بلدد
1فَقَالَ بِلْدَدُ الشُّوحِيُّ: 2«مَتَى تَكُفُّ عَنْ تَرْدِيدِ هَذِهِ الْكَلِمَاتِ؟ تَعَقَّلْ ثُمَّ نَتَكَلَّمُ. 3لِمَاذَا تَعْتَبِرُنَا كَالْبَهِيمَةِ وَحَمْقَى فِي عَيْنَيْكَ؟ 4يَا مَنْ تُمَزِّقُ نَفْسَكَ إِرْباً غَيْظاً، هَلْ تُهْجَرُ الأَرْضُ مِنْ أَجْلِكَ أَمْ تَتَزَحْزَحُ الصَّخْرَةُ مِنْ مَوْضِعِهَا؟
5أَجَلْ! إِنَّ نُورَ الأَشْرَارِ يَنْطَفِئُ وَلَهِيبَ نَارِهِمْ لَا يُضِيءُ. 6يَتَحَوَّلُ النُّورُ إِلَى ظُلْمَةٍ فِي خَيْمَتِهِ، وَيَنْطَفِئُ سِرَاجُهُ عَلَيْهِ. 7تَقْصُرُ خَطْوَاتُهُ الْقَوِيَّةُ وَتَصْرَعُهُ تَدْبِيرَاتُهُ، 8لأَنَّ قَدَمَيْهِ تُوْقِعَانِهِ فِي الشَّرَكِ وَتَطْرَحَانِهِ فِي حُفْرَةٍ، 9يَقْبِضُ الْفَخُّ عَلَى عَقِبَيْهِ وَالشَّرَكُ يَشُدُّ عَلَيْهِ، 10حِبَالَتُهُ مَطْمُورَةٌ فِي الطَّرِيقِ، وَالْمِصْيَدَةُ كَامِنَةٌ فِي سَبِيلِهِ، 11تُرْعِبُهُ أَهْوَالٌ مِنْ حَوْلِهِ وَتُزَاحِمُهُ عِنْدَ رِجْلَيْهِ، 12قُوَّتُهُ يَلْتَهِمُهَا الْجُوعُ النَّهِمُ، وَالْكَوَارِثُ مُتَأَهِّبَةٌ تَتَرَصَّدُ كَبْوَتَهُ. 13يَفْتَرِسُ الدَّاءُ جِلْدَهُ وَيَلْتَهِمُ الْمَرَضُ الأَكَّالُ أَعْضَاءَهُ. 14يُؤْخَذُ مِنْ خَيْمَتِهِ رُكْنِ اعْتِمَادِهِ، وَيُسَاقُ أَمَامَ مَلِكِ الأَهْوَالِ. 15يُقِيمُ فِي خَيْمَتِهِ غَرِيبٌ وَيُذَرُّ كِبْرِيتٌ عَلَى مَرْبِضِهِ. 16تَجِفُّ أُصُولُهُ تَحْتَهُ، وَتَتَبَعْثَرُ فُرُوعُهُ مِنْ فَوْقِهِ. 17يَبِيدُ ذِكْرُهُ مِنَ الأَرْضِ، وَلا يَبْقَى لَهُ اسْمٌ فِيهَا. 18يُطْرَدُ مِنَ النُّورِ إِلَى الظُّلْمَةِ، وَيُنْفَى مِنَ الْمَسْكُونَةِ. 19لَا يَكُونُ لَهُ نَسْلٌ، وَلا عَقِبٌ بَيْنَ شَعْبِهِ، وَلا حَيٌّ فِي أَمَاكِنِ سُكْنَاهُ. 20يَرْتَعِبُ مِنْ مَصِيرِهِ أَهْلُ الْغَرْبِ، وَيَسْتَوْلِي الْفَزَعُ عَلَى أَبْنَاءِ الشَّرْقِ. 21حَقّاً تِلْكَ هِيَ مَسَاكِنُ الأَشْرَارِ، وَهَذَا هُوَ مَقَامُ مَنْ لَا يَعْرِفُ اللهَ!»
न्याय के मार्ग पर क्रोध की शक्तिहीनता
1इसके बाद शूही बिलदद ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की:
2“कब तक तुम इसी प्रकार शब्दों में उलझे रहोगे?
कुछ सार्थक विषय प्रस्तुत करो, कि कुछ परिणाम प्रकट हो सके.
3हमें पशु क्यों समझा जा रहा है?
क्या हम तुम्हारी दृष्टि में मूर्ख हैं?
4तुम, जो क्रोध में स्वयं को फाड़े जा रहे हो,
क्या, तुम्हारे हित में तो पृथ्वी अब उजड़ हो जानी चाहिए?
अथवा, क्या चट्टान को अपनी जगह से अलग किया जाये?
5“सत्य तो यह है कि दुर्वृत्त का दीप वस्तुतः बुझ चुका है;
उसके द्वारा प्रज्वलित अग्निशिखा में तो प्रकाश ही नहीं है.
6उसका तंबू अंधकार में है;
उसके ऊपर का दीपक बुझ गया है.
7उसकी द्रुत चाल को रोक दिया गया है;
तथा उसकी अपनी युक्ति उसे ले डूबी,
8क्योंकि वह तो अपने जाल में जा फंसा है;
उसने अपने ही फंदे में पैर डाल दिया है.
9उसकी एड़ी पर वह फंदा जा पड़ा
तथा संपूर्ण उपकरण उसी पर आ गिरा है,
10भूमि के नीचे उसके लिए वह गांठ छिपाई गई थी;
उसके रास्ते में एक फंदा रखा गया था.
11अब तो आतंक ने उसे चारों ओर से घेर रखा है
तथा उसके पीछे पड़कर उसे सता रहे हैं.
12उसके बल का ठट्ठा हुआ जा रहा है;
विपत्ति उसके निकट ठहरी हुई है.
13उसकी खाल पर घोर व्याधि लगी हुई है;
उसके अंगों को मृत्यु के पहलौठे ने खाना बना लिया है.
14उसके ही तंबू की सुरक्षा में से उसे झपट लिया गया है
अब वे उसे आतंक के राजा के सामने प्रदर्शित हो रहे हैं.
15अब उसके तंबू में विदेशी जा बसे हैं;
उसके घर पर गंधक छिड़क दिया गया है.
16भूमि के भीतर उसकी जड़ें अब शुष्क हो चुकी हैं
तथा ऊपर उनकी शाखाएं काटी जा चुकी हैं.
17धरती के लोग उसको याद नहीं करेंगे;
बस अब कोई भी उसको याद नहीं करेगा.
18उसे तो प्रकाश में से अंधकार में धकेल दिया गया है
तथा मनुष्यों के समाज से उसे खदेड़ दिया गया है.
19मनुष्यों के मध्य उसका कोई वंशज नहीं रह गया है,
जहां-जहां वह प्रवास करता है, वहां उसका कोई उत्तरजीवी नहीं.
20पश्चिमी क्षेत्रों में उसकी स्थिति पर लोग चकित होंगे
तथा पूर्वी क्षेत्रों में भय ने लोगों को जकड़ लिया है.
21निश्चयतः दुर्वृत्तों का निवास ऐसा ही होता है;
उनका निवास, जिन्हें परमेश्वर का कोई ज्ञान नहीं है.”