إشعياء 26 – NAV & HCV

New Arabic Version

إشعياء 26:1-21

أنشودة تسبيح

1فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ يَتَرَدَّدُ هَذَا النَّشِيدُ فِي أَرْضِ يَهُوذَا: لَنَا مَدِينَةٌ مَنِيعَةٌ، يَجْعَلُ الرَّبُّ الْخَلاصَ أَسْوَاراً وَمَتْرَسَةً. 2افْتَحُوا الأَبْوَابَ لِتَدْخُلَ الأُمَّةُ الْبَارَّةُ الَّتِي حَافَظَتْ عَلَى الأَمَانَةِ. 3أَنْتَ تَحْفَظُ ذَا الرَّأْيِ الثَّابِتِ سَالِماً لأَنَّهُ عَلَيْكَ تَوَكَّلَ. 4اتَّكِلُوا عَلَى الرَّبِّ إِلَى الأَبَدِ، لأَنَّ الرَّبَّ اللهَ هُوَ صَخْرُ الدُّهُورِ. 5لَقَدْ أَذَلَّ السَّاكِنِينَ فِي الْعَلاءِ، وَخَفَضَ الْمَدِينَةَ الْمُتَشَامِخَةَ. سَاوَاهَا بِالأَرْضِ وَطَرَحَهَا إِلَى التُّرَابِ، 6فَدَاسَتْهَا أَقْدَامُ الْبَائِسِ وَالْفَقِيرِ.

7سَبِيلُ الصِّدِّيقِ اسْتِقَامَةٌ، لأَنَّكَ تَجْعَلُ طَرِيقَ الْبَارِّ مُمَهَّدَةً. 8انْتَظَرْنَاكَ يَا رَبُّ بِشَوْقٍ فِي طَرِيقِ أَحْكَامِكَ. تَتُوقُ النَّفْسُ إِلَى اسْمِكَ وَتَشْتَهِي ذِكْرَكَ. 9تَتُوقُ إِلَيْكَ نَفْسِي فِي اللَّيْلِ، وَفِي الصَّبَاحِ تَشْتَاقُ إِلَيْكَ رُوحِي. عِنْدَمَا تَسُدْ أَحْكَامُكَ فِي الأَرْضِ يَتَعَلَّمْ أَهْلُهَا الْعَدْلَ. 10إِنْ أَبْدَيْتَ رَحْمَتَكَ لِلْمُنَافِقِ فَإِنَّهُ لَا يَتَعَلَّمُ الْعَدْلَ، بَلْ يَظَلُّ يَرْتَكِبُ الشَّرَّ حَتَّى فِي أَرْضِ الاسْتِقَامَةِ، وَلا يَعْبَأُ بِجَلالِ الرَّبِّ.

11يَا رَبُّ إِنَّ يَدَكَ مُرْتَفِعَةٌ وَهُمْ لَا يَرَوْنَهَا، فَدَعْهُمْ يُشَاهِدُونَ غَيْرَتَكَ عَلَى شَعْبِكَ، وَيَخْزَوْنَ. لِتَلْتَهِمْهُمُ النَّارُ الَّتِي ادَّخَرْتَهَا لأَعْدَائِكَ. 12يَا رَبُّ أَنْتَ تَجْعَلُ سَلاماً لَنَا لأَنَّكَ صَنَعْتَ لَنَا كُلَّ أَعْمَالِنَا. 13أَيُّهَا الرَّبُّ إِلَهُنَا، قَدْ سَادَ عَلَيْنَا أَسْيَادٌ سِوَاكَ، وَلَكِنَّنَا لَا نَعْتَرِفُ إِلّا بِاسْمِكَ وَحْدَهُ. 14هُمْ أَمْوَاتٌ لَا يَحْيَوْنَ وَأَشْبَاحٌ لَا تَقُومُ. عَاقَبْتَهُمْ وَأَهْلَكْتَهُمْ وَأَبَدْتَ ذِكْرَهُمْ.

15قَدْ زِدْتَ الأُمَّةَ يَا رَبُّ وَنَمَّيْتَهَا، فَتَمَجَّدَتْ، وَوَسَّعْتَ تُخُومَهَا فِي الأَرْضِ.

الرجاء في القيامة

16يَا رَبُّ قَدْ طَلَبُوكَ فِي الْمِحْنَةِ، وَسَكَبُوا دُعَاءَهُمْ عِنْدَ تَأَدِيبِكَ لَهُمْ، 17وَكُنَّا فِي حَضْرَتِكَ يَا رَبُّ كَالْحُبْلَى الْمُشْرِفَةِ عَلَى الْوِلادَةِ، الَّتِي تَتَلَوَّى وَتَصْرُخُ فِي مَخَاضِهَا. 18حَبِلْنَا وَتَلَوَّيْنَا وَلَكِنَّنَا كُنَّا كَمَنْ يَتَمَخَّضُ عَنْ رِيحٍ. لَمْ نُخَلِّصِ الأَرْضَ وَلَمْ يُوْلَدْ مَنْ يُقِيمُ فِيهَا فَتَصِيرُ آهِلَةً عَامِرَةً. 19وَلَكِنَّ أَمْوَاتَكَ يَحْيَوْنَ، وَتَقُومُ أَجْسَادُهُمْ، فَيَا سُكَّانَ التُّرَابِ اسْتَيْقِظُوا وَاشْدُوا بِفَرَحٍ لأَنَّ طَلَّكَ هُوَ نَدىً مُتَلألِئٌ، جَعَلْتَهُ يَهْطِلُ عَلَى أَرْضِ الأَشْبَاحِ.

20تَعَالَوْا يَا شَعْبِي وَادْخُلُوا إِلَى مَخَادِعِكُمْ، وَأَوْصِدُوا أَبْوَابَكُمْ خَلْفَكُمْ. تَوَارَوْا قَلِيلاً حَتَّى يَعْبُرَ السَّخَطُ. 21وَانْظُرُوا فَإِنَّ الرَّبَّ خَارِجٌ مِنْ مَكَانِهِ لِيُعَاقِبَ سُكَّانَ الأَرْضِ عَلَى آثَامِهِمْ، فَتَكْشِفُ الأَرْضُ عَمَّا سُفِكَ عَلَيْهَا مِنْ دِمَاءٍ وَلا تُغَطِّي قَتْلاهَا فِيمَا بَعْدُ.

Hindi Contemporary Version

यशायाह 26:1-21

एक स्तुति गीत

1उस समय यहूदिया देश में यह गीत गाया जाएगा कि:

हमारा एक दृढ़ नगर है;

याहवेह ने हमारी रक्षा के लिए चारों

ओर शहरपनाह और गढ़ को बनाया है.

2नगर के फाटकों को खोल दो

कि वहां सच्चाई से,

जीनेवाली एक धर्मी जाति आ सके.

3जो परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं

उनके मन को पूर्ण शांति मिलती है,

और याहवेह उनकी रक्षा करते हैं.

4सदा याहवेह पर भरोसा रखो,

क्योंकि याह, याहवेह ही, हमारी सनातन चट्टान हैं.

5क्योंकि उन्होंने पर्वत पर

बसे दृढ़ नगर के निवासियों को गिरा दिया है;

उन्होंने इसे गिराकर

धूल में मिला दिया है.

6दुखियों और दरिद्रों के

पांव इन्हें कुचल देंगे.

7धर्मी का मार्ग सीधा होता है;

आप धर्मी के मार्ग को समतल बनाते हैं.

8हे याहवेह, आपके न्याय के मार्ग पर हम आपकी प्रतीक्षा करते हैं;

आपका स्मरण हमारे प्राणों का अभिलाषी है.

9रात के समय मेरा प्राण आपकी लालसा करता है;

मेरा मन अंदर ही अंदर आपको खोजता रहता है.

क्योंकि जब पृथ्वी पर आपके न्याय का काम होता है,

तब लोग धर्म को सीखते हैं.

10यद्यपि दुष्ट पर दया की जाए,

फिर भी वह धर्म नहीं सीखता.

दुष्ट चाहे भले लोगों के बीच में रहे,

लेकिन वह तब भी बुरे कर्म करता रहेगा.

वह दुष्ट कभी भी याहवेह की महानता नहीं देख पायेगा

11याहवेह का हाथ उठा हुआ है,

फिर भी वे इसे नहीं देखते.

अपनी प्रजा के लिए आपके प्यार और लगन को देखकर वे लज्जित हुए हैं;

आग आपके शत्रुओं को निगल लेगी.

12याहवेह हमें शांति देंगे;

क्योंकि आपने हमारे सब कामों को सफल किया है.

13हे याहवेह हमारे परमेश्वर आपके अलावा और स्वामियों ने भी हम पर शासन किया है,

किंतु हम तो आपके ही नाम का स्मरण करते हैं.

14वे मर गये हैं, वे जीवित नहीं होंगे;

वे तो छाया-समान हैं, वे नहीं उठेंगे.

आपने उन्हें दंड दिया और उनका नाश कर दिया;

आपने उनकी याद तक मिटा डाली.

15हे याहवेह, आपने जाति को बढ़ाया;

और आप महान हुए.

आपने देश की सब सीमाओं को बढ़ाया.

16हे याहवेह, कष्ट में उन्होंने आपको पुकारा;

जब आपकी ताड़ना उन पर हुई,

वे प्रार्थना ही कर सके.

17जिस प्रकार जन्म देने के समय

प्रसूता प्रसव पीड़ा में चिल्लाती और छटपटाती है,

उसी प्रकार याहवेह आपके सामने हमारी स्थिति भी ऐसी ही है.

18हम गर्भवती समान थे, हम प्रसव पीड़ा में छटपटा रहे थे,

ऐसा प्रतीत होता है मानो हमने वायु प्रसव की.

हमने अपने देश के लिए कोई विजय प्राप्‍त न की,

और न ही संसार के निवासियों का पतन हुआ.

19इस्राएली जो मरे हैं वे जीवित हो जाएंगे;

और उनके शव उठ खड़े होंगे,

तुम जो धूल में लेटे हुए हो

जागो और आनंदित हो.

क्योंकि तुम्हारी ओस भोर की ओस के समान है;

और मरे हुए पृथ्वी से जीवित हो जाएंगे.

20मेरी प्रजा, आओ और अपनी कोठरी में जाकर

द्वार बंद कर लो;

थोड़ी देर के लिए अपने आपको छिपा लो

जब तक क्रोध शांत न हो जाए.

21देखो, याहवेह अपने निवास स्थान से

पृथ्वी के लोगों को उनके अपराधों के लिए दंड देने पर हैं.

पृथ्वी अपना खून प्रकट कर देगी;

और हत्या किए हुओं को अब और ज्यादा छिपा न सकेगी.