ምሳሌ 10 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ምሳሌ 10:1-32

የሰሎሞን ምሳሌዎች

1የሰሎሞን ምሳሌዎች፤

ጠቢብ ልጅ አባቱን ደስ ያሰኛል፤

ተላላ ልጅ ግን ለእናቱ ሐዘንን ያተርፋል።

2ያላግባብ የተገኘ ሀብት አይጠቅምም፤

ጽድቅ ግን ከሞት ይታደጋል።

3እግዚአብሔር ጻድቁ እንዲራብ አያደርግም፤

የክፉዎችን ምኞት ግን ያጨናግፋል።

4ሰነፍ እጆች ሰውን ያደኸያሉ፤

ትጉህ እጆች ግን ብልጽግናን ያመጣሉ።

5ሰብሉን በበጋ የሚሰበስብ ጠቢብ ልጅ ነው፤

በመከር ጊዜ የሚተኛ ግን ውርደት ይከተለዋል።

6በረከት በጻድቃን ራስ ላይ ነው፤

መዓት ግን የክፉዎችን አፍ ይዘጋል።10፥6 ወይም የክፉዎች አፍ ግን መዓትን ይሰውራል፤ እንዲሁም 11 ይመ።

7የጻድቃን መታሰቢያቸው በረከት ነው፤

የክፉዎች ስም ግን እንደ ጠፋ ይቀራል።

8በልቡ ጠቢብ የሆነ ትእዛዝ ይቀበላል፤

ለፍላፊ ተላላ ግን ወደ ጥፋት ያመራል።

9ሐቀኛ ሰው ያለ ሥጋት ይራመዳል፤

በጠማማ ጐዳና የሚሄድ ግን ይጋለጣል።

10በተንኰለኛ ዐይን የሚጠቅስ ሐዘን ያስከትላል፤

ለፍላፊ ተላላም ወደ ጥፋት ያመራል።

11የጻድቅ አንደበት የሕይወት ምንጭ ናት፤

መዓት ግን የክፉዎችን አፍ ይዘጋል።

12ጥላቻ ጠብን ያነሣሣል፤

ፍቅር ግን ስሕተትን ሁሉ ይሸፍናል።

13ጥበብ በአስተዋይ ሰው ከንፈር ትገኛለች፤

በትር ግን ማመዛዘን ለጐደለው ሰው ጀርባ ነው።

14ጠቢባን ዕውቀት ያከማቻሉ፤

የተላላ አንደበት ግን ጥፋትን ይጋብዛል።

15የባለጠጎች ሀብት የተመሸገ ከተማቸው ነው፤

ድኽነት ግን የድኾች መጥፊያ ናት።

16የጻድቃን ደመወዝ ሕይወት ታስገኝላቸዋለች፤

የክፉዎች ትርፍ ግን ቅጣትን ታመጣባቸዋለች።

17ተግሣጽን ነቅቶ የሚጠብቅ የሕይወትን መንገድ ያሳያል፤

ዕርምትን የማይቀበል ግን ሌሎችን ወደ ስሕተት ይመራል።

18ጥላቻውን የሚሸሽግ ሐሰተኛ አንደበት ያለው ነው፤

ሐሜትን የሚዘራ ሁሉ ተላላ ነው።

19ከቃላት ብዛት ኀጢአት አይታጣም፤

አንደበቱን የሚገታ ግን ጠቢብ ነው።

20የጻድቅ አንደበት የነጠረ ብር ነው፤

የክፉ ሰው ልብ ግን ርባና የለውም።

21የጻድቃን ከንፈሮች ብዙዎችን ያንጻሉ፤

ተላሎች ግን ከማመዛዘን ጕድለት ይሞታሉ።

22የእግዚአብሔር በረከት ብልጽግናን ታመጣለች፤

መከራንም አያክልባትም።

23ተላላ ሰው በክፉ ተግባር ይደሰታል፤

አስተዋይ ሰው ግን በጥበብ ደስ ይለዋል።

24ክፉ ሰው የፈራው ይደርስበታል፤

ጻድቅ የሚመኘው ይፈጸምለታል።

25ዐውሎ ነፋስ ሲነሣ ክፉዎች ተጠራርገው ይወሰዳሉ፤

ጻድቃን ግን ለዘላለም ጸንተው ይኖራሉ።

26ሆምጣጤ ጥርስን፣ ጢስ ዐይንን እንደሚጐዳ፣

ሰነፍም ለሚልኩት እንዲሁ ነው።

27እግዚአብሔርን መፍራት ዕድሜን ያረዝማል፤

የክፉዎች ዕድሜ ግን በዐጭር ይቀጫል።

28የጻድቃን አለኝታ ደስታ ነው፤

የክፉዎች ተስፋ ግን ከንቱ ሆኖ ይቀራል።

29የእግዚአብሔር መንገድ ለጻድቃን መጠጊያ፣

ክፉ ለሚያደርጉ ግን መጥፊያቸው ነው።

30ጻድቃን ፈጽሞ አይነቀሉም፤

ክፉዎች ግን በምድር አይኖሩም።

31የጻድቃን አንደበት ጥበብን ያፈልቃል፤

ጠማማ ምላስ ግን ትቈረጣለች።

32የጻድቃን ከንፈሮች ተገቢውን ነገር ያውቃሉ፤

የክፉዎች አንደበት ግን የሚያውቀው ጠማማውን ብቻ ነው።

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 10:1-32

शलोमोन के बुद्धि सूत्र

1शलोमोन के ज्ञान सूत्र निम्न लिखित हैं:

बुद्धिमान संतान पिता के आनंद का विषय होती है,

किंतु मूर्ख संतान माता के शोक का कारण.

2बुराई द्वारा प्राप्‍त किया धन लाभ में वृद्धि नहीं करता,

धार्मिकता मृत्यु से सुरक्षित रखती है.

3याहवेह धर्मी व्यक्ति को भूखा रहने के लिए छोड़ नहीं देते,

किंतु वह दुष्ट की लालसा पर अवश्य पानी फेर देते हैं.

4निर्धनता का कारण होता है आलस्य,

किंतु परिश्रमी का प्रयास ही उसे समृद्ध बना देता है.

5बुद्धिमान है वह पुत्र, जो ग्रीष्मकाल में ही आहार संचित कर रखता है,

किंतु वह जो फसल के दौरान सोता है वह एक अपमानजनक पुत्र है.

6धर्मी आशीषें प्राप्‍त करते जाते हैं,

किंतु दुष्ट में हिंसा ही समाई रहती है.

7धर्मी का जीवन ही आशीर्वाद-स्वरूप स्मरण किया जाता है,10:7 उत्प 48:20

किंतु दुष्ट का नाम ही मिट जाता है.

8बुद्धिमान आदेशों को हृदय से स्वीकार करेगा,

किंतु बकवादी मूर्ख विनष्ट होता जाएगा.

9जिस किसी का चालचलन सच्चाई का है, वह सुरक्षित है,

किंतु वह, जो कुटिल मार्ग अपनाता है, पकड़ा जाता है.

10जो कोई आंख मारता है, वह समस्या उत्पन्‍न कर देता है,

किंतु बकवादी मूर्ख विनष्ट हो जाएगा.

11धर्मी के मुख से निकले वचन जीवन का सोता हैं,

किंतु दुष्ट अपने मुख में हिंसा छिपाए रहता है.

12घृणा कलह की जननी है,

किंतु प्रेम सभी अपराधों पर आवरण डाल देता है.

13समझदार व्यक्ति के होंठों पर ज्ञान का वास होता है,

किंतु अज्ञानी के लिए दंड ही निर्धारित है.

14बुद्धिमान ज्ञान का संचयन करते हैं,

किंतु मूर्ख की बातें विनाश आमंत्रित करती है.

15धनी व्यक्ति के लिए उसका धन एक गढ़ के समान होता है,

किंतु निर्धन की गरीबी उसे ले डूबती है.

16धर्मी का ज्ञान उसे जीवन प्रदान करता है,

किंतु दुष्ट की उपलब्धि होता है पाप.

17जो कोई सावधानीपूर्वक शिक्षा का चालचलन करता है,

वह जीवन मार्ग पर चल रहा होता है, किंतु जो ताड़ना की अवमानना करता है, अन्यों को भटका देता है.

18वह, जो घृणा को छिपाए रहता है,

झूठा होता है और वह व्यक्ति मूर्ख प्रमाणित होता है, जो निंदा करता फिरता है.

19जहां अधिक बातें होती हैं, वहां अपराध दूर नहीं रहता,

किंतु जो अपने मुख पर नियंत्रण रखता है, वह बुद्धिमान है.

20धर्मी की वाणी उत्कृष्ट चांदी तुल्य है;

दुष्ट के विचारों का कोई मूल्य नहीं होता.

21धर्मी के उद्गार अनेकों को तृप्‍त कर देते हैं,

किंतु बोध के अभाव में ही मूर्ख मृत्यु का कारण हो जाते हैं.

22याहवेह की कृपादृष्टि समृद्धि का मर्म है.

वह इस कृपादृष्टि में दुःख को नहीं मिलाता.

23जैसे अनुचित कार्य करना मूर्ख के लिए हंसी का विषय है,

वैसे ही बुद्धिमान के समक्ष विद्वत्ता आनंद का विषय है.

24जो आशंका दुष्ट के लिए भयास्पद होती है, वही उस पर घटित हो जाती है;

किंतु धर्मी की मनोकामना पूर्ण होकर रहती है.

25बवंडर के निकल जाने पर दुष्ट शेष नहीं रह जाता,

किंतु धर्मी चिरस्थायी बना रहता है.

26आलसी संदेशवाहक अपने प्रेषक पर वैसा ही प्रभाव छोड़ता है,

जैसा सिरका दांतों पर और धुआं नेत्रों पर.

27याहवेह के प्रति श्रद्धा से आयु बढ़ती जाती है,

किंतु थोड़े होते हैं दुष्ट के आयु के वर्ष.

28धर्मी की आशा में आनंद का उद्घाटन होता है,

किंतु दुर्जन की आशा निराशा में बदल जाती है.

29निर्दोष के लिए याहवेह का विधान एक सुरक्षित आश्रय है,

किंतु बुराइयों के निमित्त सर्वनाश.

30धर्मी सदैव अटल और स्थिर बने रहते हैं,

किंतु दुष्ट पृथ्वी पर निवास न कर सकेंगे.

31धर्मी अपने बोलने में ज्ञान का संचार करते हैं,

किंतु कुटिल की जीभ काट दी जाएगी.

32धर्मी में यह सहज बोध रहता है, कि उसका कौन सा उद्गार स्वीकार्य होगा,

किंतु दुष्ट के शब्द कुटिल विषय ही बोलते हैं.