प्रेरितमन के काम 26 – NCA & NASV

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

प्रेरितमन के काम 26:1-32

1राजा अगरिप्पा ह पौलुस ला कहिस, “तोला अपन बारे म बोले के अनुमती हवय।” तब पौलुस ह अपन हांथ ले इसारा करिस अऊ अपन बचाव म ए किसम ले जबाब दीस, 2“हे राजा अगरिप्पा! यहूदीमन जऊन बात के मोर ऊपर दोस लगावथें, आज तोर आघू म ओकर जबाब देय म, मेंह अपन-आप ला भाग्यवान समझत हंव। 3अऊ बिसेस करके एकरसेति कि तेंह यहूदीमन के जम्मो रीति-रिवाज अऊ बिवाद मन ला बने करके जानथस। मेंह तोर ले बिनती करत हंव कि धीरज धरके मोर बात ला सुन।

4मेंह लइकापन ले लेके अब तक कइसने अपन जिनगी ला अपन देस म अऊ यरूसलेम म जीये हवंव, यहूदीमन ओ जम्मो ला जानत हवंय। 5ओमन बहुंत समय ले मोला जानत हवंय, अऊ कहूं चाहंय, त ओमन गवाही घलो दे सकत हें कि मेंह एक फरीसी के रूप म हमर धरम के सबले कठोर पंथ के मुताबिक जिनगी बिताय हवंव। 6अऊ एह मोर ओ आसा के कारन जेकर वायदा परमेसर ह हमर पुरखामन ले करे रिहिस, मोर ऊपर मुकदमा चलत हवय। 7ओहीच वायदा के पूरा होय के आसा म, हमर बारह गोत्र के मनखेमन अपन जम्मो हिरदय ले दिन अऊ रात परमेसर के सेवा करत आय हवंय। हे राजा! इही आसा के कारन, यहूदीमन मोर ऊपर दोस लगावत हवंय। 8तुमन एला काबर अबिसवास के बात समझत हव कि परमेसर ह मरे मनखे ला जियाथे?

9मेंह घलो ए समझत रहेंव कि यीसू नासरी के नांव के बिरोध म, जऊन कुछू हो सकथे, मोला करना चाही। 10अऊ मेंह यरूसलेम म अइसनेच करेंव। मेंह मुखिया पुरोहितमन ले अधिकार पाके परमेसर के बहुंते मनखेमन ला जेल म डारेंव, अऊ जब ओमन मार डारे जावंय, त मेंह ओमन के बिरोध म अपन सहमती देवत रहेंव। 11कतको बार मेंह ओमन ला सजा देवाय बर एक सभा घर ले दूसर सभा घर म गेंव, अऊ ओमन ले जबरन यीसू के निन्दा करवाय के कोसिस करेंव। ओमन के बिरोध म गुस्सा के मारे, मेंह ओमन ला सताय बर इहां तक कि दूसर देस के सहरमन म घलो गेंव।

12एही काम खातिर, मेंह मुखिया पुरोहितमन ले अधिकार अऊ हुकूम पाके दमिस्क सहर ला जावत रहेंव। 13तब हे राजा! मंझन के बेरा, रसता म मेंह अकास ले एक अंजोर देखेंव, जऊन ह सूरज ले जादा चमकत रहय अऊ ओह मोर अऊ मोर संगीमन के चारों खूंट चमकिस। 14हमन जम्मो भुइयां म गिर पड़ेन, अऊ मेंह इबरानी भासा म मोर ले ए कहत एक अवाज सुनेंव, ‘हे साऊल, हे साऊल, तेंह मोला काबर सतावत हस? नुकिला छड़ी म लात मारना तोर बर कठिन ए।’

15तब मेंह पुछेंव, ‘हे परभू, तेंह कोन अस?’

त परभू ह कहिस, ‘मेंह यीसू अंव, जऊन ला तेंह सतावत हस। 16अब उठ अऊ अपन गोड़ म ठाढ़ हो जा। मेंह तोला एकर खातिर दरसन दे हवंव कि मेंह तोला ओ बातमन के सेवक अऊ गवाह बनावंव, जऊन ला तेंह मोर म देखे हवस अऊ जऊन ला मेंह तोला देखाहूं। 17मेंह तोला इसरायली अऊ आनजातमन ले बचाहूं, जेमन करा मेंह तोला पठोवत हवंव। 18मेंह तोला एकरसेति पठोवत हवंव कि तेंह ओमन के आंखी ला उघार अऊ ओमन ला अंधियार ले अंजोर कोति अऊ सैतान के सक्ति ले परमेसर कोति बहुर के लान, ताकि मोर ऊपर बिसवास करे के दुवारा ओमन ला पाप के माफी मिलय अऊ परमेसर के चुने मनखेमन के बीच म ओमन जगह पावंय।’

19एकरसेति, हे राजा अगरिप्पा, मेंह ओ स्वरगीय दरसन के बात ला नइं टारंय। 20पहिली मेंह दमिस्क म, तब यरूसलेम म अऊ जम्मो यहूदिया प्रदेस म, यहूदीमन ला अऊ आनजातमन ला घलो परचार करंय कि ओमन पाप ले मन फिरावंय अऊ परमेसर कोति लहुंटंय अऊ अपन काम के दुवारा मन फिराय के सबूत देवंय। 21एकरे कारन यहूदीमन मोला मंदिर म पकड़के मार डारे के कोसिस करिन। 22पर परमेसर के मदद ले, मेंह आज इहां ठाढ़े हवंव अऊ छोटे-बड़े जम्मो ला बरोबर गवाही देवत हवंव। मेंह ओ बातमन ला छोंड़के, अऊ कुछू नइं कहत हंव जऊन ला अगमजानीमन अऊ मूसा ह घलो कहिस कि ए बातमन पूरा होवइया हवय 23कि मसीह ला दुःख उठाय बर पड़ही, अऊ ओह सबले पहिली मरे मन ले जी उठही अऊ अपन यहूदी मनखे अऊ आनजातमन ला उद्धार के संदेस के परचार करही।”

24जब पौलुस ह अपन बारे म अइसने जबाब देवत रिहिस, त फेसतुस ह ओला चिचियाके कहिस, “हे पौलुस, तेंह बइहा गे हवस। तोर बहुंते गियान ह तोला बइहा कर दे हवय।”

25पौलुस ह कहिस, “हे महा परतापी फेसतुस, मेंह बइहा नो हंव। मेंह सच अऊ गम्भीर बात कहत हंव। 26राजा अगरिप्पा घलो ए बातमन ला जानत हवय। मेंह बिगर डरे ओला कह सकत हंव। मोला बिसवास हवय कि ए बातमन ओकर ले छुपे नइं ए, काबरकि ए बात ह अंधियार म नइं होय हवय। 27हे राजा अगरिप्पा! का तेंह अगमजानीमन ऊपर बिसवास करथस? मेंह जानत हंव कि तेंह करथस।”

28तब राजा अगरिप्पा ह पौलुस ला कहिस, “का तेंह सोचथस कि ए थोरकन समय म मोला मसीही बना लेबे?”

29पौलुस ह कहिस, “थोरकन समय या बहुंते समय म – मेंह परमेसर ले पराथना करत हंव कि तें ही नइं, पर जम्मो झन जऊन मन मोर बात ला सुनत हवंय, आज ही मोर सहीं बन जावंय। पर मेंह ए नइं चाहंव कि ओमन मोर सहीं कैदी बनंय।”

30तब राजा अगरिप्पा, राजपाल, बिरनीके अऊ जऊन मन ओमन के संग बईठे रहंय, ओ जम्मो झन ठाढ़ हो गीन। 31अऊ कमरा ले निकरके एक-दूसर ले गोठियावत ए कहिन, “ए मनखे ह अइसने कुछू नइं करे हवय, जेकर कारन एला मार डारे जावय या एला जेल म रखे जावय।”

32तब राजा अगरिप्पा ह फेसतुस ला कहिस, “यदि ए मनखे ह रोमी महाराजा करा अपील नइं करे होतिस, त एला छोंड़े जा सकत रिहिस।”

New Amharic Standard Version

ሐዋርያት ሥራ 26:1-32

1አግሪጳም ጳውሎስን፣ “ስለ ራስህ እንድትናገር ተፈቅዶልሃል” አለው።

በዚህ ጊዜ ጳውሎስ እጁን ዘርግቶ እንዲህ ሲል መከላከያውን አቀረበ፤ 2“ንጉሥ አግሪጳ ሆይ፤ አይሁድ በእኔ ላይ ላቀረቡት ክስ ሁሉ ዛሬ በፊትህ የመከላከያ መልስ ለማቅረብ በመቻሌ ራሴን እንደ ዕድለኛ እቈጥረዋለሁ፤ 3ይኸውም አንተ በተለይ የአይሁድን ልማድና ክርክር ሁሉ በሚገባ ስለምታውቅ ነው፤ ስለዚህ በትዕግሥት እንድታደምጠኝ እለምንሃለሁ።

4“ገና ከልጅነቴ ጀምሮ፣ በአገሬም ሆነ በኢየሩሳሌም እንዴት እንደ ኖርሁ አይሁድ ሁሉ ያውቃሉ፤ 5ደግሞም ከብዙ ጊዜ ጀምሮ ስለሚያውቁኝ ከሃይማኖታችን እጅግ ጥብቅ በሆነው ወገን ውስጥ ሆኜ እንደ አንድ ፈሪሳዊ መኖሬን ሊመሰክሩ ፈቃደኞች ከሆኑ ቃላቸውን ሊሰጡ ይችላሉ። 6አሁንም ተከስሼ እዚህ የቀረብሁበት ምክንያት፣ እግዚአብሔር ለአባቶቻችን ቃል የገባውን ነገር ተስፋ በማድረጌ ነው። 7ዐሥራ ሁለቱ ነገዶቻችን ቀንና ሌሊት እግዚአብሔርን ከልብ እያገለገሉ፣ ሲፈጸም ለማየት የሚተጉለትም ተስፋ ይኸው ነው። ንጉሥ ሆይ፤ አይሁድም የሚከስሱኝ ስለዚሁ ተስፋ ነው። 8ለመሆኑ፣ እግዚአብሔር ሙታንን ማስነሣት እንደማይችል አድርጋችሁ የምትቈጥሩት ለምንድን ነው?

9“እኔም ራሴ የናዝሬቱን የኢየሱስን ስም በምችለው መንገድ ሁሉ መቃወም እንዳለብኝ ወስኜ ነበር። 10በኢየሩሳሌምም ያደረግሁት ይህንኑ ነበር፤ ከካህናት አለቆች ሥልጣን ተቀብዬ ብዙ ቅዱሳንን አሳስሬአለሁ፤ በመገደላቸውም ተስማምቻለሁ፤ 11ላስቀጣቸውም ብዙ ጊዜ ከምኵራብ ምኵራብ እየተዘዋወርሁ፣ የስድብ ቃል እንዲናገሩ አስገድዳቸው ነበር፤ በቍጣም ተሞልቼ በውጭ አገር እስከሚገኙ ከተሞች ድረስ ተከታትዬ አሳደድኋቸው።

12“በዚህ መሠረት አንድ ቀን ከካህናት አለቆች ሥልጣንና ትእዛዝ ተቀብዬ ወደ ደማስቆ በምጓዝበት ጊዜ፣ 13ንጉሥ ሆይ፤ እኩለ ቀን ላይ በመንገድ ሳለሁ፣ ብሩህነቱ ከፀሓይ የሚበልጥ ብርሃን በእኔና በባልንጀሮቼ ዙሪያ ከሰማይ ሲያበራ አየሁ፤ 14ሁላችንም በምድር ላይ ወደቅን፤ እኔም በዕብራይስጥ26፥14 ወይም አራማይክ ቋንቋ፣ ‘ሳውል፤ ሳውል፤ ለምን ታሳድደኛለህ? መውጊያውን ብትጋፋ ጕዳቱ በአንተ ይብሳል’ የሚለኝን ድምፅ ሰማሁ።

15“እኔም፣ ‘ጌታ ሆይ፤ አንተ ማን ነህ?’ ” አልሁ።

“ጌታም እንዲህ አለኝ፤ ‘እኔ፣ አንተ የምታሳድደኝ ኢየሱስ ነኝ። 16አሁንም፣ ተነሣና በእግርህ ቁም፤ ስለ እኔ ስላየኸውና ወደ ፊትም ስለማሳይህ ነገር አገልጋይና ምስክር እንድትሆን ልሾምህ ተገልጬልሃለሁ። 17ከገዛ ሕዝብህና ወደ እነርሱ ከምልክህ ከአሕዛብ አድንሃለሁ፤ 18አንተም ዐይናቸውን ትከፍታለህ፤ ከጨለማ ወደ ብርሃን፣ ከሰይጣንም ሥልጣን ወደ እግዚአብሔር ትመልሳቸዋለህ፤ እነርሱም የኀጢአትን ይቅርታ ይቀበላሉ፤ በእኔም በማመን በተቀደሱት መካከል ርስት ያገኛሉ።’

19“እንግዲህ፣ ንጉሥ አግሪጳ ሆይ፤ ከሰማይ ለታየኝ ራእይ አልታዘዝ አላልሁም፤ 20ነገር ግን በመጀመሪያ በደማስቆ ለሚኖሩ፣ ቀጥሎም በኢየሩሳሌምና በይሁዳ ላሉት ሁሉ፣ ከዚያም ለአሕዛብ፣ ንስሓ እንዲገቡና ወደ እግዚአብሔር እንዲመለሱ፣ የንስሓም ፍሬ እንዲያሳዩ ገልጬ ተናገርሁ። 21አይሁድም በመቅደስ ይዘው ሊገድሉኝ የሞከሩት በዚሁ ምክንያት ነው። 22የእግዚአብሔር ርዳታ እስከ ዛሬ ስላልተለየኝ፣ እነሆ፤ እዚህ ቆሜ ለትንሹም ለትልቁም እመሰክራለሁ፤ ነቢያትና ሙሴ ይሆናል፣ ይፈጸማል ካሉት በስተቀር አንዳች ነገር አልተናገርሁም፤ 23ይኸውም ክርስቶስ26፥23 ወይም መሲሕ መከራን እንደሚቀበልና ከሙታን ቀዳሚ ሆኖ በመነሣት ለሕዝቡና ለአሕዛብ ብርሃንን እንደሚሰብክ ነው።”

24ፊስጦስም የጳውሎስን ንግግር እዚህ ላይ በማቋረጥ ድምፁን ከፍ አድርጎ፣ “ጳውሎስ ሆይ፤ አእምሮህን ስተሃል፤ የትምህርትህም ብዛት አሳብዶሃል” አለው።

25ጳውሎስ ግን እንዲህ ሲል መለሰ፤ “ክቡር ፊስጦስ ሆይ፤ የምናገረው እውነተኛና ትክክለኛ ነገር እንጂ እብድስ አይደለሁም። 26ይህን የምናገረውን ነገር ንጉሡ ያውቀዋልና፤ በፊቱ በልበ ሙሉነት እናገራለሁ፤ ደግሞም በድብቅ የተደረገ ነገር ባለመኖሩ፣ ከዚህ ነገር አንድም እንደማይሰወርበት ርግጠኛ ነኝ። 27ንጉሥ አግሪጳ ሆይ፤ ነቢያትን ታምን የለም ወይ? አዎን፤ እንደምታምን ዐውቃለሁ።”

28አግሪጳም ጳውሎስን፣ “እንዲህ በቀላሉ ክርስቲያን የምታደርገኝ ይመስልሃልን?” አለው።

29ጳውሎስም፣ “በቀላሉም ሆነ በብዙ፣ አንተ ብቻ ሳትሆን ዛሬ የሚሰሙኝ ሁሉ፣ ከዚህ ከታሰርሁበት ሰንሰለት በስተቀር፣ እንደ እኔ ይሆኑ ዘንድ እግዚአብሔርን እለምናለሁ” አለ።

30ከዚህ በኋላ ንጉሡም፣ አገረ ገዥውም፣ በርኒቄም፣ ከእነርሱ ጋር የተቀመጡትም ተነሡ፤ 31ወጥተውም ሲሄዱ፣ “ይህ ሰው እንኳን ለሞት፣ ለእስራት የሚያበቃው ነገር አላደረገም” ተባባሉ።

32አግሪጳም ፊስጦስን፣ “ይህ ሰው ወደ ቄሳር ይግባኝ ባይል ኖሮ መልቀቅ ይቻል ነበር” አለው።