1وَاسْتَطْرَدَ أَلِيهُو: 2«تَحَمَّلْنِي قَلِيلاً فَأَزِيدَكَ اطِّلاعاً، فَمَازَالَ عِنْدِي مَا أَقُولُهُ نِيَابَةً عَنِ اللهِ، 3لأَنِّي أَتَلَقَّى عِلْمِي مِنْ بَعِيدٍ وَأَعْزُو بِرّاً لِصَانِعِي. 4حَقّاً إِنَّ كَلامِي صَادِقٌ، لأَنَّ الْكَامِلَ فِي الْمَعْرِفَةِ حَاضِرٌ مَعَكَ.
5اللهُ قَدِيرٌ وَلَكِنَّهُ لَا يَحْتَقِرُ الإِنْسَانَ، هُوَ قَدِيرٌ عَظِيمُ الْقُدْرَةِ وَالْفَهْمِ. 6لَا يُبْقِي عَلَى حَيَاةِ الشِّرِّيرِ إِنَّمَا يَقْضِي حَقَّ الْبَائِسِينَ. 7لَا يَغُضُّ طَرْفَهُ عَنِ الصِّدِّيقِينَ، بَلْ يُقِيمُهُمْ مَعَ الْمُلُوكِ عَلَى الْعُرُوشِ إِلَى الأَبَدِ فَيَتَعَظَّمُونَ. 8وَإِنْ رُبِطُوا بِالْقُيُودِ، وَوَقَعُوا فِي حِبَالِ الشَّقَاءِ، 9عِنْدَئِذٍ يُبْدِي لَهُمْ أَفْعَالَهُمْ وَآثَامَهُمْ إِذْ سَلَكُوا بِغُرُورٍ. 10يَفْتَحُ آذَانَهُمْ لِتَحْذِيرَاتِهِ، وَيَأْمُرُهُمْ بِالتَّوْبَةِ عَنْ إِثْمِهِمْ. 11فَإِنْ أَطَاعُوا وَعَبَدُوهُ، يَقْضُونَ أَيَّامَهُمْ بِرَغْدٍ، وَسِنِيهِمْ بِالنِّعَمِ. 12وَلَكِنْ إِنْ عَصَوْا فَبِحَدِّ السَّيْفِ يَهْلِكُوا، وَيَمُوتُوا مِنْ غَيْرِ فَهْمٍ. 13أَمَّا فُجَّارُ الْقُلُوبِ فَيَذْخَرُونَ لأَنْفُسِهِمْ غَضَباً، وَلا يَسْتَغِيثُونَ بِاللهِ حِينَ يُعَاقِبُهُمْ. 14يَمُوتُونَ فِي الصِّبَا بَيْنَ مَأْبُونِي الْمَعَابِدِ. 15أَمَّا الْمُبْتَلَوْنَ فَيُنْقِذُهُمْ فِي بَلائِهِمْ، وَبِالضِّيقِ يَفْتَحُ آذَانَهُمْ.
16يَجْتَذِبُكَ مِنَ الضِّيقِ إِلَى رَحْبٍ طَلِيقٍ، وَيَمْلأُ مَائِدَتَكَ بِالأَطْعِمَةِ الدَّسِمَةِ.
17وَلَكِنَّكَ مُثْقَلٌ بِالدَّيْنُونَةِ الْوَاقِعَةِ عَلَى الأَشْرَارِ، فَالدَّعْوَى وَالْقَضَاءُ يُمْسِكَانِكَ. 18فَاحْرِصْ لِئَلّا يُغْرِيَكَ الغَضَبُ بالسُّخْرِيَةِ، أَوْ تَصْرِفَكَ الرِّشْوَةُ الْعَظِيمَةُ عَنِ الحَقِّ 19أَيُمْكِنُ لِثَرَائِكَ أَوْ لِجُهُودِكَ الْجَبَّارَةِ أَنْ تَدْعَمَكَ فَلا تَغْرَقَ فِي الْكَآبَةِ؟ 20لَا تَتَشَوَّقْ إِلَى اللَّيْلِ حَتَّى تَجُرَّ النَّاسَ خَارِجاً مِنْ بُيُوتِهِمْ. 21احْتَرِسْ أَنْ تَتَحَوَّلَ إِلَى الشَّرِّ، فَإِنَّ هَذَا مَا اخْتَرْتَهُ عِوَضاً عَنِ الشَّقَاءِ.
22انْظُرْ، إِنَّ اللهَ يَتَمَجَّدُ فِي قُوَّتِهِ. أَيُّ مُعَلِّمٍ نَظِيرُهُ؟ 23مَنْ سَنَّ لَهُ طُرُقَهُ أَوْ قَالَ لَهْ: لَقَدِ ارْتَكَبْتَ خَطَأً؟
24لَا تَنْسَ أَنْ تُعَظِّمَ عَمَلَهُ الَّذِي يَتَغَنَّى بِهِ النَّاسُ. 25لَقَدْ شَهِدَهُ النَّاسُ كُلُّهُمْ، وَتَفَرَّسُوا فِيهِ مِنْ بَعِيدٍ. 26فَمَا أَعْظَمَ اللهَ! وَنَحْنُ لَا نَعْرِفُهُ، وَعَدَدُ سِنِيهِ لَا يُسْتَقْصَى. 27لأَنَّهُ يَجْتَذِبُ قَطَرَاتِ الْمَاءِ، وَيَجْعَلُ سُحُبَهُ تَهْطِلُ أَمْطَاراً، 28تَسْكُبُهَا السَّمَاوَاتُ وَتَصُبُّهَا بِغَزَارَةٍ عَلَى الإِنْسَانِ. 29أَهُنَاكَ مَنْ يَفْهَمُ كَيْفَ تَنْتَشِرُ السُّحُبُ، وَكَيْفَ تُرْعِدُ سَمَاؤُهُ؟ 30فَانْظُرْ كَيْفَ بَسَطَ بُرُوقَهُ حَوَالَيْهِ وَتَسَرْبَلَ بِلُجَجِ الْبَحْرِ. 31هَكَذَا يُطْعِمُ اللهُ الشُّعُوبَ وَيُزَوِّدُهُمْ بِالْغِذَاءِ بِوَفْرَةٍ. 32يَمْلأُ يَدَيْهِ بِالْبُرُوقِ وَيَأْمُرُهَا أَنْ تُصِيبَ الْهَدَفَ. 33إِنَّ رَعْدَهُ يُنْذِرُ بِاقْتِرَابِ الْعَاصِفَةِ، وَحَتَّى الْمَاشِيَةُ تُنْبِئُ بِدُنُوِّهَا.
1एलिहू ने आगे कहा:
2“आप कुछ देर और प्रतीक्षा कीजिए, कि मैं आपके सामने यह प्रकट कर सकूं,
कि परमेश्वर की ओर से और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है.
3अपना ज्ञान मैं दूर से लेकर आऊंगा;
मैं यह प्रमाणित करूंगा कि मेरे रचयिता धर्मी हैं.
4क्योंकि मैं आपको यह आश्वासन दे रहा हूं, कि मेरी आख्यान झूठ नहीं है;
जो व्यक्ति इस समय आपके सामने खड़ा है, उसका ज्ञान त्रुटिहीन है.
5“स्मरण रखिए परमेश्वर सर्वशक्तिमान तो हैं, किंतु वह किसी से घृणा नहीं करते;
उनकी शक्ति शारीरिक भी है तथा मानसिक भी.
6वह दुष्टों को जीवित नहीं छोड़ते
किंतु वह पीड़ितों को न्याय से वंचित नहीं रखते.
7धर्मियों पर से उनकी नजर कभी नहीं हटती,
वह उन्हें राजाओं के साथ बैठा देते हैं,
और यह उन्नति स्थायी हो जाती है,
वे सम्मानित होकर वहां ऊंचे पद को प्राप्त किए जाते हैं.
8किंतु यदि कोई बेड़ियों में जकड़ दिया गया हो,
उसे पीड़ा की रस्सियों से बांध दिया गया हो,
9परमेश्वर उन पर यह प्रकट कर देते हैं, कि इस पीड़ा का कारण क्या है?
उनका ही अहंकार, उनका यही पाप.
10तब परमेश्वर उन्हें उपयुक्त शिक्षा के पालन के लिए मजबूर कर देते हैं,
तथा उन्हें आदेश देते हैं, कि वे पाप से दूर हो जाएं.
11यदि वे आज्ञापालन कर परमेश्वर की सेवा में लग जाते हैं,
उनका संपूर्ण जीवन समृद्धि से पूर्ण हो जाता है
तथा उनका जीवन सुखी बना रहता है.
12किंतु यदि वे उनके निर्देशों की उपेक्षा करते हैं,
तलवार से नाश उनकी नियति हो जाती है
और बिना ज्ञान के वे मर जाते हैं.
13“किंतु वे, जो दुर्वृत्त हैं, जो मन में क्रोध को पोषित करते हैं;
जब परमेश्वर उन्हें बेड़ियों में जकड़ देते हैं, वे सहायता की पुकार नहीं देते.
14उनकी मृत्यु उनके यौवन में ही हो जाती है,
देवताओं को समर्पित लुच्चों के मध्य में.
15किंतु परमेश्वर पीड़ितों को उनकी पीड़ा से मुक्त करते हैं;
यही पीड़ा उनके लिए नए अनुभव का कारण हो जाती है.
16“तब वस्तुतः परमेश्वर ने आपको विपत्ति के मुख से निकाला है,
कि आपको मुक्ति के विशाल, सुरक्षित स्थान पर स्थापित कर दें,
तथा आपको सर्वोत्कृष्ट स्वादिष्ट खाना परोस दें.
17किंतु अब आपको वही दंड दिया जा रहा है, जो दुर्वृत्तों के लिए ही उपयुक्त है;
अब आप सत्य तथा न्याय के अंतर्गत परखे जाएंगे.
18अब उपयुक्त यह होगा कि आप सावधान रहें, कि कोई आपको धन-संपत्ति के द्वारा लुभा न ले;
ऐसा न हो कि कोई घूस देकर रास्ते से भटका दे.
19आपका क्या मत है, क्या आपकी धन-संपत्ति आपकी पीड़ा से मुक्ति का साधन बन सकेगी,
अथवा क्या आपकी संपूर्ण शक्ति आपको सुरक्षा प्रदान कर सकेगी?
20उस रात्रि की कामना न कीजिए,
जब लोग अपने-अपने घरों से बाहर नष्ट होने लगेंगे.
21सावधान रहिए, बुराई की ओर न मुड़िए, ऐसा जान पड़ता है,
कि आपने पीड़ा के बदले बुराई को चुन लिया है.
22“देखो, सामर्थ्य में परमेश्वर सर्वोच्च हैं.
कौन है उनके तुल्य उत्कृष्ट शिक्षक?
23किसने उन्हें इस पद पर नियुक्त किया है, कौन उनसे कभी यह कह सका है
‘इसमें तो आपने कमी कर दी है’?
24यह स्मरण रहे कि परमेश्वर के कार्यों का गुणगान करते रहें,
जिनके विषय में लोग स्तवन करते रहे हैं.
25सभी इनके साक्ष्य हैं;
दूर-दूर से उन्होंने यह सब देखा है.
26ध्यान दीजिए परमेश्वर महान हैं, उन्हें पूरी तरह समझ पाना हमारे लिए असंभव है!
उनकी आयु के वर्षों की संख्या मालूम करना असंभव है.
27“क्योंकि वह जल की बूंदों को अस्तित्व में लाते हैं,
ये बूंदें बादलों से वृष्टि बनकर टपकती हैं;
28मेघ यही वृष्टि उण्डेलते जाते हैं,
बहुतायत से यह मनुष्यों पर बरसती हैं.
29क्या किसी में यह क्षमता है, कि मेघों को फैलाने की बात को समझ सके,
परमेश्वर के मंडप की बिजलियां को समझ ले?
30देखिए, परमेश्वर ही उजियाले को अपने आस-पास बिखरा लेते हैं
तथा महासागर की थाह को ढांप देते हैं.
31क्योंकि ये ही हैं परमेश्वर के वे साधन, जिनके द्वारा वह जनताओं का न्याय करते हैं.
तथा भोजन भी बहुलता में प्रदान करते हैं.
32वह बिजली अपने हाथों में ले लेते हैं,
तथा उसे आदेश देते हैं, कि वह लक्ष्य पर जा पड़े.
33बिजली का नाद उनकी उपस्थिति की घोषणा है;
पशुओं को तो इसका पूर्वाभास हो जाता है.