अय्योब 35:1-16, अय्योब 36:1-33, अय्योब 37:1-24 HCV

अय्योब 35:1-16

एलिहू ने और कहा:

“क्या आप यह न्याय समझते हैं?

आप कहते हैं, ‘मेरा धर्म परमेश्वर के धर्म से ऊपर है?’

क्योंकि आप तो यही कहेंगे, ‘आप पर मेरे पाप का क्या प्रभाव पड़ता है,

और पाप न करने के द्वारा मैंने क्या प्राप्‍त किया है?’

“इसका उत्तर आपको मैं दूंगा,

आपको तथा आपके मित्रों को.

आकाश की ओर दृष्टि उठाओ;

मेघों का अवलोकन करो, वे तुमसे ऊपर हैं.

जब आप पाप कर बैठते हैं, इससे हानि परमेश्वर की कैसी होती है?

यदि आपके अत्याचारों की संख्या अधिक हो जाती, क्या परमेश्वर पर इसका कोई प्रभाव होता है?

यदि आप धर्मी हैं, आप परमेश्वर के लिए कौन सा उपकार कर देंगे,

अथवा आपके इस कृत्य से आप उनके लिए कौन सा लाभ हासिल कर देंगे?

आपकी दुष्चरित्रता आप जैसे व्यक्ति पर ही शोभा देती है,

तथा आपकी धार्मिकता मानवता के लिए योग देती है.

“अत्याचारों में वृद्धि होने पर मनुष्य कराहने लगते हैं;

वे बुरे काम के लिए किसी शूर की खोज करते हैं.

किंतु किसी का ध्यान इस ओर नहीं जाता ‘कहां हैं परमेश्वर, मेरा रचयिता,

जो रात में गीत देते हैं,

रचयिता परमेश्वर ही हैं, जिनकी शिक्षा हमें पशु पक्षियों से अधिक विद्वत्ता देती है,

तथा हमें आकाश के पक्षियों से अधिक बुद्धिमान बना देती है.’

वहां वे सहायता की पुकार देते हैं, किंतु परमेश्वर उनकी ओर ध्यान नहीं देते,

क्योंकि वे दुर्जन अपने अहंकार में डूबे हुए रहते हैं.

यह निर्विवाद सत्य है कि परमेश्वर निरर्थक पुकार को नहीं सुनते;

सर्वशक्तिमान इस ओर ध्यान देना भी उपयुक्त नहीं समझते.

महोदय अय्योब, आप कह रहे थे,

आप परमेश्वर को नहीं देख सकते,

अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के समय की प्रतीक्षा करें.

आपका पक्ष उनके सामने रखा जा चुका है.

इसके अतिरिक्त,

परमेश्वर क्रोध कर तुम्हें

दण्ड नहीं देता,

और न ही वह अभिमान की ओर ध्यान देते हैं,

महोदय अय्योब, इसलिये व्यर्थ है आपका इस प्रकार बातें करना;

आप बिना किसी ज्ञान के अपने उद्गार पर उद्गार किए जा रहे हैं.”

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अय्योब 36:1-33

एलिहू ने आगे कहा:

“आप कुछ देर और प्रतीक्षा कीजिए, कि मैं आपके सामने यह प्रकट कर सकूं,

कि परमेश्वर की ओर से और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है.

अपना ज्ञान मैं दूर से लेकर आऊंगा;

मैं यह प्रमाणित करूंगा कि मेरे रचयिता धर्मी हैं.

क्योंकि मैं आपको यह आश्वासन दे रहा हूं, कि मेरी आख्यान झूठ नहीं है;

जो व्यक्ति इस समय आपके सामने खड़ा है, उसका ज्ञान त्रुटिहीन है.

“स्मरण रखिए परमेश्वर सर्वशक्तिमान तो हैं, किंतु वह किसी से घृणा नहीं करते;

उनकी शक्ति शारीरिक भी है तथा मानसिक भी.

वह दुष्टों को जीवित नहीं छोड़ते

किंतु वह पीड़ितों को न्याय से वंचित नहीं रखते.

धर्मियों पर से उनकी नजर कभी नहीं हटती,

वह उन्हें राजाओं के साथ बैठा देते हैं,

और यह उन्‍नति स्थायी हो जाती है,

वे सम्मानित होकर वहां ऊंचे पद को प्राप्‍त किए जाते हैं.

किंतु यदि कोई बेड़ियों में जकड़ दिया गया हो,

उसे पीड़ा की रस्सियों से बांध दिया गया हो,

परमेश्वर उन पर यह प्रकट कर देते हैं, कि इस पीड़ा का कारण क्या है?

उनका ही अहंकार, उनका यही पाप.

तब परमेश्वर उन्हें उपयुक्त शिक्षा के पालन के लिए मजबूर कर देते हैं,

तथा उन्हें आदेश देते हैं, कि वे पाप से दूर हो जाएं.

यदि वे आज्ञापालन कर परमेश्वर की सेवा में लग जाते हैं,

उनका संपूर्ण जीवन समृद्धि से पूर्ण हो जाता है

तथा उनका जीवन सुखी बना रहता है.

किंतु यदि वे उनके निर्देशों की उपेक्षा करते हैं,

तलवार से नाश उनकी नियति हो जाती है

और बिना ज्ञान के वे मर जाते हैं.

“किंतु वे, जो दुर्वृत्त हैं, जो मन में क्रोध को पोषित करते हैं;

जब परमेश्वर उन्हें बेड़ियों में जकड़ देते हैं, वे सहायता की पुकार नहीं देते.

उनकी मृत्यु उनके यौवन में ही हो जाती है,

देवताओं को समर्पित लुच्‍चों के मध्य में.

किंतु परमेश्वर पीड़ितों को उनकी पीड़ा से मुक्त करते हैं;

यही पीड़ा उनके लिए नए अनुभव का कारण हो जाती है.

“तब वस्तुतः परमेश्वर ने आपको विपत्ति के मुख से निकाला है,

कि आपको मुक्ति के विशाल, सुरक्षित स्थान पर स्थापित कर दें,

तथा आपको सर्वोत्कृष्ट स्वादिष्ट खाना परोस दें.

किंतु अब आपको वही दंड दिया जा रहा है, जो दुर्वृत्तों के लिए ही उपयुक्त है;

अब आप सत्य तथा न्याय के अंतर्गत परखे जाएंगे.

अब उपयुक्त यह होगा कि आप सावधान रहें, कि कोई आपको धन-संपत्ति के द्वारा लुभा न ले;

ऐसा न हो कि कोई घूस देकर रास्ते से भटका दे.

आपका क्या मत है, क्या आपकी धन-संपत्ति आपकी पीड़ा से मुक्ति का साधन बन सकेगी,

अथवा क्या आपकी संपूर्ण शक्ति आपको सुरक्षा प्रदान कर सकेगी?

उस रात्रि की कामना न कीजिए,

जब लोग अपने-अपने घरों से बाहर नष्ट होने लगेंगे.

सावधान रहिए, बुराई की ओर न मुड़िए, ऐसा जान पड़ता है,

कि आपने पीड़ा के बदले बुराई को चुन लिया है.

“देखो, सामर्थ्य में परमेश्वर सर्वोच्च हैं.

कौन है उनके तुल्य उत्कृष्ट शिक्षक?

किसने उन्हें इस पद पर नियुक्त किया है, कौन उनसे कभी यह कह सका है

‘इसमें तो आपने कमी कर दी है’?

यह स्मरण रहे कि परमेश्वर के कार्यों का गुणगान करते रहें,

जिनके विषय में लोग स्तवन करते रहे हैं.

सभी इनके साक्ष्य हैं;

दूर-दूर से उन्होंने यह सब देखा है.

ध्यान दीजिए परमेश्वर महान हैं, उन्हें पूरी तरह समझ पाना हमारे लिए असंभव है!

उनकी आयु के वर्षों की संख्या मालूम करना असंभव है.

“क्योंकि वह जल की बूंदों को अस्तित्व में लाते हैं,

ये बूंदें बादलों से वृष्टि बनकर टपकती हैं;

मेघ यही वृष्टि उण्डेलते जाते हैं,

बहुतायत से यह मनुष्यों पर बरसती हैं.

क्या किसी में यह क्षमता है, कि मेघों को फैलाने की बात को समझ सके,

परमेश्वर के मंडप की बिजलियां को समझ ले?

देखिए, परमेश्वर ही उजियाले को अपने आस-पास बिखरा लेते हैं

तथा महासागर की थाह को ढांप देते हैं.

क्योंकि ये ही हैं परमेश्वर के वे साधन, जिनके द्वारा वह जनताओं का न्याय करते हैं.

तथा भोजन भी बहुलता में प्रदान करते हैं.

वह बिजली अपने हाथों में ले लेते हैं,

तथा उसे आदेश देते हैं, कि वह लक्ष्य पर जा पड़े.

बिजली का नाद उनकी उपस्थिति की घोषणा है;

पशुओं को तो इसका पूर्वाभास हो जाता है.

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अय्योब 37:1-24

“मैं इस विचार से भी कांप उठता हूं.

वस्तुतः मेरा हृदय उछल पड़ता है.

परमेश्वर के उद्घोष के नाद

तथा उनके मुख से निकली गड़गड़ाहट सुनिए.

इसे वह संपूर्ण आकाश में प्रसारित कर देते हैं

तथा बिजली को धरती की छोरों तक.

तत्पश्चात गर्जनावत स्वर उद्‍भूत होता है;

परमेश्वर का प्रतापमय स्वर,

जब उनका यह स्वर प्रक्षेपित होता है,

वह कुछ भी रख नहीं छोड़ते.

विलक्षण ही होता है परमेश्वर का यह गरजना;

उनके महाकार्य हमारी बुद्धि से परे होते हैं.

परमेश्वर हिम को आदेश देते हैं, ‘अब पृथ्वी पर बरस पड़ो,’

तथा मूसलाधार वृष्टि को, ‘प्रचंड रखना धारा को.’

परमेश्वर हर एक व्यक्ति के हाथ रोक देते हैं

कि सभी मनुष्य हर एक कार्य के लिए श्रेय परमेश्वर को दे.

तब वन्य पशु अपनी गुफाओं में आश्रय ले लेते हैं

तथा वहीं छिपे रहते हैं.

प्रचंड वृष्टि दक्षिण दिशा से बढ़ती चली आती हैं

तथा शीत लहर उत्तर दिशा से.

हिम की रचना परमेश्वर के फूंक से होती है

तथा व्यापक हो जाता है जल का बर्फ बनना.

परमेश्वर ही घने मेघ को नमी से भर देते हैं;

वे नमी के ज़रिए अपनी बिजली को बिखेर देते हैं.

वे सभी परमेश्वर ही के निर्देश पर अपनी दिशा परिवर्तित करते हैं

कि वे समस्त मनुष्यों द्वारा बसाई पृथ्वी पर वही करें,

जिसका आदेश उन्हें परमेश्वर से प्राप्‍त होता है.

परमेश्वर अपनी सृष्टि, इस पृथ्वी के हित में इसके सुधार के निमित्त,

अथवा अपने निर्जर प्रेम से प्रेरित हो इसे निष्पन्‍न करते हैं.

“अय्योब, कृपया यह सुनिए;

परमेश्वर के विलक्षण कार्यों पर विचार कीजिए.

क्या आपको मालूम है, कि परमेश्वर ने इन्हें स्थापित कैसे किया है,

तथा वह कैसे मेघ में उस बिजली को चमकाते हैं?

क्या आपको मालूम है कि बादल अधर में कैसे रहते हैं?

यह सब उनके द्वारा निष्पादित अद्भुत कार्य हैं, जो अपने ज्ञान में परिपूर्ण हैं.

जब धरती दक्षिण वायु प्रवाह के कारण निस्तब्ध हो जाती है

आपके वस्त्रों में उष्णता हुआ करती है?

महोदय अय्योब, क्या आप परमेश्वर के साथ मिलकर,

ढली हुई धातु के दर्पण-समान आकाश को विस्तीर्ण कर सकते हैं?

“आप ही हमें बताइए, कि हमें परमेश्वर से क्या निवेदन करना होगा;

हमारे अंधकार के कारण उनके सामने अपना पक्ष पेश करना हमारे लिए संभव नहीं!

क्या परमेश्वर को यह सूचना दे दी जाएगी, कि मैं उनसे बात करूं?

कि कोई व्यक्ति अपने ही प्राणों की हानि की योजना करे?

इस समय यह सत्य है, कि मनुष्य के लिए यह संभव नहीं,

कि वह प्रभावी सूर्य प्रकाश की ओर दृष्टि कर सके.

क्योंकि वायु प्रवाह ने आकाश से मेघ हटा दिया है.

उत्तर दिशा से स्वर्णिम आभा का उदय हो रहा है;

परमेश्वर के चारों ओर बड़ा तेज प्रकाश है.

वह सर्वशक्तिमान, जिनकी उपस्थिति में प्रवेश दुर्गम है, वह सामर्थ्य में उन्‍नत हैं;

यह हो ही नहीं सकता कि वह न्याय तथा अतिशय धार्मिकता का हनन करें.

इसलिये आदर्श यही है, कि मनुष्य उनके प्रति श्रद्धा भाव रखें.

परमेश्वर द्वारा वे सभी आदरणीय हैं, जिन्होंने स्वयं को बुद्धिमान समझ रखा है.”

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