حزقيال 12 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

حزقيال 12:1-28

رمز السبي

1ثُمَّ أَوْحَى إِلَيَّ الرَّبُّ بِكَلِمَتِهِ قَائِلاً: 2«يَا ابْنَ آدَمَ، أَنْتَ مُقِيمٌ فِي وَسَطِ شَعْبٍ مُتَمَرِّدٍ، لَهُمْ عُيُونٌ لِيَرَوْا وَلَكِنْ لَا يُبْصِرُونَ، وَلَهُمْ آذَانٌ لِيَسْمَعُوا وَلَكِنْ لَا يُصْغُونَ، لأَنَّهُمْ شَعْبٌ مُتَمَرِّدٌ. 3أَمَّا أَنْتَ يَا ابْنَ آدَمَ فَتَأَهَّبْ لِلسَّبْيِ وَاخْرُجْ نَهَاراً عَلَى مَرْأَى مِنْهُمْ وَامْضِ مِنْ مَوْضِعِكَ إِلَى مَوْضِعٍ آخَرَ لَعَلَّهُمْ يَفْهَمُونَ، فَإِنَّهُمْ شَعْبٌ مُتَمَرِّدٌ. 4فَتُخْرِجُ مَتَاعَكَ، مَتَاعَ السَّفَرِ نَهَاراً عَلَى مَشْهَدٍ مِنْهُمْ، ثُمَّ تُغَادِرُ أَنْتَ مَسَاءً أَمَامَهُمْ كَالذَّاهِبِينَ إِلَى السَّبْيِ. 5انْقُبْ لَكَ حَائِطاً أَمَامَ عُيُونِهِمْ وَاخْرُجْ مِنْهُ. 6وَعَلَى مَشْهَدٍ مِنْهُمْ احْمِلْ مَتَاعَكَ عَلَى كَتِفِكَ وَانْقُلْهُ عِنْدَ الْعَتْمَةِ. غَطِّ وَجْهَكَ لِكَيْ لَا تَرَى الأَرْضَ لأَنِّي جَعَلْتُكَ آيَةً لِشَعْبِ إِسْرَائِيلَ». 7فَفَعَلْتُ كَمَا أُمِرْتُ، فَأَخْرَجْتُ نَهَاراً مَتَاعِي. وَعِنْدَ الْمَسَاءِ نَقَبْتُ الْحَائِطَ بِيَدِي وَنَقَلْتُ أَحْمَالِي عَلَى كَتِفِي عِنْدَ الْعَتْمَةِ أَمَامَهُمْ.

8ثُمَّ فِي الصَّبَاحِ أُعْلِنَتْ لِي كَلِمَةُ الرَّبِّ قَائِلَةً: 9«يَا ابْنَ آدَمَ، أَلَمْ يَسْأَلْكَ شَعْبُ إِسْرَائِيلَ الْمُتَمَرِّدُ مَاذَا تَصْنَعُ؟ 10أَبْلِغْهُمْ مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ: هَذِهِ نُبُوءَةٌ بِشَأْنِ رَئِيسِ أُورُشَلِيمَ وَكَافَّةِ شَعْبِ إِسْرَائِيلَ السَّاكِنِينَ فِيهَا. 11قُلْ لَهُمْ: أَنَا آيَةٌ لَكُمْ. فَكَمَا صَنَعْتُ يُصْنَعُ بِهِمْ، فَيَذْهَبُونَ كُلُّهُمْ إِلَى الْجَلاءِ وَإِلَى السَّبْيِ. 12وَيَحْمِلُ الرَّئِيسُ الْمُتَوَلِّي شُؤُونَهُمْ أَحْمَالَهُ عَلَى كَتِفِهِ فِي الْعَتْمَةِ وَيَخْرُجُ. وَتُنْقَبُ لَهُ ثُغْرَةٌ فِي الْحَائِطِ لِيَخْرُجَ مِنْهَا وَهُوَ يُغَطِّي وَجْهَهُ لِئَلّا يَرَى الأَرْضَ بِعَيْنَيْهِ. 13وَأَبْسُطُ شَبَكَتِي عَلَيْهِ فَيَقَعُ فِي شَرَكِي، وَأُحْضِرُهُ إِلَى بَابِلَ إِلَى أَرْضِ الْكَلْدَانِيِّينَ، وَلَكِنْ لَنْ يَرَاهَا، هُنَاكَ يَمُوتُ. 14وَأُبَدِّدُ حَاشِيَتَهُ وَأَعْوَانَهُ وَكُلَّ جُيُوشِهِ فِي كُلِّ مَكَانٍ وَأَتَعَقَّبُهُمْ بِسَيْفٍ مَسْلُولٍ. 15فَيُدْرِكُونَ أَنِّي أَنَا الرَّبُّ حِينَ أُشَتِّتُهُمْ بَيْنَ الأُمَمِ وَأُبَدِّدُهُمْ فِي الْبِلادِ. 16وَأُبْقِي عَلَى فِئَةٍ قَلِيلَةٍ مِنْهُمْ أُنَجِّيهَا مِنَ السَّيْفِ وَالْجُوعِ وَالْوَبَاءِ، لِكَيْ يُحَدِّثُوا بِكُلِّ رَجَاسَاتِهِمْ بَيْنَ الأُمَمِ الَّتِي فَرَّقْتُهُمْ فِيهَا فَيُدْرِكُونَ أَنِّي أَنَا الرَّبُّ».

17ثُمَّ أَوْحَى إِلَيَّ الرَّبُّ بِكَلِمَتِهِ قَائِلاً: 18«يَا ابْنَ آدَمَ، كُلْ خُبْزَكَ بِارْتِعَاشٍ، وَاشْرَبْ مَاءَكَ بِارْتِعَادٍ وَخَوْفٍ، 19وَقُلْ لِشَعْبِ الأَرْضِ: هَذَا مَا يُعْلِنُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ عَنْ أَهْلِ أُورُشَلِيمَ فِي أَرْضِ إِسْرَائِيلَ: سَيَأْكُلُونَ خُبْزَهُمْ بِفَزَعٍ، وَيَشْرَبُونَ مَاءَهُمْ بِارْتِعَادٍ، لأَنَّ الأَرْضَ تُقْفِرُ مِنْ قَاطِنِيهَا مِنْ جَرَّاءِ ظُلْمِ الْمُقِيمِينَ فِيهَا. 20وَيُصِيبُ الْمُدُنَ الآهِلَةَ الْخَرَابُ. وَتُوْحِشُ الأَرْضُ، فَتُدْرِكُونَ أَنِّي أَنَا الرَّبُّ».

تحقق كلمة الرب قريب

21ثُمَّ أَوْحَى إِلَيَّ الرَّبُّ بِكَلِمَتِهِ قَائِلاً: 22«يَا ابْنَ آدَمَ، مَا هَذَا الْمَثَلُ الشَّائِعُ فِي أَرْضِ إِسْرَائِيلَ الْقَائِلُ: قَدْ طَالَتِ الأَيَّامُ وَكَذِبَتْ كُلُّ رُؤْيَا؟ 23لِذَلِكَ قُلْ لَهُمْ: هَذَا مَا يُعْلِنُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: هَا أَنَا قَدْ أَبْطَلْتُ هَذَا الْمَثَلَ فَلا يَعُودُونَ يُرَدِّدُونَهُ فِي إِسْرَائِيلَ، بَلْ قُلْ لَهُمْ: قَدْ أَزِفَتِ الأَيَّامُ وَحَانَ تَحْقِيقُ كَلامِ كُلِّ رُؤْيَا، 24إِذْ لَنْ تَكُونَ بَعْدُ رُؤْيَا بَاطِلَةٌ وَلا عِرَافَةٌ مُتَمَلِّقَةٌ فِي وَسَطِ شَعْبِ إِسْرَائِيلَ. 25لأَنِّي أَنَا الرَّبُّ أَتَكَلَّمُ، وَالْكَلِمَةُ الَّتِي أَقْضِي بِها تَتِمُّ، مِنْ غَيْرِ مُمَاطَلَةٍ، بَلْ هَا أَنَا أَنْطِقُ بِقَضَائِي فِي أَيَّامِكُمْ أَيُّهَا الشَّعْبُ الْمُتَمَرِّدُ وَأُنَفِّذُهُ فِي حِينِهِ، يَقُولُ السَّيِّدُ الرَّبُّ».

26ثُمَّ أَوْحَى إِلَيَّ الرَّبُّ بِكَلِمَتِهِ قَائِلاً: 27«يَا ابْنَ آدَمَ، هَا شَعْبُ إِسْرَائِيلَ يَقُولُونَ: إِنَّ الرُّؤْيَا الَّتِي تَرَاهَا لَا تَتِمُّ إِلا بَعْدَ أَيَّامٍ كَثِيرَةٍ، وَنُبُوءَتَكَ لَا تَتَحَقَّقُ إِلا فِي أَزْمِنَةٍ بَعِيدَةٍ 28لِذَلِكَ قُلْ لَهُمْ: هَذَا مَا يُعْلِنُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: لَنْ يَتَأَخَّرَ بَعْدُ تَنْفِيذُ كَلِمَةٍ مِنْ كَلامِي الَّذِي قَضَيْتُ بِهِ، فَكُلُّ كَلِمَةٍ نَطَقْتُ بِها لابُدَّ أَنْ تَتِمَّ، يَقُولُ السَّيِّدُ الرَّبُّ».

Hindi Contemporary Version

यहेजकेल 12:1-28

निर्वासन को प्रतीक द्वारा दर्शाया जाना

1याहवेह का यह वचन मेरे पास आया: 2“हे मनुष्य के पुत्र, तुम विद्रोही लोगों के बीच रह रहे हो. उनकी आंख तो हैं, परंतु देखते नहीं और कान तो हैं, परंतु सुनते नहीं, क्योंकि वे विद्रोही लोग हैं.

3“इसलिये, हे मनुष्य के पुत्र, बंधुवाई में जाने के लिये अपना सामान बांधो और दिन के समय, उनके देखते में चल पड़ो और जहां तुम हो, वहां से दूसरी जगह चले जाओ. यद्यपि वे विद्रोही लोग हैं, फिर भी, शायद वे समझ जाएं. 4दिन के समय, उनके देखते में बंधुवाई के लिये तैयार अपने सामान को बाहर ले आओ. तब शाम के समय, जब वे देख रहे हों, तब ऐसे जाओ जैसे लोग बंधुवाई में जाते हैं. 5जब वे देख रहे हों, तो दीवार को फोड़ना और उसमें से अपना सामान बाहर ले जाना. 6उनके देखते ही में सामान को अपने कंधे पर रखना और सूर्यास्त के समय उनको बाहर ले जाना. अपने चेहरे को ढांपे रहना ताकि तुम्हें भूमि दिखाई न दे, क्योंकि मैंने तुम्हें इस्राएलियों के लिए एक चिन्ह ठहराया है.”

7मुझे जैसी आज्ञा दी गई, तब मैंने वैसा ही किया. दिन के समय, बंधुवाई के लिये तैयार, मैं अपना सामान बाहर ले आया. तब संध्या के समय, मैंने दीवार को अपने हाथों से फोड़ा. सूर्यास्त के समय, मैं अपना सामान बाहर ले गया, और उनको अपने कंधों पर उठाकर लोगों के देखते में चला गया.

8सुबह याहवेह का यह वचन मेरे पास आया: 9“हे मनुष्य के पुत्र, वे विद्रोही इस्राएली लोग क्या तुमसे नहीं पूछे, ‘तुम क्या कर रहे हो?’

10“उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: इस भविष्यवाणी का संबंध येरूशलेम के राजकुमार और उन सब इस्राएलियों से है, जो वहां रहते हैं.’ 11उनसे कहो, ‘मैं तुम्हारे लिये एक चिन्ह हूं.’

“जैसा मैंने किया है, ठीक वैसा ही उनके साथ भी किया जाएगा. ‘वे बंदी के रूप में बंधुवाई में चले जाएंगे.’

12“उनके बीच का राजकुमार शाम के समय अपने सामान को अपने कंधों पर रखकर चला जाएगा, और दीवार में एक बड़ा छेद बनाया जाएगा, ताकि वह उसमें से निकलकर जा सके. वह अपना चेहरा ढांक लेगा ताकि उसे भूमि न दिखे. 13मैं उसके लिये अपना जाल बिछाऊंगा, और वह मेरे फंदे में फंस जाएगा; मैं उसे कसदियों के देश बाबेल में ले आऊंगा, पर वह इसे देख न सकेगा, और वहां वह मर जाएगा. 14मैं उसके आस-पास के सब लोगों को तितर-बितर कर दूंगा—उसके कर्मचारी और उसकी सब सेना—और नंगी तलवार लेकर मैं उनका पीछा करूंगा.

15“जब मैं उन्हें जाति-जाति और देश-देश के बीच तितर-बितर कर दूंगा, तब वे जानेंगे कि मैं याहवेह हूं. 16परंतु मैं उनमें से कुछ को तलवार की मार, अकाल और महामारी से बचाऊंगा, ताकि उन जनताओं के बीच, जहां वे जाएं, वहां वे अपने सब घृणित कार्यों को मान लें. तब वे जानेंगे कि मैं याहवेह हूं.”

17याहवेह का यह वचन मेरे पास आया: 18“हे मनुष्य के पुत्र, कांपते हुए अपना भोजन करना और थरथराते हुए अपना पानी पीना. 19तब देश के लोगों से कहो: ‘येरूशलेम और इस्राएल देश में रहनेवालों के विषय में परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: वे चिंतित मन से अपना भोजन करेंगे और निराश मन से अपना पानी पिएंगे, क्योंकि देश में रहनेवाले सब लोगों की हिंसा के कारण, देश की सब चीज़ें ले ली जाएंगी. 20बसे हुए नगर उजाड़ दिए जाएंगे और देश निर्जन हो जाएगा. तब तुम जानोगे कि मैं याहवेह हूं.’ ”

देर न होना

21याहवेह का यह वचन मेरे पास आया: 22“हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल देश में यह क्या कहावत है: ‘दिन बीतते जा रहे हैं और कोई भी दर्शन पूरा नहीं हो रहा है’? 23अतः उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: मैं इस कहावत का अंत करनेवाला हूं, और वे फिर कभी इस्राएल में इस कहावत का प्रयोग नहीं करेंगे.’ उनसे कहो, ‘वे दिन निकट हैं जब हर एक दर्शन पूरा होगा. 24क्योंकि तब इस्राएल के लोगों के बीच कोई झूठा दर्शन और चापलूसीपूर्ण भविष्य की बातें न होंगी. 25क्योंकि जो भी बोलूंगा, मैं, याहवेह ही बोलूंगा, और वह बिना देरी के पूरा होगा. क्योंकि हे विद्रोही लोगों, तुम्हारे ही दिनों में, जो कुछ मैं कहता हूं, उसे मैं पूरा करूंगा, यह परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.’ ”

26फिर याहवेह का यह वचन मेरे पास आया: 27“हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएली कह रहे हैं, ‘जो दर्शन वह देख रहा है, वह अब से लेकर बहुत सालों बाद पूरा होगा, और जो भविष्यवाणी वह कर रहा है, वह अब से लेकर बहुत समय बाद की बात कर रहा है.’

28“इसलिये उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: मेरे कहे गये किसी भी वचन के पूरा होने में और देरी नहीं होगी; जो भी मैं कहता हूं, वह पूरा होगा, यह परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.’ ”