ምሳሌ 11 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ምሳሌ 11:1-31

1እግዚአብሔር የተጭበረበረ ሚዛንን ይጸየፋል፤

ትክክለኛ መለኪያ ግን ደስ ያሰኘዋል።

2ትዕቢት ስትመጣ ውርደትም ትከተላለች፤

በትሑት ዘንድ ግን ጥበብ ትገኛለች።

3ቅኖችን ትክክለኛነታቸው ትመራቸዋለች፤

ወስላቶች ግን በገዛ አታላይነታቸው ይጠፋሉ።

4በቍጣ ቀን ሀብት ፋይዳ የለውም፤

ጽድቅ ግን ከሞት ትታደጋለች።

5ለፍጹማን ሰዎች ጽድቃቸው መንገዳቸውን ታቃናላቸዋለች፤

ክፉዎች ግን በገዛ ክፋታቸው ይወድቃሉ።

6ቅኖችን ጽድቃቸው ትታደጋቸዋለች፤

ወስላቶች ግን በክፉ ምኞታቸው ይጠመዳሉ።

7ክፉ ሰው ሲሞት ተስፋው ከንቱ ትሆናለች፤

በኀይሉ የተመካበትም ሁሉ እንዳልነበረ ይሆናል።

8ጻድቅ ከመከራ ይድናል፤

ይልቁን መከራው በክፉው ላይ ይደርሳል።

9ክፉ ሰው ባልንጀራውን በአፉ ያጠፋል፤

ጻድቃን ግን በዕውቀት ያመልጣሉ።

10ጻድቃን ሲሳካላቸው ከተማ ደስ ይላታል፤

ክፉዎች ሲጠፉ እልልታ ይሆናል።

11በቅኖች በረከት ከተማ ከፍ ከፍ ትላለች፤

በክፉዎች አንደበት ግን ትጠፋለች።

12ማመዛዘን የጐደለው ሰው ባልንጀራውን ያንኳስሳል፤

አስተዋይ ግን አንደበቱን ይገዛል።

13ሐሜተኛ ምስጢር አይጠብቅም፤

ታማኝ ሰው ግን ምስጢር ይጠብቃል።

14በአመራር ጕድለት መንግሥት ይወድቃል፤

የመካሮች ብዛት ግን ድልን ርግጠኛ ያደርጋል።

15ለማይታወቅ ሰው ዋስ የሚሆን መከራ ያገኘዋል፤

ዋስትና ለመስጠት እጅ የማይመታ ግን ምንም አይደርስበትም።

16ርኅሩኅ ሴት ክብር ታገኛለች፤

ጕልበተኛ ሰዎች ግን ብልጽግናን ብቻ ያገኛሉ።

17ደግ ሰው ራሱን ይጠቅማል፤

ጨካኝ ግን በራሱ ላይ መከራ ያመጣል።

18ክፉ ሰው የሚያገኘው ትርፍ መቅኖ የለውም፤

ጽድቅን የሚዘራ ግን አስተማማኝ ዋጋ ያገኛል።

19እውነተኛ ጻድቅ ሕይወትን ያገኛል፤

ክፋትን የሚከተል ግን ወደ ሞቱ ይጓዛል።

20እግዚአብሔር ልበ ጠማሞችን ይጸየፋል፤

በመንገዳቸው ነቀፋ በሌለባቸው ሰዎች ግን ደስ ይሰኛል።

21ክፉ ሳይቀጣ እንደማይቀር ዕወቅ፣

ጻድቃን ግን በነጻ ይሄዳሉ።

22በእርያ አፍንጫ ላይ እንደ ተሰካ የወርቅ ቀለበት፣

ማስተዋል የጐደላት ቈንጆ ሴት እንዲሁ ናት።

23የጻድቃን ምኞት ምንጊዜም ፍጻሜው ያማረ ነው፤

የክፉዎች ተስፋ ግን በቍጣ ያከትማል።

24አንዱ በለጋስነት ይሰጣል፤ ሆኖም ይበልጥ ያገኛል፤

ሌላው ያለ መጠን ይሰስታል፤ ግን ይደኸያል።

25ለጋስ ይበለጽጋል፤

ሌሎችን የሚያረካም ራሱ ይረካል።

26በድብቅ እህል የሚያከማቸውን ሕዝብ ይረግመዋል፤

አውጥቶ የሚሸጥ ግን በረከት ይጐናጸፋል።

27በጎ ነገርን ተግቶ የሚሻ በጎ ነገር ይጠብቀዋል፤

ክፉ ነገር የሚፈልገውን ግን ክፉ ያገኘዋል።

28በሀብቱ የሚታመን ሁሉ ይወድቃል፤

ጻድቃን ግን እንደ አረንጓዴ ቅጠል ይለመልማሉ።

29ቤተ ሰቡን የሚያውክ ሰው ነፋስን ይወርሳል፤

ተላላም ሰው የጠቢብ ሎሌ ይሆናል።

30የጻድቅ ፍሬ የሕይወት ዛፍ ናት፤

ነፍሳትን የሚማርክም ጠቢብ ነው።

31ጻድቃን ለሠሩት ሥራ በምድር የእጃቸውን የሚያገኙ ከሆነ፣

የክፉዎችና የኀጢአተኞችማ የቱን ያህል የባሰ ይሆን?

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 11:1-31

1अशुद्ध माप याहवेह के लिए घृणास्पद है,

किंतु शुद्ध तोल माप उनके लिए आनंद है.

2जब कभी अभिमान सिर उठाता है, लज्जा उसके पीछे-पीछे चली आती है,

किंतु विनम्रता ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करती है.

3ईमानदार की सत्यनिष्ठा उनका मार्गदर्शन करती है,

किंतु विश्वासघाती व्यक्ति की कुटिलता उसके विनाश का कारक होती है.

4प्रकोप के दिन में धन-संपत्ति निरर्थक सिद्ध होती है,

मात्र धार्मिकता मृत्यु से सुरक्षा प्रदान करती है.

5निर्दोष की धार्मिकता ही उसके मार्ग को सीधा बना देती है,

किंतु दुष्ट अपनी ही दुष्टता के कारण नाश में जा पड़ता है.

6ईमानदार की धार्मिकता ही उसकी सुरक्षा है,

किंतु कृतघ्न व्यक्ति अपनी वासना के जाल में उलझ जाते हैं.

7जब दुष्ट की मृत्यु होती है, उसकी आशा भी बुझ जाती है,

और बलवान की आशा शून्य रह जाती है.

8धर्मी विपत्ति से बचता हुआ आगे बढ़ता जाता है,

किंतु दुष्ट उसी में फंस जाता है.

9अभक्त लोग मात्र अपने शब्दों के द्वारा अपने पड़ोसी का नाश कर देता है,

किंतु धर्मी का छुटकारा ज्ञान में होता है.

10धर्मी की सफलता में संपूर्ण नगर आनंदित होता है,

और जब दुर्जन नष्ट होते हैं, जयघोष गूंज उठते हैं.

11ईमानदार के आशीर्वाद से नगर की प्रतिष्ठा बढ़ जाती है,

किंतु दुर्जन का वक्तव्य ही उसे ध्वस्त कर देता है.

12निर्बुद्धि व्यक्ति ही अपने पड़ोसी को तुच्छ समझता है,

किंतु समझदार व्यक्ति चुपचाप बना रहता है.

13निंदक के लिए गोपनीयता बनाए रखना संभव नहीं होता,

किंतु विश्वासपात्र रहस्य छुपाए रखता है.

14मार्गदर्शन के अभाव में राष्ट्र का पतन हो जाता है,

किंतु अनेक सलाह देनेवाले मंत्रियों के होने पर राष्ट्र सुरक्षित हो जाता है.

15यह सुनिश्चित ही है कि यदि किसी ने किसी अपरिचित की ज़मानत ले ली है, उसकी हानि अवश्य होगी,

किंतु वह, जो ऐसी शपथ करने की भूल नहीं करता, सुरक्षित रहता है.

16कृपावान स्त्री का ज्ञान है सम्मान,

किंतु क्रूर व्यक्ति के हाथ मात्र धन ही लगता है.

17कृपा करने के द्वारा मनुष्य अपना ही हित करता है,

किंतु क्रूर व्यक्ति स्वयं का नुकसान कर लेता है.

18दुर्जन का वेतन वस्तुतः छल ही होता है,

किंतु जो धर्म का बीज रोपण करता है, उसे निश्चयतः सार्थक प्रतिफल प्राप्‍त होता है.

19वह, जो धर्म में दृढ़ रहता है, जीवित रहता है,

किंतु जो बुराई का चालचलन करता है, वह जीवित न रहेगा.

20याहवेह की दृष्टि में कुटिल हृदय घृणास्पद है,

किंतु उनके निमित्त निर्दोष व्यक्ति प्रसन्‍न है.

21यह सुनिश्चित है कि दुष्ट दंडित अवश्य किया जाएगा,

किंतु धर्मी की सन्तति सुरक्षित रहेगी.

22विवेकहीन सुंदर स्त्री वैसी ही होती है

जैसी सूअर के थूथन में सोने की नथ.

23धर्मी की आकांक्षा का परिणाम उत्तम ही होता है,

किंतु दुष्ट की आशा कोप ले आती है.

24कोई तो उदारतापूर्वक दान करते है, फिर भी अधिकाधिक धनाढ्य होता जाता है;

किंतु अन्य है जो उसे दबाकर रखता है, और फिर भी वह तंगी में ही रहता है.

25जो कोई उदारता से देता है, वह सम्पन्‍न होता जाएगा;

और वह, जो अन्यों को सांत्वना देता है, वह सांत्वना पायेगा!

26उसे, जो अनाज को दबाए रखता है, लोग शाप देते हैं,

किंतु उसे, जो अनाज जनता को बेचता जाता है, लोग आशीर्वाद देते हैं.

27जो कोई भलाई की खोज करता है, वह प्रसन्‍नता प्राप्‍त करता है,

किंतु वह, जो बुराई को ढूंढता है, वह उसी को मिल जाती है.

28धर्मी नई पत्तियों के समान पल्लवित होंगे,

किंतु उसका पतन निश्चित है, जिसने अपनी धन-संपत्ति पर आशा रखी है.

29जो कोई अपने परिवार की विपत्ति का कारण होता है, वह केवल हवा का वारिस होगा,

मूर्ख को कुशाग्रबुद्धि के व्यक्ति के अधीन ही सेवा करनी पड़ती है.

30धर्मी का प्रतिफल है जीवन वृक्ष और ज्ञानवान है वह,

जो आत्माओं का विजेता है.

31यदि पार्थिव जीवन में ही धर्मी को उसके सत्कर्मों का प्रतिफल प्राप्‍त हो जाता है,

तो दुष्टों और पापियों को क्यों नहीं!