دانيال 8 – NAV & HCV

New Arabic Version

دانيال 8:1-27

رؤيا الكبش والتيس

1وَفِي السَّنَةِ الثَّالِثَةِ مِنْ مُدَّةِ حُكْمِ بَيلْشَاصَّرَ الْمَلِكِ، ظَهَرَتْ لِي أَنَا دَانِيَالَ رُؤْيَا أُخْرَى بَعْدَ الرُّؤْيَا الأُولَى، 2وَكُنْتُ آنَئِذٍ فِي شُوشَانَ عَاصِمَةِ وِلايَةِ عِيلامَ بِجِوَارِ نَهْرِ أُولايَ، 3فَرَفَعْتُ عَيْنَيَّ وَإذَا بِي أَرَى كَبْشاً وَاقِفاً عِنْدَ النَّهْرِ، وَلَهُ قَرْنَانِ طَوِيلانِ. إِنَّمَا أَحَدُهُمَا أَطْوَلُ مِنَ الآخَرِ، مَعَ أَنَّ الأَطْوَلَ نَبَتَ بَعْدَ الأَوَّلِ. 4وَرَأَيْتُ الْكَبْشَ يَنْطَحُ غَرْباً وَشِمَالاً وَجَنُوباً، مِنْ غَيْرِ أَنْ يَجْرُؤَ أَيُّ حَيَوَانٍ عَلَى مُقَاوَمَتِهِ، وَلَمْ يَكُنْ مِنْ مُنْقِذٍ مِنْهُ، فَفَعَلَ كَمَا يَحْلُو لَهُ وَعَظُمَ شَأْنُهُ 5وَبَيْنَمَا كُنْتُ مُتَأَمِّلاً، أَقْبَلَ تَيْسٌ مِنَ الْمَغْرِبِ عَبَرَ كُلَّ الأَرْضِ مِنْ غَيْرِ أَنْ يَمَسَّهَا. وَكَانَ لِلتَّيْسِ قَرْنٌ بَارِزٌ بَيْنَ عَيْنَيْهِ. 6وَانْدَفَعَ بِكُلِّ شِدَّةِ قُوَّتِهِ نَحْوَ الْكَبْشِ ذِي الْقَرْنَيْنِ الَّذِي رَأَيْتُهُ وَاقِفاً عِنْدَ النَّهْرِ. 7وَمَا إِنْ وَصَلَ إِلَيْهِ حَتَّى هَجَمَ عَلَيْهِ وَضَرَبَهُ وَحَطَّمَ قَرْنَيْهِ، فَعَجَزَ الْكَبْشُ عَنْ صَدِّهِ. وَطَرَحَهُ التَّيْسُ عَلَى الأَرْضِ وَدَاسَهُ وَلَمْ يَكُنْ لِلْكَبْشِ مَنْ يُنْقِذُهُ مِنْ يَدِهِ. 8فَعَظُمَ شَأْنُ التَّيْسِ. وَعِنْدَمَا اعْتَزَّ انْكَسَرَ الْقَرْنُ الْعَظِيمُ وَنَبَتَ عِوَضاً عَنْهُ أَرْبَعَةُ قُرُونٍ بَارِزَةٍ نَحْوَ جِهَاتِ الأَرْضِ الأَرْبَعِ.

9وَنَمَا مِنْ وَاحِدٍ مِنْهَا قَرْنٌ صَغِيرٌ عَظُمَ أَمْرُهُ، وَامْتَدَّ جَنُوباً وَشَرْقاً وَنَحْوَ أَرْضِ إِسْرَائِيلَ، 10وَبَلَغَ مِنْ عَظَمَتِهِ أَنَّهُ تَطَاوَلَ عَلَى مُلُوكِ الأَرْضِ وَقَضَى عَلَى بَعْضِهِمْ وَدَاسَ عَلَيْهِمْ، 11وَتَحَدَّى حَتَّى رَئِيسِ الْجُنْدِ (أَيِ اللهِ)، وَتَكَبَّرَ عَلَيْهِ، وَأَلْغَى الْمُحْرَقَةَ الدَّائِمَةَ وَهَدَمَ الْهَيْكَلَ. 12وَبِسَبَبِ الْمَعْصِيَةِ سُلِّطَ عَلَى جُنْدِ القِدِّيسِينَ وَعَلَى الْمُحْرَقَةِ الْيَوْمِيَّةِ. وَحَالَفَهُ التَّوْفِيقُ فِي كُلِّ مَا صَنَعَ فَطَرَحَ الْحَقَّ عَلى الأَرْضِ. 13فَسَمِعْتُ قُدُّوساً يَتَكَلَّمُ، فَيَرُدُّ عَلَيْهِ قُدُّوسٌ آخَرُ: «كَمْ يَطُولُ زَمَنُ الرُّؤْيَا بِشَأْنِ الْمُحْرَقَةِ الدَّائِمَةِ الْيَوْمِيَّةِ، وَمَعْصِيَةِ الْخَرَابِ، وَتَسْلِيمِ الْهَيْكَلِ وَالْجُنْدِ لِيَكُونُوا مَدُوسِينَ؟» 14فَأَجَابَهُ: «إِلَى أَلْفَيْنِ وَثَلاثِ مِئَةِ يَوْمٍ ثُمَّ يَتَطَهَّرُ الْهَيْكَلُ».

تفسير الرؤيا

15وَبَعْدَ أَنْ شَاهَدْتُ أَنَا دَانِيَالَ الرُّؤْيَا وَطَلَبْتُ تَفْسِيراً لَهَا، إِذَا بِشِبْهِ إِنْسَانٍ وَاقِفٍ أَمَامِي. 16وَسَمِعْتُ صَوْتَ إِنْسَانٍ صَادِراً مِنْ بَيْنِ ضَفَّتَيْ نَهْرِ أُولايَ قَائِلاً: «يَا جِبْرَائِيلُ، فَسِّرْ لِهَذَا الرَّجُلِ الرُّؤْيَا». 17فَجَاءَ إِلَيَّ حَيْثُ وَقَفْتُ، فَتَوَلَّانِي الْخَوْفُ وَانْطَرَحْتُ عَلَى وَجْهِي، فَقَالَ لِي: «افْهَمْ يَا ابْنَ آدَمَ. إِنَّ الرُّؤْيَا تَخْتَصُّ بِوَقْتِ الْمُنْتَهَى». 18وَفِيمَا كَانَ يُخَاطِبُنِي وَأَنَا مُكِبٌّ بِوَجْهِي إِلَى الأَرْضِ غَشِيَنِي سُبَاتٌ عَمِيقٌ، فَلَمَسَنِي وَأَنْهَضَنِي عَلَى قَدَمَيَّ، 19وَقَالَ: «هَا أَنَا أُطْلِعُكَ عَلَى مَا سَيَحْدُثُ فِي آخِرِ حِقْبَةِ الْغَضَبِ، لأَنَّ الرُّوْيَا تَرْتَبِطُ بِمِيعَادِ الانْتِهَاءِ. 20إِنَّ الْكَبْشَ ذَا الْقَرْنَيْنِ الَّذِي رَأَيْتَهُ هُوَ مُلُوكُ مَادِي وَفَارِسَ. 21وَالتَّيْسَ الأَشْعَرَ هُوَ مَلِكُ الْيُونَانِ، وَالْقَرْنَ الْعَظِيمَ النَّابِتَ بَيْنَ عَيْنَيْهِ هُوَ الْمَلِكُ الأَوَّلُ. 22وَمَا إِنِ انْكَسَرَ حَتَّى خَلَفَهُ أَرْبَعَةٌ عِوَضاً عَنْهُ، تَقَاسَمُوا مَمْلَكَتَهُ وَلَكِنْ لَمْ يُمَاثِلُوهُ فِي قُوَّتِهِ. 23وَفِي أَوَاخِرِ مُلْكِهِمْ عِنْدَمَا تَبْلُغُ الْمَعَاصِي أَقْصَى مَدَاهَا، يَقُومُ مَلِكٌ فَظٌّ حَاذِقٌ دَاهِيَةٌ، 24فَيَعْظُمُ شَأْنُهُ، إِنَّمَا لَيْسَ بِفَضْلِ قُوَّتِهِ. وَيُسَبِّبُ دَمَاراً رَهِيباً وَيُفْلِحُ فِي الْقَضَاءِ عَلَى الأَقْوِيَاءِ، وَيَقْهَرُ شَعْبَ اللهِ. 25وَبِدَهَائِهِ وَمَكْرِهِ يُحَقِّقُ مَآرِبَهُ، وَيَتَكَبَّرُ فِي قَلْبِهِ وَيُهْلِكُ الْكَثِيرِينَ وَهُمْ فِي طُمَأْنِينَةٍ، وَيَتَمَرَّدُ عَلَى رَئِيسِ الرُّؤَسَاءِ لَكِنَّهُ يَتَحَطَّمُ بِغَيْرِ يَدِ الإِنْسَانِ. 26وَرُؤْيَا الأَلْفَيْنِ وَالثَّلاثِ مِئَةِ يَوْمٍ الَّتِي تَجَلَّتْ لَكَ هِيَ رُؤْيَا حَقٍّ، وَلَكِنِ اكْتُمِ الرُّؤْيَا لأَنَّهَا لَنْ تَتَحَقَّقَ إِلا بَعْدَ أَيَّامٍ كَثِيرَةٍ». 27فَضَعُفْتُ أَنَا دَانِيَالَ وَنَحَلْتُ أَيَّاماً، ثُمَّ قُمْتُ وَعُدْتُ أُبَاشِرُ أَعْمَالَ الْمَلِكِ. وَرَوَّعَتْنِي الرُّؤْيَا، وَلَمْ أَكُنْ أَفْهَمُهَا.

Hindi Contemporary Version

दानिएल 8:1-27

दानिएल का एक मेढ़े और एक बकरे का दर्शन

1राजा बैलशत्सर के शासन के तीसरे साल में, मैं, दानिएल, पहले के दर्शन के बाद एक और दर्शन देखा. 2अपने दर्शन में, मैंने अपने आपको एलाम प्रदेश के सूजा के किले में देखा; दर्शन में, मैं उलाई नहर के किनारे खड़ा था. 3तब मैंने आंख उठाकर देखा कि नहर के किनारे एक मेढ़ा खड़ा था, जिसके दो सींग थे, और ये सींग लंबे थे. इनमें एक सींग दूसरे से बड़ा था और यह बड़ा सींग दूसरे के बाद निकला था. 4मैंने देखा कि यह मेढ़ा पश्चिम और उत्तर और दक्षिण की ओर सिर से टक्कर मार रहा था. कोई भी पशु उसके सामने टिक न सका, और ऐसा कोई नहीं था, जो उसकी शक्ति से बचा सकता. वह वही करता गया, जो उसे उपयुक्त प्रतीत होता. उसने जैसा चाहा, वैसा किया और बहुत बड़ा हो गया.

5जब मैं इसके बारे में सोच रहा था, तब मैंने देखा कि अचानक एक बकरा पश्चिम दिशा से आया, जिसकी आंखों के बीच एक महत्वपूर्ण सींग था, और वह सारी पृथ्वी को पार करके, भूमि को बिना छुए आया था. 6यह बकरा उस दो सींगवाले मेढ़े की ओर आया, जिसे मैंने नहर के किनारे खड़े देखा था और क्रोधित होकर उस मेढ़े को टक्कर मारा. 7मैंने देखा कि यह बकरा बहुत क्रोधित होकर उस मेढ़े के ऊपर हमला किया, और उसे टक्कर मारते हुए उसके दोनों सींगों को तोड़ दिया. मेढ़े में इतना बल ही न था, कि वह उस बकरे का सामना कर सके; बकरे ने मेढ़े को गिराकर उसे रौंद डाला, और इसकी शक्ति से मेढ़े को कोई बचा न सका. 8बकरा बहुत शक्तिशाली हो गया, पर उसके बलवंत हो जाने पर, उसका बड़ा सींग टूट गया, और इसके स्थान पर चार महत्वपूर्ण सींग निकलकर चारों दिशाओं की ओर बढ़ने लगे.

9उनमें से एक से एक दूसरा सींग निकला, जिसकी शुरुआत छोटे रूप में हुई पर शक्ति में यह दक्षिण, पूर्व और सुंदर देश की ओर बहुत बढ़ गया. 10वह तब तक बढ़ा, जब तक कि वह आकाश के सेना के पास न पहुंच गया, और उसने तारों की कुछ सेना को नीचे पृथ्वी पर फेंक दिया और उन्हें रौंद डाला. 11उसने अपने आपको याहवेह की सेना के सेनापति के जैसे बड़ा बना लिया; उसने याहवेह को चढ़ाए जानेवाले प्रतिदिन के बलिदान को छीन लिया, और उसके पवित्र स्थान को नीचे फेंकवा दिया. 12विद्रोह के कारण, याहवेह के लोग8:12 लोग या सेनाएं और प्रतिदिन का बलिदान उसे दे दिये गए. वह जो कुछ भी करता, उसमें उन्‍नति करता गया, और सच्चाई को भूमि पर फेंक दिया गया.

13तब मैंने एक पवित्र जन को बोलते सुना, फिर एक दूसरे पवित्र जन ने पहले वाले से कहा, “दर्शन को पूरा होने में कितना समय लगेगा—वह दर्शन जिसमें प्रतिदिन के बलिदान, विद्रोह जो उजाड़ का कारण बनता है, पवित्र स्थान का समर्पण, और याहवेह के लोगों का पांव तले रौंदा जाना दिखाया गया है?”

14उसने मुझसे कहा, “इसे पूरा होने में 2,300 सुबह और शाम लगेंगे; तब पवित्र स्थान फिर से शुद्ध किया जाएगा.”

दर्शन का अर्थ

15जब मैं, दानिएल, दर्शन को देखकर, इसे समझने की कोशिश कर रहा था, तभी मैंने देखा कि मेरे सामने एक जन खड़ा हुआ, जो एक मनुष्य के जैसा दिख रहा था. 16और मैं उलाई नहर से एक मनुष्य की आवाज को पुकारता हुआ सुना, “हे गब्रिएल, इस व्यक्ति को उस दर्शन का अर्थ बताओ.”

17जब वह उस जगह के पास आया, जहां मैं खड़ा था, तो मैं भयभीत हो गया और मुंह के बल गिरा. तब उस व्यक्ति ने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, इस बात को समझ लो कि इस दर्शन का संबंध अंत के समय से है.”

18जब वह मुझसे बातें कर रहा था, तब मैं भूमि की ओर अपना चेहरा किए पड़ा था और गहरी नींद में था. तब उसने मुझे छुआ और मुझे मेरे पैरों पर खड़ा कर दिया.

19उसने कहा: “मैं तुम्हें बताने जा रहा हूं कि बाद में कोप के समय क्या होनेवाला है, क्योंकि यह दर्शन ठहराये गए अंत के समय से संबंध रखता है. 20जो दो सींगवाला मेढ़ा तुमने देखा, वह मेदी और फारस राजाओं को दर्शाता है. 21वह रूखा बकरा यावन का राजा है, और उसके आंखों के बीच का वह बड़ा सींग पहला राजा है. 22वे चार सींग, जो एक टूटे हुए सींग के जगह निकल आए, वे चार राज्यों को दर्शाते हैं, जो उसी के देश से उदय होंगे पर उनकी शक्ति पहले के राज्य के समान न होगी.

23“उनके शासन के बाद के समय में, जब विद्रोही अपनी पूरी दुष्टता पर होंगे, तब भयानक दिखनेवाला एक राजा का उदय होगा, जो षड़्‍यंत्र रचने में माहिर होगा. 24वह बहुत शक्तिशाली हो जाएगा, पर अपने स्वयं की शक्ति से नहीं. वह भयंकर विनाश करेगा और वह जो भी करेगा, उसमें सफल होगा. वह उनको नाश करेगा, जो शक्तिशाली, पवित्र लोग हैं. 25वह उन्‍नति करने के लिये छल-प्रपंच का उपयोग करेगा, और वह अपने आपको बहुत बड़ा समझेगा. जब वे सुरक्षित महसूस करते होंगे, तब वह बहुतों को नाश कर देगा और राजकुमारों के राजकुमार के विरुद्ध उठ खड़ा होगा. तौभी वह नाश किया जाएगा, परंतु किसी मानव शक्ति के द्वारा नहीं.

26“शाम और सबेरे का जो दर्शन तुम्हें दिया गया है, वह सत्य है, परंतु तुम इसे गुप्‍त रखो, क्योंकि यह बहुत आगे के भविष्य के संबंध में है.”

27मैं, दानिएल, टूट गया था. मैं बहुत दिनों तक थका हुआ पड़ा रहा. तब मैं उठा और राजा के कामकाज में लग गया. मैं दर्शन से डर गया था; यह समझ के बाहर की बात थी.