الْمَزْمُورُ الْخَامِسُ وَالتِّسْعُونَ
1هَيَّا نُرَنِّمُ عَالِياً لِلرَّبِّ، وَنَهْتِفُ فَرَحاً لِصَخْرَةِ خَلاصِنَا. 2لِنَتَقَدَّمْ أَمَامَ حَضْرَتِهِ بِالشُّكْرِ، وَنَهْتِفْ لَهُ بِالتَّرْنِيمِ. 3لأَنَّ الرَّبَّ إِلَهٌ عَظِيمٌ، وَمَلِكٌ كَبِيرٌ عَلَى جَمِيعِ الآلِهَةِ. 4فِي يَدِهِ أَعْمَاقُ الأَرْضِ، وَقِمَمُ الْجِبَالِ مِلْكٌ لَهُ. 5لَهُ الْبَحْرُ، وَهُوَ قَدْ صَنَعَهُ، وَيَدَاهُ كَوَّنَتَا الْيَابِسَةَ.
6تَعَالَوْا نَسْجُدُ وَنَنْحَنِي، لِنَرْكَعْ أَمَامَ الرَّبِّ صَانِعِنَا، 7فَإِنَّهُ هُوَ إِلَهُنَا، وَنَحْنُ رَعِيَّتُهُ وَقَطِيعُهُ الَّذِي يَقُودُهُ بِيَدِهِ. الْيَوْمَ إِنْ سَمِعْتُمْ صَوْتَهُ، 8فَلَا تُقَسُّوا قُلُوبَكُمْ، كَمَا حَدَثَ فِي يَوْمِ مَسَّةَ (أَيْ الامْتِحَانِ) فِي الصَّحْرَاءِ، 9عِنْدَمَا امْتَحَنَنِي آبَاؤُكُمْ وَاخْتَبَرُونِي وَشَهِدُوا جَمِيعَ عَجَائِبِي. 10أَرْبَعِينَ سَنَةً رَفَضْتُ ذَلِكَ الْجِيلَ، وَقُلْتُ: «هُمْ شَعْبٌ أَضَلَّتْهُمْ قُلُوبُهُمْ وَلَمْ يَعْرِفُوا قَطُّ طُرُقِي». 11فَأَقْسَمْتُ فِي غَضَبِي قَائِلاً: «إِنَّهُمْ لَنْ يَدْخُلُوا مَكَانَ رَاحَتِي».
स्तोत्र 95
1चलो, हम याहवेह के स्तवन में आनंदपूर्वक गाएं;
अपने उद्धार की चट्टान के लिए उच्च स्वर में मनोहारी संगीत प्रस्तुत करें.
2हम धन्यवाद के भाव में उनकी उपस्थिति में आएं
स्तवन गीतों में हम मनोहारी संगीत प्रस्तुत करें.
3इसलिये कि याहवेह महान परमेश्वर हैं,
समस्त देवताओं के ऊपर सर्वोच्च राजा हैं.
4पृथ्वी की गहराइयों पर उनका नियंत्रण है,
पर्वत शिखर भी उनके अधिकार में हैं.
5समुद्र उन्हीं का है, क्योंकि यह उन्हीं की रचना है,
सूखी भूमि भी उन्हीं की हस्तकृति है.
6आओ, हम नतमस्तक होकर आराधना करें,
हम याहवेह, हमारे सृजनहार के सामने घुटने टेकें!
7क्योंकि वह हमारे परमेश्वर हैं
और हम उनके चराई की प्रजा हैं,
उनकी अपनी संरक्षित95:7 मूल भाषा में हाथ की भेड़ें.
यदि आज तुम उनका स्वर सुनते हो,
8“अपने हृदय कठोर न कर लेना. जैसे तुमने मेरिबाह95:8 अर्थ: झगड़ा, निर्ग 17:7 देखें में किया था,
जैसे तुमने उस समय बंजर भूमि में मस्साह95:8 अर्थ: परीक्षा, निर्ग 17:7 देखें नामक स्थान पर किया था,
9जहां तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे परखा और मेरे धैर्य की परीक्षा ली थी;
जबकि वे उस सबके गवाह थे, जो मैंने उनके सामने किया था.
10उस पीढ़ी से मैं चालीस वर्ष उदास रहा;
मैंने कहा, ‘ये ऐसे लोग हैं जिनके हृदय फिसलते जाते हैं,
वे मेरे मार्ग समझ ही न सके हैं.’
11तब अपने क्रोध में मैंने शपथ ली,
‘मेरे विश्राम में उनका प्रवेश कभी न होगा.’ ”