خلاص الأمم
1هَذَا مَا يَقُولُهُ الرَّبُّ: أَجْرُوا الْحَقَّ، وَاصْنَعُوا الْعَدْلَ، لأَنَّ خَلاصِي بَاتَ وَشِيكاً وَبِرِّي حَانَ أَنْ يُسْتَعْلَنَ. 2طُوبَى لِمَنْ يُمَارِسُ هَذِهِ وَيَعْمَلُ بِها وَيُكَرِّمُ سُبُوتِي؛ وَطُوبَى لِمَنْ يَصُونُ يَدَهُ عَنِ ارْتِكَابِ الشَّرِّ.
3لَا يَقُلِ ابْنُ الْغَرِيبِ الْمُنْضَمُّ إِلَى الرَّبِّ: إِنَّ الرَّبَّ يَفْصِلُنِي عَنْ شَعْبِهِ. وَلا يَقُولَنَّ الْخَصِيُّ: أَنَا شَجَرَةٌ يَابِسَةٌ. 4لأَنَّ هَذَا مَا يَقُولُهُ الرَّبُّ لِلْخِصْيَانِ الَّذِينَ يُحَافِظُونَ عَلَى سُبُوتِي، وَيَخْتَارُونَ مَا يَسُرُّنِي وَيَتَمَسَّكُونَ بِعَهْدِي: 5أَهَبُهُمْ دَاخِلَ بَيْتِي وَأَسْوَارِي نَصِيباً وَاسْماً أَفْضَلَ مِنَ الْبَنِينَ وَالْبَنَاتِ. أُعْطِيهِمِ اسْماً مُخَلَّداً لَا يَنْقَرِضُ. 6وَأَمَّا أَبْنَاءُ الْغُرَبَاءِ الْمُنْضَمُّونَ إِلَى الرَّبِّ لِيَخْدِمُوهُ وَيُحِبُّوا اسْمَهُ لِيَكُونُوا لَهُ عَبِيداً، فَكُلُّ مَنْ يُحَافِظُ عَلَى السَّبْتِ مِنْهُمْ وَلا يَنْقُضُهُ، وَيَتَمَسَّكُ بِعَهْدِي، 7فَهَؤُلاءِ آتِي بِهِمْ إِلَى جَبَلِي الْمُقَدَّسِ وَأَفِيضُ عَلَيْهِمِ الْفَرَحَ فِي بَيْتِ صَلاتِي، وَتَكُونُ مُحْرَقَاتُهُمْ وَقَرَابِينُهُمْ مَقْبُولَةً عَلَى مَذْبَحِي، لأَنَّ بَيْتِي سَيُدْعَى بَيْتَ الصَّلاةِ لِجَمِيعِ الأُمَمِ. 8وَهَذَا مَا يَقُولُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ الَّذِي يَلُمُّ شَتَاتَ إِسْرَائِيلَ: سَأَجْمَعُ إِلَيْهِ آخَرِينَ بَعْدُ، فَضْلاً عَنِ الَّذِينَ جَمَعْتُهُمْ.
الله ضد الأشرار
9تَعَالَيْ يَا جَمِيعَ وُحُوشِ الصَّحْرَاءِ لِلالْتِهَامِ، وَيَا جَمِيعَ وُحُوشِ الْغَابِ أَيْضاً. 10فَإِنَّ رُقَبَاءَهُمْ عُمْيٌ، وَكُلَّهُمْ جُهَّالٌ، وَكِلابٌ بُكْمٌ عَاجِزُونَ عَنِ النِّبَاحِ، حَالِمُونَ رَاقِدُونَ مُوْلَعُونَ بِالنَّوْمِ. 11هُمْ كِلابٌ نَهِمَةٌ لَا تَعْرِفُ الشَّبَعَ، وَرُعَاةٌ أَيْضاً مُجَرَّدُونَ مِنَ الْفَهْمِ، كُلٌّ مَالَ إِلَى طَرِيقِهِ طَمَعاً فِي الرِّبْحِ، 12قَائِلِينَ: تَعَالَوْا نَأْتِي بِالْخَمْرِ، وَنَشْرَبُ مُسْكِراً حَتَّى الثُّمَالَةِ، فَالْغَدُ يَكُونُ مُمَاثِلاً لِهَذَا الْيَوْمِ، بَلْ أَعْظَمَ مِنْهُ.
सब राष्ट्रों को आशीष
1याहवेह यों कहते हैं:
“न्याय का यों पालन करो
तथा धर्म के काम करो,
क्योंकि मैं जल्द ही तुम्हारा उद्धार करूंगा,
मेरा धर्म अब प्रकट होगा.
2क्या ही धन्य है वह व्यक्ति जो ऐसा ही करता है,
वह मनुष्य जो इस पर अटल रहकर इसे थामे रहता है,
जो शब्बाथ को दूषित न करने का ध्यान रखता है,
तथा किसी भी गलत काम करने से अपने हाथ को बचाये रखता है.”
3जो परदेशी याहवेह से मिल चुका है,
“यह न कहे कि निश्चय याहवेह मुझे अपने लोगों से अलग रखेंगे.”
खोजे भी यह कह न सके,
“मैं तो एक सुखा वृक्ष हूं.”
4इस पर याहवेह ने कहा है:
“जो मेरे विश्राम दिन को मानते और जिस बात से मैं खुश रहता हूं,
वे उसी को मानते
और वाचा का पालन करते हैं—
5उन्हें मैं अपने भवन में और भवन की दीवारों के भीतर
एक यादगार बनाऊंगा तथा एक ऐसा नाम दूंगा;
जो पुत्र एवं पुत्रियों से उत्तम और स्थिर एवं कभी न मिटेगा.
6परदेशी भी जो याहवेह के साथ होकर
उनकी सेवा करते हैं,
और याहवेह के नाम से प्रीति रखते है,
उसके दास हो जाते है,
और विश्राम दिन को अपवित्र नहीं करते हुए पालते है,
तथा मेरी वाचा पूरी करते हैं—
7मैं उन्हें भी अपने पवित्र पर्वत पर
तथा प्रार्थना भवन में लाकर आनंदित करूंगा.
उनके चढ़ाए होमबलि तथा मेलबलि
ग्रहण करूंगा;
क्योंकि मेरा भवन सभी देशों के लिए
प्रार्थना भवन कहलाएगा.”
8प्रभु याहवेह,
जो निकाले हुए इस्राएलियों को इकट्ठा कर रहे हैं:
“उनका संदेश है कि जो आ चुके हैं,
मैं उनमें औरों को भी मिला दूंगा.”
दुष्टों के प्रति चेतावनी
9हे मैदान के पशुओ,
हे जंगली पशुओ, भोजन के लिए आ जाओ!
10अंधे हैं उनके पहरेदार,
अज्ञानी हैं वे सभी;
वे ऐसे गूंगे कुत्ते हैं,
जो भौंकते नहीं;
बिछौने पर लेटे हुए स्वप्न देखते,
जिन्हें नींद प्रिय है.
11वे कुत्ते जो लोभी हैं;
कभी तृप्त नहीं होते.
ऐसे चरवाहे जिनमें समझ ही नहीं;
उन सभी ने अपने ही लाभ के लिए,
अपना अपना मार्ग चुन लिया.
12वे कहते हैं, “आओ,
हम दाखमधु पीकर तृप्त हो जाएं!
कल का दिन भी आज के समान,
या इससे भी बेहतर होगा.”