الأمثال 4 – NAV & HCV

New Arabic Version

الأمثال 4:1-27

اقتن الحكمة بأي ثمن

1اسْتَمِعُوا أَيُّهَا الْبَنُونَ إِلَى إِرْشَادِ الأَبِ، وَأَصْغُوا لِتَكْتَسِبُوا الْفِطْنَةَ، 2فَإِنِّي أُقَدِّمُ لَكُمْ تَعْلِيماً صَالِحاً، فَلا تُهْمِلُوا شَرِيعَتِي. 3عِنْدَمَا كُنْتُ ابْناً لأَبِي، غَضّاً وَحِيداً لأُمِّي، 4قَالَ لِي: «ادَّخِرْ فِي قَلْبِكَ كَلامِي، وَاحْفَظْ وَصَايَايَ فَتَحْيَا. 5لَا تَنْسَ وَلا تُعْرِضْ عَنْ أَقْوَالِ فَمِي، بَلْ تَلَقَّنِ الْحِكْمَةَ وَاقْتَنِ الْفِطْنَةَ. 6لَا تَنْبِذْهَا فَتَحْفَظَكَ. أَحْبِبْهَا فَتَصُونَكَ. 7بِدَايَةُ الْحِكْمَةِ أَنْ تَكْسَبَ حِكْمَةً، وَاقْتَنِ الْفِطْنَةَ وَلَوْ بَذَلْتَ كُلَّ مَا تَمْلِكُ. 8مَجِّدْهَا فَتُمَجِّدَكَ، اعْتَنِقْهَا فَتُكْرِمَكَ. 9تُتَوِّجُ رَأْسَكَ بِإِكْلِيلِ جَمَالٍ، وَتُنْعِمُ عَلَيْكَ بِتَاجِ بَهَاءٍ».

10اسْتَمِعْ يَا ابْنِي وَتَقَبَّلْ أَقْوَالِي، لِتَطُولَ سِنُو حَيَاتِكَ. 11قَدْ أَرْشَدْتُكَ إِلَى طَرِيقِ الْحِكْمَةِ، وَهَدَيْتُكَ فِي مَنَاهِجِ الاسْتِقَامَةِ. 12عِنْدَمَا تَمْشِي لَا تَضِيقُ خَطْوَاتُكَ، وَحِينَ تَرْكُضُ لَا تَتَعَثَّرُ. 13تَمَسَّكْ بِالإِرْشَادِ وَلا تَطْرَحْهُ. صُنْهُ لأَنَّهُ حَيَاتُكَ. 14لَا تَدْخُلْ فِي سَبِيلِ الأَشْرَارِ وَلا تَنْهَجْ نَهْجَهُمْ. 15ابْتَعِدْ عَنْهُ وَلا تَعْبُرْ بِهِ. حِدْ عَنْهُ وَلا تَجْتَزْ فِيهِ. 16فَإِنَّهُمْ لَا يَرْكَنُونَ إِلَى النَّوْمِ مَا لَمْ يُسِيئُوا، وَيُفَارِقُهُمُ النُّعَاسُ مَا لَمْ يُعْثِرُوا أَحَداً. 17لأَنَّهُمْ يَأْكُلُونَ خُبْزَ الشَّرِّ وَيَشْرَبُونَ خَمْرَ الظُّلْمِ. 18أَمَّا سَبِيلُ الأَبْرَارِ فَكَنُورٍ مُتَلألِئٌ يَتَزَايَدُ إِشْرَاقُهُ إِلَى أَنْ يَكْتَمِلَ النَّهَارُ، 19وَطَرِيقُ الأَشْرَارِ كَالظُّلْمَةِ الدَّاجِيَةِ لَا يُدْرِكُونَ مَا يَعْثُرُونَ بِهِ.

20يَا ابْنِي أَصْغِ إِلَى كَلِمَاتِ حِكْمَتِي، وَأَرْهِفْ أُذُنَكَ إِلَى أَقْوَالِي. 21لِتَظَلَّ مَاثِلَةً أَمَامَ عَيْنَيْكَ وَاحْتَفِظْ بِها فِي دَاخِلِ قَلْبِكَ، 22لأَنَّهَا حَيَاةٌ لِمَنْ يَعْثُرُ عَلَيْهَا، وَعَافِيَةٌ لِكُلِّ جَسَدِهِ. 23فَوْقَ كُلِّ حِرْصٍ احْفَظْ قَلْبَكَ لأَنَّ مِنْهُ تَنْبَثِقُ الْحَيَاةُ. 24انْزِعْ مِنْ فَمِكَ كُلَّ قَوْلٍ مُلْتَوٍ، وَأَبْعِدْ عَنْ شَفَتَيْكَ خَبِيثَ الْكَلامِ. 25حَدِّقْ بِاسْتِقَامَةٍ أَمَامَكَ، وَوَجِّهْ أَنْظَارَكَ إِلَى قُدَّامِكَ. 26تَبَيَّنْ مَوْقِعَ قَدَمِكَ، فَتَضْحَى جَمِيعُ طُرُقِكَ ثَابِتَةً. 27لَا تَحِدْ يَمِيناً أَوْ يَسَاراً، وَأَبْعِدْ رِجْلَكَ عَنْ مَسَالِكِ الشَّرِّ.

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 4:1-27

किसी भी कीमत पर ज्ञान प्राप्‍त करें

1मेरे पुत्रो, अपने पिता की शिक्षा ध्यान से सुनो;

इन पर विशेष ध्यान दो, कि तुम्हें समझ प्राप्‍त हो सके.

2क्योंकि मेरे द्वारा दिए जा रहे नीति-सिद्धांत उत्तम हैं,

इन शिक्षाओं का कभी त्याग न करना.

3जब मैं स्वयं अपने पिता का पुत्र था,

मैं सुकुमार था, माता के लिए लाखों में एक.

4मेरे पिता ने मुझे शिक्षा देते हुए कहा था,

“मेरी शिक्षा अपने हृदय में दृढतापूर्वक बैठा लो;

मेरे आदेशों का पालन करते रहो, क्योंकि इन्हीं में तुम्हारा जीवन सुरक्षित है.

5मेरे मुख से निकली शिक्षा से बुद्धिमत्ता प्राप्‍त करो, समझ प्राप्‍त करो;

न इन्हें त्यागना, और न इनसे दूर जाओ.

6यदि तुम इसका परित्याग न करो, तो यह तुम्हें सुरक्षित रखेगी;

इसके प्रति तुम्हारा प्रेम ही तुम्हारी सुरक्षा होगी.

7सर्वोच्च प्राथमिकता है बुद्धिमत्ता की उपलब्धि: बुद्धिमत्ता प्राप्‍त करो.

यदि तुम्हें अपना सर्वस्व भी देना पड़े, समझ अवश्य प्राप्‍त कर लेना.

8ज्ञान को अमूल्य संजो रखना, तब वह तुम्हें भी प्रतिष्ठित बनाएगा;

तुम इसे आलिंगन करो तो यह तुम्हें सम्मानित करेगा.

9यह तुम्हारे मस्तक को एक भव्य आभूषण से सुशोभित करेगा;

यह तुम्हें एक मनोहर मुकुट प्रदान करेगा.”

10मेरे पुत्र, मेरी शिक्षाएं सुनो और उन्हें अपना लो,

कि तुम दीर्घायु हो जाओ.

11मैंने तुम्हें ज्ञान की नीतियों की शिक्षा दी है,

मैंने सीधे मार्ग पर तुम्हारी अगुवाई की है.

12इस मार्ग पर चलते हुए तुम्हारे पैर बाधित नहीं होंगे;

यदि तुम दौड़ोगे तब भी तुम्हारे पांव ठोकर न खाएंगे.

13इन शिक्षाओं पर अटल रहो; कभी इनका परित्याग न करो;

ज्ञान तुम्हारा जीवन है, उसकी रक्षा करो.

14दुष्टों के मार्ग पर पांव न रखना,

दुर्जनों की राह पर पांव न रखना.

15इससे दूर ही दूर रहना, उस मार्ग पर कभी न चलना;

इससे मुड़कर आगे बढ़ जाना.

16उन्हें बुराई किए बिना नींद ही नहीं आती;

जब तक वे किसी का बुरा न कर लें, वे करवटें बदलते रह जाते हैं.

17क्योंकि बुराई ही उन्हें आहार प्रदान करती है

और हिंसा ही उनका पेय होती है.

18किंतु धर्मी का मार्ग भोर के प्रकाश समान है,

जो दिन चढ़ते हुए उत्तरोत्तर प्रखर होती जाती है और मध्याह्न पर पहुंचकर पूर्ण तेज पर होती है.

19पापी की जीवनशैली गहन अंधकार होती है;

उन्हें यह ज्ञात ही नहीं हो पाता, कि उन्हें ठोकर किससे लगी है.

20मेरे पुत्र, मेरी शिक्षाओं के विषय में सचेत रहना;

मेरी बातों पर विशेष ध्यान देना.

21ये तुम्हारी दृष्टि से ओझल न हों,

उन्हें अपने हृदय में बनाए रखना.

22क्योंकि जिन्होंने इन्हें प्राप्‍त कर लिया है,

ये उनका जीवन हैं, ये उनकी देह के लिए स्वास्थ्य हैं.

23सबसे अधिक अपने हृदय की रक्षा करते रहना,

क्योंकि जीवन के प्रवाह इसी से निकलते हैं.

24कुटिल बातों से दूर रहना;

वैसे ही छल-प्रपंच के वार्तालाप में न बैठना.

25तुम्हारी आंखें सीधे लक्ष्य को ही देखती रहें;

तुम्हारी दृष्टि स्थिर रहे.

26इस पर विचार करो कि तुम्हारे पांव कहां पड़ रहे हैं

तब तुम्हारे समस्त लेनदेन निरापद बने रहेंगे.

27सन्मार्ग से न तो दायें मुड़ना न बाएं;

बुराई के मार्ग पर पांव न रखना.