أيوب 2 – NAV & HCV

New Arabic Version

أيوب 2:1-13

تجربة أيوب الثانية

1ثُمَّ مَثَلَ بَنُو اللهِ مَرَّةً أُخْرَى فِي حَضْرَةِ الرَّبِّ، وَانْدَسَّ الشَّيْطَانُ أَيْضاً فِي وَسَطِهِمْ، 2فَسَأَلَ الرَّبُّ الشَّيْطَانَ: «مِنْ أَيْنَ جِئْتَ؟» فَأَجَابَ الشَّيْطَانُ: «مِنَ الطَّوَافِ فِي الأَرْضِ وَالتَّجَوُّلِ فِيهَا». 3فَقَالَ الرَّبُّ لِلشَّيْطَانِ: «هَلْ رَاقَبْتَ عَبْدِي أَيُّوبَ فَإِنَّهُ لَا نَظِيرَ لَهُ فِي الأَرْضِ، فَهُوَ رَجُلٌ كَامِلٌ صَالِحٌ، يَتَّقِي اللهَ وَيَحِيدُ عَنِ الشَّرِّ، وَحَتَّى الآنَ لَا يَزَالُ مُعْتَصِماً بِكَمَالِهِ، مَعَ أَنَّكَ أَثَرْتَنِي عَلَيْهِ لأُهْلِكَهُ مِنْ غَيْرِ دَاعٍ». 4فَأَجَابَ الشَّيْطَانُ: «جِلْدٌ بِجِلْدٍ، فَالإِنْسَانُ يَبْذُلُ كُلَّ مَا يَمْلِكُ فِدَاءَ نَفْسِهِ. 5وَلَكِنْ حَالَمَا تَمُدُّ يَدَكَ إِلَيْهِ وَتَمَسُّ عَظْمَهُ وَلَحْمَهُ فَإِنَّهُ فِي وَجْهِكَ يُجَدِّفُ عَلَيْكَ». 6فَقَالَ الرَّبُّ لِلشَّيْطَانِ: «هَا أَنَا أُسَلِّمُهُ إِلَيْكَ، وَلَكِنِ احْفَظْ نَفْسَهُ».

7فَانْصَرَفَ الشَّيْطَانُ مِنْ حَضْرَةِ الرَّبِّ، وَابْتَلَى أَيُّوبَ بِقُرُوحٍ انْتَشَرَتْ فِي بَدَنِهِ كُلِّهِ، مِنْ قِمَّةِ الرَّأْسِ إِلَى أَخْمَصِ الْقَدَمِ، 8فَجَلَسَ أَيُّوبُ وَسَطَ الرَّمَادِ وَتَنَاوَلَ شَقْفَةً يَحُكُّ بِها قُرُوحَهُ. 9فَقَالَتْ لَهُ زَوْجَتُهُ: «أَمَازِلْتَ مُعْتَصِماً بِكَمَالِكَ؟ جَدِّفْ عَلَى اللهِ وَمُتْ». 10فَأَجَابَهَا: «أَنْتِ تَتَكَلَّمِينَ كَالْجَاهِلاتِ! أَنَقْبَلُ الْخَيْرَ مِنْ عِنْدِ اللهِ وَالشَّرَّ لَا نَقْبَلُ؟». فِي هَذَا كُلِّهِ لَمْ تَرْتَكِبْ شَفَتَا أَيُّوبَ خَطَأً فِي حَقِّ اللهِ.

أصدقاء أيوب الثلاثة

11وَعِنْدَمَا سَمِعَ أَصْحَابُ أَيُّوبَ الثَّلاثَةُ بِمَا حَاقَ بِهِ مِنْ شَرٍّ، تَوَافَدُوا إِلَيْهِ مِنْ مَقَرِّ إِقَامَتِهِمْ، وَهُمْ أَلِيفَازُ التَّيْمَانِيُّ، وَبِلْدَدُ الشُّوحِيُّ، وَصُوفَرُ النَّعْمَاتِيُّ، بَعْدَ أَنْ تَوَاعَدُوا عَلَى الاجْتِمَاعِ عِنْدَهُ لِلرِّثَاءِ لَهُ وَلِتَعْزِيَتِهِ. 12وَإِذْ رَأَوْهُ مِنْ بَعِيدٍ لَمْ يَعْرِفُوهُ لِفَرْطِ مَا حَلَّ بِهِ، فَرَفَعُوا أَصْوَاتَهُمْ بِالْبُكَاءِ، وَمَزَّقَ كُلُّ وَاحِدٍ جُبَّتَهُ وَذَرَّوْا تُرَاباً فَوْقَ رُؤُوسِهِمْ نَحْوَ السَّمَاءِ، 13وَمَكَثُوا جَالِسِينَ مَعَهُ عَلَى الأَرْضِ سَبْعَةَ أَيَّامٍ وَسَبْعَ لَيَالٍ، لَمْ يُكَلِّمْهُ فِيهَا أَحَدٌ مِنْهُمْ بِكَلِمَةٍ لِشِدَّةِ مَا كَانَ عَلَيْهِ مِنْ كَآبَةٍ.

Hindi Contemporary Version

अय्योब 2:1-13

1फिर एक दिन जब स्वर्गदूत याहवेह की उपस्थिति में एकत्र हुए, शैतान भी उनके मध्य में आया था, कि वह स्वयं को परमेश्वर के सामने प्रस्तुत करे. 2याहवेह ने शैतान से प्रश्न किया, “तुम कहां से आ रहे हो?”

शैतान ने याहवेह को उत्तर दिया, “पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते तथा इसकी चारों दिशाओं में डोलते-डालते आया हूं.”

3याहवेह ने शैतान से प्रश्न किया, “क्या तुमने अय्योब, मेरे सेवक पर ध्यान दिया है? क्योंकि पृथ्वी पर कोई भी उसके तुल्य नहीं है. वह सीधा, ईमानदार, परमेश्वर के प्रति श्रद्धा युक्त तथा बुराई से दूर रहनेवाला व्यक्ति है. अब भी वह अपनी खराई पर अटल है, जबकि तुम्हीं हो जिसने उसे नष्ट करने के लिए मुझे अकारण ही उकसाया था.”

4शैतान ने याहवेह को जवाब दिया, “खाल का विनिमय खाल से! अपने प्राणों की रक्षा में मनुष्य अपना सर्वस्व देने के लिए तैयार हो जाता है. 5अब आप उसकी हड्डी तथा मांस को स्पर्श कीजिए; तब वह आपके सामने आपकी निंदा करने लगेगा.”

6यह सुनकर याहवेह ने शैतान को उत्तर दिया, “सुनो, अब वह तुम्हारे अधिकार में है; बस इतना ध्यान रहे कि उसका जीवन सुरक्षित रहे.”

7शैतान याहवेह की उपस्थिति से चला गया और जाकर अय्योब पर ऐसा प्रहार किया कि उनकी देह पर, तलवों से लेकर सिर तक, दुखदाई फोड़े निकल आए. 8वह राख में जा बैठे और एक ठीकरे के टुकड़े से स्वयं को खुजलाने लगे.

9यह सब देख उनकी पत्नी ने उनसे कहा, “क्या तुम अब भी अपनी खराई को ही थामे रहोगे? परमेश्वर की निंदा करो और मर जाओ!”

10किंतु अय्योब ने उसे उत्तर दिया, “तुम तो मूर्ख2:10 मूर्ख यानी अनैतिक स्त्रियों के समान बक-बक करने लगी हो. क्या हमारे लिए यह भला होगा कि परमेश्वर से सुख स्वीकार करते जाएं और दुःख कुछ भी नहीं?”

इन सभी स्थितियों में अय्योब ने अपने मुख द्वारा कोई पाप नहीं किया.

11जब अय्योब के तीन मित्रों को अय्योब की दुखद स्थिति का समाचार प्राप्‍त हुआ, तब तीनों ही अपने-अपने स्थानों से अय्योब के घर आ गए, तेमानी से एलिफाज़, शूही से बिलदद तथा नआमथ से ज़ोफर. इन तीनों ने योजना बनाई कि सहानुभूति एवं सांत्वना देने के लिए वे अय्योब से भेंट करेंगे. 12जब वे दूर ही थे तथा उन्होंने अय्योब की ओर देखा, तो वे उन्हें पहचान ही न सके. वे उच्च स्वर में रोने लगे. हर एक ने अपने-अपने वस्त्रों को फाड़कर अपने-अपने ऊपर धूल डाल ली. 13तब वे जाकर अय्योब के निकट भूमि पर सात दिन एवं सात रात्रि चुप बैठे रहे, क्योंकि उनके सामने यह पूर्णतः स्पष्ट था कि अय्योब की पीड़ा अत्यंत भयानक थी.