अय्योब 15:1-35
एलिफाज़ की द्वितीय प्रतिक्रिया
इसके बाद तेमानी एलिफाज़ के उद्गार ये थे:
“क्या किसी बुद्धिमान के उद्गार खोखले विचार हो सकते हैं
तथा क्या वह पूर्वी पवन से अपना पेट भर सकता है?
क्या वह निरर्थक सत्यों के आधार पर विचार कर सकता है? वह उन शब्दों का प्रयोग कर सकता है?
जिनका कोई लाभ नहीं बनता?
तुमने तो परमेश्वर के सम्मान को ही त्याग दिया है,
तथा तुमने परमेश्वर की श्रद्धा में विघ्न डाले.
तुम्हारा पाप ही तुम्हारे शब्दों की प्रेरणा है,
तथा तुमने धूर्तों के शब्दों का प्रयोग किये हैं.
ये तो तुम्हारा मुंह ही है, जो तुझे दोषी ठहरा रहा है, मैं नहीं;
तुम्हारे ही शब्द तुम पर आरोप लगा रहे हैं.
“क्या समस्त मानव जाति में तुम सर्वप्रथम जन्मे हो?
अथवा क्या पर्वतों के अस्तित्व में आने के पूर्व तुम्हारा पालन पोषण हुआ था?
क्या तुम्हें परमेश्वर की गुप्त अभिलाषा सुनाई दे रही है?
क्या तुम ज्ञान को स्वयं तक सीमित रखे हुए हो?
तुम्हें ऐसा क्या मालूम है, जो हमें मालूम नहीं है?
तुमने वह क्या समझ लिया है, जो हम समझ न पाए हैं?
हमारे मध्य सफेद बाल के वृद्ध विद्यमान हैं,
ये तुम्हारे पिता से अधिक आयु के भी हैं.
क्या परमेश्वर से मिली सांत्वना तुम्हारी दृष्टि में पर्याप्त है,
वे शब्द भी जो तुमसे सौम्यतापूर्वक से कहे गए हैं?
क्यों तुम्हारा हृदय उदासीन हो गया है?
क्यों तुम्हारे नेत्र क्रोध में चमक रहे हैं?
कि तुम्हारा हृदय परमेश्वर के विरुद्ध हो गया है,
तथा तुम अब ऐसे शब्द व्यर्थ रूप से उच्चार रहे हो?
“मनुष्य है ही क्या, जो उसे शुद्ध रखा जाए अथवा वह,
जो स्त्री से पैदा हुआ, निर्दोष हो?
ध्यान दो, यदि परमेश्वर अपने पवित्र लोगों पर भी विश्वास नहीं करते,
तथा स्वर्ग उनकी दृष्टि में शुद्ध नहीं है.
तब मनुष्य कितना निकृष्ट होगा, जो घृणित तथा भ्रष्ट है,
जो पाप को जल समान पिया करता है!
“यह मैं तुम्हें समझाऊंगा मेरी सुनो जो कुछ मैंने देखा है;
मैं उसी की घोषणा करूंगा,
जो कुछ बुद्धिमानों ने बताया है,
जिसे उन्होंने अपने पूर्वजों से भी गुप्त नहीं रखा है.
(जिन्हें मात्र यह देश प्रदान किया गया था
तथा उनके मध्य कोई भी विदेशी न था):
दुर्वृत्त अपने समस्त जीवनकाल में पीड़ा से तड़पता रहता है.
तथा बलात्कारी के लिए समस्त वर्ष सीमित रख दिए गए हैं.
उसके कानों में आतंक संबंधी ध्वनियां गूंजती रहती हैं;
जबकि शान्तिकाल में विनाश उस पर टूट पड़ता है.
उसे यह विश्वास नहीं है कि उसका अंधकार से निकास संभव है;
कि उसकी नियति तलवार संहार है.
वह भोजन की खोज में इधर-उधर भटकता रहता है, यह मालूम करते हुए, ‘कहीं कुछ खाने योग्य वस्तु है?’
उसे यह मालूम है कि अंधकार का दिवस पास है.
वेदना तथा चिंता ने उसे भयभीत कर रखा है;
एक आक्रामक राजा समान उन्होंने उसे वश में कर रखा है,
क्योंकि उसने परमेश्वर की ओर हाथ बढ़ाने का ढाढस किया है
तथा वह सर्वशक्तिमान के सामने अहंकार का प्रयास करता है.
वह परमेश्वर की ओर सीधे दौड़ पड़ा है,
उसने मजबूत ढाल ले रखी है.
“क्योंकि उसने अपना चेहरा अपनी वसा में छिपा लिया है
तथा अपनी जांघ चर्बी से भरपूर कर ली है.
वह तो उजाड़ नगरों में निवास करता रहा है,
ऐसे घरों में जहां कोई भी रहना नहीं चाहता था,
जिनकी नियति ही है खंडहर हो जाने के लिए.
न तो वह धनी हो जाएगा, न ही उसकी संपत्ति दीर्घ काल तक उसके अधिकार में रहेगी,
उसकी उपज बढ़ेगी नहीं.
उसे अंधकार से मुक्ति प्राप्त न होगी;
ज्वाला उसके अंकुरों को झुलसा देगी,
तथा परमेश्वर के श्वास से वह दूर उड़ जाएगा.
उत्तम हो कि वह व्यर्थ बातों पर आश्रित न रहे, वह स्वयं को छल में न रखे,
क्योंकि उसका प्रतिफल धोखा ही होगा.
समय के पूर्व ही उसे इसका प्रतिफल प्राप्त हो जाएगा,
उसकी शाखाएं हरी नहीं रह जाएंगी.
उसका विनाश वैसा ही होगा, जैसा कच्चे द्राक्षों की लता कुचल दी जाती है,
जैसे जैतून वृक्ष से पुष्पों का झड़ना होता है.
क्योंकि दुर्वृत्तों की सभा खाली होती है,
भ्रष्ट लोगों के तंबू को अग्नि चट कर जाती है.
उनके विचारों में विपत्ति गर्भधारण करती है तथा वे पाप को जन्म देते हैं;
उनका अंतःकरण छल की योजना गढ़ता रहता है.”
अय्योब 16:1-22
अय्योब
अय्योब ने उत्तर दिया:
“मैं ऐसे अनेक विचार सुन चुका हूं;
तुम तीनों ही निकम्मे दिलासा देनेवाले हो!
क्या इन खोखले उद्गारों का कोई अंत नहीं है?
अथवा किस पीड़ा ने तुमसे ये उत्तर दिलवाए हैं?
तुम्हारी शैली में मैं भी वार्तालाप कर सकता हूं,
यदि मैं आज तुम्हारी स्थिति में होता;
मैं तो तुम्हारे सम्मान में काव्य रचना कर देता
और अपना सिर भी हिलाता रहता.
मैं अपने शब्दों के द्वारा तुममें साहस बढ़ा सकता हूं;
तथा मेरे विचारों की सांत्वना तुम्हारी वेदना कम करती है.
“यदि मैं कुछ कह भी दूं, तब भी मेरी वेदना कम न होगी;
यदि मैं चुप रहूं, इससे भी मुझे कोई लाभ न होगा.
किंतु परमेश्वर ने मुझे थका दिया है;
आपने मेरे मित्र-मण्डल को ही उजाड़ दिया है.
आपने मुझे संकुचित कर दिया है, यह मेरा साक्षी हो गया है;
मेरा दुबलापन मेरे विरुद्ध प्रमाणित हो रहा है, मेरा मुख मेरा विरोध कर रहा है.
परमेश्वर के कोप ने मुझे फाड़ रखा है जैसे किसी पशु को फाड़ा जाता है,
वह मुझ पर दांत पीसते रहे;
मेरे शत्रु मुझ पर कोप करते रहते हैं.
मजाक करते हुए वे मेरे सामने अपना मुख खोलते हैं;
घृणा के आवेग में उन्होंने मेरे कपोलों पर प्रहार भी किया है.
वे सब मेरे विरोध में एकजुट हो गए हैं.
परमेश्वर ने मुझे अधर्मियों के वश में कर दिया है
तथा वह मुझे एक से दूसरे के हाथ में सौंपते हैं.
मैं तो निश्चिंत हो चुका था, किंतु परमेश्वर ने मुझे चूर-चूर कर दिया;
उन्होंने मुझे गर्दन से पकड़कर इस रीति से झंझोड़ा, कि मैं चूर-चूर हो बिखर गया;
उन्होंने तो मुझे निशाना भी बना दिया है.
उनके बाणों से मैं चारों ओर से घिर चुका हूं.
बुरी तरह से उन्होंने मेरे गुर्दे काटकर घायल कर दिए हैं.
उन्होंने मेरा पित्त भूमि पर बिखरा दिया.
वह बार-बार मुझ पर आक्रमण करते रहते हैं;
वह एक योद्धा समान मुझ पर झपटते हैं.
“मैंने तो अपनी देह पर टाट रखी है
तथा अपना सिर धूल में ठूंस दिया है.
रोते-रोते मेरा चेहरा लाल हो चुका है,
मेरी पलकों पर विषाद छा गई है.
जबकि न तो मेरे हाथों ने कोई हिंसा की है
और न मेरी प्रार्थना में कोई स्वार्थ शामिल था.
“पृथ्वी, मेरे रक्त पर आवरण न डालना;
तथा मेरी दोहाई को विश्रान्ति न लेने देना.
ध्यान दो, अब भी मेरा साक्षी स्वर्ग में है;
मेरा गवाह सर्वोच्च है.
मेरे मित्र ही मेरे विरोधी हो गए हैं.
मेरा आंसू बहाना तो परमेश्वर के सामने है.
उपयुक्त होता कि मनुष्य परमेश्वर से उसी स्तर पर आग्रह कर सकता,
जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी से.
“क्योंकि जब कुछ वर्ष बीत जायेंगे,
तब मैं वहां पहुंच जाऊंगा, जहां से कोई लौटकर नहीं आता.
अय्योब 17:1-16
मेरा मनोबल टूट चुका है,
मेरे जीवन की ज्योति का अंत आ चुका है,
कब्र को मेरी प्रतीक्षा है.
इसमें कोई संदेह नहीं, ठट्ठा करनेवाले मेरे साथ हो चुके हैं;
मेरी दृष्टि उनके भड़काने वाले कार्यों पर टिकी हुई है.
“परमेश्वर, मुझे वह ज़मानत दे दीजिए, जो आपकी मांग है.
कौन है वह, जो मेरा जामिन हो सकेगा?
आपने तो उनकी समझ को बाधित कर रखा है;
इसलिए आप तो उन्हें जयवंत होने नहीं देंगे.
जो लूट में अपने अंश के लिए अपने मित्रों की चुगली करता है,
उसकी संतान की दृष्टि जाती रहेगी.
“परमेश्वर ने तो मुझे एक निंदनीय बना दिया है,
मैं तो अब वह हो चुका हूं, जिस पर लोग थूकते हैं.
शोक से मेरी दृष्टि क्षीण हो चुकी है;
मेरे समस्त अंग अब छाया-समान हो चुके हैं.
यह सब देख सज्जन चुप रह जाएंगे;
तथा निर्दोष मिलकर दुर्वृत्तों के विरुद्ध हो जाएंगे.
फिर भी खरा अपनी नीतियों पर अटल बना रहेगा,
तथा वे, जो सत्यनिष्ठ हैं, बलवंत होते चले जाएंगे.
“किंतु आओ, तुम सभी आओ, एक बार फिर चेष्टा कर लो!
तुम्हारे मध्य मुझे बुद्धिमान प्राप्त नहीं होगा.
मेरे दिनों का तो अंत हो चुका है, मेरी योजनाएं चूर-चूर हो चुकी हैं.
यही स्थिति है मेरे हृदय की अभिलाषाओं की.
वे तो रात्रि को भी दिन में बदल देते हैं, वे कहते हैं, ‘प्रकाश निकट है,’
जबकि वे अंधकार में होते हैं.
यदि मैं घर के लिए अधोलोक की खोज करूं,
मैं अंधकार में अपना बिछौना लगा लूं.
यदि मैं उस कब्र को पुकारकर कहूं,
‘मेरे जनक तो तुम हो और कीड़ों से कि तुम मेरी माता या मेरी बहिन हो,’
तो मेरी आशा कहां है?
किसे मेरी आशा का ध्यान है?
क्या यह भी मेरे साथ अधोलोक में समा जाएगी?
क्या हम सभी साथ साथ धूल में मिल जाएंगे?”
अय्योब 18:1-21
न्याय के मार्ग पर क्रोध की शक्तिहीनता
इसके बाद शूही बिलदद ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की:
“कब तक तुम इसी प्रकार शब्दों में उलझे रहोगे?
कुछ सार्थक विषय प्रस्तुत करो, कि कुछ परिणाम प्रकट हो सके.
हमें पशु क्यों समझा जा रहा है?
क्या हम तुम्हारी दृष्टि में मूर्ख हैं?
तुम, जो क्रोध में स्वयं को फाड़े जा रहे हो,
क्या, तुम्हारे हित में तो पृथ्वी अब उजड़ हो जानी चाहिए?
अथवा, क्या चट्टान को अपनी जगह से अलग किया जाये?
“सत्य तो यह है कि दुर्वृत्त का दीप वस्तुतः बुझ चुका है;
उसके द्वारा प्रज्वलित अग्निशिखा में तो प्रकाश ही नहीं है.
उसका तंबू अंधकार में है;
उसके ऊपर का दीपक बुझ गया है.
उसकी द्रुत चाल को रोक दिया गया है;
तथा उसकी अपनी युक्ति उसे ले डूबी,
क्योंकि वह तो अपने जाल में जा फंसा है;
उसने अपने ही फंदे में पैर डाल दिया है.
उसकी एड़ी पर वह फंदा जा पड़ा
तथा संपूर्ण उपकरण उसी पर आ गिरा है,
भूमि के नीचे उसके लिए वह गांठ छिपाई गई थी;
उसके रास्ते में एक फंदा रखा गया था.
अब तो आतंक ने उसे चारों ओर से घेर रखा है
तथा उसके पीछे पड़कर उसे सता रहे हैं.
उसके बल का ठट्ठा हुआ जा रहा है;
विपत्ति उसके निकट ठहरी हुई है.
उसकी खाल पर घोर व्याधि लगी हुई है;
उसके अंगों को मृत्यु के पहलौठे ने खाना बना लिया है.
उसके ही तंबू की सुरक्षा में से उसे झपट लिया गया है
अब वे उसे आतंक के राजा के सामने प्रदर्शित हो रहे हैं.
अब उसके तंबू में विदेशी जा बसे हैं;
उसके घर पर गंधक छिड़क दिया गया है.
भूमि के भीतर उसकी जड़ें अब शुष्क हो चुकी हैं
तथा ऊपर उनकी शाखाएं काटी जा चुकी हैं.
धरती के लोग उसको याद नहीं करेंगे;
बस अब कोई भी उसको याद नहीं करेगा.
उसे तो प्रकाश में से अंधकार में धकेल दिया गया है
तथा मनुष्यों के समाज से उसे खदेड़ दिया गया है.
मनुष्यों के मध्य उसका कोई वंशज नहीं रह गया है,
जहां-जहां वह प्रवास करता है, वहां उसका कोई उत्तरजीवी नहीं.
पश्चिमी क्षेत्रों में उसकी स्थिति पर लोग चकित होंगे
तथा पूर्वी क्षेत्रों में भय ने लोगों को जकड़ लिया है.
निश्चयतः दुर्वृत्तों का निवास ऐसा ही होता है;
उनका निवास, जिन्हें परमेश्वर का कोई ज्ञान नहीं है.”