ኤርምያስ 30 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ኤርምያስ 30:1-24

የእስራኤል ሕዝብ መመለስ

1ከእግዚአብሔር ዘንድ ወደ ኤርምያስ የመጣው ቃል ይህ ነው፤ 2“የእስራኤል አምላክ እግዚአብሔር እንዲህ ይላል፤ ‘የነገርሁህን ቃል ሁሉ በመጽሐፍ ጻፈው። 3እነሆ፣ ሕዝቤን እስራኤልንና ይሁዳን’ ይላል እግዚአብሔር፤ ‘ለአባቶቻቸው ወደ ሰጠኋት ምድር የምመልስበት ጊዜ ተቃርቧል፤30፥3 ወይም የሕዝቤን የእስራኤልንና የይሁዳን ዕድል ፈንታ እመልሳለሁ እነርሱም ይወርሷታል’ ይላል እግዚአብሔር።”

4እግዚአብሔር ስለ እስራኤልና ስለ ይሁዳ የተናገረው ቃል ይህ ነው፤ 5እግዚአብሔር እንዲህ ይላል፤

“ ‘የፍርሀትና የሽብር ጩኸት ተሰምቷል፤

ሰላምም የለም።

6እስቲ ጠይቁ፤ ተመልከቱም፤

ወንድ መውለድ ይችላል?

ታዲያ ወንድ ሁሉ ምጥ እንደ ያዛት ሴት፣

እጁን በሆዱ ላይ አድርጎ፣

የሰውስ ሁሉ ፊት ጠቍሮ የማየው ለምንድን ነው?

7ያ ቀን ምንኛ አስጨናቂ ይሆናል!

እንደዚያም ያለ አይኖርም፤

ለያዕቆብ የመከራ ጊዜ ነው፤

ነገር ግን ይተርፋል።

8“ ‘በዚያን ቀን’ ይላል የሰራዊት ጌታ እግዚአብሔር

‘በጫንቃቸው ላይ ያለውን ቀንበር እሰብራለሁ፤

እስራታቸውንም እበጥሳለሁ፤

ከእንግዲህ ባዕዳን አይገዟቸውም።

9ነገር ግን ለአምላካቸው ለእግዚአብሔር

ለማስነሣላቸውም ለንጉሣቸው፣

ለዳዊት ይገዛሉ።

10“ ‘ስለዚህ፤ አገልጋዬ ያዕቆብ ሆይ፤ አትፍራ፤

እስራኤል ሆይ፤ አትደንግጥ፤’

ይላል እግዚአብሔር

‘አንተን ከሩቅ አገር፣

ዘርህንም ከተማረኩበት ምድር እታደጋለሁ፤

ያዕቆብ ተመልሶ በሰላምና በርጋታ ይቀመጣል፤

የሚያስፈራውም አይኖርም።

11እኔ ከአንተ ጋር ነኝ፤ አድንሃለሁም’

ይላል እግዚአብሔር

‘በአሕዛብ መካከል በትኜሃለሁ፤

እነዚህን አሕዛብ ሁሉ ፈጽሜ አጠፋለሁ፤

አንተን ግን ሙሉ በሙሉ አላጠፋህም፤

በመጠኑ እቀጣሃለሁ እንጂ፣

ያለ ቅጣት አልተውህም።’

12እግዚአብሔር እንዲህ ይላል፤

“ ‘ስብራትህ የማይጠገን፣

ቍስልህም የማይድን ነው።

13የሚሟገትልህ ሰው የለም፤

ለቍስልህ መድኃኒት አይኖርም፤

ፈውስም አታገኝም።

14ወዳጆችህ ሁሉ ረስተውሃል፤

ስለ አንተም ግድ የላቸውም።

ጠላት እንደሚመታ መታሁህ፤

እንደ ጨካኝም ቀጣሁህ፤

በደልህ ታላቅ፣

ኀጢአትህም ብዙ ነውና።

15ፈውስ ለማይገኝለት ሕመምህ፣

ስለ ቍስልህ ለምን ትጮኻለህ?

በደልህ ታላቅ፣ ኀጢአትህም ብዙ ስለሆነ፣

እነዚህን ሁሉ አድርጌብሃለሁና።

16“ ‘ነገር ግን አሟጥጠው የበሉህ ሁሉ እንደዚያው ይበላሉ፤

ጠላቶችህ ሁሉ ለምርኮ ዐልፈው ይሰጣሉ፤

የሚዘርፉህ ይዘረፋሉ፤

የሚበዘብዙህም ሁሉ ይበዘበዛሉ።

17አንተን ግን መልሼ ጤነኛ አደርግሃለሁ፤

ቍስልህንም እፈውሳለሁ፤’

ይላል እግዚአብሔር

‘የተናቀች፣

ማንም የማይፈልጋት ጽዮን’ ብለውሃልና።

18እግዚአብሔር እንዲህ ይላል፤

“ ‘እነሆ የያዕቆብን ድንኳን ምርኮ እመልሳለሁ፤

ለማደሪያውም እራራለሁ፤

ከተማዪቱ በፍርስራሿ ጕብታ ላይ ትሠራለች፤

ቤተ መንግሥቱም በቀድሞ ቦታው ይቆማል።

19ከእነርሱም የምስጋና መዝሙር፣

የእልልታ ድምፅ ይሰማል።

እኔ አበዛቸዋለሁ፤

ቍጥራቸውም አይቀንስም፣

አከብራቸዋለሁ፤

የተናቁም አይሆኑም።

20ልጆቻቸው እንደ ቀድሞው ይሆናሉ፤

ማኅበረ ሰቡም በፊቴ የጸና ይሆናል፤

የሚጨቍኗቸውን ሁሉ እቀጣለሁ።

21መሪያቸው ከራሳቸው ወገን ይሆናል፤

ገዣቸውም ከመካከላቸው ይነሣል፤

ወደ እኔ አቀርበዋለሁ፤ እርሱም ይቀርበኛል፤

አለዚያማ ደፍሮ፣

ወደ እኔ የሚቀርብ ማን ነው?’ ይላል እግዚአብሔር

22‘ስለዚህ እናንተ ሕዝብ ትሆኑኛላችሁ፤

እኔም አምላክ እሆናችኋለሁ።’ ”

23እነሆ፤ የእግዚአብሔር ማዕበል፣

በቍጣ ይነሣል፤

የሚገለባብጥም ዐውሎ ነፋስ፣

በክፉዎች ዐናት ላይ ይወርዳል።

24የልቡን ሐሳብ ሳይፈጽም፣

የእግዚአብሔር ቍጣ፣

እንዲሁ አይመለስም፤

በሚመጡትም ዘመናት፣

ይህን ታስተውላላችሁ።

Hindi Contemporary Version

येरेमियाह 30:1-24

इस्राएल की पुनःस्थापना

1वह संदेश जो याहवेह द्वारा येरेमियाह के लिए प्रगट किया गया: 2“याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का आदेश यह है: ‘एक पुस्तक में तुमसे की गई मेरी संपूर्ण बात को लिख लो. 3क्योंकि यह देख लेना, ऐसे दिन आ रहे हैं,’ यह याहवेह की वाणी है, ‘जब मैं अपने लोग इस्राएल तथा यहूदिया की समृद्धि लौटा दूंगा,’ याहवेह की यह वाणी है, ‘मैं उन्हें उस देश में लौटा ले आऊंगा, जो मैंने उनके पूर्वजों को प्रदान किया था और वे उस पर अधिकार कर लेंगे.’ ”

4इस्राएल एवं यहूदिया से संबंधित याहवेह का वचन यह है: 5“याहवेह का संदेश यह है:

“ ‘मैंने एक भय की पुकार सुनी है—

आतंक की ध्वनि, शांति है ही नहीं.

6ज्ञात करो, विचार करो:

क्या पुरुष के लिए प्रसव संभव है?

तब कारण क्या है कि हर एक पुरुष अपने कमर पर हाथ रखे हुए है,

प्रसूता के सदृश और उनका मुखमंडल विवर्ण क्यों हो गया है?

7हाय! क्योंकि भयंकर होगा वह दिन!

ऐसा कभी देखा ही नहीं गया.

यह याकोब की वेदना का समय होगा,

किंतु याकोब इसमें से पार निकल जाएगा.

8“ ‘उस दिन ऐसा होगा,’ यह सेनाओं के याहवेह की वाणी है,

‘मैं उसकी गर्दन पर पड़ा हुआ जूआ तोड़ डालूंगा

तथा उनके बंधन तोड़ डालूंगा;

तब इसके बाद अपरिचित आकर उन्हें दास नहीं बनाएंगे.

9तब वे याहवेह अपने परमेश्वर

तथा दावीद अपने राजा के अधीन रहेंगे,

जिसका मैं उनके लिए उद्भव करूंगा.

10“ ‘याकोब, मेरे सेवक, भयभीत न होओ;

और इस्राएल, हताश न हो जाओ,’

यह याहवेह का आदेश है.

‘क्योंकि तुम यह देखोगे कि तुम चाहे कितनी भी दूर क्यों न रहो,

मैं तुम्हारे वंशजों का उद्धार उनके बंधुआई के देश में से करूंगा.

तब याकोब लौट आएगा, वह सुरक्षित रहेगा तथा सुख-शांति की स्थिति में निवास करेगा,

कोई भी उसे भयभीत न करेगा.

11क्योंकि मैं तुम्हारे साथ रहूंगा, कि तुम्हें विमुक्त कर दूं,’

यह याहवेह की वाणी है.

‘मैं उन सभी जनताओं का सर्वनाश कर दूंगा,

जहां मैंने तुम्हें बिखरा दिया था,

किंतु मैं तुम्हें पूर्णतः नष्ट नहीं करूंगा.

मैं तुम्हारी न्यायोचित प्रताड़ना अवश्य करूंगा;

किसी भी स्थिति में मैं तुम्हें अदण्डित न छोडूंगा.’

12“क्योंकि याहवेह का स्पष्टीकरण यह है:

“ ‘असाध्य है तुम्हारा घाव,

तथा गंभीर है तुम्हें लगी हुई चोट.

13तुम्हारा समर्थन करनेवाला कोई भी नहीं है,

न तो तुम्हारे घाव भरेंगे,

और न ही तुम्हें स्वास्थ्य पुनः प्राप्‍त होगा.

14जिन्हें तुमसे प्रेम था, उन्होंने तुम्हें भूलना पसंद कर दिया है;

उन्हें तुम्हारी कोई चिंता नहीं.

मैंने तुम्हें वह घाव दिया है, जो एक शत्रु ही दे सकता है,

एक ऐसा दंड, जो निर्मम शत्रु दिया करता है,

क्योंकि घोर है तुम्हारा अपराध

तथा असंख्य हैं तुम्हारे पाप.

15अपने घावों पर विलाप क्यों कर रहे हो,

तुम्हारी पीड़ा असाध्य है?

इसलिये कि तुम्हारी पापिष्ठता जघन्य है

तथा असंख्य हैं तुम्हारे पाप. मैंने ही तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार किया है.

16“ ‘इसलिये वे सभी, जो तुम्हें निगल रहे हैं, स्वयं निगल लिए जाएंगे;

तुम्हारे सब शत्रु बंधुआई में चले जाएंगे.

वे, जो तुम्हें लूट रहे हैं, स्वयं लूट लिए जाएंगे.

वे, जो तुम्हें शिकार बना रहे हैं, मैं उन्हें शिकार होने के लिए सौंप दूंगा.

17क्योंकि मैं तुम्हारा स्वास्थ्य पुनःस्थापित करूंगा,

तथा तुम्हारे घावों को भर दूंगा,’

यह याहवेह की वाणी है,

‘क्योंकि उन्होंने तुम्हें गृहवंचित घोषित कर दिया है,

उन्होंने कहा है, यह ज़ियोन है; उन्हें तुम्हारी कोई चिंता नहीं.’

18“यह याहवेह की वाणी है:

“ ‘तुम देखना मैं याकोब के शिविर की समृद्धि को लौटाकर दूंगा,

मैं ध्वस्त आवासों के प्रति अनुकम्पा प्रदर्शित करूंगा;

उसके खंडहरों पर ही नगर का पुनर्निर्माण होगा,

तथा महल अपने यथास्थान पर प्रतिष्ठित किया जाएगा.

19उनसे धन्यवाद तथा हर्षोल्लास का

स्वर आता रहेगा.

मैं उनकी संख्या में वृद्धि करूंगा,

उनकी संख्या कम न होगी;

मैं उन्हें सम्मान्य बना दूंगा,

वे नगण्य न रहेंगे.

20उनकी संतान भी पूर्ववत समृद्ध हो जाएगी,

मेरे समक्ष सारा राष्ट्र प्रतिष्ठित हो जाएगा;

तथा मैं उन्हें दंड दूंगा, जिन्होंने उन पर अत्याचार किया था.

21उन्हीं का अपना स्वजन उनका उच्चाधिकारी हो जाएगा;

उन्हीं के मध्य से उनके उच्चाधिकारी का उद्भव होगा.

मेरे आमंत्रण पर वह मेरे निकट आएगा

अन्यथा कैसे मेरे निकट आकर

अपने प्राण को जोखिम में डालेगा?’

यह याहवेह की वाणी है.

22‘तब तुम मेरी प्रजा हो जाओगे,

तथा मैं तुम्हारा परमेश्वर.’ ”

23देख लो, याहवेह के बवंडर को,

उनका कोप क्रोध हो चुका है,

यह बवंडर सब कुछ उड़ा ले जाएगा

ये बुराइयां सिर पर टूट पड़ेंगी.

24याहवेह का प्रचंड कोप तब तक अलग न होगा,

जब तक वह अपने हृदय की बातों को पूर्ण नहीं कर लेते,

जब तक वह इसका निष्पादन नहीं कर लेते.

अंतिम दिनों में

तुम्हारे समक्ष यह सब स्पष्ट हो जाएगा.