إرميا 12 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

إرميا 12:1-17

شكوى إرميا

1أَنْتَ دَائِماً عَادِلٌ حِينَ أَعْرِضُ عَلَيْكَ دَعْوَايَ، وَلَكِنْ دَعْنِي أُحَدِّثُكَ بِشَأْنِ أَحْكَامِكَ: لِمَاذَا تُفْلِحُ طَرِيقُ الأَشْرَارِ؟ وَلِمَاذَا يَتَمَتَّعُ الْغَادِرُونَ بِالْعَيْشِ الرَّغِيدِ؟ 2أَنْتَ غَرَسْتَهُمْ فَتَأَصَّلُوا وَنَمَوْا وَأَثْمَرُوا. اسْمُكَ يَتَرَدَّدُ عَلَى أَفْوَاهِهِمْ، وَلَكِنَّهُ بَعِيدٌ عَنْ قُلُوبِهِمْ. 3أَنْتَ قَدْ عَرَفْتَنِي وَرَأَيْتَنِي وَامْتَحَنْتَ قَلْبِي مِنْ نَحْوِكَ. افْرِزْهُمْ كَغَنَمٍ لِلذَّبْحِ وَاعْزِلْهُمْ لِيَوْمِ النَّحْرِ. 4إِلَى مَتَى تَظَلُّ الأَرْضُ نَائِحَةً وَعُشْبُ كُلِّ حَقْلٍ ذَاوِياً؟ هَلَكَتِ الْبَهَائِمُ والطُّيُورُ مِنْ شَرِّ السَّاكِنِينَ فِيهَا الْقَائِلِينَ: «إِنَّهُ لَنْ يَرَى خَاتِمَةَ مَصِيرِنَا».

جواب الله

5«إِنْ كُنْتَ قَدْ بَارَيْتَ الْمُشَاةَ فَأَعْيَوْكَ، فَكَيْفَ إِذاً تُبَارِي الْخَيْلَ؟ وَإِنْ كُنْتَ تَتَعَثَّرُ فِي أَرْضٍ مُطْمَئِنَّةٍ، فَكَيْفَ تَفْعَلُ فِي أَجَمَاتِ نَهْرِ الأُرْدُنِّ؟ 6حَتَّى إِخْوَتُكَ وَأَفْرَادُ أُسْرَتِكَ قَدْ تَنَكَّرُوا لَكَ، وَدَعَوْا عَلَيْكَ وَرَاءَكَ بِمِلْءِ أَفْوَاهِهِمْ. لَا تَأْتَمِنْهُمْ، وَإِنْ خَاطَبُوكَ بِأَلْفَاظٍ مَعْسُولَةٍ.

7قَدْ نَبَذْتُ هَيْكَلِي وَهَجَرْتُ مِيرَاثِي، وَسَلَّمْتُ حَبِيبَةَ نَفْسِي إِلَى أَيْدِي أَعْدَائِهَا. 8قَدْ زَمْجَرَ عَلَيَّ شَعْبِي كَأَسَدٍ فِي غَابَةٍ. رَفَعَ عَلَيَّ صَوْتَهُ، لِهَذَا مَقَتُّهُ. 9هَلْ صَارَ شَعْبِي لِي كَطَيْرٍ جَارِحٍ مُنْقَضٍّ؟ وَهَلْ تَجَمَّعَتْ عَلَيْهِ الْجَوَارِحُ مِنْ كُلِّ جِهَةٍ؟ هَلُمَّ احْشِدْ جَمِيعَ وُحُوشِ الْبَرِّ، وَادْعُهَا لِلأَكْلِ. 10قَدْ أَتْلَفَ رُعَاةٌ كَثِيرُونَ كَرْمِي، وَدَاسُوا نَصِيبِي الشَّهِيَّ وَجَعَلُوهُ بَرِّيَّةً جَرْدَاءَ. 11جَعَلُوهُ خَرَاباً، وَفِي خَرَابِهِ يَنُوحُ عَلَيَّ. أَصْبَحَتِ الأَرْضُ كُلُّهَا قَفْراً، لأَنَّهُ لَا يُوْجَدُ إِنْسَانٌ وَاحِدٌ يَحْفِلُ بِها. 12قَدْ أَقْبَلَ الْمُدَمِّرُونَ وَانْتَشَرُوا عَلَى جَمِيعِ الْمُرْتَفَعَاتِ فِي الْبَرِّيَّةِ، لأَنَّ سَيْفَ الرَّبِّ يَلْتَهِمُ مِنْ أَقْصَى الأَرْضِ إِلَى أَقْصَاهَا، فَلا يَنْعَمُ أَحَدٌ مِنَ الْبَشَرِ بِالسَّلامِ. 13زَرَعَ شَعْبِي حِنْطَةً وَحَصَدَ شَوْكاً. أَعْيَوْا أَنْفُسَهُمْ وَلَكِنْ مِنْ غَيْرِ جَدْوَى، لِذَلِكَ يَعْتَرِيهِمِ الْخِزْيُ مِنْ قِلَّةِ غَلّاتِ مَحْصُولِهِمْ لِفَرْطِ احْتِدَامِ غَضَبِ الرَّبِّ».

14وَهَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ عَنْ جَمِيعِ جِيرَانِي الأَشْرَارِ الَّذِينَ يَمَسُّونَ الْمِيرَاثَ الَّذِي وَرَّثْتُهُ لِشَعْبِي إِسْرَائِيلَ: «هَا أَنَا أَقْتَلِعُهُمْ مِنْ أَرْضِهِمْ كَمَا أَقْتَلِعُ أَيْضاً شَعْبَ يَهُوذَا مِنْ وَسَطِهِمْ. 15وَلَكِنْ بَعْدَ أَنْ أَسْتَأْصِلَهُمْ، أَتَرأَّفُ عَلَيْهِمْ، وَأُعِيدُهُمْ كُلَّ وَاحِدٍ إِلَى مِيرَاثِهِ وَإِلَى أَرْضِهِ. 16فَإِنْ تَلَقَّنَتِ الأُمَمُ طُرُقَ شَعْبِي بِاسْمِي، قَائِلِينَ: ’حَيٌّ هُوَ الرَّبُّ‘، كَمَا عَلَّمُوا شَعْبِي أَنْ يَحْلِفُوا بِالْبَعْلِ، فَإِنَّهُمْ يَنْمُونَ وَسَطَ شَعْبِي. 17وَلَكِنْ إِنْ رَفَضَتْ أَيَّةُ أُمَّةٍ الاسْتِمَاعَ، فَإِنِّي أَسْتَأْصِلُهَا وَأَقْتَلِعُهَا وَأُدَمِّرُهَا»، يَقُولُ الرَّبُّ.

Hindi Contemporary Version

येरेमियाह 12:1-17

येरेमियाह की प्रार्थना

1याहवेह, जब भी मैं आपके समक्ष अपना मुकदमा प्रस्तुत करता हूं,

आप सदैव ही युक्त प्रमाणित होते हैं.

निःसंदेह मैं आपके ही साथ न्याय संबंधी विषयों पर विचार-विमर्श करूंगा:

क्यों बुराइयों का जीवन समृद्ध होता गया है?

क्यों वे सब जो विश्वासघात के व्यापार में लिप्‍त हैं निश्चिंत जीवन जी रहे हैं?

2आपने उन्हें रोपित किया है, अब तो उन्होंने जड़ भी पकड़ ली है;

वे विकास कर रहे हैं और अब तो वे फल भी उत्पन्‍न कर रहे हैं.

उनके होंठों पर तो आपका नाम बना रहता है

किंतु अपने मन से उन्होंने आपको दूर ही दूर रखा है.

3किंतु याहवेह, आप मुझे जानते हैं;

मैं आपकी दृष्टि में बना रहता हूं; आप मेरे हृदय की परीक्षा करते रहते हैं.

उन्हें इस प्रकार खींचकर अलग कर लीजिए, जिस प्रकार वध के लिए भेड़ें अलग की जाती हैं!

उन्हें नरसंहार के दिन के लिए तैयार कर लीजिए!

4हमारा देश और कितने दिन विलाप करता रहेगा

तथा कब तक मैदान में घास मुरझाती रहेगी?

क्योंकि देशवासियों की बुराई के कारण,

पशु-पक्षी सहसा वहां से हटा दिए गए हैं.

क्योंकि, वे मनुष्य अपने मन में विचार कर रहे हैं,

“परमेश्वर को हमारे द्वारा किए गए कार्यों का परिणाम दिखाई न देगा.”

परमेश्वर का जवाब

5“यदि तुम धावकों के साथ दौड़ रहे थे

और तुम इससे थक चुके हो,

तो तुम घोड़ों से स्पर्धा कैसे कर सकोगे?

यदि तुम अनुकूल क्षेत्र में ही लड़खड़ा गए तो,

यरदन क्षेत्र के बंजर भूमि में तुम्हारा क्या होगा?

6क्योंकि यहां तक कि तुम्हारे भाई-बंधुओं तथा तुम्हारे पिता के ही परिवार ने—

तुम्हारे साथ विश्वासघात किया है;

वे चिल्ला-चिल्लाकर तुम्हारा विरोध कर रहे हैं.

यदि वे तुमसे तुम्हारे विषय में अनुकूल शब्द भी कहें,

फिर भी उनका विश्वास न करना.

7“मैंने अपने परिवार का परित्याग कर दिया है,

मैंने अपनी इस निज भाग को भी छोड़ दिया है;

मैंने अपनी प्राणप्रिया को

उसके शत्रुओं के हाथों में सौंप दिया है.

8मेरे लिए तो अब मेरा यह निज भाग

वन के सिंह सदृश हो गया है.

उसने मुझ पर गर्जना की है;

इसलिये अब मुझे उससे घृणा हो गई है.

9क्या मेरे लिए यह निज भाग

चित्तिवाले शिकारी पक्षी सदृश है?

क्या वह चारों ओर से शिकारी पक्षी से घिर चुकी है?

जाओ, मैदान के सारे पशुओं को एकत्र करो;

कि वे आकर इन्हें निगल कर जाएं.

10अनेक हैं वे चरवाहे जिन्होंने मेरा द्राक्षाउद्यान नष्ट कर दिया है,

उन्होंने मेरे अंश को रौंद डाला है;

जिन्होंने मेरे मनोहर खेत को

निर्जन एवं उजाड़ कर छोड़ा है.

11इसे उजाड़ बना दिया गया है,

अपनी उजाड़ स्थिति में देश मेरे समक्ष विलाप कर रहा है;

सारा देश ही ध्वस्त किया जा चुका है;

क्योंकि किसी को इसकी हितचिंता ही नहीं है.

12निर्जन प्रदेश में वनस्पतिहीन पहाड़ियों पर

विनाशक सेना आ पहुंची है,

क्योंकि देश के एक ओर से दूसरी ओर तक

याहवेह की घातक तलवार तैयार हो चुकी है;

इस तलवार से सुरक्षित कोई भी नहीं है.

13उन्होंने रोपण तो किया गेहूं को किंतु उपज काटी कांटों की;

उन्होंने परिश्रम तो किया किंतु लाभ कुछ भी अर्जित न हुआ.

उपयुक्त है कि ऐसी उपज के लिए तुम लज्जित होओ

क्योंकि इसके पीछे याहवेह का प्रचंड कोप क्रियाशील है.”

14अपने बुरे पड़ोसियों के विषय में जिन्होंने मेरी प्रजा इस्राएल के इस निज भाग पर आक्रमण किया है, याहवेह का यह कहना है: “यह देख लेना, मैं उन्हें उनके देश में से अलग करने पर हूं और उनके मध्य से मैं यहूदाह के वंश को अलग कर दूंगा. 15और तब जब मैं उन्हें अलग कर दूंगा, मैं उन पर पुनः अपनी करुणा प्रदर्शित करूंगा; तब मैं उनमें से हर एक को उसके इस निज भाग में लौटा ले आऊंगा; हर एक को उसके देश में लौटा लाऊंगा. 16तब यदि वे मेरी प्रजा की नीतियां सीख लेंगे और बाल के जीवन की शपथ कहने के स्थान पर कहेंगे, ‘जीवित याहवेह की शपथ,’ तब वे मेरी प्रजा के मध्य ही समृद्ध होते चले जाएंगे. 17किंतु यदि वे मेरे आदेश की अवहेलना करेंगे, तब मैं उस राष्ट्र को अलग कर दूंगा; अलग कर उसे नष्ट कर दूंगा,” यह याहवेह की वाणी है.