صموئيل الأول 12 – NAV & HCV

New Arabic Version

صموئيل الأول 12:1-25

خطاب صموئيل

1وَقَالَ صَمُوئِيلُ لِكُلِّ الإِسْرَائِيلِيِّينَ: «هَا أَنَا قَدْ لَبَّيْتُ طَلَبَكُمْ وَحَقَّقْتُ لَكُمْ كُلَّ مَا سَأَلْتُمْ وَنَصَّبْتُ عَلَيْكُمْ مَلِكاً، 2وَقَدْ صَارَ لَكُمْ مَلِكٌ يَسِيرُ أَمَامَكُمْ، وَأَمَّا أَنَا فَقَدْ شِخْتُ وَغَزَا الشَّيْبُ شَعْرَ رَأْسِي. وَهَا أَوْلادِي بَيْنَكُمْ، وَأَنَا قَدْ خَدَمْتُكُمْ مُنْذُ صِبَايَ. 3فَاشْهَدُوا عَلَيَّ فِي حَضْرَةِ الرَّبِّ، وَأَمَامَ مَلِكِهِ الْمُخْتَارِ، إِنْ كُنْتُ قَدْ أَخَذْتُ ثَوْراً أَوْ حِمَاراً مِنْ أَحَدٍ، أَوْ ظَلَمْتُ أَوْ جُرْتُ عَلَى أَحَدٍ أَوْ قَبِلْتُ رِشْوَةً مِنْ أَحَدٍ لأُغْمِضَ عَيْنَيَّ عَنْهُ، فَأُعَوِّضَ ذَلِكَ عَلَيْكُمْ». 4فَأَجَابُوهُ: «لَمْ تَظْلِمْنَا وَلَمْ تَجُرْ عَلَيْنَا وَلا أَخَذْتَ شَيْئاً مِنْ أَحَدٍ». 5فَقَالَ لَهُمْ: «لِيَكُنِ الرَّبُّ وَمَلِكُهُ الْمُخْتَارُ شَاهِدَيْنِ فِي هَذَا الْيَوْمِ عَلَى بَرَاءَتِي الْكَامِلَةِ». فَقَالُوا: «يَشْهَدُ الرَّبُّ».

6وَقَالَ صَمُوئِيلُ لِلشَّعْبِ: «إِنَّ الرَّبَّ هُوَ الَّذِي اخْتَارَ مُوسَى وَهروُنَ وَأَخْرَجَ آبَاءَكُمْ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ. 7وَالآنَ امْثُلُوا أَمَامَ الرَّبِّ لأُذَكِّرَكُمْ بِجَمِيعِ مُعَامَلاتِهِ الَّتِي أَجْرَاهَا مَعَكُمْ وَمَعَ آبَائِكُمْ: 8بَعْدَ أَنْ نَزَلَ يَعْقُوبُ دِيَارَ مِصْرَ، وَاضْطَهَدَ الْمِصْرِيُّونَ ذُرِّيَّتَهُ، اسْتَغَاثَ آبَاؤُكُمْ بِالرَّبِّ، فَأَرْسَلَ إِلَيْهِمْ مُوسَى وَهروُنَ فَأَخْرَجَاهُمْ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ وَقَادَاهُمْ لِلإِقَامَةِ فِي هَذَا الْمَوْضِعِ. 9وَعِنْدَمَا تَنَاسَوْا الرَّبَّ إِلَهَهُمْ سَلَّطَ عَلَيْهِمْ سِيسَرَا قَائِدَ جَيْشِ حَاصُورَ وَالْفِلِسْطِينِيِّينَ، وَمَلِكَ مُوآبَ فَحَارَبُوهُمْ.

10فَاسْتَغَاثُوا بِالرَّبِّ قَائِلِينَ: أَخْطَأْنَا إِذْ تَرَكْنَا الرَّبَّ وَعَبَدْنَا الْبَعْلِيمَ وَالْعَشْتَارُوثَ. فَالآنَ أَنْقِذْنَا مِنْ قَبْضَةِ أَعْدَائِنَا فَنُخْلِصَ لَكَ الْعِبَادَةَ. 11فَأَقَامَ الرَّبُّ جِدْعُونَ وَبَدَانَ وَيَفْتَاحَ وَصَمُوئِيلَ وَأَنْقَذَكُمْ مِنْ قَبْضَةِ أَعْدَائِكُمُ الْمُحِيطِينَ بِكُمْ، وَسَكَنْتُمْ مُطْمَئِنِّينَ. 12وَلَمَّا عَايَنْتُمْ نَاحَاشَ مَلِكَ عَمُّونَ زَاحِفاً عَلَيْكُمْ قُلْتُمْ لِي: نَصِّبْ عَلَيْنَا مَلِكاً، مَعَ أَنَّ الرَّبَّ إِلَهَكُمْ هُوَ مَلِكُكُمْ. 13وَالآنَ هَا هُوَ الرَّجُلُ الَّذِي اخْتَرْتُمْ وَطَلَبْتُمْ، قَدْ جَعَلَهُ الرَّبُّ عَلَيْكُمْ مَلِكاً. 14فَإِنِ اتَّقَيْتُمُ الرَّبَّ وَعَبَدْتُمُوهُ وَأَطَعْتُمْ وَصَايَاهُ وَلَمْ تَعْصَوْا أَمْرَهُ وَاتَّبَعْتُمُ الرَّبَّ إِلَهَكُمْ أَنْتُمْ وَمَلِكُكُمُ الْمُتَسَلِّطُ عَلَيْكُمْ: فَلَنْ يُصِيبَكُمْ مَكْرُوهٌ.

15وَلَكِنْ إِنْ عَصَيْتُمْ وَصَايَا الرَّبِّ وَأَمْرَهُ، فَإِنَّ عِقَابَ الرَّبِّ يَنْزِلُ بِكُمْ كَمَا نَزَلَ بِآبَائِكُمْ. 16وَالآنَ قِفُوا وَانْظُرُوا مَا يُجْرِيهِ الرَّبُّ مِنْ آيَةٍ عَظِيمَةٍ أَمَامَكُمْ: 17أَلَيْسَ الْيَوْمُ هُوَ مَوْسِمُ حَصَادِ الْقَمْحِ؟ سَأُصَلِّي إِلَى الرَّبِّ حَتَّى يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ رُعُوداً وَمَطَراً، فَتُدْرِكُونَ عِظَمَ الشَّرِّ الَّذِي ارْتَكَبْتُمُوهُ فِي عَيْنَيِ الرَّبِّ حِينَ طَلَبْتُمْ أَنْ يُنَصِّبَ عَلَيْكُمْ مَلِكاً». 18وَصَلَّى صَمُوئِيلُ إِلَى الرَّبِّ فَأَرْسَلَ رُعُوداً وَمَطَراً فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ، فَاسْتَوْلَى خَوْفٌ شَدِيدٌ عَلَى الشَّعْبِ مِنَ الرَّبِّ وَمِنْ صَمُوئِيلَ.

19وَتَوَسَّلَ جَمِيعُ الشَّعْبِ إِلَى صَمُوئِيلَ قَائِلِينَ: «صَلِّ مِنْ أَجْلِ عَبِيدِكَ إِلَى الرَّبِّ إِلَهِكَ لِكَي لَا نَمُوتَ، لأَنَّنَا قَدْ أَضَفْنَا إِلَى جَمِيعِ خَطَايَانَا شَرّاً جَدِيداً حِينَ طَلَبْنَا أَنْ يُنَصِّبَ عَلَيْنَا مَلِكاً».

20فَقَال صَمُوئِيلُ لِلشَّعْبِ: «لا تَخَافُوا، فَأَنْتُمْ حَقّاً قَدِ اقْتَرَفْتُمْ كُلَّ هَذَا الشَّرِّ، وَلَكِنْ إِيَّاكُمْ أَنْ تَحِيدُوا عَنِ الرَّبِّ، بَلِ اعْبُدُوهُ مِنْ كُلِّ قُلُوبِكُمْ. 21وَلا تَضِلُّوا وَرَاءَ الأَصْنَامِ الْبَاطِلَةِ الَّتِي لَا تُفِيدُ وَلا تُنْقِذُ، لأَنَّهُ لَا طَائِلَ مِنْهَا. 22فَالرَّبُّ لَا يَتَخَلَّى عَنْ شَعْبِهِ إِكْرَاماً لاِسْمِهِ الْعَظِيمِ، لأَنَّهُ شَاءَ أَنْ يَجْعَلَكُمْ لَهُ شَعْباً. 23وَأَمَّا أَنَا فَحَاشَا لِي أَنْ أُخْطِىءَ إِلَى الرَّبِّ، فَأَكُفَّ عَنِ الصَّلاةِ مِنْ أَجْلِكُمْ، بَلْ أُوَاظِبُ عَلَى تَعْلِيمِكُمُ الطَّرِيقَ الصَّالِحَ الْمُسْتَقِيمَ. 24وَعَلَيْكُمْ بِتَقْوَى الرَّبِّ وَعِبَادَتِهِ بِأَمَانَةٍ مِنْ كُلِّ قُلُوبِكُمْ، مُتَأَمِّلِينَ الْعَظَائِمَ الَّتِي صَنَعَهَا مَعَكُمْ. 25وَأَمَّا إِنِ ارْتَكَبْتُمُ الشَّرَّ فَمَصِيرُكُمْ أَنْتُمْ وَمَلِكِكُمُ الْهَلاكُ».

Hindi Contemporary Version

1 शमुएल 12:1-25

विदा होते हुए शमुएल का भाषण

1सारा इस्राएल को संबोधित करते हुए शमुएल ने कहा, “याद करो, तुम्हारी विनती के अनुसार मैंने सभी कुछ पूरा किया है. मैंने तुम्हारे लिए राजा चुन दिया है. 2अब तुम स्वयं देख चुके हो कि राजा ही तुम्हारा नेतृत्व कर रहा है. तुम्हारे बीच अब मेरे पुत्र सेवा करते हैं. मैं बूढ़ा हो चुका हूं, पक चुके हैं मेरे बाल. मैं तुम्हारे सामने अपने बचपन से सेवा करता आया हूं. 3आज मैं तुम्हारे सामने खड़ा हुआ यह प्रश्न कर रहा हूं: याहवेह तथा चुने हुए राजा के सामने मुझे बताओ. मैंने किसका बैल छीना है, किसका गधा मैंने छीना है? या मैंने किसके साथ छल किया है? मैंने किसे उत्पीड़ित किया है? किसके हाथ से घूस लेकर अनदेखा कर दिया है? मेरे सामने आज यह स्पष्टतः कह दो, ताकि मैं तुम्हारी क्षतिपूर्ति कर सकूं.”

4सबने कहा, “आपने न तो हमसे छल किया, न तो हमारा उत्पीड़न किया और न ही किसी भी व्यक्ति से कुछ अनुचित ही लिया है.”

5तब शमुएल ने उनसे कहा, “याहवेह इस तथ्य के गवाह हैं तथा उनका अभिषिक्त राजा भी आज इस तथ्य का गवाह है, कि तुम्हें मुझ पर आरोप लगाने का कोई कारण नहीं मिला है.”

सभी ने एक स्वर में कहा, “याहवेह गवाह हैं.”

6शमुएल ने जनसभा को संबोधित करते हुए आगे कहा, “स्वयं याहवेह ही हैं, जिन्होंने मोशेह तथा अहरोन को चुना कि वे तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र देश से बाहर निकाल लाएं. 7अब याहवेह की उपस्थिति में निश्छल और शांत खड़े हो जाओ, कि मैं याहवेह के सामने तुम्हारे साथ मिलकर याहवेह से उनके द्वारा तुम्हारे तथा तुम्हारे पूर्वजों के प्रति किए गए हर एक अच्छे काम का स्मरण प्रस्तुत कर सकूं.

8“जब याकोब मिस्र देश में जाकर बस गए, उनके वंशजों ने याहवेह की दोहाई दी और याहवेह ने उनके पास मोशेह तथा अहरोन को भेज दिया. उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र देश से निकास किया. और वे इस स्थान में आकर बस गए.

9“मगर उन्होंने याहवेह, अपने परमेश्वर को भुला दिया. तब याहवेह ने उन्हें हाज़ोर की सेना के सेनापति सीसरा के अधीन कर दिया, बाद फिलिस्तीनियों के, और फिर मोआब के राजा के अधीन. ये सब तुम्हारे पूर्वजों के साथ युद्ध करते रहे. 10तब उन्होंने यह कहते हुए याहवेह की दोहाई दी, ‘याहवेह का परित्याग करके तथा बाल और अश्तोरेथ की वंदना करने के द्वारा हमने पाप किया है. अब हमारे शत्रुओं की अधीनता से हमें विमुक्त कीजिए कि हम अब आपकी ही वंदना कर सकें.’ 11तब याहवेह ने यरूबाल12:11 यरूबाल यानी गिदोन, बाराक12:11 बाराक यानी बेदान, यिफ्ताह तथा शमुएल को निर्धारित किया और तुम चारों ओर के अपने समान शत्रुओं की अधीनता से छुड़ाए गए और तुम सुरक्षा में रहने लगे.

12“जब तुमने देखा कि अम्मोनियों का राजा नाहाश तुम पर हमला करने के उद्देश्य से आगे बढ़ रहा है, तुमने मुझसे आग्रह किया, ‘बस, अब हम पर राजा ही शासन करेगा’—जबकि वस्तुतः तुम्हारे राजा याहवेह तुम्हारे परमेश्वर हैं. 13अब ध्यान रहे कि तुम्हारा चुना हुआ राजा यह है—तुम्हारे ही द्वारा चुना हुआ! देखो, याहवेह ने तुम्हें राजा प्रदान किया है. 14अब यदि तुम याहवेह के प्रति श्रद्धा और भय की भावना बनाए रखो, उनके प्रति आज्ञाकारी रहकर उन्हीं की वंदना करते रहो तथा उनके आदेशों के प्रति विद्रोही न बनो; साथ ही यदि तुम और तुम पर शासन कर रहा राजा याहवेह तुम्हारे परमेश्वर का अनुसरण करते रहें, तो सभी कुछ भला ही होता रहेगा! 15मगर यदि तुम याहवेह की आज्ञाओं का पालन न करो, उनके आदेशों के प्रति विद्रोह करो, तब याहवेह का हाथ तुम पर उठेगा जैसे तुम्हारे पूर्वजों के विरुद्ध उठा था.

16“तो अब स्थिर खड़े होकर स्वयं अपने नेत्रों से वह अद्भुत काम को होता हुआ देखो! जो याहवेह तुम्हारे सामने करने पर हैं. 17क्या यह गेहूं की उपज कटने का समय नहीं है? मैं याहवेह से प्रार्थना करूंगा कि वह गर्जन और बारिश भेज दें. इसी से तुम पर यह बात साबित हो जाएगी, कि याहवेह की दृष्टि में कैसा घोर है यह पाप, जो तुमने उनसे अपने लिए राजा की याचना करने के द्वारा किया है.”

18तब शमुएल ने याहवेह की दोहाई दी और याहवेह ने उसी समय गर्जन और बारिश भेज दी. सभी लोगों पर याहवेह तथा शमुएल का गहरा भय छा गया.

19सभी लोग शमुएल से विनती करने लगे, “याहवेह, अपने परमेश्वर से हमारे लिए, अपने सेवकों के लिए, प्रार्थना कीजिए कि इससे हमारी मृत्यु न हो जाए, क्योंकि राजा की याचना करने के द्वारा हमने अपने पापों की संख्या बढ़ा डाली है.”

20तब शमुएल ने लोगों से कहा, “डरो मत! अवश्य यह गलत काम तो आपने किया है; पर याहवेह का अनुसरण करना कभी न छोड़ना. अपने संपूर्ण हृदय से याहवेह की वंदना करते रहना. 21बेकार की वस्तुओं की ओर कभी न फिरना. वे न तो लाभकर होती है, न ही उनमें तुम्हें छुड़ाने की ही क्षमता है, क्योंकि वे खोखली हैं. 22अपने महान नाम की रक्षा के लिए याहवेह अपने लोगों को कभी ना अस्वीकार करेगा. तुम्हें अपनी निज प्रजा बना लेने में उनकी संतुष्टि थी. 23जहां तक मेरा प्रश्न है, मुझसे याहवेह के विरुद्ध वह पाप कभी न होगा, कि मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करना छोड़ दूं. इसके अलावा मैं सही और सीधे मार्ग के विषय में तुम्हें शिक्षा देता रहूंगा. 24स्थिति कैसी भी हो, याहवेह पर तुम्हारी श्रद्धा बनी रहे, तथा संपूर्ण हृदय से, पूर्ण विश्वासयोग्यता में, तुम उनकी सेवा-वन्दना करते रहो, और सोचो की कैसे बड़े-बड़े काम याहवेह ने तुम्हारे लिए किए हैं. 25मगर यदि तुम दुराचार में लगे रहो, तो तुम्हारा और तुम्हारे राजा, दोनों ही का अस्तित्व मिटा दिया जाएगा.”