ሉቃስ 11 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ሉቃስ 11:1-54

ኢየሱስ ያስተማረው ጸሎት

11፥2-4 ተጓ ምብ – ማቴ 6፥9-13

11፥9-13 ተጓ ምብ – ማቴ 7፥7-11

1አንድ ቀን ኢየሱስ በአንድ ስፍራ ይጸልይ ነበር፤ ጸሎቱንም እንደ ጨረሰ፣ ከደቀ መዛሙርቱ አንዱ፣ “ጌታ ሆይ፤ ዮሐንስ ደቀ መዛሙርቱን ጸሎት እንዳስተማራቸው አንተም መጸለይን አስተምረን” አለው።

2እርሱም እንዲህ አላቸው፤ “ስትጸልዩ እንዲህ በሉ፤

“ ‘አባታችን11፥2 አንዳንድ ቅጆች በሰማይ የምትኖር አባታችን ይላሉ። ሆይ፤

ስምህ ይቀደስ፤

መንግሥትህ ትምጣ፤11፥2 አንዳንድ ቅጆች ፈቃድህ በሰማይ እንደ ሆነች እንዲሁ በምድር ትሁን ይላሉ።

3የዕለት እንጀራችንን በየዕለቱ ስጠን፤

4በደላችንን ይቅር በለን፤

እኛም የበደሉንን11፥4 አንዳንድ ቅጆች በእኛ ላይ ኀጢአት የሠሩትን ይላሉ። ሁሉ ይቅር ብለናልና።

ወደ ፈተናም አታግባን፤ ከክፉው አድነን እንጂ።’ ”11፥4 አንዳንድ ቅጆች ከክፉው አድነን እንጂ የሚለው የላቸውም።

5ደግሞም እንዲህ አላቸው፤ “ከእናንተ አንዱ ወዳጅ ቢኖረውና በእኩለ ሌሊት ወደ እርሱ ሄዶ፣ ‘ወዳጄ ሆይ፤ ሦስት እንጀራ አበድረኝ፤ 6አንድ ባልንጀራዬ ከመንገድ መጥቶብኝ የማቀርብለት ምንም ነገር የለኝምና’ ብሎ ለመነው እንበል።

7“በቤት ውስጥ ያለውም፣ ‘አታስቸግረኝ፤ በሩ ተቈልፏል፤ ልጆቼም አብረውኝ ተኝተዋል፤ ከእንግዲህ ተነሥቼ ልሰጥህ አልችልም’ ይለዋልን? 8እላችኋለሁ፤ ወዳጁ በመሆኑ ተነሥቶ ባይሰጠው እንኳ፣ ስለ ንዝነዛው11፥8 ወይም ስለ ብዙ ልመናው ብቻ የሚፈልገውን ሁሉ ይሰጠዋል።

9“ስለዚህ እላችኋለሁ፤ ለምኑ ይሰጣችኋል፤ ፈልጉ ታገኛላችሁ፤ በር አንኳኩ ይከፈትላችኋል፤ 10ምክንያቱም የሚለምን ሁሉ ይቀበላል፤ የሚፈልግም ያገኛል፤ በር ለሚያንኳኳም ይከፈትለታል።

11“ከእናንተ መካከል አባት ሆኖ ሳለ ልጁ11፥11 አንዳንድ ቅጆች ዳቦ ቢለምነው ድንጋይ የሚሰጠው አለን? የሚል አላቸው። ዓሣ ቢለምነው እባብ የሚሰጠው ይኖራልን? 12ወይስ ዕንቍላል ቢለምነው ጊንጥ ይሰጠዋልን? 13እናንተ ክፉዎች ሆናችሁ ሳላችሁ፣ ለልጆቻችሁ መልካም ስጦታን መስጠት ካወቃችሁበት፣ የሰማዩ አባታችሁ ታዲያ ለሚለምኑት መንፈስ ቅዱስን እንዴት አብልጦ አይሰጥ!”

ጌታ ኢየሱስና ብዔልዜቡል

11፥14-1517-2224-26 ተጓ ምብ – ማቴ 12፥2224-2943-45

11፥17-22 ተጓ ምብ – ማር 3፥23-27

14አንድ ቀን ኢየሱስ ድዳ ጋኔን ያወጣ ነበር፤ ጋኔኑም ከወጣለት በኋላ ድዳው ሰው ተናገረ፤ ሕዝቡም ተገረመ። 15አንዳንዶቹ ግን፣ “በአጋንንት አለቃ፣ በብዔልዜቡል11፥15 ግሪኩ ብዔዜቡል ወይም ብዔል ዜብል ይላል፤ እንዲሁም 18፡19 ይመ፣ አጋንንትን ያወጣል” አሉ፤ 16አንዳንዶቹ ደግሞ ሊፈታተኑት ከሰማይ ምልክት እንዲያሳያቸው ከእርሱ ይፈልጉ ነበር።

17ኢየሱስ ግን ሐሳባቸውን ዐውቆ እንዲህ አላቸው፤ “እርስ በርሱ የሚከፋፈል መንግሥት ሁሉ ይጠፋል፤ የሚለያይ ቤትም ይወድቃል። 18ሰይጣንም እርስ በርሱ ከተከፋፈለ፣ መንግሥቱ እንዴት ይጸናል? አጋንንትን በብዔልዜቡል እንደማወጣ ትናገራላችሁና። 19እንግዲህ እኔ አጋንንትን የማወጣው በብዔልዜቡል ከሆነ፣ ልጆቻችሁ በማን ያወጧቸው ይሆን? ስለዚህ እነርሱ ፈራጆች ይሆኑባችኋል። 20እኔ ግን አጋንንትን የማወጣው በእግዚአብሔር ጣት ከሆነ፣ የእግዚአብሔር መንግሥት ወደ እናንተ እንደ መጣች ዕወቁ።

21“ብርቱ ሰው በሚገባ ታጥቆ ቤቱን ከጠበቀ፣ ንብረቱ በሰላም ይቀመጣል። 22ነገር ግን ይበልጥ ብርቱ የሆነ ሰው መጥቶ ካጠቃውና ካሸነፈው ታምኖበት የነበረውን ትጥቁን ያስፈታዋል፤ ምርኮውንም ወስዶ ለሌሎች ያካፍላል።

23“ከእኔ ጋር ያልሆነ ይቃወመኛል፤ ከእኔ ጋር የማይሰበስብም ይበትናል።

24“ርኩስ11፥24 ወይም ክፉ መንፈስ ከሰው ሲወጣ ዕረፍት ፍለጋ ውሃ በሌለበት ስፍራ ይንከራተታል፤ ሳያገኝም ሲቀር፣ ‘ወደ ወጣሁበት ቤቴ እመለሳለሁ’ ይላል፤ 25ሲመለስም ቤቱ ተጠራርጐና ተስተካክሎ ያገኘዋል። 26ከዚያም በኋላ ሄዶ ሌሎች ከእርሱ የከፉ ሰባት አጋንንት ይዞ ይመጣል፤ ገብተውበትም በዚያ ይኖራሉ፤ ለዚያ ሰው ከመጀመሪያው ይልቅ የኋለኛው ሁኔታ የከፋ ይሆንበታል።”

27ኢየሱስ ይህን እየተናገረ እያለ፣ ከሕዝቡ መካከል አንዲት ሴት ድምፅዋን ከፍ አድርጋ፣ “የተሸከመችህ ማሕፀንና የጠባሃቸው ጡቶች ብፁዓን ናቸው” አለችው።

28እርሱ ግን፣ “ብፁዓንስ የእግዚአብሔርን ቃል ሰምተው የሚታዘዙት ናቸው” አለ።

የዮናስ ምልክትነት

11፥29-32 ተጓ ምብ – ማቴ 12፥39-42

29ብዙ ሕዝብ እየተሰበሰበ በሄደ ጊዜ ኢየሱስ እንዲህ ይል ጀመር፤ “ይህ ትውልድ ክፉ ነው፤ ታምራዊ ምልክት ይፈልጋል፤ ነገር ግን ከዮናስ ምልክት በስተቀር ሌላ አይሰጠውም። 30ምክንያቱም ዮናስ ለነነዌ ሰዎች ምልክት እንደ ሆናቸው የሰው ልጅም ለዚህ ትውልድ ምልክት ይሆናል። 31የደቡቧ ንግሥት በፍርድ ጊዜ ከዚህ ትውልድ ጋር ተነሥታ ትፈርድባቸዋለች፤ እርሷ የሰሎሞንን ጥበብ ለመስማት ከምድር ዳርቻ መጥታለችና፤ እነሆ፤ ከሰሎሞን የሚበልጥ እዚህ አለ። 32የነነዌ ሰዎችም በፍርድ ጊዜ ከዚህ ትውልድ ጋር ተነሥተው ይፈርዱበታል፤ እነርሱ የዮናስን ስብከት ሰምተው ንስሓ ገብተዋልና፤ እነሆ፣ ከዮናስ የሚበልጥ እዚህ አለ።

የሰውነት መብራት

11፥3435 ተጓ ምብ – ማቴ 6፥2223

33“መብራት አብርቶ በስውር ቦታ ወይም ከእንቅብ በታች የሚያስቀምጥ ማንም የለም፤ ይልቁን የሚገቡ ሰዎች ብርሃኑን እንዲያዩ በመቅረዝ ላይ ያስቀምጠዋል። 34የሰውነትህ ብርሃን ዐይንህ ናት፤ ዐይንህ ጤናማ ስትሆን መላ ሰውነትህ ብሩህ ይሆናል፤ ዐይንህ ታማሚ ከሆነች ግን መላ ሰውነትህ የጨለመ ይሆናል። 35ስለዚህ በውስጥህ ያለው ብርሃን ጨለማ እንዳይሆን ተጠንቀቅ። 36እንግዲህ ሰውነትህ ሁሉ ብሩህ ከሆነና የጨለመ የሰውነት ክፍል ከሌለበት፣ የሰውነትህ ሁለንተና መብራት በወገግታው ያበራልህ ያህል ይደምቃል።”

ስድስት ዐይነት ወዮታ

37ኢየሱስ ንግግሩን እንደ ጨረሰ፣ አንድ ፈሪሳዊ ከእርሱ ጋር ምግብ እንዲበላ ጋበዘው፤ እርሱም አብሮት ገብቶ በማእድ ተቀመጠ። 38ፈሪሳዊውም ኢየሱስ ከምግብ በፊት እጁን እንዳልታጠበ ባየ ጊዜ ተደነቀ።

39ጌታም እንዲህ አለው፤ “አሁን እናንተ ፈሪሳውያን የጽዋውንና የወጭቱን ውጫዊ ክፍል ታጸዳላችሁ፤ ውስጣችሁ ግን በሥሥትና በክፋት የተሞላ ነው። 40እናንት ሞኞች፤ የውጭውን የፈጠረ የውስጡንም አልፈጠረምን? 41ነገር ግን በውስጥ ያለውን ምጽዋት11፥41 ወይም ያላችሁን አድርጋችሁ ስጡ፤ በዚህ ጊዜ ሁሉም ንጹሕ ይሆንላችኋል።

42“እናንት ፈሪሳውያን ግን ወዮላችሁ፤ ከአዝሙድና ከጤና አዳም እንዲሁም ከአትክልት ሁሉ ዐሥራት ታወጣላችሁ፤ ሆኖም ፍትሕንና እግዚአብሔርን መውደድ ቸል ትላላችሁ፤ ነገር ግን ያንን ሳትተዉ ይህኛውን ማድረግ በተገባችሁ ነበር።

43“እናንት ፈሪሳውያን ወዮላችሁ፤ በምኵራብ የክብር መቀመጫ፣ በገበያ መካከልም እጅ መነሣትን ትወድዳላችሁና።

44“ሰዎች ሳያውቁ በላዩ የሚሄዱበትን የተሰወረ መቃብር ስለምትመስሉ፣ ወዮላችሁ።”

45ከሕግ ዐዋቂዎች አንዱ መልሶ “መምህር ሆይ፤ እንዲህ ስትናገር እኮ እኛንም መስደብህ ነው” ሲል መለሰለት።

46ኢየሱስም እንዲህ አለ፤ “እናንት ሕግ ዐዋቂዎችም ደግሞ ወዮላችሁ፤ ሰዎች ሊሸከሙ የማይችሉትን ከባድ ሸክም ታሸክማላችሁ፤ እናንተ ራሳችሁ ግን በጣታችሁ እንኳ አትነኩትም።

47“አባቶቻችሁ የገደሏቸውን የነቢያትን መቃብር ስለምታበጃጁ፣ ወዮላችሁ፤ 48እንግዲህ የአባቶቻችሁን ሥራ የምታጸኑ ምስክሮች ናችሁ፤ እነርሱ ነቢያትን ገደሉ፤ እናንተም መቃብራቸውን ታበጃጃላችሁ። 49ስለዚህም የእግዚአብሔር ጥበብ እንዲህ አለች፤ ‘ነቢያትንና ሐዋርያትን እልክላቸዋለሁ፤ እነርሱ አንዳንዶቹን ይገድላሉ፤ ሌሎችንም ያሳድዳሉ።’ 50ስለዚህ ይህ ትውልድ ዓለም ከተፈጠረ ጀምሮ ስለ ፈሰሰው፣ ስለ ነቢያት ሁሉ ደም ተጠያቂ ነው፤ 51ከአቤል ደም ጀምሮ፣ በመሠዊያውና በቤተ መቅደሱ መካከል እስከ ፈሰሰው እስከ ዘካርያስ ደም ድረስ ይፈለግበታል፤ አዎን፣ እላችኋለሁ፤ ይህ ትውልድ ለዚህ ተጠያቂ ነው።

52“እናንት ሕግ ዐዋቂዎች ወዮላችሁ፤ የዕውቀትን መክፈቻ ነጥቃችሁ ወስዳችኋልና፤ እናንተ ራሳችሁ አልገባችሁበትም፤ የሚገቡትንም ከልክላችኋል።”

53ኢየሱስ ከዚያ ከወጣ በኋላ፣ ጸሐፍትና ፈሪሳውያን ክፉኛ ይቃወሙትና በጥያቄም ያዋክቡት ጀመር፤ 54ከአፉ በሚወጣውም ቃል ሊያጠምዱት ያደቡ ነበር።

Hindi Contemporary Version

लूकॉस 11:1-54

प्रभु द्वारा दिया गया प्रार्थना का उदाहरण

1एक दिन प्रभु येशु एक स्थान पर प्रार्थना कर रहे थे. जब उन्होंने प्रार्थना समाप्‍त की उनके शिष्यों में से एक ने उनसे विनती की, “प्रभु, हमको प्रार्थना करना सिखा दीजिए—ठीक जैसे योहन ने अपने शिष्यों को सिखाया है.”

2प्रभु येशु ने उनसे कहा, “जब भी तुम प्रार्थना करो, इस प्रकार किया करो:

“ ‘हमारे स्वर्गीय पिता!

आपका नाम सभी जगह सम्मानित हो.

आपका राज्य हर जगह स्थापित हो.

3हमारा रोज़ का भोजन हमें हर दिन दिया कीजिए.

4हमारे पापों को क्षमा कीजिए.

हम भी उनके पाप क्षमा करते हैं, जो हमारे विरुद्ध पाप करते हैं.

हमें परीक्षा में फंसने से बचाइए.’ ”

5प्रभु येशु ने उनसे आगे कहा, “तुममें से किसी का एक मित्र आधी रात में आकर यह विनती करे, ‘मित्र! मुझे तीन रोटियां दे दो; 6क्योंकि मेरा एक मित्र यात्रा करते हुए घर आया है और उसके भोजन के लिए मेरे पास कुछ नहीं है.’ 7तब वह अंदर ही से उत्तर दे, ‘मुझे मत सताओ! द्वार बंद हो चुका है और मेरे बालक मेरे साथ सो रहे हैं. अब मैं उठकर तुम्हें कुछ नहीं दे सकता.’ 8मैं जो कह रहा हूं उसे समझो: हालांकि वह व्यक्ति मित्र होने पर भी भले ही उसे देना न चाहे, फिर भी उस मित्र के बहुत विनती करने पर उसकी ज़रूरत के अनुसार उसे अवश्य देगा.

9“यही कारण है कि मैंने तुमसे कहा है: विनती करो, तो तुम्हें दिया जाएगा; खोजो, तो तुम पाओगे; द्वार खटखटाओ, तो वह तुम्हारे लिए खोल दिया जाएगा 10क्योंकि हर एक, जो विनती करता है, उसकी विनती पूरी की जाती है, जो खोजता है, वह प्राप्‍त करता है और वह, जो द्वार खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोल दिया जाता है.

11“तुममें कौन पिता ऐसा है, जो अपने पुत्र के मछली मांगने पर उसे सांप दे 12या अंडे की विनती पर बिच्छू? 13जब तुम दुष्ट होने पर भी अपनी संतान को उत्तम वस्तुएं प्रदान करना जानते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता उन्हें, जो उनसे विनती करते हैं, कहीं अधिक बढ़कर पवित्र आत्मा प्रदान न करेंगे, जो उत्तम है?”

प्रभु येशु पर शैतान का दूत होने का आरोप

14प्रभु येशु एक व्यक्ति में से, जो गूंगा था, एक दुष्टात्मा को निकाल रहे थे. दुष्टात्मा के निकलते ही वह, जो गूंगा था, बोलने लगा. यह देख भीड़ अचंभित रह गई. 15किंतु उनमें से कुछ ने कहा, “वह तो दुष्टात्माओं के प्रधान बेलज़बूल की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है.” 16कुछ अन्य ने प्रभु येशु को परखने के उद्देश्य से उनसे अद्भुत चिह्न की मांग की.

17उनके मन की बातें जानकर प्रभु येशु ने उनसे कहा, “कोई भी राज्य, जिसमें फूट पड़ चुकी है, नाश हो जाता है और जिस परिवार में फूट पड़ चुकी हो, उसका नाश हो जाता है. 18यदि शैतान अपने ही विरुद्ध काम करने लगे तो उसका राज्य स्थिर कैसे रह सकता है? मैं ये सब इसलिये कह रहा हूं कि तुम यह दावा कर रहे हो कि मैं दुष्टात्माओं को बेलज़बूल की सहायता से निकाला करता हूं. 19यदि मैं दुष्टात्माओं को बेलज़बूल के सहयोग से बाहर निकाला करता हूं तो फिर तुम्हारे अनुयायी उनको कैसे बाहर करती है? परिणामस्वरूप वे ही तुम पर आरोप लगाएंगे. 20किंतु यदि मैं दुष्टात्माओं को परमेश्वर के सामर्थ्य के द्वारा निकालता हूं, तब परमेश्वर का राज्य तुम्हारे मध्य आ चुका है.

21“जब कोई बलवान व्यक्ति शस्त्रों से पूरी तरह से सुसज्जित होकर अपने घर की चौकसी करता है, तो उसकी संपत्ति सुरक्षित रहती है 22किंतु जब उससे अधिक बलवान कोई व्यक्ति उस पर आक्रमण कर उसे अपने वश में कर लेता है और वे सभी शस्त्र, जिन पर वह भरोसा करता था, छीन लेता है, तो वह उसकी संपत्ति को लूटकर बांट देता है.

23“वह, जो मेरे पक्ष में नहीं है मेरे विरुद्ध है और वह, जो मेरे साथ इकट्ठा नहीं करता, वह बिखेरता है.

24“जब दुष्टात्मा किसी व्यक्ति में से बाहर आ जाती है, वह निवास स्थान की खोज में सूखे स्थानों में फिरती है, किंतु उसे निवास स्थान प्राप्‍त नहीं हो पाता. तब वह सोचती है कि मैं जिस निवास स्थान को छोड़कर आयी थी, वहीं लौट जाऊं. 25वह वहां लौटकर उसे खाली, साफ़ और सुथरा पाती है. 26तब वह जाकर अपने से अधिक बुरी सात आत्मा और ले आती है और वे सब उस व्यक्ति में प्रवेश कर उसमें अपना घर बना लेती हैं. तब उस व्यक्ति की स्थिति पहले से खराब हो जाती है.”

27जब प्रभु येशु यह शिक्षा दे रहे थे, भीड़ में से एक नारी पुकार उठी, “धन्य है वह माता, जिसने आपको जन्म दिया और आपका पालन पोषण किया.”

28किंतु प्रभु येशु ने कहा, “परंतु धन्य वे हैं, जो परमेश्वर के वचन को सुनकर उसका पालन करते हैं.”

अविश्वास के प्रति चेतावनी

29जब और अधिक लोग इकट्ठा होने लगे, प्रभु येशु ने कहा, “यह पीढ़ी अत्यंत बुरी पीढ़ी है. यह चमत्कार चिह्नों की मांग करती है किंतु भविष्यवक्ता योनाह के चिह्न के अतिरिक्त इसे और कोई चिह्न नहीं दिया जाएगा. 30जिस प्रकार परमेश्वर की ओर से भविष्यवक्ता योनाह नीनवे नगरवासियों के लिए एक चिह्न थे, उसी प्रकार मनुष्य का पुत्र इस पीढ़ी के लिए एक चिह्न है. 31न्याय-दिवस पर दक्षिण की रानी इस पीढ़ी के साथ खड़ी होगी और इसे धिक्कारेगी क्योंकि वह पृथ्वी के छोर से यात्रा कर राजा शलोमोन के ज्ञान को सुनने आई थी; किंतु यहां तो वह है, जो राजा शलोमोन से भी बढ़कर है. 32न्याय-दिवस पर नीनवे नगर की जनता इस पीढ़ी के साथ उपस्थित होगी और इसे धिक्कारेगी क्योंकि उसने तो भविष्यवक्ता योनाह के प्रचार के परिणामस्वरूप पश्चाताप कर लिया, किंतु यहां तो वह है, जो भविष्यवक्ता योनाह से भी बढ़कर है.

भीतरी ज्योति के विषय में शिक्षा

33“दीप जलाकर कोई भी उसे न तो ऐसे स्थान पर रखता है, जहां वह छुप जाए और न ही किसी बर्तन के नीचे; परंतु वह उसे उसके नियत स्थान पर रखता है, कि जो प्रवेश करते हैं, देख सकें. 34तुम्हारे शरीर का दीपक तुम्हारी आंख हैं. यदि तुम्हारी आंख निरोगी हैं, तुम्हारा सारा शरीर उजियाला होगा किंतु यदि तुम्हारी आंखें रोगी हैं, तो तुम्हारा शरीर भी अंधियारा होगा. 35ध्यान रहे कि तुम्हारे भीतर छिपा हुआ उजाला अंधकार न हो. 36इसलिये यदि तुम्हारा सारा शरीर उजियाला है, उसमें ज़रा सा भी अंधकार नहीं है, तब वह सब जगह उजाला देगा—जैसे एक दीप अपने उजाले से तुम्हें उजियाला देता है.”

यहूदी अगुओं के पाखंड की उल्लाहना

37जब प्रभु येशु अपना प्रवचन समाप्‍त कर चुके, एक फ़रीसी ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया. प्रभु येशु उसके साथ गए तथा भोजन के लिए बैठ गए. 38उस फ़रीसी को यह देख आश्चर्य हुआ कि भोजन के पूर्व प्रभु येशु ने हाथ नहीं धोए.

39प्रभु येशु ने इस पर उससे कहा, “तुम फ़रीसी प्याले और थाली को बाहर से तो साफ़ करते हो किंतु तुम्हारे हृदय लोभ और दुष्टता से भरे हुए हैं. 40निर्बुद्धियों! जिसने बाहरी भाग बनाया है, क्या उसी ने अंदरूनी भाग नहीं बनाया? 41तुममें जो अंदर बसा हुआ है, उसे दान में दे दो, तब तुम और तुम्हारे संस्कार शुद्ध हो पाएंगे.

42“धिक्कार है तुम पर, फ़रीसियो! तुम परमेश्वर को अपने पुदीना, ब्राम्ही तथा अन्य हर एक साग-पात का दसवां अंश तो देते हो किंतु मनुष्यों के प्रति न्याय और परमेश्वर के प्रति प्रेम की उपेक्षा करते हो. ये ही वे चीज़ें हैं, जिनको पूरा करना आवश्यक है—अन्यों की उपेक्षा किए बिना.

43“धिक्कार है तुम पर, फ़रीसियो! तुम्हें सभागृहों में प्रधान आसन तथा नगर चौक में लोगों द्वारा सम्मान भरा नमस्कार पसंद है.

44“धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम उन छिपी हुई कब्रों के समान हो जिन पर लोग अनजाने ही चलते फिरते हैं.”

45एक वकील ने प्रभु येशु से कहा, “गुरुवर! ऐसा कहकर आप हमारा भी अपमान कर रहे हैं.”

46प्रभु येशु ने इसके उत्तर में कहा, “धिक्कार है तुम पर भी, वकीलों! क्योंकि तुम लोगों पर नियमों का ऐसा बोझ लाद देते हो, जिसको उठाना कठिन होता है, जबकि तुम स्वयं उनकी सहायता के लिए अपनी उंगली से छूते तक नहीं.

47“धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम भविष्यद्वक्ताओं के लिए स्मारक बनाते हो, जबकि तुम्हारे अपने पूर्वजों ने ही उन भविष्यद्वक्ताओं की हत्या की थी. 48इस प्रकार तुम अपने पूर्वजों के कुकर्मों के गवाह हो और इसका पूरी तरह समर्थन करते हो—क्योंकि ये ही थे, जिन्होंने भविष्यद्वक्ताओं की हत्या की थी और अब तुम उन्हीं के स्मारक बनाते हो. 49इसलिये परमेश्वर की बुद्धि का भी यह कहना है: ‘मैं उनके पास भविष्यवक्ता और प्रेरित भेजूंगा. वे उनमें से कुछ की हत्या कर देंगे तथा कुछ को उत्पीड़ित करेंगे 50कि सृष्टि की स्थापना से लेकर आज तक सारे भविष्यद्वक्ताओं के लहू बहने का हिसाब इसी पीढ़ी से लिया जाए; 51हाबिल से लेकर ज़करयाह तक, जिनकी हत्या वेदी तथा मंदिर के मध्य की गई थी. हां, मेरा विश्वास करो: इसका हिसाब इसी पीढ़ी से लिया जाएगा.’

52“धिक्कार है तुम पर, वकीलों! तुमने ज्ञान की कुंजी तो ले ली हैं, किंतु तुमने ही इसमें प्रवेश नहीं किया, और जो इसमें प्रवेश कर रहे थे, उनका भी मार्ग बंद कर दिया है.”

53प्रभु येशु के वहां से निकलने पर शास्त्री और फ़रीसी, जो उनके कट्टर विरोधी हो गए थे, उनसे अनेक विषयों पर कठिन प्रश्न करने लगे. 54वे इस घात में थे कि वे प्रभु येशु को उनके ही किसी कथन द्वारा फंसा लें.