إرميا 22 – NAV & HCV

New Arabic Version

إرميا 22:1-30

دينونة الملك الشرير

1هَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ: «انْحَدِرْ إِلَى قَصْرِ مَلِكِ يَهُوذَا وَأَعْلِنْ هُنَاكَ هَذَا الْقَضَاءَ: 2اسْمَعْ كَلِمَةَ الرَّبِّ يَا مَلِكَ يَهُوذَا الْمُتَرَبِّعَ عَلَى عَرْشِ دَاوُدَ، أَنْتَ وَخُدَّامُكَ وَشَعْبُكَ الْمُجْتَازِينَ مِنْ هَذِهِ الْبَوَّابَاتِ: 3أَجْرُوا الْعَدْلَ وَأَنْقِذُوا الْمُغْتَصَبَ مِنْ يَدِ الْمُغْتَصِبِ، وَلا تَجُورُوا عَلَى الْغَرِيبِ وَالْيَتِيمِ وَالأَرْمَلَةِ، وَلا تَتَعَسَّفُوا عَلَيْهِمْ، وَلا تَسْفِكُوا دَماً بَرِيئاً فِي هَذَا الْمَوْضِعِ. 4لأَنَّكُمْ إِنْ أَطَعْتُمْ هَذَا الْكَلامَ فَإِنَّ مُلُوكاً يَتَرَبَّعُونَ عَلَى عَرْشِ دَاوُدَ، رَاكِبيِنَ مَرْكَبَاتٍ وَخُيُولاً يَجْتَازُونَ هُمْ وَخُدَّامُهُمْ وَشَعْبُهُمْ بَوَّابَاتِ هَذَا الْقَصْرِ. 5وَلَكِنْ إِنْ عَصَيْتُمْ هَذِهِ الْوَصَايَا، فَقَدْ أَقْسَمْتُ بِنَفْسِي يَقُولُ الرَّبُّ، أَنْ يَتَحَوَّلَ هَذَا الْقَصْرُ إِلَى أَطْلالٍ». 6لأَنَّهُ هَذَا مَا يَقُولُهُ الرَّبُّ عَنْ قَصْرِ مَلِكِ يَهُوذَا: «أَنْتَ عَزِيزٌ عَلَيَّ كَجِلْعَادَ وَكَرَأْسِ لُبْنَانَ، وَمَعَ ذَلِكَ فَإِنِّي سَأَجْعَلُكَ قَفْراً وَمُدُناً مَهْجُورَةً. 7سَأُجَنِّدُ عَلَيْكَ مُهْلِكِينَ مُدَجَّجِينَ بِسِلاحِهِمْ فَيَقْطَعُونَ نُخْبَةَ أَرْزِكَ وَيَطْرَحُونَهَا إِلَى النَّارِ. 8وَتَعْبُرُ فِي هَذِهِ الْمَدِينَةِ أُمَمٌ كَثِيرَةٌ، فَيَقُولُ كُلُّ وَاحِدٍ لِرَفِيقِهِ: لِمَاذَا صَنَعَ الرَّبُّ هَكَذَا بِهَذِهِ الْمَدِينَةِ الْعَظِيمَةِ؟ 9فَيُجِيبُونَ: لأَنَّهُمْ نَبَذُوا عَهْدَ الرَّبِّ إِلَهِهِمْ وَسَجَدُوا لِلأَوْثَانِ وَعَبَدُوهَا».

نبوءة عن مصير أورشليم

10لَا تَنُوحُوا عَلَى الْمَيْتِ وَلا تَنْدُبُوهُ، إِنَّمَا ابْكُوا عَلَى الْمَنْفِيِّ الَّذِي لَنْ يَرْجِعَ وَلَنْ يَرَى أَرْضَ مَوْطِنِهِ 11لأَنَّهُ هَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ عَنْ شَلُّومَ بْنِ يُوشِيَّا مَلِكِ يَهُوذَا، الَّذِي تَوَلَّى الْعَرْشَ مَكَانَ أَبِيهِ، وَخَرَجَ مَنْفِيًّا مِنْ هَذَا الْمَكَانِ: «إِنَّهُ لَنْ يَرْجِعَ إِلَى هُنَا بَعْدُ. 12بَلْ يَمُوتُ فِي مَنْفَاهُ الَّذِي سَبَوْهُ إِلَيْهِ وَلَنْ يَرْجِعَ لِيَرَى هَذِهِ الأَرْضَ ثَانِيَةً».

13«وَيْلٌ لِمَنْ يَبْنِي بَيْتَهُ عَلَى الظُّلْمِ وَمَخَادِعَهُ الْعَالِيَةَ عَلَى الْجَوْرِ، الَّذِي يَسْتَخْدِمُ جَارَهُ مَجَّاناً وَلا يُوْفِيهِ أُجْرَةَ عَمَلِهِ، 14الَّذِي يَقُولُ: ’سَأَبْنِي لِنَفْسِي بَيْتاً رَحْباً وَغُرَفاً عَالِيةً فَسِيحَةً. وَأَفْتَحُ لَهُ كُوىً وَأُغَشِّيهِ بِأَلْوَاحِ الأَرْزِ وَأَدْهِنُهُ بِأَلْوَانٍ حَمْرَاءَ.‘ 15أَتَظُنُّ أَنَّكَ صِرْتَ مَلِكاً لأَنَّكَ بَنَيْتَ بَيْتَكَ مِنَ الأَرْزِ؟ أَمَا أَكَلَ أَبُوكَ وَشَرِبَ وَأَجْرَى عَدْلاً وَحَقّاً، فَتَمَتَّعَ بِالْخَيْرَاتِ؟ 16قَدْ قَضَى بِالْعَدْلِ لِلْبَائِسِ وَالْمِسْكِينِ فَأَحْرَزَ خَيْراً. أَلَيْسَتْ هَذِهِ هِيَ مَعْرِفَتِي؟» يَقُولُ الرَّبُّ 17«أَمَّا أَنْتَ فَعَيْنَاكَ وَقَلْبُكَ مُتَهَافِتَةٌ عَلَى الرِّبْحِ الْحَرَامِ، وَعَلَى سَفْكِ الدَّمِ الْبَرِيءِ، وَعَلَى الظُّلْمِ وَالاِبْتِزَازِ».

18لِذَلِكَ هَذَا مَا يَقُولُهُ الرَّبُّ عَنْ يَهُويَاقِيمَ بْنِ يُوشِيَّا، مَلِكِ يَهُوذَا: «لَنْ يَنْدُبَكَ أَحَدٌ قَائِلاً: آهِ يَا أَخِي أَوْ آهِ يَا أُخْتِي، أَوْ يَنْدُبُونَ عَلَيْهِ قَائِلِينَ: آوَّاهُ يَا سَيِّدِي، أَوْ آهِ عَلَى جَلالِهِ. 19بَلْ يُدْفَنُ دَفْنَ حِمَارٍ، مَجْرُوراً وَمَطْرُوحاً خَارِجَ بَوَّابَاتِ أُورُشَلِيمَ».

20«اصْعَدِي يَا أُورُشَلِيمُ إِلَى لُبْنَانَ وَاصْرُخِي. أَطْلِقِي صَوْتَكِ فِي بَاشَانَ وَأَعْوِلِي مِنْ عَبَارِيمَ لأَنَّ جَمِيعَ مُحِبِّيكِ قَدْ سُحِقُوا. 21حَذَّرْتُكِ فِي أَثْنَاءِ عِزِّكِ فَقُلْتِ: لَنْ أَصْغِيَ. أَنْتِ مُتَمَرِّدَةٌ مُنْذُ صِبَاكِ لَا تَسْمَعِينَ لِصَوْتِي. 22سَتَعْصِفُ الرِّيحُ بِكُلِّ رُعَاتِكِ، وَيَذْهَبُ مُحِبُّوكِ إِلَى السَّبْيِ. عِنْدَئِذٍ يَعْتَرِيكِ الْخِزْيُ وَالْعَارُ لِشَرِّكِ. 23يَا سَاكِنَةَ لُبْنَانَ الْمُعَشِّشَةَ فِي الأَرْزِ، لَشَدَّ مَا تَئِنِّينَ عِنْدَمَا تُفَاجِئُكِ الأَوْجَاعُ، فَتَكُونِينَ كَامْرَأَةٍ تُقَاسِي مِنَ الْمَخَاضِ».

24«حَيٌّ أَنَا» يَقُولُ الرَّبُّ، «لَوْ كَانَ كُنْيَاهُو بْنُ يَهُويَاقِيمَ مَلِكُ يَهُوذَا خَاتِماً فِي يَدِي الْيُمْنَى لَنَزَعْتُهُ مِنْهَا. 25وَأَسْلَمْتُهُ لِطَالِبِي نَفْسِهِ، إِلَى أَيْدِي مَنْ يَفْزَعُ مِنْهُمْ، وَإِلَى قَبْضَةِ نَبُوخَذْنَصَّرَ مَلِكِ بَابِلَ، وَإِلَى أَيْدِي الْكَلْدَانِيِّينَ. 26سَأُطَوِّحُ بِهِ وَبِأُمِّهِ الَّتِي حَمَلَتْهُ إِلَى أَرْضٍ أُخْرَى، لَمْ يُوْلَدَا فِيهَا، وَهُنَاكَ يَمُوتَانِ. 27وَلَنْ يَعُودَا قَطُّ إِلَى الأَرْضِ الَّتِي يَتُوقَانِ إِلَى الرُّجُوعِ إِلَيْهَا». 28هَذَا الرَّجُلُ كُنْيَاهُو وَعَاءٌ مَنْبُوذٌ مُحَطَّمٌ، وَإِنَاءٌ لَا يَحْفِلُ بِهِ أَحَدٌ. لِمَاذَا طُوِّحَ بِهِ وَبِأَبْنَائِهِ إِلَى أَرْضٍ لَا يَعْرِفُونَهَا؟ 29يَا أَرْضُ! يَا أَرْضُ! يَا أَرْضُ! اسْمَعِي كَلِمَةَ الرَّبِّ: 30«سَجِّلُوا أَنَّ هَذَا الإِنْسَانَ عَقِيمٌ، رَجُلٌ لَنْ يُفْلِحَ فِي حَيَاتِهِ، وَلَنْ يَنْجَحَ أَحَدٌ مِنْ ذُرِّيَّتِهِ فِي الْجُلُوسِ عَلَى عَرْشِ دَاوُدَ وَتَوَلِّي مُلْكِ يَهُوذَا».

Hindi Contemporary Version

येरेमियाह 22:1-30

येरूशलेम के विनाश की चेतावनी

1यह याहवेह का आदेश है: “यहूदिया के राजा के आवास पर जाओ और वहां इस वचन का प्रचार करो: 2‘यहूदिया के राजा, याहवेह का यह संदेश सुनो, तुम जो दावीद के सिंहासन पर विराजमान हो, तुम, तुम्हारे सेवक एवं तुम्हारी प्रजा जो इन द्वारों से होकर प्रवेश करते हो. 3यह याहवेह का आदेश है: तुम्हारा न्याय निस्सहाय हो. व्यवहार सद्‍वृत्त तथा उसे मुक्त कर दो जिसे अत्याचारियों ने अपने अधीन रख लूट लिया है. इसके सिवा विदेशी, पितृहीन तथा विधवा के प्रति न तो तुम्हारा व्यवहार प्रतिकूल हो और न हिंसक, इस स्थान पर निस्सहाय की हत्या न की जाए. 4क्योंकि यदि तुम जो पुरुष हो, वास्तव में इन विषयों को ध्यान रखो, इनका आचरण करो, तो इस भवन के द्वार में से राजाओं का प्रवेश हुआ करेगा, वे दावीद के सदृश उनके सिंहासन पर विराजमान हुआ करेंगे, जो रथों एवं घोड़ों पर सवार होते हैं स्वयं राजा को, उसके सेवकों को तथा उसकी प्रजा का प्रवेश हुआ करेगा. 5किंतु यदि तुम इन आदेशों का पालन न करो, तो मैं अपनी ही शपथ ले रहा हूं, यह याहवेह की वाणी है, कि यह महल उजाड़ बन जाएगा.’ ”

6क्योंकि यहूदिया के राजा के महलों के विषय में याहवेह की यह वाणी है:

“मेरी दृष्टि में तुम गिलआद सदृश हो,

लबानोन शिखर सदृश, फिर भी निश्चयतः

मैं तुम्हें निर्जन प्रदेश बना छोडूंगा,

उन नगरों के सदृश, जो निर्जन हैं.

7मैं तुम्हारे विरुद्ध विध्वंसक उत्पन्‍न कर दूंगा,

उनमें से हर एक शस्त्रों से सुसज्जित होगा,

वे तुम्हारे सर्वोत्तम देवदार वृक्ष काट डालेंगे

तथा उन्हें अग्नि में झोंक देंगे.

8“अनेक जनता इस नगर के निकट से होते हुए चले जाएंगे और उनके वार्तालाप का विषय होगा, ‘याहवेह ने इस भव्य नगर के साथ ऐसा कर दिया है?’ 9तब उन्हें इसका यह उत्तर दिया जाएगा: ‘इसकी इस स्थिति का कारण यह है कि उन्होंने याहवेह, अपने परमेश्वर की वाचा भंग कर दी है, वे परकीय देवताओं की उपासना करने लगे तथा उन्हीं की सेवा-उपासना करने लगे हैं.’ ”

10न तो मृतक के लिए रोओ और न विलाप करो;

बल्कि, ज़ोर ज़ोर से विलाप करो, उसके लिए जो बंधुआई में दूर जा रहा है,

क्योंकि वह अब लौटकर नहीं आएगा,

और न वह कभी अपनी मातृभूमि को पुनः देख सकेगा.

11क्योंकि यहूदिया के राजा योशियाह के पुत्र शल्लूम के विषय में, जो अपने पिता योशियाह के स्थान पर सिंहासनारूढ़ हुआ है, जो यहीं से चला गया है: याहवेह का यह संदेश है, “अब वह लौटकर यहां कभी नहीं आएगा. 12वह वहीं रह जाएगा जहां उसे बंदी बनाकर ले जाया गया है, वहीं उसकी मृत्यु हो जाएगी; अब वह यह देश कभी न देख सकेगा.”

13“धिक्कार है उस पर जो अनैतिकता से अपना गृह-निर्माण करता है,

तथा अपने ऊपरी कक्ष अन्यायपूर्णता के द्वारा बनाता है,

जो अपने पड़ोसी से बेगार कार्य तो करा लेता है,

और उसे पारिश्रमिक नहीं देता.

14वह विचार करता है, ‘मैं एक विस्तीर्ण भवन को निर्माण करूंगा

जिसमें विशाल ऊपरी कक्ष होंगे.’

इसमें खिड़कियां भी होंगी,

मैं इसकी दीवारों को देवदार से मढ़ कर

उन्हें प्रखर लाल रंग से रंग दूंगा.

15“क्या अपने भवन में देवदार का प्रचूर प्रयोग करने के कारण

तुम राजा के पद पर पहुंच गए हो?

क्या तुम्हारा पिता सर्वसंपन्‍न न था?

फिर भी उसने वही किया जो सही और न्यायपूर्ण था,

इसलिये उसका कल्याण होता रहा.

16तुम्हारा पिता उत्पीड़ित एवं निस्सहायों का ध्यान रखता था,

इसलिये उसका कल्याण होता रहा.

क्या मुझे जानने का यही आशय नहीं होता?”

यह याहवेह की वाणी है.

17“किंतु तुम्हारी दृष्टि तथा तुम्हारे हृदय की अभिलाषा

मात्र अन्यायपूर्ण धनप्राप्‍ति पर केंद्रित है,

तुम निस्सहाय के रक्तपात, दमन,

ज़बरदस्ती धन वसूली और उपद्रव में लिप्‍त रहते हो.”

18इसलिये यहूदिया के राजा योशियाह के पुत्र यहोइयाकिम के विषय में याहवेह की यह वाणी है:

“प्रजा उसके लिए इस प्रकार विलाप नहीं करेगी:

‘ओह, मेरे भाई! अथवा ओह, मेरी बहन!’

वे उसके लिए इस प्रकार भी विलाप नहीं करेंगे:

‘ओह, मेरे स्वामी! अथवा ओह, उसका वैभव!’

19उसकी अंत्येष्टि उसी रीति से की जाएगी. जैसे एक गधे की

शव को खींचकर येरूशलेम के द्वार के

बाहर फेंक दिया जाता.”

20“लबानोन में जाकर विलाप करो,

बाशान में उच्च स्वर उठाओ,

अबारिम में भी विलाप सुना जाए,

क्योंकि जो तुम्हें प्रिय थे उन्हें कुचल दिया गया है.

21तुम्हारी सम्पन्‍नता की स्थिति में मैंने तुमसे बात करना चाहा,

किंतु तुम्हारा हठ था, ‘नहीं सुनूंगा मैं!’

बचपन से तुम्हारी यही शैली रही है;

तुमने कभी मेरी नहीं सुनी.

22तुम्हारे सभी चरवाहों को वायु उड़ा ले जाएगी,

वे जो तुम्हें प्रिय हैं, बंधुआई में चले जाएंगे.

तब अपनी सारी बुराई के कारण निश्चयतः

लज्जित हो तुम अपनी प्रतिष्ठा खो दोगे.

23तुम जो लबानोन में निवास कर रहे हो,

तुम जो देवदार वृक्षों के मध्य सुरक्षित हो,

कैसी होगी तुम्हारी कराहट जब पीड़ा तुम्हें अचंभित कर लेगी,

ऐसी पीड़ा जैसी प्रसूता अनुभव करती है!”

24यह याहवेह की वाणी है, “मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, यदि यहूदिया के राजा यहोइयाकिम का पुत्र कोनियाह मेरे दाएं हाथ में मुद्रिका भी होता, फिर भी मैं उसे उतार फेंकता. 25मैं तुम्हें उन लोगों के हाथों में सौप दूंगा जो तुम्हारे प्राण लेने को तैयार हैं, हां, उन्हीं के हाथों में जो तुम्हारे लिए आतंक बने हुए हैं, अर्थात् बाबेल के राजा नबूकदनेज्ज़र के तथा कसदियों के हाथों में. 26मैं तुम्हें तथा तुम्हारी माता को जिसने तुम्हें जन्म दिया है, ऐसे देश में प्रक्षेपित कर फेंक दूंगा, जहां तुम्हारा जन्म नहीं हुआ था और तुम्हारी मृत्यु वहीं हो जाएगी. 27किंतु वे अपने अभिलाषित देश को कदापि न लौट सकेंगे.”

28क्या यह व्यक्ति, कोनियाह,

चूर-चूर हो चुका घृणास्पद बर्तन है?

अथवा वह एक तुच्छ बर्तन रह गया है?

क्या कारण है कि उसे तथा उसके वंशजों को एक ऐसे देश में प्रक्षेपित कर दूर फेंक दिया गया है,

जो उनके लिए सर्वथा अज्ञात था?

29पृथ्वी, ओ पृथ्वी,

याहवेह का आदेश सुनो!

30याहवेह कह रहे हैं:

“इस व्यक्ति का पंजीकरण संतानहीन व्यक्ति के रूप में किया जाए,

ऐसे व्यक्ति के रूप में, जो भविष्य में समृद्ध न हो सकेगा,

उसके वंशजों में कोई भी व्यक्ति सम्पन्‍न न होगा,

न तो कोई इसके बाद दावीद के सिंहासन पर विराजमान होगा

न ही कोई यहूदिया को उच्चाधिकारी हो सकेगा.”