अय्योब 40:3-24, अय्योब 41:1-34, अय्योब 42:1-17 HCV

अय्योब 40:3-24

तब अय्योब ने याहवेह को यह उत्तर दिया:

“देखिए, मैं नगण्य बेकार व्यक्ति, मैं कौन होता हूं, जो आपको उत्तर दूं?

मैं अपने मुख पर अपना हाथ रख लेता हूं.

एक बार मैं धृष्टता कर चुका हूं अब नहीं, संभवतः दो बार,

किंतु अब मैं कुछ न कहूंगा.”

तब स्वयं याहवेह ने तूफान में से अय्योब को उत्तर दिया:

“एक योद्धा के समान कटिबद्ध हो जाओ;

अब प्रश्न पूछने की बारी मेरी है

तथा सूचना देने की तुम्हारी.

“क्या तुम वास्तव में मेरे निर्णय को बदल दोगे?

क्या तुम स्वयं को निर्दोष प्रमाणित करने के लिए मुझे दोषी प्रमाणित करोगे?

क्या, तुम्हारी भुजा परमेश्वर की भुजा समान है?

क्या, तू परमेश्वर जैसी गर्जना कर सकेगा?

तो फिर नाम एवं सम्मान धारण कर लो,

स्वयं को वैभव एवं ऐश्वर्य में लपेट लो.

अपने बढ़ते क्रोध को निर्बाध बह जाने दो,

जिस किसी अहंकारी से तुम्हारा सामना हो, उसे झुकाते जाओ.

हर एक अहंकारी को विनीत बना दो,

हर एक खड़े हुए दुराचारी को पांवों से कुचल दो.

तब उन सभी को भूमि में मिला दो;

किसी गुप्‍त स्थान में उन्हें बांध दो.

तब मैं सर्वप्रथम तुम्हारी क्षमता को स्वीकार करूंगा,

कि तुम्हारा दायां हाथ तुम्हारी रक्षा के लिए पर्याप्‍त है.

“अब इस सत्य पर विचार करो जैसे मैंने तुम्हें सृजा है,

वैसे ही उस विशाल जंतु बहेमोथ40:15 बहेमोथ जलहस्ती हो सकता है को भी

जो बैल समान घास चरता है.

उसके शारीरिक बल पर विचार करो,

उसकी मांसपेशियों की क्षमता पर विचार करो!

उसकी पूंछ देवदार वृक्ष के समान कठोर होती है;

उसकी जांघ का स्‍नायु-तंत्र कैसा बुना गया हैं.

उसकी हड्डियां कांस्य की नलियां समान है,

उसके अंग लोहे के छड़ के समान मजबूत हैं.

वह परमेश्वर की एक उत्कृष्ट रचना है,

किंतु उसका रचयिता उसे तलवार से नियंत्रित कर लेता है.

पर्वत उसके लिए आहार लेकर आते हैं,

इधर-उधर वन्य पशु फिरते रहते हैं.

वह कमल के पौधे के नीचे लेट जाता है,

जो कीचड़ तथा सरकंडों के मध्य में है.

पौधे उसे छाया प्रदान करते हैं;

तथा नदियों के मजनूं वृक्ष उसके आस-पास उसे घेरे रहते हैं.

यदि नदी में बाढ़ आ जाए, तो उसकी कोई हानि नहीं होती;

वह निश्चिंत बना रहता है, यद्यपि यरदन का जल उसके मुख तक ऊंचा उठ जाता है.

जब वह सावधान सजग रहता है तब किसमें साहस है कि उसे बांध ले,

क्या कोई उसकी नाक में छेद कर सकता है?

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अय्योब 41:1-34

“क्या तुम लिवयाथान41:1 लिवयाथान यह बड़ा मगरमच्छ हो सकता है को मछली पकड़ने की अंकुड़ी से खींच सकोगे?

अथवा क्या तुम उसकी जीभ को किसी डोर से बांध सको?

क्या उसकी नाक में रस्सी बांधना तुम्हारे लिए संभव है,

अथवा क्या तुम अंकुड़ी के लिए उसके जबड़े में छेद कर सकते हो?

क्या वह तुमसे कृपा की याचना करेगा?

क्या वह तुमसे शालीनतापूर्वक विनय करेगा?

क्या वह तुमसे वाचा स्थापित करेगा?

क्या तुम उसे जीवन भर अपना दास बनाने का प्रयास करोगे?

क्या तुम उसके साथ उसी रीति से खेल सकोगे जैसे किसी पक्षी से?

अथवा उसे अपनी युवतियों के लिए बांधकर रख सकोगे?

क्या व्यापारी उसके लिए विनिमय करना चाहेंगे?

क्या व्यापारी अपने लिए परस्पर उसका विभाजन कर सकेंगे?

क्या तुम उसकी खाल को बर्छी से बेध सकते हो

अथवा उसके सिर को भाले से नष्ट कर सकते हो?

बस, एक ही बार उस पर अपना हाथ रखकर देखो, दूसरी बार तुम्हें यह करने का साहस न होगा.

उसके साथ का संघर्ष तुम्हारे लिए अविस्मरणीय रहेगा.

व्यर्थ है तुम्हारी यह अपेक्षा, कि तुम उसे अपने अधिकार में कर लोगे;

तुम तो उसके सामने आते ही गिर जाओगे.

कोई भी उसे उकसाने का ढाढस नहीं कर सकता.

तब कौन करेगा उसका सामना?

उस पर आक्रमण करने के बाद कौन सुरक्षित रह सकता है?

आकाश के नीचे की हर एक वस्तु मेरी ही है.

“उसके अंगों का वर्णन न करने के विषय में मैं चुप रहूंगा,

न ही उसकी बड़ी शक्ति तथा उसके सुंदर देह का.

कौन उसके बाह्य आवरण को उतार सकता है?

कौन इसके लिए साहस करेगा कि उसमें बागडोर डाल सके?

कौन उसके मुख के द्वार खोलने में समर्थ होगा,

जो उसके भयावह दांतों से घिरा है?

उसकी पीठ पर ढालें पंक्तिबद्ध रूप से बिछी हुई हैं

और ये अत्यंत दृढतापूर्वक वहां लगी हुई हैं;

वे इस रीति से एक दूसरे से सटी हुई हैं,

कि इनमें से वायु तक नहीं निकल सकती.

वे सभी एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं उन्होंने एक दूसरे को ऐसा जकड़ रखा है;

कि इन्हें तोड़ा नहीं जा सकता.

उसकी छींक तो आग की लपटें प्रक्षेपित कर देती है;

तथा उसके नेत्र उषाकिरण समान दिखते हैं.

उसके मुख से ज्वलंत मशालें प्रकट रहती;

तथा इनके साथ चिंगारियां भी झड़ती रहती हैं.

उसके नाक से धुआं उठता रहता है, मानो किसी उबलते पात्र से,

जो जलते हुए सरकंडों के ऊपर रखा हुआ है.

उसकी श्वास कोयलों को प्रज्वलित कर देती,

उसके मुख से अग्निशिखा निकलती रहती है.

उसके गर्दन में शक्ति का निवास है,

तो उसके आगे-आगे निराशा बढ़ती जाती है.

उसकी मांसपेशियां

उसकी देह पर अचल एवं दृढ़,

और उसका हृदय तो पत्थर समान कठोर है!

हां! चक्की के निचले पाट के पत्थर समान!

जब-जब वह उठकर खड़ा होता है, शूरवीर भयभीत हो जाते हैं.

उसके प्रहार के भय से वे पीछे हट जाते हैं.

उस पर जिस किसी तलवार से प्रहार किया जाता है, वह प्रभावहीन रह जाती है,

वैसे ही उस पर बर्छी, भाले तथा बाण भी.

उसके सामने लौह भूसा समान होता है,

तथा कांसा सड़ रहे लकड़ी के समान.

बाण का भय उसे भगा नहीं सकता.

गोफन प्रक्षेपित पत्थर तो उसके सामने काटी उपज के ठूंठ प्रहार समान होता है.

लाठी का प्रहार भी ठूंठ के प्रहार समान होता है,

वह तो बर्छी की ध्वनि सुन हंसने लगता है.

उसके पेट पर जो झुरिया हैं, वे मिट्टी के टूटे ठीकरे समान हैं.

कीचड़ पर चलते हुए वह ऐसा लगता है, मानो वह अनाज कुटने का पट्टा समान चिन्ह छोड़ रहा है.

उसके प्रभाव से महासागर जल, ऐसा दिखता है मानो हांड़ी में उफान आ गया हो.

तब सागर ऐसा हो जाता, मानो वह मरहम का पात्र हो.

वह अपने पीछे एक चमकीली लकीर छोड़ता जाता है यह दृश्य ऐसा हो जाता है,

मानो यह किसी वृद्ध का सिर है.

पृथ्वी पर उसके जैसा कुछ भी नहीं है;

एकमात्र निर्भीक रचना!

उसके आंकलन में सर्वोच्च रचनाएं भी नगण्य हैं;

वह समस्त अहंकारियों का राजा है.”

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अय्योब 42:1-17

अय्योब की स्वीकृति निर्णायक उत्तर

तब अय्योब ने याहवेह को यह उत्तर दिया:

“मेरे प्रभु, मुझे मालूम है कि आप सभी कुछ कर सकते हैं;

तथा आपकी किसी भी योजना विफल नहीं होती.

आपने पूछा था, ‘कौन है वह अज्ञानी, जो मेरे ज्ञान पर आवरण डाल देता है?’

यही कारण है कि मैं स्वीकार कर रहा हूं, कि मुझे इन विषयों का कोई ज्ञान न था, मैं नहीं समझ सका, कि क्या-क्या हो रहा था,

तथा जो कुछ हो रहा था, वह विस्मयकारी था.

“आपने कहा था, ‘अब तुम चुप रहो;

कि अब मैं संवाद कर सकूं,

तब प्रश्न मैं करूंगा, कि तुम इनका उत्तर दो.’

इसके पूर्व आपका ज्ञान मेरे लिए मात्र समाचार ही था,

किंतु अब आपको मेरी आंखें देख चुकी हैं.

इसलिये अब मैं स्वयं को घृणास्पद समझ रहा हूं,

मैं इसके लिए धूल तथा भस्म में प्रायश्चित करता हूं.”

समाप्‍ति

अय्योब से अपना आख्यान समाप्‍त करके याहवेह ने तेमानी एलिफाज़ से पूछा, “मैं तुमसे तथा तुम्हारे दोनों मित्रों से अप्रसन्‍न हूं, क्योंकि तुमने मेरे विषय में वह सब अभिव्यक्त नहीं किया, जो सही है, जैसा मेरे सेवक अय्योब ने प्रकट किया था. तब अब तुम सात बछड़े तथा सात मेढ़े लो और मेरे सेवक अय्योब के पास जाकर अपने लिए होमबलि अर्पित करो तथा मेरा सेवक अय्योब तुम्हारे लिए प्रार्थना करेगा, क्योंकि मैं उसकी याचना स्वीकार कर लूंगा, कि तुम्हारी मूर्खता के अनुरूप व्यवहार न करूं, क्योंकि तुमने मेरे विषय में वह सब अभिव्यक्त नहीं किया, जो उपयुक्त था जैसा अय्योब ने किया था.” तब तेमानी एलिफाज़ ने, शूही बिलदद ने तथा नआमथी ज़ोफर ने याहवेह के आदेश के अनुसार अनुपालन किया तथा याहवेह ने अय्योब की याचना स्वीकार कर ली.

जब अय्योब अपने मित्रों के लिए प्रार्थना कर चुके, तब याहवेह ने अय्योब की संपत्ति को पूर्वावस्था में कर दिया तथा जो कुछ अय्योब का था, उसे दो गुणा कर दिया. कालांतर उनके समस्त भाई बहनों तथा पूर्व परिचितों ने उनके घर पर आकर भोज में उनके साथ संगति की. उन्होंने उन पर याहवेह द्वारा समस्त विपत्तियों के संबंध में सहानुभूति एवं सांत्वना दी. उनमें से हर एक ने अय्योब को धनराशि एवं सोने के सिक्‍के भेंट में दिये.

याहवेह ने अय्योब के इन उत्तर वर्षों को उनके पूर्व वर्षों की अपेक्षा कहीं अधिक आशीषित किया. उनकी संपत्ति में अब चौदह हजार भेड़ें, छः हजार ऊंट, एक हजार जोड़े बैल तथा एक हजार गधियां हो गईं. उनके सात पुत्र एवं तीन पुत्रियां हुईं. पहली पुत्री का नाम उन्होंने यमीमाह, दूसरी का केज़ीआह, तीसरी का केरेन-हप्पूख रखा. समस्त देश में अय्योब की पुत्रियों समान सौंदर्य अन्यत्र नहीं थी. उनके पिता ने उन्हें उनके भाइयों के साथ ही मीरास दी.

इसके बाद अय्योब एक सौ चालीस वर्ष और जीवित रहे. उन्होंने चार पीढ़ियों तक अपने पुत्र तथा पौत्र देखे. वृद्ध अय्योब अपनी पूर्ण परिपक्व आयु में चले गये.

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