यशायाह 57:14-21, यशायाह 58:1-14, यशायाह 59:1-21 HCV

यशायाह 57:14-21

भग्न हृदयों को याहवेह की शांति

तब यह कहा जाएगा:

“निर्माण करो, निर्माण करो, पांति बांधकर राजमार्ग बनाओ!

हर एक रुकावट मेरी प्रजा के मार्ग से हटाई जाए.”

क्योंकि जो महान, उत्तम और सदा-सर्वदा जीवित रहते हैं—

जिनका नाम ही पवित्र है, वे यों कहते हैं:

“मैं ऊंचे एवं पवित्र स्थान में निवास करता हूं,

और दुःखी तथा नम्र लोगों के साथ भी रहता हूं,

ताकि मैं नम्र और दुःखी

लोगों के मन को खुशी दूं.

क्योंकि मैं सदा-सर्वदा वाद-विवाद करता न रहूंगा,

न ही मैं सर्वदा रुठा रहूंगा,

क्योंकि वे आत्माएं मेरी बनायी हुई हैं—

और जीव मेरे सामने मूर्छित हो जाते हैं.

उसके लालच के कारण मैं उससे क्रोधित होकर;

उसको दुःख दिया और मुंह छिपाया था,

पर वह अपनी इच्छा से दूर चला गया था.

मैंने उसका चालचलन देखा है, फिर भी अब उसको चंगा करूंगा;

मैं उसे ले चलूंगा तथा उसके शोक करनेवालों को शांति दूंगा,

मैं उनके होंठों के फल का रचनेवाला हूं.

जो दूर हैं उन्हें शांति, और पास हैं उन्हें भी मैं शांति दूंगा,”

यह याहवेह का वचन है, “मैं उसे चंगा करूंगा.”

परंतु दुष्ट लहराते हुए सागर समान है,

जो स्थिर रह ही नहीं सकता,

उसकी तरंगें कचरे और कीचड़ को उछालती रहती हैं.

मेरे परमेश्वर का वचन है, “दुष्टों के लिए शांति नहीं.”

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यशायाह 58:1-14

सच्चा उपवास

“ऊंचे स्वर में नारा

लगाओ बिना किसी रोक के.

नरसिंगों का शब्द ऊंचा करो, मेरी प्रजा को उनकी गलती,

तथा याकोब वंश पर उसके पाप की घोषणा करो.

यह सब होने पर भी वे दिन-प्रतिदिन मेरे पास आते;

तथा प्रसन्‍नतापूर्वक मेरी आज्ञाओं को मानते हैं.

मानो वे धर्मी हैं,

जिसने अपने परमेश्वर के नियम को नहीं टाला.

वे मुझसे धर्म के बारे में पूछते

और परमेश्वर के पास आने की इच्छा रखते हैं.

‘ऐसा क्यों हुआ कि हमने उपवास किया,

किंतु हमारी ओर आपका ध्यान ही नहीं गया?

हमने दुःख उठाया,

किंतु आपको दिखाई ही नहीं दिया?’

“इसका कारण यह है कि जब तुम उपवास करते हो, तब तुम अपनी अभिलाषाओं पर नियंत्रण नहीं रखते,

तुम उस समय अपने सेवकों को कष्ट देते हो.

तुम यह समझ लो कि तुम उपवास भी करते हो तथा इसके साथ साथ वाद-विवाद,

तथा कलह भी करते हो और लड़ते झगड़ते हो.

उस प्रकार के उपवास से यह संभव ही नहीं

कि तुम्हारी पुकार सुनी जाएगी.

क्या ऐसा होता है उपवास,

जो कोई स्वयं को दीन बनाए?

या कोई सिर झुकाए या

टाट एवं राख फैलाकर बैठे?

क्या इसे ही तुम उपवास कहोगे,

क्या ऐसा उपवास याहवेह ग्रहण करेंगे?

“क्या यही वह उपवास नहीं, जो मुझे खुशी देता है:

वह अंधेर सहने के बंधन को तोड़ दे,

जूए उतार फेंके और उनको छुड़ा लिया जाए?

क्या इसका मतलब यह नहीं कि तुम भूखों को अपना भोजन बांटा करो

तथा अनाथों को अपने घर में लाओ—

जब किसी को वस्त्रों के बिना देखो, तो उन्हें वस्त्र दो,

स्वयं को अपने सगे संबंधियों से दूर न रखो?

जब तुम यह सब करने लगोगे तब तुम्हारा प्रकाश चमकेगा,

और तू जल्दी ठीक हो जायेगा;

और तेरा धर्म तेरे आगे-आगे चलेगा,

तथा याहवेह का तेज तेरे पीछे तुम्हारी रक्षा करेगा.

उस समय जब तुम याहवेह की दोहाई दोगे, तो वह उसका उत्तर देंगे;

तुम पुकारोगे, तब वह कहेंगे: मैं यहां हूं.

“यदि तुम अपने बीच से दुःख का जूआ हटा दोगे,

जब उंगली से इशारा करेंगे तब दुष्ट बातें करना छोड़ देंगे,

जब तुम भूखे की सहायता करोगे

तथा दुखियों की मदद करोगे,

तब अंधकार में तेरा प्रकाश चमकेगा,

तथा घोर अंधकार दोपहर समान उजियाला देगा.

याहवेह तुझे लगातार लिये चलेगा;

और सूखे में तुझे तृप्‍त करेगा

वह तुम्हारी हड्डियों में बल देगा.

तुम सींची हुई बारी के समान हो जाओगे,

तथा उस सोते का जल कभी न सूखेगा.

खंडहर को तेरे वंश के लिये फिर से बसायेंगे

और पीढ़ियों से पड़ी हुई नींव पर घर बनाएगा;

टूटे हुए बाड़े और सड़क को,

ठीक करनेवाला कहलायेगा.

“यदि तुम शब्बाथ दिन को अशुद्ध न करोगे,

अर्थात् मेरे पवित्र दिन के हित में अपनी इच्छा को छोड़ देते हो,

शब्बाथ दिन को आनंद का दिन मानकर

और याहवेह के पवित्र दिन का सम्मान करते हो,

अपनी इच्छाओं को छोड़कर

अपनी बातें न बोले,

तू याहवेह के कारण आनंदित होगा,

मैं तुम्हें पृथ्वी की ऊंचाइयों तक ले जाऊंगा

और तुम्हारे पिता याकोब के भाग की उपज से खायेगा.”

क्योंकि यह याहवेह के मुंह से निकला वचन है.

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यशायाह 59:1-21

पाप, पश्चात्ताप और उद्धार

याहवेह का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सकें,

न ही वह बहरे हो चुके कि सुन न सकें.

परंतु तुम्हारे बुरे कामों ने

तुम्हारे एवं परमेश्वर के बीच में दूरी बना दी है;

उनके मुंह को उन्होंने तुम्हारे ही पापों के कारण छिपा रखा है,

कि वह नहीं सुनता.

खून से तुम्हारे हाथ तथा अधर्म से तुम्हारी उंगलियां दूषित हो चुकी हैं,

तुम्हारे होंठों ने झूठ बोला है.

तुम्हारी जीभ दुष्टता की बातें कहती है.

कोई भी धर्म व्यवहार में नहीं लाता;

कोई भी सच्चाई से मुकदमा नहीं लड़ता.

वे झूठ बोलते हैं और छल पर भरोसा रखते हैं;

वे अनिष्ट का गर्भधारण करते हैं तथा पाप को जन्म देते हैं.

वे विषैले सांप के अंडे सेते हैं

तथा मकड़ी का जाल बुनते हैं.

जो कोई उनके अण्डों का सेवन करता है, उसकी मृत्यु हो जाती है,

तथा कुचले अंडे से सांप निकलता है.

उनके द्वारा बुने गए जाल से वस्त्र नहीं बन सकते;

अपनी शिल्पकारी से वे अपने आपको आकार नहीं दे सकते.

उनके काम तो अनर्थ ही हैं,

उनके हाथ से हिंसा के काम होते हैं.

उनके पैर बुराई करने के लिए दौड़ते हैं;

निर्दोष की हत्या करने को तैयार रहते हैं.

उनके विचार व्यर्थ होते हैं;

उनका मार्ग विनाश एवं उजाड़ से भरा है.

शांति का मार्ग वे नहीं जानते;

न उनके स्वभाव में न्याय है.

उन्होंने अपने मार्ग को टेढ़ा कर रखा है;

इस मार्ग में कोई व्यक्ति शांति न पायेगा.

इस कारण न्याय हमसे दूर है,

धर्म हम तक नहीं पहुंचता.

हम उजियाले की राह देखते हैं, यहां तो अंधकार ही अंधकार भरा है;

आशा की खोज में हम अंधकार में आगे बढ़ रहे हैं.

हम अंधों के समान दीवार को ही टटोल रहे हैं,

दिन में ऐसे लड़खड़ा रहे हैं मानो रात है;

जो हृष्ट-पुष्ट हैं उनके बीच हम मृत व्यक्ति समान हैं.

हम सभी रीछ के समान गुर्राते हैं;

तथा कबूतरों के समान विलाप में कराहते हैं.

हम न्याय की प्रतीक्षा करते हैं, किंतु न्याय नहीं मिलता;

हम छुटकारे की राह देखते हैं, किंतु यह हमसे दूर है.

हमारे अपराध आपके सामने बहुत हो गये हैं,

हमारे ही पाप हमारे विरुद्ध गवाही दे रहे हैं:

हमारे अपराध हमारे साथ जुड़ गए हैं,

हम अपने अधर्म के काम जानते हैं:

हमने याहवेह के विरुद्ध अपराध किया, हमने उन्हें ठुकरा दिया

और परमेश्वर के पीछे चलना छोड़ दिया,

हम अंधेर और गलत बातें करने लगे,

झूठी बातें सोची और कही भी है.

न्याय को छोड़ दिया है,

तथा धर्म दूर खड़ा हुआ है;

क्योंकि सत्य तो मार्ग में गिर गया है,

तथा सीधाई प्रवेश नहीं कर पाती है.

हां यह सच है कि सच्चाई नहीं रही,

वह जो बुराई से भागता है, वह खुद शिकार हो जाता है.

न्याय तथा मुक्ति याहवेह ने देखा तथा उन्हें यह सब अच्छा नहीं लगा

क्योंकि कहीं भी सच्चाई और न्याय नहीं रह गया है.

उसने देखा वहां कोई भी मनुष्य न था,

और न कोई मध्यस्थता करनेवाला है;

तब उसी के हाथ ने उसका उद्धार किया,

तथा उसके धर्म ने उसे स्थिर किया.

उन्होंने धर्म को कवच समान पहन लिया,

उनके सिर पर उद्धार का टोप रखा गया;

उन्होंने पलटा लेने का वस्त्र पहना

तथा उत्साह का वस्त्र बाहर लपेट लिया.

वह उनके कामों के अनुरूप ही,

उन्हें प्रतिफल देंगे

विरोधियों पर क्रोध

तथा शत्रुओं पर बदला देंगे.

तब पश्चिम दिशा से, उन पर याहवेह का भय छा जाएगा,

तथा पूर्व दिशा से, उनकी महिमा का भय मानेंगे.

जब शत्रु आक्रमण करेंगे

तब याहवेह का आत्मा उसके विरुद्ध झंडा खड़ा करेगा.

“याकोब वंश में से जो अपराध से मन फिराते हैं,

ज़ियोन में एक छुड़ाने वाला आयेगा,”

यह याहवेह की वाणी है.

“मेरी स्थिति यह है, उनके साथ मेरी वाचा है,” यह याहवेह का संदेश है. “मेरा आत्मा, जो तुम पर आया है, तथा मेरे वे शब्द, जो मैंने तुम्हारे मुंह में डाले; वे तुम्हारे मुंह से अलग न होंगे, न तुम्हारी संतान के मुंह से, न ही तुम्हारी संतान की संतान के मुंह से, यह सदा-सर्वदा के लिए आदेश है.” यह याहवेह की घोषणा है.

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