التكوين 13 – NAV & HCV

New Arabic Version

التكوين 13:1-18

انفصال أبرام ولوط

1وَغَادَرَ أَبْرَامُ مِصْرَ وَتَوَجَّهَ هُوَ وَزَوْجَتُهُ وَلُوطٌ وَكُلُّ مَا كَانَ لَهُ، نَحْوَ مِنْطَقَةِ النَّقَبِ 2وَكَانَ أَبْرَامُ يَمْلِكُ ثَرْوَةً طَائِلَةً مِنَ الْمَوَاشِي وَالْفِضَّةِ وَالذَّهَبِ. 3وَظَلَّ يَتنَقَّلُ فِي مِنْطَقَةِ النَّقَبِ مُتَّجِهاً إِلَى بَيْتِ إِيلٍ، إِلَى الْمَكَانِ الَّذِي كَانَ قَدْ نَصَبَ فِيهِ خِيَامَهُ أَوَّلاً بَيْنَ بَيْتِ إِيلٍ وَعَايَ. 4حَيْثُ كَانَ قَدْ شَيَّدَ الْمَذْبَحَ أَوَّلاً، وَدَعَا هُنَاكَ أَبْرَامُ بِاسْمِ الرَّبِّ.

5وَكَانَ لِلُوطٍ الْمُرَافِقِ لأَبْرَامَ غَنَمٌ وَبَقَرٌ وَخِيَامٌ أَيْضاً. 6فَضَاقَتْ بِهِمَا الأَرْضُ لِكَثْرَةِ أَمْلاكِهِمَا فَلَمْ يَقْدِرَا أَنْ يَسْكُنَا مَعاً. 7وَنَشَبَ نِزَاعٌ بَيْنَ رُعَاةِ مَوَاشِي أَبْرَامَ وَرُعَاةِ مَوَاشِي لُوطٍ، فِي الْوَقْتِ الَّذِي كَانَ فِيهِ الْكَنْعَانِيُّونَ وَالْفِرِزِّيُّونَ يُقِيمُونَ فِي الأَرْضِ. 8فَقَالَ أَبْرَامُ لِلُوطٍ: «لا يَكُنْ نِزَاعٌ بَيْنِي وَبَيْنَكَ، وَلا بَيْنَ رُعَاتِي وَرُعَاتِكَ لأَنَّنَا نَحْنُ أَخَوَانِ. 9أَلَيْسَتِ الأَرْضُ كُلُّهَا أَمَامَكَ؟ فَاعْتَزِلْ عَنِّي. إِنِ اتَّجَهْتَ شِمَالاً، أَتَّجِهْ أَنَا يَمِيناً، وَإِنْ تَحَوَّلْتَ يَمِيناً، أَتَحَوَّلْ أَنَا شِمَالاً».

10وَتَلَفَّتَ لُوطٌ حَوْلَهُ فَشَاهَدَ السُّهُولَ الْمُحِيطَةَ بِنَهْرِ الأُرْدُنِّ وَإذَا بِها رَيَّانَةٌ كُلُّهَا، قَبْلَمَا دَمَّرَ الرَّبُّ سَدُومَ وَعَمُورَةَ، وَكَأَنَّهَا جَنَّةُ الرَّبِّ كَأَرْضِ مِصْرَ الْمُمْتَدَّةِ إِلَى صُوغَرَ. 11فَاخْتَارَ لُوطٌ لِنَفْسِهِ حَوْضَ الأُرْدُنِّ كُلَّهُ وَارْتَحَلَ شَرْقاً. وَهَكَذَا اعْتَزَلَ أَحَدُهُمَا عَنِ الآخَرِ. 12وَسَكَنَ أَبْرَامُ فِي أَرْضِ كَنْعَانَ، وَأَقَامَ لُوطٌ فِي مُدُنِ السَّهْلِ حَيْثُ نَصَبَ خِيَامَهُ بِجُوَارِ سَدُومَ. 13وَكَانَ أَهْلُ سَدُومَ مُتَوَرِّطِينَ فِي الشَّرِّ وَخَاطِئِينَ جِدّاً أَمَامَ الرَّبِّ.

14وَقَالَ الرَّبُّ لأَبْرَامَ بَعْدَ أَنِ اعْتَزَلَ عَنْهُ لُوطٌ: «ارْفَعْ عَيْنَيْكَ وَتَلَفَّتْ حَوْلَكَ مِنَ الْمَوْضِعِ الَّذِي أَنْتَ فِيهِ، شِمَالاً وَجَنُوباً، شَرْقاً وَغَرْباً، 15فَإِنَّ هَذِهِ الأَرْضَ الَّتِي تَرَاهَا، سَأُعْطِيهَا لَكَ وَلِذُرِّيَّتِكَ إِلَى الأَبَدِ. 16وَسَأَجْعَلُ نَسْلَكَ كَتُرَابِ الأَرْضِ، فَإِنِ اسْتَطَاعَ أَحَدٌ أَنْ يُحْصِيَ تُرَابَ الأَرْضِ يَقْدِرُ آنَئِذٍ أَنْ يُحْصِيَ نَسْلَكَ 17قُمْ وَامْشِ فِي طُولِ الأَرْضِ وَعَرْضِهَا لأَنِّي لَكَ أُعْطِيهَا». 18فَنَقَلَ أَبْرَامُ خِيَامَهُ ونَصَبَهَا فِي سَهْلِ مَمْرَا فِي حَبْرُونَ. وَهُنَاكَ بَنَى لِلرَّبِّ مَذْبَحاً.

Hindi Contemporary Version

उत्पत्ति 13:1-18

अब्राम और लोत

1अब्राम अपनी पत्नी, सारी संपत्ति और लोत को लेकर कनान देश के नेगेव में आए. 2अब्राम के पास बहुत पशु, सोने तथा चांदी होने के कारण वे बहुत धनी हो गये थे.

3वे नेगेव से बेथेल तक पहुंच गए, जहां वे पहले रहते थे अर्थात् बेथेल तथा अय के बीच में. 4और जहां उन्होंने पहले एक वेदी बनाई थी वहां अब्राम ने याहवेह से प्रार्थना की.

5लोत के पास भी बहुत भेड़-बकरियां और पशु थे. उन्होंने भी अब्राम के पास अपने तंबू लगाए. 6पर ज़मीन की कमी के कारण वे दोनों एक साथ न रह पा रहे थे क्योंकि उनके पास बहुत अधिक संपत्ति थी. 7और अब्राम तथा लोत के चरवाहों के बीच आपस में लड़ाई हो जाती थी. और उस समय उस देश में कनानी एवं परिज्ज़ी लोग भी रहते थे.

8इसलिये अब्राम ने लोत से कहा, “हम दोनों के बीच और हमारे चरवाहों के बीच झगड़ा न हो, क्योंकि हम एक ही परिवार के हैं. 9इसलिये हम दोनों अलग हो जाते हैं. यदि तुम बायीं दिशा में जाना चाहते हो, तो मैं दायीं ओर चला जाऊंगा और यदि तुम दायीं दिशा में जाना चाहते हो, तो मैं बायीं ओर चला जाऊंगा.”

10लोत ने यरदन नदी व उसके आस-पास की हरियाली को देखा; वह चारों तरफ फैली थी और ज़ोअर की दिशा में यरदन नदी भी पानी से भरी थी. वह याहवेह का बगीचा, और मिस्र देश के समान उपजाऊ थी. (यह याहवेह के द्वारा सोदोम व अमोराह को नाश करने के पहले की बात है.) 11इसलिये लोत ने यरदन घाटी को जो, पूर्व दिशा की ओर है, चुन लिया. इस प्रकार लोत तथा अब्राम एक दूसरे से अलग हो गए. 12अब्राम कनान देश में बस गए तथा लोत यरदन घाटी के नगरों में. लोत ने अपने तंबू सोदोम नगर के निकट खड़े किए. 13सोदोम के पुरुष दुष्ट थे और याहवेह की दृष्टि में वे बहुत पापी थे.

14लोत से अब्राम के अलग होने के बाद याहवेह ने अब्राम से कहा, “तुम जिस स्थान पर खड़े हो, वहां से चारों ओर देखो. 15क्योंकि यह सारी भूमि, जो तुम्हें दिख रही है, मैं तुम्हें तथा तुम्हारे वंश को हमेशा के लिए दूंगा. 16मैं तुम्हारे वंश को भूमि की धूल के कण के समान असंख्य बना दूंगा, तब यदि कोई इन कणों को गिन सके, तो तुम्हारे वंश को भी गिन पायेगा. 17अब उठो, इस देश की लंबाई और चौड़ाई में चलो फिरो, क्योंकि यह मैं तुम्हें दूंगा.”

18इसलिये अब्राम ने हेब्रोन में ममरे के बांज वृक्ष के पास अपने तंबू खड़े किए और उन्होंने वहां याहवेह के लिए एक वेदी बनाई.