अय्योब 11:1-20, अय्योब 12:1-25, अय्योब 13:1-28, अय्योब 14:1-22 HCV

अय्योब 11:1-20

जोफर की पहली प्रतिक्रिया

इसके बाद नआमथवासी ज़ोफर ने कहना प्रारंभ किया:

“क्या मेरे इतने सारे शब्दों का उत्तर नहीं मिलेगा?

क्या कोई वाचाल व्यक्ति दोष मुक्त माना जाएगा?

क्या तुम्हारी अहंकार की बातें लोगों को चुप कर पाएगी?

क्या तुम उपहास करके भी कष्ट से मुक्त रहोगे?

क्योंकि तुमने तो कहा है, ‘मेरी शिक्षा निर्मल है

तथा आपके आंकलन में मैं निर्दोष हूं,’

किंतु यह संभव है कि परमेश्वर संवाद करने लगें

तथा वह तुम्हारे विरुद्ध अपना निर्णय दें.

वह तुम पर ज्ञान का रहस्य प्रगट कर दें,

क्योंकि सत्य ज्ञान के दो पक्ष हैं.

तब यह समझ लो, कि परमेश्वर तुम्हारे अपराध के कुछ अंश को भूल जाते हैं.

“क्या, परमेश्वर के रहस्य की गहराई को नापना तुम्हारे लिए संभव है?

क्या तुम सर्वशक्तिमान की सीमाओं की जांच कर सकते हो?

क्या करोगे तुम? वे तो आकाश-समान उन्‍नत हैं.

क्या मालूम कर सकोगे तुम? वे तो पाताल से भी अधिक अथाह हैं.

इसका विस्तार पृथ्वी से भी लंबा है

तथा महासागर से भी अधिक व्यापक.

“यदि वह आएं तथा तुम्हें बंदी बना दें, तथा तुम्हारे लिए अदालत आयोजित कर दें,

तो कौन उन्हें रोक सकता है?

वह तो पाखंडी को पहचान लेते हैं, उन्हें तो यह भी आवश्यकता नहीं;

कि वह पापी के लिए विचार करें.

जैसे जंगली गधे का बच्चा मनुष्य नहीं बन सकता,

वैसे ही किसी मूर्ख को बुद्धिमान नहीं बनाया जा सकता.

“यदि तुम अपने हृदय को शुद्ध दिशा की ओर बढ़ाओ,

तथा अपना हाथ परमेश्वर की ओर बढ़ाओ,

यदि तुम्हारे हाथ जिस पाप में फंसे है,

तुम इसका परित्याग कर दो तथा अपने घरों में बुराई का प्रवेश न होने दो,

तो तुम निःसंकोच अपना सिर ऊंचा कर सकोगे

तथा तुम निर्भय हो स्थिर खड़े रह सकोगे.

क्योंकि तुम्हें अपने कष्टों का स्मरण रहेगा,

जैसे वह जल जो बह चुका है वैसी ही होगी तुम्हारी स्मृति.

तब तुम्हारा जीवन दोपहर के सूरज से भी अधिक प्रकाशमान हो जाएगा,

अंधकार भी प्रभात-समान होगा.

तब तुम विश्वास करोगे, क्योंकि तब तुम्हारे सामने होगी एक आशा;

तुम आस-पास निरीक्षण करोगे और फिर पूर्ण सुरक्षा में विश्राम करोगे.

कोई भी तुम्हारी निद्रा में बाधा न डालेगा,

अनेक तुम्हारे समर्थन की अपेक्षा करेंगे.

किंतु दुर्वृत्तों की दृष्टि शून्य हो जाएगी,

उनके लिए निकास न हो सकेगा;

उनके लिए एकमात्र आशा है मृत्यु.”

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अय्योब 12:1-25

अय्योब की प्रतिक्रिया

तब अय्योब ने उत्तर दिया:

“निःसंदेह तुम्हीं हो वे लोग,

तुम्हारे साथ ही ज्ञान का अस्तित्व मिट जाएगा!

किंतु तुम्हारे समान बुद्धि मुझमें भी है;

तुमसे कम नहीं है मेरा स्तर.

किसे बोध नहीं है इस सत्य का?

“अपने मित्रों के लिए तो मैं हंसी मज़ाक का विषय होकर रह गया हूं,

मैंने परमेश्वर को पुकारा और उन्होंने इसका प्रत्युत्तर भी दिया;

और अब यहां खरा तथा निर्दोष व्यक्ति उपहास का पात्र हो गया है!

सुखी धनवान व्यक्ति को दुःखी व्यक्ति घृणित लग रहा है.

जो पहले ही लड़खड़ा रहा है, उसी पर प्रहार किया जा रहा है.

उन्हीं के घरों को सुरक्षित छोड़ा जा रहा है, जो हिंसक-विनाशक हैं,

वे ही सुरक्षा में निवास कर रहे हैं, जो परमेश्वर को उकसाते रहे हैं,

जो सोचते हैं कि ईश्वर अपनी मुट्ठी में है12:6 ईश्वर अपनी मुट्ठी में है किंवा जो परमेश्वर के हाथों में है!

“किंतु अब जाकर पशुओं से परामर्श लो, अब वे तुम्हें शिक्षा देने लगें,

आकाश में उड़ते पक्षी तुम्हें सूचना देने लगें;

अन्यथा पृथ्वी से ही वार्तालाप करो, वही तुम्हें शिक्षा दे,

महासागर की मछलियां तुम्हारे लिए शिक्षक हो जाएं.

कौन है तुम्हारे मध्य जो इस सत्य से अनजान है,

कि यह सब याहवेह की कृति है?

किसका अधिकार है हर एक जीवधारी जीवन पर

तथा समस्त मानव जाति के श्वास पर?

क्या कान शब्दों की परख नहीं करता,

जिस प्रकार जीभ भोजन के स्वाद को परखती है?

क्या, वृद्धों में बुद्धि पायी नहीं जाती है?

क्या लंबी आयु समझ नहीं ले आती?

“विवेक एवं बल परमेश्वर के साथ हैं;

निर्णय तथा समझ भी उन्हीं में शामिल हैं.

जो कुछ उनके द्वारा गिरा दिया जाता है, उसे फिर से बनाया नहीं जा सकता;

जब वह किसी को बंदी बना लेते हैं, असंभव है उसका छुटकारा.

सुनो! क्या कहीं सूखा पड़ा है? यह इसलिये कि परमेश्वर ने ही जल रोक कर रखा है;

जब वह इसे प्रेषित कर देते हैं, पृथ्वी जलमग्न हो जाती है.

वही हैं बल एवं ज्ञान के स्रोत;

धोखा देनेवाला तथा धोखा खानेवाला दोनों ही उनके अधीन हैं.

वह मंत्रियों को विवस्त्र कर छोड़ते हैं

तथा न्यायाधीशों को मूर्ख बना देते हैं.

वह राजाओं द्वारा डाली गई बेड़ियों को तोड़ फेंकते हैं

तथा उनकी कमर को बंधन से सुसज्जित कर देते हैं.

वह पुरोहितों को नग्न पांव चलने के लिए मजबूर कर देते हैं

तथा उन्हें, जो स्थिर थे, पराजित कर देते हैं.

वह विश्वास सलाहकारों को अवाक बना देते हैं

तथा बड़ों की समझने की शक्ति समाप्‍त कर देते हैं

वह आदरणीय व्यक्ति को घृणा के पात्र बना छोड़ते हैं.

तथा शूरवीरों को निकम्मा कर देते हैं.

वह घोर अंधकार में बड़े रहस्य प्रकट कर देते हैं,

तथा घोर अंधकार को प्रकाश में ले आते हैं.

वही राष्ट्रों को उन्‍नत करते और फिर उन्हें नष्ट भी कर देते हैं.

वह राष्ट्रों को समृद्ध करते और फिर उसे निवास रहित भी कर देते हैं.

वह विश्व के शासकों की बुद्धि शून्य कर देते हैं

तथा उन्हें रेगिस्तान प्रदेश में दिशाहीन भटकने के लिए छोड़ देते हैं.

वे घोर अंधकार में टटोलते रह जाते हैं

तथा वह उन्हें इस स्थिति में डाल देते हैं, मानो कोई मतवाला लड़खड़ा रहा हो.

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अय्योब 13:1-28

“सुनो, मेरे नेत्र यह सब देख चुके हैं, मेरे कानों ने,

यह सब सुन लिया है तथा मैंने इसे समझ लिया है.

जो कुछ तुम्हें मालूम है, वह सब मुझे मालूम है;

मैं तुमसे किसी भी रीति से कम नहीं हूं,

हां, मैं इसका उल्लेख सर्वशक्तिमान से अवश्य करूंगा,

मेरी अभिलाषा है कि इस विषय में परमेश्वर से वाद-विवाद करूं.

तुम तो झूठी बात का चित्रण कर रहे हो;

तुम सभी अयोग्य वैद्य हो!

उत्तम तो यह होता कि तुम चुप रहते!

इसी में सिद्ध हो जाती तुम्हारी बुद्धिमानी.

कृपा कर मेरे विवाद पर ध्यान दो;

तथा मेरे होंठों की बहस की बातों पर ध्यान करो.

क्या तुम वह बात करोगे, जो परमेश्वर की दृष्टि में अन्यायपूर्ण है?

अथवा वह कहोगे, जो उनकी दृष्टि में छलपूर्ण है?

क्या तुम परमेश्वर के लिए पक्षपात करोगे?

क्या तुम परमेश्वर से वाद-विवाद करोगे?

क्या जब तुम्हारी परख की जाएगी, तो यह तुम्हारे हित में होगा?

अथवा तुम मनुष्यों के समान परमेश्वर से छल करने का यत्न करने लगोगे?

यदि तुम गुप्‍त में पक्षपात करोगे,

तुम्हें उनकी ओर से फटकार ही प्राप्‍त होगी.

क्या परमेश्वर का माहात्म्य तुम्हें भयभीत न कर देगा?

क्या उनका आतंक तुम्हें भयभीत न कर देगा?

तुम्हारी उक्तियां राख के नीतिवचन के समान हैं;

तुम्हारी प्रतिरक्षा मिट्टी समान रह गई है.

“मेरे सामने चुप रहो, कि मैं अपने विचार प्रस्तुत कर सकूं;

तब चाहे कैसी भी समस्या आ पड़े.

भला मैं स्वयं को जोखिम में क्यों डालूं

तथा अपने प्राण हथेली पर लेकर घुमूं?

चाहे परमेश्वर मेरा घात भी करें, फिर भी उनमें मेरी आशा बनी रहेगी;

परमेश्वर के सामने मैं अपना पक्ष प्रस्तुत करूंगा.

यही मेरी छुटकारे का कारण होगा,

क्योंकि कोई बुरा व्यक्ति उनकी उपस्थिति में प्रवेश करना न चाहेगा!

बड़ी सावधानीपूर्वक मेरा वक्तव्य सुन लो;

तथा मेरी घोषणा को मन में बसा लो.

अब सुन लो, प्रस्तुति के लिए मेरा पक्ष तैयार है,

मुझे निश्चय है मुझे न्याय प्राप्‍त होकर रहेगा.

कौन करेगा मुझसे वाद-विवाद?

यदि कोई मुझे दोषी प्रमाणित कर दे, मैं चुप होकर प्राण त्याग दूंगा.

“परमेश्वर, मेरी दो याचनाएं पूर्ण कर दीजिए,

तब मैं आपसे छिपने का प्रयास नहीं करूंगा.

मुझ पर से अपना कठोर हाथ दूर कर लीजिए,

तथा अपने आतंक मुझसे दूर कर लीजिए.

तब मुझे बुला लीजिए कि मैं प्रश्नों के उत्तर दे सकूं,

अथवा मुझे बोलने दीजिए, और इन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कीजिए.

कितने हैं मेरे पाप एवं अपराध?

प्रकट कर दीजिए, मेरा अपराध एवं मेरा पाप.

आप मुझसे अपना मुख क्यों छिपा रहे हैं?

आपने मुझे अपना शत्रु क्यों मान लिया है?

क्या आप एक वायु प्रवाह में उड़ती हुई पत्ती को यातना देंगे?

क्या आप सूखी भूसी का पीछा करेंगे?

आपने मेरे विरुद्ध कड़वे आरोपों की सूची बनाई है

तथा आपने मेरी युवावस्था के पापों को मुझ पर लाद दिया है.

आपने मेरे पांवों में बेड़ियां डाल दी है;

आप मेरे मार्गों पर दृष्टि रखते हैं.

इसके लिए आपने मेरे पांवों के तलवों को चिन्हित कर दिया है.

“तब मनुष्य किसी सड़ी-गली वस्तु के समान नष्ट होता जाता है,

उस वस्त्र के समान, जिसे कीड़े खा चुके हों.

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अय्योब 14:1-22

“स्त्री से जन्मे मनुष्य का जीवन,

अल्पकालिक एवं दुःख भरा होता है.

उस पुष्प समान, जो खिलता है तथा मुरझा जाता है;

वह तो छाया-समान द्रुत गति से विलीन हो जाता तथा अस्तित्वहीन रह जाता है.

क्या इस प्रकार का प्राणी इस योग्य है कि आप उस पर दृष्टि बनाए रखें

तथा उसका न्याय करने के लिए उसे अपनी उपस्थिति में आने दें?

अशुद्ध में से किसी शुद्ध वस्तु की सृष्टि कौन कर सकता है?

कोई भी इस योग्य नहीं है!

इसलिये कि मनुष्य का जीवन सीमित है;

उसके जीवन के माह आपने नियत कर रखे हैं.

साथ आपने उसकी सीमाएं निर्धारित कर दी हैं, कि वह इनके पार न जा सके.

जब तक वह वैतनिक मज़दूर समान अपना समय पूर्ण करता है उस पर से अपनी दृष्टि हटा लीजिए,

कि उसे विश्राम प्राप्‍त हो सके.

“वृक्ष के लिए तो सदैव आशा बनी रहती है:

जब उसे काटा जाता है,

उसके तने से अंकुर निकल आते हैं. उसकी डालियां विकसित हो जाती हैं.

यद्यपि भूमि के भीतर इसकी मूल जीर्ण होती जाती है

तथा भूमि में इसका ठूंठ नष्ट हो जाता है,

जल की गंध प्राप्‍त होते ही यह खिलने लगता है

तथा पौधे के समान यह अपनी शाखाएं फैलाने लगता है.

किंतु मनुष्य है कि, मृत्यु होने पर वह पड़ा रह जाता है;

उसका श्वास समाप्‍त हुआ, कि वह अस्तित्वहीन रह जाता है.

जैसे सागर का जल सूखते रहता है

तथा नदी धूप से सूख जाती है,

उसी प्रकार मनुष्य, मृत्यु में पड़ा हुआ लेटा रह जाता है;

आकाश के अस्तित्वहीन होने तक उसकी स्थिति यही रहेगी,

उसे इस गहरी नींद से जगाया जाना असंभव है.

“उत्तम तो यही होता कि आप मुझे अधोलोक में छिपा देते,

आप मुझे अपने कोप के ठंडा होने तक छिपाए रहते!

आप एक अवधि निश्चित करके

इसके पूर्ण हो जाने पर मेरा स्मरण करते!

क्या मनुष्य के लिए यह संभव है कि उसकी मृत्यु के बाद वह जीवित हो जाए?

अपने जीवन के समस्त श्रमपूर्ण वर्षों में मैं यही प्रतीक्षा करता रह जाऊंगा.

कब होगा वह नवोदय?

आप आह्वान करो, तो मैं उत्तर दूंगा;

आप अपने उस बनाए गये प्राणी की लालसा करेंगे.

तब आप मेरे पैरों का लेख रखेंगे

किंतु मेरे पापों का नहीं.

मेरे अपराध को एक थैली में मोहरबन्द कर दिया जाएगा;

आप मेरे पापों को ढांप देंगे.

“जैसे पर्वत नष्ट होते-होते वह चूर-चूर हो जाता है,

चट्टान अपने स्थान से हट जाती है.

जल में भी पत्थरों को काटने की क्षमता होती है,

तीव्र जल प्रवाह पृथ्वी की धूल साथ ले जाते हैं,

आप भी मनुष्य की आशा के साथ यही करते हैं.

एक ही बार आप उसे ऐसा हराते हैं, कि वह मिट जाता है;

आप उसका स्वरूप परिवर्तित कर देते हैं और उसे निकाल देते हैं.

यदि उसकी संतान सम्मानित होती है, उसे तो इसका ज्ञान नहीं होता;

अथवा जब वे अपमानित किए जाते हैं, वे इससे अनजान ही रहते हैं.

जब तक वह देह में होता है, पीड़ा का अनुभव करता है,

इसी स्थिति में उसे वेदना का अनुभव होता है.”

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