إنجيل لوقا 17 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

إنجيل لوقا 17:1-37

الخطية والإيمان والواجب

1وَقَالَ لِتَلامِيذِهِ: «لابُدَّ مِنْ أَنْ تَأْتِيَ الْعَثَرَاتُ. وَلكِنِ الْوَيْلُ لِمَنْ تَأْتِي عَلَى يَدِهِ! 2كَانَ أَنْفَعَ لَهُ لَوْ عُلِّقَ حَوْلَ عُنُقِهِ حَجَرُ رَحىً وَطُرِحَ فِي الْبَحْرِ، مِنْ أَنْ يَكُونَ عَثْرَةً لأَحَدِ هؤُلاءِ الصِّغَارِ. 3خُذُوا الْحَذَرَ لأَنْفُسِكُمْ: إِنْ أَخْطَأَ أَخُوكَ، فَعَاتِبْهُ. فَإِذَا تَابَ، فَاغْفِرْ لَهُ. 4وَإِنْ أَخْطَأَ إِلَيْكَ سَبْعَ مَرَّاتٍ فِي الْيَوْمِ، وَعَادَ إِلَيْكَ سَبْعَ مَرَّاتٍ قَائِلاً: أَنَا تَائِبٌ! فَعَلَيْكَ أَنْ تَغْفِرَ لَهُ».

5وَقَالَ الرُّسُلُ لِلرَّبِّ: «زِدْنَا إِيمَاناً!» 6وَلكِنَّ الرَّبَّ قَالَ: «لَوْ كَانَ عِنْدَكُمْ إِيمَانٌ مِثْلُ بِزْرَةِ الْخَرْدَلِ، لَكُنْتُمْ تَقُولُونَ لِشَجَرَةِ التُّوتِ هذِهِ: انْقَلِعِي وَانْغَرِسِي فِي الْبَحْرِ! فَتُطِيعُكُمْ!

7وَلَكِنْ، أَيُّ وَاحِدٍ مِنْكُمْ يَكُونُ عِنْدَهُ عَبْدٌ يَحْرُثُ أَوْ يَرْعَى، فَيَقُولُ لَهُ لَدَى رُجُوعِهِ مِنَ الْحَقْلِ: تَقَدَّمْ فِي الْحَالِ وَاتَّكِئْ؟ 8أَلا يَقُولُ لَهُ بِالأَحْرَى: أَحْضِرْ لِي مَا أَتَعَشَّى بِهِ، وَشُدَّ وَسَطَكَ بِالْحِزَامِ وَاخْدِمْنِي حَتَّى آكُلَ وَأَشْرَبَ وبَعْدَ ذَلِكَ تَأْكُلُ وَتَشْرَبُ أَنْتَ؟ 9وَهَلْ يُشْكَرُ الْعَبْدُ لأَنَّهُ عَمِلَ مَا أُمِرَ بِهِ؟ 10هكَذَا أَنْتُمْ أَيْضاً، عِنْدَمَا تَعْمَلُونَ كُلَّ مَا تُؤْمَرُونَ بِهِ، قُولُوا: إِنَّمَا نَحْنُ عَبِيدٌ غَيْرُ نَافِعِينَ، قَدْ عَمِلْنَا مَا كَانَ وَاجِباً عَلَيْنَا!»

شفاء عشرة من البرص

11وَفِيمَا هُوَ صَاعِدٌ إِلَى أُورُشَلِيمَ، مَرَّ فِي وَسَطِ مِنْطَقَتَيِ السَّامِرَةِ وَالْجَلِيلِ. 12وَلَدَى دُخُولِهِ إِحْدَى الْقُرَى، لاقَاهُ عَشَرَةُ رِجَالٍ مُصَابِينَ بِالْبَرَصِ. فَوَقَفُوا مِنْ بَعِيدٍ، 13وَرَفَعُوا الصَّوْتَ قَائِلِينَ: «يَا يَسُوعُ، يَا سَيِّدُ، ارْحَمْنَا!» 14فَرَآهُمْ، وَقَالَ لَهُمْ: «اذْهَبُوا وَاعْرِضُوا أَنْفُسَكُمْ عَلَى الْكَهَنَةِ!» وَفِيمَا كَانُوا ذَاهِبِينَ، طَهَرُوا. 15فَلَمَّا رَأَى وَاحِدٌ مِنْهُمْ أَنَّهُ قَدْ طَهَرَ، عَادَ وَهُوَ يُمَجِّدُ اللهَ بِصَوْتٍ عَالٍ، 16وَارْتَمَى عَلَى وَجْهِهِ عِنْدَ قَدَمَيْهِ مُقَدِّماً لَهُ الشُّكْرَ. وَكَانَ هَذَا سَامِرِيًّا. 17فَتَكَلَّمَ يَسُوعُ قَائِلاً: «أَمَا طَهَرَ الْعَشَرَةُ؟ فَأَيْنَ التِّسْعَةُ؟ 18أَلَمْ يُوجَدْ مَنْ يَعُودُ وَيُقَدِّمُ الْمَجْدَ لِلهِ سِوَى هَذَا الأَجْنَبِيِّ؟» 19ثُمَّ قَالَ لَهُ: «قُمْ وَامْضِ فِي سَبِيلِكَ: إِنَّ إِيمَانَكَ قَدْ خَلَّصَكَ!»

متى يأتي ملكوت الله؟

20وَإِذْ سَأَلَهُ الْفَرِّيسِيُّونَ: «مَتَى يَأْتِي مَلَكُوتُ اللهِ؟» أَجَابَهُمْ قَائِلاً: «إِنَّ مَلَكُوتَ اللهِ لَا يَأْتِي بِعَلامَةٍ مَنْظُورَةٍ. 21وَلا يُقَالُ: هَا هُوَ هُنَا، أَوْ: هَا هُوَ هُنَاكَ! فَهَا إِنَّ مَلَكُوتَ اللهِ فِي دَاخِلِكُمْ!»

22ثُمَّ قَالَ لِتَلامِيذِهِ: «سَيَأْتِي زَمَانٌ تَتَشَوَّقُونَ فِيهِ أَنْ تَرَوْا وَلَوْ يَوْماً وَاحِداً مِنْ أَيَّامِ ابْنِ الإِنْسَانِ، وَلَنْ تَرَوْا. 23وَسَوْفَ يَقُولُ بَعْضُهُمْ لَكُمْ: هَا هُوَ هُنَاكَ، أَوْ: هَا هُوَ هُنَا؛ فَلا تَذْهَبُوا وَلا تَتْبَعُوهُمْ: 24فَكَمَا أَنَّ الْبَرْقَ الَّذِي يَلْمَعُ تَحْتَ السَّمَاءِ مِنْ إِحْدَى الْجِهَاتِ يُضِيءُ فِي جِهَةٍ أُخْرَى، هكَذَا يَكُونُ ابْنُ الإِنْسَانِ يَوْمَ يَعُودُ. 25وَلكِنْ لابُدَّ لَهُ أَوَّلاً مِنْ أَنْ يُعَانِيَ آلاماً كَثِيرَةً وَأَنْ يَرْفُضَهُ هَذَا الْجِيلُ! 26وَكَمَا حَدَثَ فِي زَمَانِ نُوحٍ، هكَذَا أَيْضاً سَوْفَ يَحْدُثُ فِي زَمَانِ ابْنِ الإِنْسَانِ: 27كَانَ النَّاسُ يَأْكُلُونَ وَيَشْرَبُونَ وَيَتَزَوَّجُونَ وَيُزَوِّجُونَ، إِلَى الْيَوْمِ الَّذِي فِيهِ دَخَلَ نُوحٌ السَّفِينَةَ وَجَاءَ الطُّوفَانُ فَأَهْلَكَ الْجَمِيعَ. 28وَكَذلِكَ، كَمَا حَدَثَ فِي زَمَانِ لُوطٍ: كَانُوا يَأْكُلُونَ وَيَشْرَبُونَ وَيَشْتَرُونَ وَيَبِيعُونَ وَيَغْرِسُونَ وَيَبْنُونَ، 29وَلكِنْ فِي الْيَوْمِ الَّذِي فِيهِ خَرَجَ لُوطٌ مِنْ سَدُومَ، أَمْطَرَ (اللهُ) مِنَ السَّمَاءِ نَاراً وَكِبْرِيتاً، فَأَهْلَكَ الْجَمِيعَ 30هكَذَا سَيَحْدُثُ فِي يَوْمِ ظُهُورِ ابْنِ الإِنْسَانِ. 31فَمَنْ كَانَ فِي ذلِكَ الْيَوْمِ عَلَى السَّطْحِ وَأَمْتِعَتُهُ فِي الْبَيْتِ، فَلا يَنْزِلْ لِيَأْخُذَهَا؛ وَمَنْ كَانَ فِي الْحَقْلِ كَذلِكَ، فَلا يَرْجِعْ إِلَى الْوَرَاءِ. 32تَذَكَّرُوا زَوْجَةَ لُوطٍ! 33مَنْ يَسْعَى لإِنْقَاذِ حَيَاتِهِ يَفْقِدُهَا، وَمَنْ فَقَدَهَا يُحَافِظُ عَلَيْهَا. 34أَقُولُ لَكُمْ: فِي تِلْكَ اللَّيْلَةِ يَكُونُ اثْنَانِ نَائِمَيْنِ عَلَى سَرِيرٍ وَاحِدٍ، فَيُؤْخَذُ الْوَاحِدُ وَيُتْرَكُ الآخَرُ؛ 35وَتَكُونُ اثْنَتَانِ تَطْحَنَانِ مَعاً، فَتُؤْخَذُ الْوَاحِدَةُ وَتُتْرَكُ الأُخْرَى؛ 36وَيَكُونُ اثْنَانِ فِي الْحَقْلِ، فَيُؤْخَذُ الْوَاحِدُ وَيُتْرَكُ الآخَرُ». 37فَرَدُّوا سَائِلِينَ: «أَيْنَ، يَا رَبُّ؟» فَقَالَ لَهُمْ: «حَيْثُ تَكُونُ الْجِيفَةُ، هُنَاكَ تَتَجَمَّعُ النُّسُورُ!»

Hindi Contemporary Version

लूकॉस 17:1-37

अन्यों को भटकाने पर

1इसके बाद अपने शिष्यों से प्रभु येशु ने कहा, “यह असंभव है कि ठोकरें न लगें किंतु धिक्कार है उस व्यक्ति पर, जो ठोकर का कारण है. 2इसके बजाय कि वह निर्बलों के लिए ठोकर का कारण बने, उत्तम यह होता कि उसके गले में चक्की का पाट बांधकर उसे गहरे समुद्र में फेंक दिया जाता. 3इसलिये तुम स्वयं के प्रति सावधान रहो.

“यदि तुम्हारा भाई या बहन अपराध करे तो उसे डांटो और यदि वह मन फिराए तो उसे क्षमा कर दो. 4यदि वह एक दिन में तुम्हारे विरुद्ध सात बार भी अपराध करे और सातों बार तुमसे आकर कहे, ‘मुझे इसका पछतावा है,’ तो उसे क्षमा कर दो.”

5प्रेरितों ने उनसे विनती की, “प्रभु, हमारे विश्वास को बढ़ा दीजिए.”

6प्रभु येशु ने उत्तर दिया, “यदि तुम्हारा विश्वास राई के बीज के बराबर भी हो, तो तुम इस शहतूत के पेड़ को यह आज्ञा देते, ‘उखड़ जा और जाकर समुद्र में लग जा!’ तो यह तुम्हारी आज्ञा का पालन करता.

7“क्या तुममें से कोई ऐसा है, जिसके खेत में काम करने या भेड़ों की रखवाली के लिए एक दास हो और जब वह दास खेत से लौटे तो वह दास से कहे, ‘आओ, मेरे साथ भोजन करो’? 8क्या वह अपने दास को यह आज्ञा न देगा, ‘मेरे लिए भोजन तैयार करो और मुझे भोजन परोसने के लिए तैयार हो जाओ. मैं भोजन के लिए बैठ रहा हूं. तुम मेरे भोजन समाप्‍त करने के बाद भोजन कर लेना?’ 9क्या वह अपने दास का आभार इसलिये मानेगा कि उसने उसे दिए गए आदेशों का पालन किया है? नहीं! 10यही तुम सबके लिए भी सही है: जब तुम वह सब कर लो, जिसकी तुम्हें आज्ञा दी गई थी, यह कहो: ‘हम अयोग्य सेवक हैं. हमने केवल अपना कर्तव्य पूरा किया है.’ ”

एक अकेला आभारी कोढ़ रोगी

11येरूशलेम नगर की ओर बढ़ते हुए प्रभु येशु शमरिया और गलील प्रदेश के बीच से होते हुए जा रहे थे. 12जब वह गांव में प्रवेश कर ही रहे थे, उनकी भेंट दस कोढ़ रोगियों से हुई, जो दूर ही खड़े रहे. 13उन्होंने दूर ही से पुकारते हुए प्रभु येशु से कहा, “स्वामी! प्रभु येशु! हम पर कृपा कीजिए!”

14उन्हें देख प्रभु येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “जाकर पुरोहितों द्वारा स्वयं का निरीक्षण करवाओ.”17:14 लेवी 14:2-32 देखें जब वे जा ही रहे थे, वे शुद्ध हो गए.

15उनमें से एक, यह अहसास होते ही कि वह शुद्ध हो गया है, प्रभु येशु के पास लौट आया और ऊंचे शब्द में परमेश्वर की वंदना करने लगा. 16प्रभु येशु के चरणों पर गिरकर उसने उनके प्रति धन्यवाद प्रकट किया—वह शमरियावासी था.

17प्रभु येशु ने उससे प्रश्न किया, “क्या सभी दस शुद्ध नहीं हुए? कहां हैं वे अन्य नौ? 18क्या इस परदेशी के अतिरिक्त किसी अन्य ने परमेश्वर के प्रति धन्यवाद प्रकट करना सही न समझा?” 19तब प्रभु येशु ने उससे कहा, “उठो और जाओ. तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें हर तरह से स्वस्थ किया है.”

परमेश्वर के राज्य के दिन का प्रश्न

20एक अवसर पर, जब फ़रीसियों ने उनसे यह जानना चाहा कि परमेश्वर के राज्य का आगमन कब होगा, तो प्रभु येशु ने उत्तर दिया, “परमेश्वर के राज्य का आगमन दिखनेवाले संकेतों के साथ नहीं होगा 21और न ही इसके विषय में कोई यह कह सकता है, ‘देखो, देखो! यह है परमेश्वर का राज्य!’ क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे ही बीच में है.”

22तब अपने शिष्यों से उन्मुख हो प्रभु येशु ने कहा, “वह समय आ रहा है जब तुम मनुष्य के पुत्र के राज्य का एक दिन देखने के लिए तरस जाओगे और देख न पाओगे. 23लोग आकर तुम्हें सूचना देंगे, ‘देखो, वह वहां है!’ या, ‘देखो, वह यहां है!’ यह सुनकर तुम चले न जाना और न ही उनके पीछे भागना 24क्योंकि मनुष्य के पुत्र का दोबारा आना बिजली कौंधने के समान होगा—आकाश में एक छोर से दूसरे छोर तक; 25किंतु उसके पूर्व उसका अनेक यातनाएं सहना और इस पीढ़ी द्वारा तिरस्कार किया जाना अवश्य है.

26“ठीक जिस प्रकार नोहा के युग में हुआ था, मनुष्य के पुत्र के समय में भी होगा, 27तब भी लोगों में उस समय तक खाना-पीना, विवाहोत्सव होते रहे, जब तक नोहा ने जहाज़ में प्रवेश न किया. तब पानी की बाढ़ आई और सब कुछ नाश हो गया.17:27 उत्प 7 देखें

28“ठीक यही स्थिति थी लोत के समय में—लोग उत्सव, लेनदेन, खेती और निर्माण का काम करते रहे 29किंतु जैसे ही लोत ने सोदोम नगर से प्रस्थान किया, आकाश से आग और गंधक की बारिश हुई और सब कुछ नाश हो गया.17:29 उत्प 19 देखें

30“यही सब होगा उस दिन, जब मनुष्य का पुत्र प्रकट होगा. 31उस समय सही यह होगा कि वह, जो छत पर हो और उसकी वस्तुएं घर में हों, वह उन्हें लेने नीचे न उतरे. इसी प्रकार वह, जो खेत में काम कर रहा है, वह भी लौटकर न आए. 32याद है लोत की पत्नी! 33जो अपने प्राणों को बचाना चाहता है, उन्हें खो देता है और वह, जो अपने जीवन से मोह नहीं रखता, उसे बचा पाता है. 34उस रात एक बिछौने पर सोए हुए दो व्यक्तियों में से एक उठा लिया जाएगा, दूसरा छोड़ दिया जाएगा. 35दो स्त्रियां एक साथ अनाज पीस रही होंगी, एक उठा ली जाएगी, दूसरी छोड़ दी जाएगी. [36खेत में दो व्यक्ति काम कर रहे होंगे एक उठा लिया जाएगा, दूसरा छोड़ दिया जाएगा.]17:36 कुछ प्राचीनतम मूल हस्तलेखों में यह पाया नहीं जाता

37उन्होंने प्रभु येशु से प्रश्न किया, “कब प्रभु?”

प्रभु येशु ने उत्तर दिया, “गिद्ध वहीं इकट्ठा होंगे, जहां शव होता है.”