं!

यदि यह न्याय का विषय है, तो कौन उनके सामने ठहर सकता है?

यद्यपि मैं ईमानदार हूं, मेरे ही शब्द मुझे दोषारोपित करेंगे;

यद्यपि मैं दोषहीन हूं, मेरा मुंह मुझे दोषी घोषित करेंगे.

“मैं दोषहीन हूं,

यह स्वयं मुझे दिखाई नहीं देता;

मुझे तो स्वयं से घृणा हो रही है.

सभी समान हैं; तब मेरा विचार यह है,

‘वे तो निर्दोष तथा दुर्वृत्त दोनों ही को नष्ट कर देते हैं.’

यदि एकाएक आई विपत्ति महामारी ले आती है,

तो परमेश्वर निर्दोषों की निराशा का उपहास करते हैं.

समस्त को दुष्ट के हाथों में सौप दिया गया है,

वे अपने न्यायाधीशों के चेहरे को आवृत्त कर देते हैं.

अगर वे नहीं हैं, तो वे कौन हैं?

“मेरे इन दिनों की गति तो धावक से भी तीव्र है;

वे उड़े चले जा रहे हैं, इन्होंने बुरा समय ही देखा है.

ये ऐसे निकले जा रहे हैं, कि मानो ये सरकंडों की नौकाएं हों,

मानो गरुड़ अपने शिकार पर झपटता है.

यद्यपि मैं कहूं: मैं अपनी शिकायत प्रस्तुत नहीं करूंगा,

‘मैं अपने चेहरे के विषाद को हटाकर उल्लास करूंगा.’

मेरे समस्त कष्टों ने मुझे भयभीत कर रखा है,

मुझे यह मालूम है कि आप मुझे निर्दोष घोषित नहीं करेंगे.

मेरी गणना दुर्वृत्तों में हो चुकी है,

तो फिर मैं अब व्यर्थ परिश्रम क्यों करूं?

यदि मैं स्वयं को बर्फ के निर्मल जल से साफ कर लूं,

अपने हाथों को साबुन से साफ़ कर लूं,

यह सब होने पर भी आप मुझे कब्र में डाल देंगे.

मेरे वस्त्र मुझसे घृणा करने लगेंगे.

“परमेश्वर कोई मेरे समान मनुष्य तो नहीं हैं, कि मैं उन्हें वाद-विवाद में सम्मिलित कर लूं,

कि मैं उनके साथ न्यायालय में प्रवेश करूं.

हम दोनों के मध्य कोई भी मध्यस्थ नहीं,

कि वह हम दोनों के सिर पर हाथ रखे.

परमेश्वर ही मुझ पर से अपना नियंत्रण हटा लें,

उनका आतंक मुझे भयभीत न करने पाए.

इसी के बाद मैं उनसे बिना डर के वार्तालाप कर सकूंगा,

किंतु स्वयं मैं अपने अंतर में वैसा नहीं हूं.

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अय्योब 10:1-22

“अपने जीवन से मुझे घृणा है;

मैं खुलकर अपनी शिकायत प्रस्तुत करूंगा.

मेरे शब्दों का मूल है मेरी आत्मा की कड़वाहट.

परमेश्वर से मेरा आग्रह है: मुझ पर दोषारोपण न कीजिए,

मुझ पर यह प्रकट कर दीजिए, कि मेरे साथ अमरता का मूल क्या है.

क्या आपके लिए यह उपयुक्त है कि आप अत्याचार करें,

कि आप अपनी ही कृति को त्याग दें,

तथा दुर्वृत्तों की योजना को समर्थन दें?

क्या आपके नेत्र मनुष्यों के नेत्र-समान हैं?

क्या आपका देखना मनुष्यों-समान होता है?

क्या आपका जीवनकाल मनुष्यों-समान है,

अथवा आपके जीवन के वर्ष मनुष्यों-समान हैं,

कि आप मुझमें दोष खोज रहे हैं,

कि आप मेरे पाप की छानबीन कर रहे हैं?

आपके ज्ञान के अनुसार सत्य यही है मैं दोषी नहीं हूं,

फिर भी आपकी ओर से मेरे लिए कोई भी मुक्ति नहीं है.

“मेरी संपूर्ण संरचना आपकी ही कृति है,

क्या आप मुझे नष्ट कर देंगे?

स्मरण कीजिए, मेरी रचना आपने मिट्टी से की है.

क्या आप फिर मुझे मिट्टी में शामिल कर देंगे?

आपने क्या मुझे दूध के समान नहीं उंडेला

तथा दही-समान नहीं जमा दिया था?

क्या आपने मुझे मांस तथा खाल का आवरण नहीं पहनाया

तथा मुझे हड्डियों तथा मांसपेशियों से बुना था?

आपने मुझे जीवन एवं करुणा-प्रेम10:12 करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द का अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये शामिल हैं का अनुदान दिया

तथा आपकी कृपा में मेरी आत्मा सुरक्षित रही है.

“फिर भी ये सत्य आपने अपने हृदय में गोपनीय रख लिए,

मुझे यह मालूम है कि यह आप में सुरक्षित है:

यदि मैं कोई पाप कर बैठूं तो आपका ध्यान मेरी ओर जाएगा.

तब आप मुझे निर्दोष न छोड़ेंगे.

धिक्कार है मुझ पर—यदि मैं दोषी हूं!

और यद्यपि मैं बेकसूर हूं, मुझमें सिर ऊंचा करने का साहस नहीं है.

मैं तो लज्जा से भरा हुआ हूं,

क्योंकि मुझे मेरी दयनीय दुर्दशा का बोध है.

यदि मैं अपना सिर ऊंचा कर लूं, तो आप मेरा पीछा ऐसे करेंगे, जैसे सिंह अपने आहार का पीछा करता है;

एक बार फिर आप मुझ पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे.

आप मेरे विरुद्ध नए-नए साक्षी लेकर आते हैं

तथा मेरे विरुद्ध अपने कोप की वृद्धि करते हैं;

मुझ पर तो कष्टों पर कष्ट चले आ रहे हैं.

“तब आपने मुझे गर्भ से बाहर क्यों आने दिया?

उत्तम तो यही होता कि वहीं मेरी मृत्यु हो जाती कि मुझ पर किसी की दृष्टि न पड़ती.

मुझे तो ऐसा हो जाना था,

मानो मैं हुआ ही नहीं; या सीधे गर्भ से कब्र में!

क्या परमेश्वर मुझे मेरे इन थोड़े से दिनों में शांति से रहने न देंगे?

आप अपना यह स्थान छोड़ दीजिए, कि मैं कुछ देर के लिए आनंदित रह सकूं.

इसके पूर्व कि मैं वहां के लिए उड़ जाऊं, जहां से कोई लौटकर नहीं आता,

उस अंधकार तथा मृत्यु के स्थान को,

उस घोर अंधकार के स्थान को,

जहां कुछ गड़बड़ी नहीं है,

उस स्थान में अंधकार भी प्रकाश समान है.”

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