अय्योब 25:1-6, अय्योब 26:1-14, अय्योब 27:1-23, अय्योब 28:1-28, अय्योब 29:1-25 HCV

अय्योब 25:1-6

परमेश्वर की सामर्थ्य का स्तवन

तब बिलदद ने, जो शूही था, अपना मत देना प्रारंभ किया:

“प्रभुत्व एवं अतिशय सम्मान के अधिकारी परमेश्वर ही हैं;

वही सर्वोच्च स्वर्ग में व्यवस्था की स्थापना करते हैं.

क्या परमेश्वर की सेना गण्य है?

कौन है, जो उनके प्रकाश से अछूता रह सका है?

तब क्या मनुष्य परमेश्वर के सामने युक्त प्रमाणित हो सकता है?

अथवा नारी से जन्मे किसी को भी शुद्ध कहा जा सकता है?

यदि परमेश्वर के सामने चंद्रमा प्रकाशमान नहीं है

तथा तारों में कोई शुद्धता नहीं है,

तब मनुष्य क्या है, जो मात्र एक कीड़ा है,

मानव प्राणी, जो मात्र एक केंचुआ ही है!”

Read More of अय्योब 25

अय्योब 26:1-14

अय्योब द्वारा बिलदद को फटकार

तब अय्योब ने उत्तर दिया:

“क्या सहायता की है तुमने एक दुर्बल की! वाह!

कैसे तुमने बिना शक्ति का उपयोग किए ही एक हाथ की रक्षा कर डाली है!

कैसे तुमने एक ज्ञानहीन व्यक्ति को ऐसा परामर्श दे डाला है!

कैसे समृद्धि से तुमने ठीक अंतर्दृष्टि प्रदान की है!

किसने तुम्हें इस बात के लिए प्रेरित किया है?

किसकी आत्मा तुम्हारे द्वारा बातें की है?

“मृतकों की आत्माएं थरथरा उठी हैं,

वे जो जल-जन्तुओं से भी नीचे के तल में बसी हुई हैं.

परमेश्वर के सामने मृत्यु खुली

तथा नाश-स्थल ढका नहीं है.

परमेश्वर ने उत्तर दिशा को रिक्त अंतरीक्ष में विस्तीर्ण किया है;

पृथ्वी को उन्होंने शून्य में लटका दिया है.

वह जल को अपने मेघों में लपेट लेते हैं

तथा उनके नीचे मेघ नहीं बरस पाते हैं.

वह पूर्ण चंद्रमा का चेहरा छिपा देते हैं

तथा वह अपने मेघ इसके ऊपर फैला देते हैं.

उन्होंने जल के ऊपर क्षितिज का चिन्ह लगाया है.

प्रकाश तथा अंधकार की सीमा पर.

स्वर्ग के स्तंभ कांप उठते हैं

तथा उन्हें परमेश्वर की डांट पर आश्चर्य होता है.

अपने सामर्थ्य से उन्होंने सागर को मंथन किया;

अपनी समझ बूझ से उन्होंने राहाब26:12 राहाब 9:13 देखिए को संहार कर दिया.

उनका श्वास स्वर्ग को उज्जवल बना देता है;

उनकी भुजा ने द्रुत सर्प को बेध डाला है.

यह समझ लो, कि ये सब तो उनके महाकार्य की झलक मात्र है;

उनके विषय में हम कितना कम सुन पाते हैं!

तब किसमें क्षमता है कि उनके पराक्रम की थाह ले सके?”

Read More of अय्योब 26

अय्योब 27:1-23

अय्योब का अंतिम भाषण

तब अपने वचन में अय्योब ने कहा:

“जीवित परमेश्वर की शपथ, जिन्होंने मुझे मेरे अधिकारों से वंचित कर दिया है,

सर्वशक्तिमान ने मेरे प्राण को कड़वाहट से भर दिया है,

क्योंकि जब तक मुझमें जीवन शेष है,

जब तक मेरे नथुनों में परमेश्वर का जीवन-श्वास है,

निश्चयतः मेरे मुख से कुछ भी असंगत मुखरित न होगा,

और न ही मेरी जीभ कोई छल उच्चारण करेगी.

परमेश्वर ऐसा कभी न होने दें, कि तुम्हें सच्चा घोषित कर दूं;

मृत्युपर्यंत मैं धार्मिकता का त्याग न करूंगा.

अपनी धार्मिकता को मैं किसी भी रीति से छूट न जाने दूंगा;

जीवन भर मेरा अंतर्मन मुझे नहीं धिक्कारेगा.

“मेरा शत्रु दुष्ट-समान हो,

मेरा विरोधी अन्यायी-समान हो.

जब दुर्जन की आशा समाप्‍त हो जाती है, जब परमेश्वर उसके प्राण ले लेते हैं,

तो फिर कौन सी आशा बाकी रह जाती है?

जब उस पर संकट आ पड़ेगा,

क्या परमेश्वर उसकी पुकार सुनेंगे?

तब भी क्या सर्वशक्तिमान उसके आनंद का कारण बने रहेंगे?

क्या तब भी वह हर स्थिति में परमेश्वर को ही पुकारता रहेगा?

“मैं तुम्हें परमेश्वर के सामर्थ्य की शिक्षा देना चाहूंगा;

सर्वशक्तिमान क्या-क्या कर सकते हैं, मैं यह छिपा नहीं रखूंगा.

वस्तुतः यह सब तुमसे गुप्‍त नहीं है;

तब क्या कारण है कि तुम यह व्यर्थ बातें कर रहे हो?

“परमेश्वर की ओर से यही है दुर्वृत्तों की नियति,

सर्वशक्तिमान की ओर से वह मीरास, जो अत्याचारी प्राप्‍त करते हैं.

यद्यपि उसके अनेक पुत्र हैं, किंतु उनके लिए तलवार-घात ही निर्धारित है;

उसके वंश कभी पर्याप्‍त भोजन प्राप्‍त न कर सकेंगे.

उसके उत्तरजीवी महामारी से कब्र में जाएंगे,

उसकी विधवाएं रो भी न पाएंगी.

यद्यपि वह चांदी ऐसे संचित कर रहा होता है,

मानो यह धूल हो तथा वस्त्र ऐसे एकत्र करता है, मानो वह मिट्टी का ढेर हो.

वह यह सब करता रहेगा, किंतु धार्मिक व्यक्ति ही इन्हें धारण करेंगे

तथा चांदी निर्दोषों में वितरित कर दी जाएगी.

उसका घर मकड़ी के जाले-समान निर्मित है,

अथवा उस आश्रय समान, जो चौकीदार अपने लिए बना लेता है.

बिछौने पर जाते हुए, तो वह एक धनवान व्यक्ति था;

किंतु अब इसके बाद उसे जागने पर कुछ भी नहीं रह जाता है.

आतंक उसे बाढ़ समान भयभीत कर लेता है;

रात्रि में आंधी उसे चुपचाप ले जाती है.

पूर्वी वायु उसे दूर ले उड़ती है, वह विलीन हो जाता है;

क्योंकि आंधी उसे ले उड़ी है.

क्योंकि यह उसे बिना किसी कृपा के फेंक देगा;

वह इससे बचने का प्रयास अवश्य करेगा.

लोग उसकी स्थिति को देख आनंदित हो ताली बजाएंगे

तथा उसे उसके स्थान से खदेड़ देंगे.”

Read More of अय्योब 27

अय्योब 28:1-28

ज्ञान की खोज दुष्कर होती है

इसमें कोई संदेह नहीं, कि वहां चांदी की खान है

तथा एक ऐसा स्थान, जहां वे स्वर्ण को शुद्ध करते हैं.

धूल में से लौह को अलग किया जाता है,

तथा चट्टान में से तांबा धातु पिघलाया जाता है.

मनुष्य इसकी खोज में अंधकार भरे स्थल में दूर-दूर तक जाता है;

चाहे वह अंधकार में छिपी कोई चट्टान है

अथवा कोई घोर अंधकार भरे स्थल.

मनुष्य के घर से दूर वह गहरी खान खोदते हैं,

रेगिस्तान स्थान में से दुर्गम स्थलों में जा पहुंचते हैं;

तथा गहराई में लटके रहते हैं.

पृथ्वी-पृथ्वी ही है, जो हमें भोजन प्रदान करती है,

किंतु नीचे भूगर्भ अग्निमय है.

पृथ्वी में चट्टानें नीलमणि का स्रोत हैं,

पृथ्वी की धूल में ही स्वर्ण मिलता है.

यह मार्ग हिंसक पक्षियों को मालूम नहीं है,

और न इस पर बाज की दृष्टि ही कभी पड़ी है.

इस मार्ग पर निश्चिंत, हृष्ट-पुष्ट पशु कभी नहीं चले हैं,

और न हिंसक सिंह इस मार्ग से कभी गया है.

मनुष्य चकमक के पत्थर को स्पर्श करता है,

पर्वतों को तो वह आधार से ही पलटा देता है.

वह चट्टानों में से मार्ग निकाल लेते हैं तथा उनकी दृष्टि वहीं पड़ती है,

जहां कुछ अमूल्य होता है;

जल प्रवाह रोक कर वह बांध खड़े कर देते हैं

तथा वह जो अदृश्य था, उसे प्रकाशित कर देते हैं.

प्रश्न यही उठता है कि कहां मिल सकती है बुद्धि?

कहां है वह स्थान जहां समझ की जड़ है?

मनुष्य इसका मूल्य नहीं जानता वस्तुतः

जीवितों के लोक में यह पाई ही नहीं जाती.

सागर की गहराई की घोषणा है, “मुझमें नहीं है यह”;

महासागर स्पष्ट करता है, “मैंने इसे नहीं छिपाया.”

स्वर्ण से इसको मोल नहीं लिया जा सकता,

वैसे ही चांदी माप कर इसका मूल्य निर्धारण संभव नहीं है.

ओफीर का स्वर्ण भी इसे खरीद नहीं सकता,

न ही गोमेद अथवा नीलमणि इसके लिए पर्याप्‍त होंगे.

स्वर्ण एवं स्फटिक इसके स्तर पर नहीं पहुंच सकते,

और वैसे ही कुन्दन के आभूषण से इसका विनिमय संभव नहीं है.

मूंगा तथा स्फटिक मणियों का यहां उल्लेख करना व्यर्थ है;

ज्ञान की उपलब्धि मोतियों से कहीं अधिक ऊपर है.

कूश देश का पुखराज इसके बराबर नहीं हो सकता;

कुन्दन से इसका मूल्यांकन संभव नहीं है.

तब, कहां है विवेक का उद्गम?

कहां है समझ का निवास?

तब यह स्पष्ट है कि यह मनुष्यों की दृष्टि से छिपी है,

हां, पक्षियों की दृष्टि से भी इसे नहीं देख पाते है.

नाश एवं मृत्यु स्पष्ट कहते हैं

“अपने कानों से तो हमने बस, इसका उल्लेख सुना है.”

मात्र परमेश्वर को इस तक पहुंचने का मार्ग मालूम है,

उन्हें ही मालूम है इसका स्थान.

क्योंकि वे पृथ्वी के छोर तक दृष्टि करते हैं

तथा आकाश के नीचे की हर एक वस्तु उनकी दृष्टि में होती है.

जब उन्होंने वायु को बोझ प्रदान किया

तथा जल को आयतन से मापा,

जब उन्होंने वृष्टि की सीमा तय कर दी

तथा गर्जन और बिजली की दिशा निर्धारित कर दी,

तभी उन्होंने इसे देखा तथा इसकी घोषणा की

उन्होंने इसे संस्थापित किया तथा इसे खोज भी निकाला.

तब उन्होंने मनुष्य पर यह प्रकाशित किया,

“इसे समझ लो प्रभु के प्रति भय, यही है बुद्धि,

तथा बुराइयों से दूरी बनाए रखना ही समझदारी है.”

Read More of अय्योब 28

अय्योब 29:1-25

अय्योब का संवाद समापन

तब अपने वचन में अय्योब ने कहा:

“उपयुक्त तो यह होता कि मैं उस स्थिति में जा पहुंचता जहां मैं कुछ माह पूर्व था,

उन दिनों में, जब मुझ पर परमेश्वर की कृपा हुआ करती थी,

जब परमेश्वर के दीपक का प्रकाश मेरे सिर पर चमक रहा था.

जब अंधकार में मैं उन्हीं के प्रकाश में आगे बढ़ रहा था!

वे मेरी युवावस्था के दिन थे,

उस समय मेरे घर पर परमेश्वर की कृपा थी,

उस समय सर्वशक्तिमान मेरे साथ थे,

मेरे संतान भी उस समय मेरे निकट थे.

उस समय तो स्थिति ऐसी थी, मानो मेरे पैर मक्खन से धोए जाते थे,

तथा चट्टानें मेरे लिए तेल की धाराएं बहाया करती थीं.

“तब मैं नगर के द्वार में चला जाया करता था,

जहां मेरे लिए एक आसन हुआ करता था,

युवा सम्मान में मेरे सामने आने में हिचकते थे,

तथा प्रौढ़ मेरे लिए सम्मान के साथ उठकर खड़े हो जाते थे;

यहां तक कि शासक अपना वार्तालाप रोक देते थे

तथा मुख पर हाथ रख लेते थे;

प्रतिष्ठित व्यक्ति शांत स्वर में वार्तालाप करने लगते थे,

उनकी तो जीभ ही तालू से लग जाती थी.

मुझे ऐसे शब्द सुनने को मिलते थे ‘धन्य हैं वह,’

जब मेरी दृष्टि उन पर पड़ती थी, यह वे मेरे विषय में कह रहे होते थे.

यह इसलिये, कि मैं उन दीनों की सहायता के लिए तत्पर रहता था, जो सहायता की दोहाई लगाते थे.

तथा उन पितृहीनों की, जिनका सहायक कोई नहीं है.

जो मरने पर था, उस व्यक्ति की समृद्धि मुझे दी गई है;

जिसके कारण उस विधवा के हृदय से हर्षगान फूट पड़े थे.

मैंने युक्तता धारण कर ली, इसने मुझे ढक लिया;

मेरा न्याय का काम बाह्य वस्त्र तथा पगड़ी के समान था.

मैं दृष्टिहीनों के लिए दृष्टि हो गया

तथा अपंगों के लिए पैर.

दरिद्रों के लिए मैं पिता हो गया;

मैंने अपरिचितों के न्याय के लिए जांच पड़ताल की थी.

मैंने दुष्टों के जबड़े तोड़े तथा उन्हें जा छुड़ाया,

जो नष्ट होने पर ही थे.

“तब मैंने यह विचार किया, ‘मेरी मृत्यु मेरे घर में ही होगी

तथा मैं अपने जीवन के दिनों को बालू के समान त्याग दूंगा.

मेरी जड़ें जल तक पहुंची हुई हैं

सारी रात्रि मेरी शाखाओं पर ओस छाई रहती है.

सभी की ओर से मुझे प्रशंसा प्राप्‍त होती रही है,

मेरी शक्ति, मेरा धनुष, मेरे हाथ में सदा बना रहेगा.

“वे लोग मेरे परामर्श को सुना करते थे, मेरी प्रतीक्षा करते रहते थे,

इस रीति से वे मेरे परामर्श को शांति से स्वीकार भी करते थे.

मेरे वक्तव्य के बाद वे प्रतिक्रिया का साहस नहीं करते थे;

मेरी बातें वे ग्रहण कर लेते थे.

वे मेरे लिए वैसे ही प्रतीक्षा करते थे, जैसे वृष्टि की,

उनके मुख वैसे ही खुले रह जाते थे, मानो यह वसन्त ऋतु की वृष्टि है.

वे मुश्किल से विश्वास करते थे, जब मैं उन पर मुस्कुराता था;

मेरे चेहरे का प्रकाश उनके लिए कीमती था.

उनका प्रधान होने के कारण मैं उन्हें उपयुक्त हल सुझाता था;

सेना की टुकड़ियों के लिए मैं रणनीति प्रस्तुत करता था;

मैं ही उन्हें जो दुःखी थे सांत्वना प्रदान करता था.

Read More of अय्योब 29