سلة الثمار الناضجة
1ثُمَّ أَرَانِي السَّيِّدُ الرَّبُّ فِي رُؤْيَا سَلَّةً لِقِطَافِ الثِّمَارِ. 2وَسَأَلَنِي: «مَاذَا تَرَى يَا عَامُوسُ؟» فَأَجَبْتُ: «سَلَّةً مَلِيئَةً بِثِمَارِ الصَّيْفِ النَّاضِجَةِ». فَقَالَ لِي الرَّبُّ: «لَقَدْ دَنَتْ نِهَايَةُ شَعْبِي إِسْرَائِيلَ وَلَنْ أَعْفُوَ عَنْهُمْ بَعْدُ. 3فَتَتَحَوَّلُ أَغَانِي قُصُورِهِمْ إِلَى عَوِيلٍ فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ، وَتَكْثُرُ الْجُثَثُ وَيَطْرَحُونَهَا فِي كُلِّ مَكَانٍ بِصَمْتٍ».
4اسْتَمِعُوا هَذَا أَيُّهَا الدَّائِسُونَ عَلَى الْبَائِسِينَ، يَا مَنْ حَاوَلْتُمْ أَنْ تَقْضُوا عَلَى فُقَرَاءِ الأَرْضِ، 5قَائِلِينَ: «مَتَى يَنْقَضِي أَوَّلُ الشَّهْرِ حَتَّى نَبِيعَ الْقَمْحَ؟ مَتَى يَمْضِي السَّبْتُ لِنَعْرِضَ الْقَمْحَ فِي السُّوقِ، فَنَعْمَدَ إِلَى تَصْغِيرِ حَجْمِ مِكْيَالِ الإِيفَةِ وَنَرْفَعَ الأَسْعَارَ، وَنَسْتَعْمِلَ مِيزَاناً مَغْشُوشاً. 6لِنَشْتَرِيَ الْمِسْكِينَ بِقِطْعَةٍ مِنَ الْفِضَّةِ، وَالْبَائِسَ بِنَعْلَيْنِ، وَنَبِيعَ نُفَايَةَ الْقَمْحِ؟»
7قَدْ أَقْسَمَ الرَّبُّ بِعِزَّةِ يَعْقُوبَ قَائِلاً: «لَنْ أَنْسَى شَيْئاً مِنْ مَسَاوِئِهِمْ. 8ألا تَرْتَعِبُ الأَرْضُ مِنْ جَرَّاءِ ذَلِكَ، فَيَنُوحَ كُلُّ سَاكِنٍ فِيهَا، فَتَطْمُوَ كَنَهْرٍ، وَتَرْتَفِعَ وَتَنْخَفِضَ كَنِيلِ مِصْرَ؟ 9وَيَقُولُ الرَّبُّ: فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ أَجْعَلُ الشَّمْسَ تَغْرُبُ عِنْدَ الظَّهِيرَةِ، وَأَغْمُرُ الأَرْضَ بِالظُّلْمَةِ فِي رَابِعَةِ النَّهَارِ. 10أُحَوِّلُ أَعْيَادَكُمْ إِلَى مَآتِمَ، وَأَغَانِيَكُمْ إِلَى مَرَاثٍ، وَأُلْبِسُكُمُ الْمُسُوحَ عَلَى أَحْقَائِكُمْ، وَأُفْشِي الصَّلَعَ فِي كُلِّ رَأْسٍ، فَتُصْبِحُ أَعْيَادُكُمْ كَمَنَاحَةٍ عَلَى وَحِيدٍ، وَنِهَايَتُهَا كَيَوْمٍ مُفْعَمٍ بِالْمَرَارَةِ.
11سَتَأْتِي أَيَّامٌ أَجْعَلُ فِيهَا الْمَجَاعَةَ تَنْتَشِرُ فِي الأَرْضِ، لَا مَجَاعَةً إِلَى الْخُبْزِ، وَلا ظَمَأً إِلَى الْمَاءِ إِنَّمَا لِسَمَاعِ كَلامِ الرَّبِّ، يَقُولُ السَّيِّدُ الرَّبُّ. 12فَيَهِيمُونَ مِنْ بَحْرٍ إِلَى بَحْرٍ، وَمِنَ الشِّمَالِ إِلَى الشَّرْقِ. يَذْهَبُونَ وَيَجِيئُونَ بَحْثاً عَنْ كَلِمَةِ الرَّبِّ وَلا يَحْظَوْنَ بِها. 13فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ يُغْشَى عَلَى العَذَارَى الْجَمِيلاتِ وَالْفِتْيَانِ مِنْ فَرْطِ الظَّمَإِ. 14أَمَّا الَّذِينَ يُقْسِمُونَ بِأَوْثَانِ السَّامِرَةِ قَائِلِينَ: حَيٌّ إِلَهُكَ يَا دَانُ، وَحَيٌّ مَعْبُودُ بِئْرِ سَبْعٍ. هَؤُلاءِ يَسْقُطُونَ وَلا يَنْهَضُونَ أَبَداً ثَانِيَةً».
एक टोकरी पके फल
1प्रभु याहवेह ने मुझे यह दिखाया: एक टोकरी पके फल. 2तब उन्होंने मुझसे पूछा, “हे आमोस, तुम्हें क्या दिख रहा है?”
मैंने उत्तर दिया, “एक टोकरी पके फल.”
तब याहवेह ने मुझसे कहा, “मेरे लोग इस्राएलियों का समय पक गया है; अब मैं उनको नहीं छोड़ूंगा.”
3प्रभु याहवेह की घोषणा है, “उस दिन मंदिर में गीत विलाप में बदल जाएंगे. बहुत सारे शव हर जगह पड़े होंगे! और सन्नाटा होगा!”
4तुम, जो ज़रूरतमंद लोगों को कुचलते रहते हो
और देश के गरीबों को मिटाते रहते हो, सुनो!
5तुम कहते हो,
“कब समाप्त होगा नया चांद का उत्सव
कि हम अनाज बेच सकें,
कब शब्बाथ8:5 शब्बाथ सातवां दिन जो विश्राम का पवित्र दिन है समाप्त होगा
कि हम गेहूं का खरीदी-बिक्री कर सकें?”
कम चीज़ों को ज्यादा मूल्य पर बेचें
और ग्राहक को छल की नाप से ठगें,
6चांदी की मुद्रा से गरीबों को
और ज़रूरतमंद लोगों को एक जोड़ी जूते से खरीदें,
और तो और गेहूं की भूसी को भी बेच दें.
7याहवेह जो याकोब का घमंड है, उसने स्वयं की यह शपथ खाई है: “उन्होंने जो किया है, उसे मैं कभी नहीं भूलूंगा.
8“क्या इस कारण धरती न कांपेंगी,
और जो इसमें रहते हैं, वे शोकित न होंगे?
समस्त पृथ्वी नील नदी के समान उफनेगी;
यह मिस्र देश के नदी समान
ऊंची की जाएगी और फिर दबा दी जाएगी.”
9प्रभु याहवेह यह घोषणा करते हैं,
“उस दिन, दोपहर के समय ही मैं सूर्यास्त कर दूंगा
और दिन-दोपहरी में ही पृथ्वी पर अंधकार कर दूंगा.
10मैं तुम्हारे धार्मिक उत्सवों को शोक में
और तुम्हारे समस्त गीतों को विलाप में बदल दूंगा.
मैं तुम सबको टाट का कपड़ा (शोक-वस्त्र) पहनाऊंगा
और सबके सिरों को मुड़ाऊंगा.
मैं उस समय को किसी के एकमात्र पुत्र की मृत्यु पर किए जा रहे विलाप के समान
और इसके अंत को एक दुखद दिन के समान कर दूंगा.”
11परम प्रभु यह घोषणा करते हैं, “ऐसे दिन आ रहे हैं,
जब मैं संपूर्ण देश में अकाल भेजूंगा—
अन्न-जल का अकाल नहीं
पर याहवेह के वचन के सुनने का अकाल.
12लोग याहवेह के वचन की खोज में
इस समुद्र से उस समुद्र में
और उत्तर से लेकर दक्षिण दिशा तक भटकेंगे,
परंतु वह उन्हें न मिलेगा.
13“उस समय में
“सुंदर युवतियां तथा युवा पुरुष
प्यास के कारण मूर्छित हो जाएंगे.
14जो शमरिया के पाप की शपथ खाकर कहते हैं,
‘हे दान, तुम्हारे देवता के जीवन की शपथ,’
या, ‘बेअरशेबा के देवता के जीवन की शपथ’—
वे ऐसे गिरेंगे कि फिर कभी न उठेंगे.”