أيوب 42 – NAV & HCV

New Arabic Version

أيوب 42:1-17

أيوب

1أَيُّوبُ 2«قَدْ أَدْرَكْتُ أَنَّكَ تَسْتَطِيعُ كُلَّ شَيْءٍ وَلا يَتَعَذَّرُ عَلَيْكَ أَمْرٌ. 3تَسْأَلُنِي: مَنْ ذَا الَّذِي يُخْفِي الْمَشُورَةَ مِنْ غَيْرِ مَعْرِفَةٍ؟ حَقّاً قَدْ نَطَقْتُ بِأُمُورٍ لَمْ أَفْهَمْهَا، بِعَجَائِبَ تَفُوقُ إِدْرَاكِي. 4اسْمَعِ الآنَ وَأَنَا أَتَكَلَّمُ، أَسْأَلُكَ وَأَنْتَ تُعَلِّمُنِي. 5بِسَمْعِ الأُذُنِ قَدْ سَمِعْتُ عَنْكَ وَالآنَ رَأَتْكَ عَيْنِي، 6لِذَلِكَ أَلُومُ نَفْسِي وَأَتُوبُ مُعَفِّراً ذَاتِي بِالتُّرَابِ وَالرَّمَادِ».

خاتمة

7وَبَعْدَ أَنِ انْتَهَى الرَّبُّ مِنْ مُخَاطَبَةِ أَيُّوبَ، قَالَ لأَلِيفَازَ التَّيْمَانِيِّ: «لَقَدِ احْتَدَمَ غَضَبِي عَلَيْكَ وَعَلَى كِلا صَدِيقَيْكَ، لأَنَّكُمْ لَمْ تَنْطِقُوا بِالصَّوَابِ عَنِّي كَمَا نَطَقَ عَبْدِي أَيُّوبُ. 8فَخُذُوا الآنَ لَكُمْ سَبْعَةَ ثِيرَانٍ وَسَبْعَةَ كِبَاشٍ، وَامْضُوا إِلَى عَبْدِي أَيُّوبَ وَقَرِّبُوهَا ذَبِيحَةَ مُحْرَقَةٍ عَنْ أَنْفُسِكُمْ، فَيُصَلِّيَ مِنْ أَجْلِكُمْ، فَأَعْفُوَ عَنْكُمْ إِكْرَاماً لَهُ، لِئَلّا أُعَاقِبَكُمْ بِمُقْتَضَى حَمَاقَتِكُمْ، لأَنَّكُمْ لَمْ تَنْطِقُوا بِالْحَقِّ عَنِّي كَعَبْدِي أَيُّوبَ». 9فَذَهَبَ أَلِيفَازُ التَّيْمَانِيُّ وَبِلْدَدُ الشُّوحِيُّ وَصُوفَرُ النَّعْمَاتِيُّ وَفَعَلُوا كَمَا أَمَرَ الرَّبُّ. وَأَكْرَمَ الرَّبُّ أَيُّوبَ.

10وَعِنْدَمَا صَلَّى أَيُّوبُ مِن أَجْلِ أَصْدِقَائِهِ رَدَّهُ الرَّبُّ مِنْ عُزْلَةِ مَنْفَاهُ، وَضَاعَفَ كُلَّ مَا كَانَ لَهُ مِنْ قَبْلُ. 11وَأَقْبَلَ عَلَيْهِ إِخْوَتُهُ وَأَخَوَاتُهُ وَكُلُّ مَعَارِفِهِ السَّابِقِينَ، وَتَنَاوَلُوا مَعَهُ طَعَاماً فِي بَيْتِهِ، وَأَبْدَوْا لَهُ كُلَّ رِفْقٍ، وَعَزُّوهُ عَنْ كُلِّ مَا أَنْزَلَهُ بِهِ الرَّبُّ مِنْ بَلْوَى، وَقَدَّمَ لَهُ كُلُّ وَاحِدٍ مِنْهُمْ بَعْضَ الْمَالِ وَخَاتَماً مِنْ ذَهَبٍ. 12وَبَارَكَ الرَّبُّ آخِرَةَ أَيُّوبَ أَكْثَرَ مِنْ أُولاهُ، فَأَصْبَحَ لَهُ أَرْبَعَةَ عَشَرَ أَلْفَ خَرُوفٍ وَسِتَّةُ آلافٍ مِنَ الإِبِلِ وَأَلْفُ زَوْجٍ مِنَ الْبَقَرِ وَأَلْفُ أَتَانٍ. 13وَرَزَقَهُ اللهُ سَبْعَةَ بَنِينَ وَثَلاثَ بَنَاتٍ، 14فَدَعَا الأُولَى يَمِيمَةَ، وَالثَّانِيَةَ قَصِيعَةَ وَالثَّالِثَةَ قَرْنَ هَفُّوكَ. 15وَلَمْ تُوْجَدْ فِي كُلِّ الْبِلادِ نِسَاءٌ جَمِيلاتٌ مِثْلَ بَنَاتِ أَيُّوبَ، وَوَهَبَهُنَّ أَبُوهُنَّ مِيرَاثاً بَيْنَ إِخْوَتِهِنَّ. 16وَعَاشَ أَيُّوبُ بَعْدَ تَجْرِبَتِهِ مِئَةً وَأَرْبَعِينَ سَنَةً، وَاكْتَحَلَتْ عَيْنَاهُ بِرُؤْيَةِ أَبْنَائِهِ وَأَحْفَادِهِ إِلَى الْجِيلِ الرَّابِعِ. 17ثُمَّ مَاتَ أَيُّوبُ شَيْخاً، وَقَدْ شَبِعَ مِنَ الأَيَّامِ.

Hindi Contemporary Version

अय्योब 42:1-17

अय्योब की स्वीकृति निर्णायक उत्तर

1तब अय्योब ने याहवेह को यह उत्तर दिया:

2“मेरे प्रभु, मुझे मालूम है कि आप सभी कुछ कर सकते हैं;

तथा आपकी किसी भी योजना विफल नहीं होती.

3आपने पूछा था, ‘कौन है वह अज्ञानी, जो मेरे ज्ञान पर आवरण डाल देता है?’

यही कारण है कि मैं स्वीकार कर रहा हूं, कि मुझे इन विषयों का कोई ज्ञान न था, मैं नहीं समझ सका, कि क्या-क्या हो रहा था,

तथा जो कुछ हो रहा था, वह विस्मयकारी था.

4“आपने कहा था, ‘अब तुम चुप रहो;

कि अब मैं संवाद कर सकूं,

तब प्रश्न मैं करूंगा, कि तुम इनका उत्तर दो.’

5इसके पूर्व आपका ज्ञान मेरे लिए मात्र समाचार ही था,

किंतु अब आपको मेरी आंखें देख चुकी हैं.

6इसलिये अब मैं स्वयं को घृणास्पद समझ रहा हूं,

मैं इसके लिए धूल तथा भस्म में प्रायश्चित करता हूं.”

समाप्‍ति

7अय्योब से अपना आख्यान समाप्‍त करके याहवेह ने तेमानी एलिफाज़ से पूछा, “मैं तुमसे तथा तुम्हारे दोनों मित्रों से अप्रसन्‍न हूं, क्योंकि तुमने मेरे विषय में वह सब अभिव्यक्त नहीं किया, जो सही है, जैसा मेरे सेवक अय्योब ने प्रकट किया था. 8तब अब तुम सात बछड़े तथा सात मेढ़े लो और मेरे सेवक अय्योब के पास जाकर अपने लिए होमबलि अर्पित करो तथा मेरा सेवक अय्योब तुम्हारे लिए प्रार्थना करेगा, क्योंकि मैं उसकी याचना स्वीकार कर लूंगा, कि तुम्हारी मूर्खता के अनुरूप व्यवहार न करूं, क्योंकि तुमने मेरे विषय में वह सब अभिव्यक्त नहीं किया, जो उपयुक्त था जैसा अय्योब ने किया था.” 9तब तेमानी एलिफाज़ ने, शूही बिलदद ने तथा नआमथी ज़ोफर ने याहवेह के आदेश के अनुसार अनुपालन किया तथा याहवेह ने अय्योब की याचना स्वीकार कर ली.

10जब अय्योब अपने मित्रों के लिए प्रार्थना कर चुके, तब याहवेह ने अय्योब की संपत्ति को पूर्वावस्था में कर दिया तथा जो कुछ अय्योब का था, उसे दो गुणा कर दिया. 11कालांतर उनके समस्त भाई बहनों तथा पूर्व परिचितों ने उनके घर पर आकर भोज में उनके साथ संगति की. उन्होंने उन पर याहवेह द्वारा समस्त विपत्तियों के संबंध में सहानुभूति एवं सांत्वना दी. उनमें से हर एक ने अय्योब को धनराशि एवं सोने के सिक्‍के भेंट में दिये.

12याहवेह ने अय्योब के इन उत्तर वर्षों को उनके पूर्व वर्षों की अपेक्षा कहीं अधिक आशीषित किया. उनकी संपत्ति में अब चौदह हजार भेड़ें, छः हजार ऊंट, एक हजार जोड़े बैल तथा एक हजार गधियां हो गईं. 13उनके सात पुत्र एवं तीन पुत्रियां हुईं. 14पहली पुत्री का नाम उन्होंने यमीमाह, दूसरी का केज़ीआह, तीसरी का केरेन-हप्पूख रखा. 15समस्त देश में अय्योब की पुत्रियों समान सौंदर्य अन्यत्र नहीं थी. उनके पिता ने उन्हें उनके भाइयों के साथ ही मीरास दी.

16इसके बाद अय्योब एक सौ चालीस वर्ष और जीवित रहे. उन्होंने चार पीढ़ियों तक अपने पुत्र तथा पौत्र देखे. 17वृद्ध अय्योब अपनी पूर्ण परिपक्व आयु में चले गये.