ዘፍጥረት 1 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ዘፍጥረት 1:1-31

የፍጥረት አጀማመር

1በመጀመሪያ እግዚአብሔር (ኤሎሂም) ሰማያትንና ምድርን ፈጠረ። 2ምድርም ቅርጽ የለሽና ባዶ ነበረች።1፥2 ወይም ሆነች የምድርን ጥልቅ ስፍራ ሁሉ ጨለማ ውጦት ነበር። የእግዚአብሔርም (ኤሎሂም) መንፈስ በውሆች ላይ ይረብብ ነበር።

3ከዚያም እግዚአብሔር (ኤሎሂም) “ብርሃን ይሁን” አለ፤ ብርሃንም ሆነ። 4እግዚአብሔርም (ኤሎሂም) ብርሃኑ መልካም እንደ ሆነ አየ፤ ብርሃኑን ከጨለማ ለየ። 5እግዚአብሔርም (ኤሎሂም) ብርሃኑን “ቀን”፣ ጨለማውን “ሌሊት” ብሎ ጠራው። መሸ፤ ነጋም፤ የመጀመሪያ ቀን።

6እግዚአብሔር (ኤሎሂም)፣ “ውሃን ከውሃ የሚለይ ጠፈር በውሆች መካከል ይሁን” አለ። 7ስለዚህ እግዚአብሔር (ኤሎሂም) ጠፈርን አድርጎ ከጠፈሩ በላይና ከጠፈሩ በታች ያለውን ውሃ ለየ፤ እንዳለውም ሆነ። 8እግዚአብሔር (ኤሎሂም) ጠፈርን “ሰማይ” ብሎ ጠራው። መሸ፤ ነጋም፤ ሁለተኛ ቀን።

9ከዚያም እግዚአብሔር (ኤሎሂም)፣ “ከሰማይ በታች ያለው ውሃ በአንድ ስፍራ ይከማች፤ ደረቁ ምድር ይገለጥ” አለ፤ እንዳለውም ሆነ። 10እግዚአብሔር (ኤሎሂም) ደረቁን ምድር፣ “የብስ”፣ በአንድነት የተሰበሰበውን ውሃ፣ “ባሕር” ብሎ ጠራው። እግዚአብሔር (ኤሎሂም) ይህ መልካም እንደ ሆነ አየ።

11እግዚአብሔር (ኤሎሂም)፣ “ምድር ዕፀዋትንም፣ እንደየወገናቸው ዘር የሚሰጡ ተክሎችንና በምድር ላይ ዘር ያዘሉ ፍሬ የሚያፈሩ ዛፎችን እንደየወገናቸው ታብቅል” አለ፤ እንዳለውም ሆነ። 12ምድር ዕፀዋትን፣ እንደየወገናቸው ዘር የሚሰጡ ተክሎችንና በውስጣቸው ዘር ያለባቸው ፍሬ የሚያፈሩትን ዛፎች በየወገኑ አበቀለች። እግዚአብሔርም (ኤሎሂም) ይህ መልካም እንደ ሆነ አየ። 13መሸ፤ ነጋም፤ ሦስተኛ ቀን።

14ከዚያም እግዚአብሔር (ኤሎሂም)፣ “ቀኑን ከሌሊት እንዲለዩ፣ የዓመት ወቅቶች፣ ቀናትና ዓመታት የሚጀምሩበትንም እንዲያመለክቱ፣ 15ለምድር ብርሃን የሚሰጡ ልዩ ልዩ ብርሃናት በሰማይ ይሁኑ” አለ፤ እንዳለውም ሆነ። 16እግዚአብሔር (ኤሎሂም)፣ ለምድር ብርሃን ይሰጡ ዘንድ ሁለት ታላላቅ ብርሃናት አደረገ፤ ታላቁ ብርሃን በቀን እንዲሠለጥን፣ ታናሹ ብርሃን በሌሊት እንዲሠለጥን አደረገ። እንዲሁም ከዋክብትን አደረገ። 17ለምድር ብርሃን እንዲሰጡ እነዚህን በሰማይ ጠፈር አኖራቸው። 18ይኸውም በቀንና በሌሊት እንዲሠለጥኑ፣ ብርሃንን ከጨለማ እንዲለዩ ነው። እግዚአብሔርም (ኤሎሂም) ይህ መልካም እንደ ሆነ አየ። 19መሸ፤ ነጋም፣ አራተኛ ቀን።

20እግዚአብሔር (ኤሎሂም)፣ “ውሆች ሕይወት ባላቸው በሕያዋን ፍጡራን ይሞሉ፤ ወፎች ከምድር በላይ በሰማይ ጠፈር ይብረሩ” አለ። 21በዚህ መሠረት፣ እግዚአብሔር (ኤሎሂም) በባሕር ውስጥ የሚኖሩ ታላላቅ ፍጡራንን፣ በውሃ ውስጥ የሚርመሰመሱ ሕይወት ያላቸውን ነገሮች ሁሉ እንደየወገናቸው እንዲሁም ክንፍ ያላቸውን ወፎች ሁሉ እንደየወገናቸው ፈጠረ፤ እግዚአብሔርም (ኤሎሂም) ይህ መልካም እንደ ሆነ አየ። 22እግዚአብሔርም (ኤሎሂም)፣ “ብዙ ተባዙ፤ የባሕርንም ውሃ ሙሏት፤ ወፎችም በምድር ላይ ይብዙ” ብሎ ባረካቸው። 23መሸ፤ ነጋም፤ አምስተኛ ቀን።

24እግዚአብሔር (ኤሎሂም)፣ “ምድር ሕያዋን ፍጡራንን እንደየወገናቸው፣ ከብቶችን፣ በምድር ላይ የሚሳቡ ፍጡራንንና የዱር እንስሳትን እያንዳንዱን እንደ ወገኑ ታስገኝ” አለ፤ እንዳለውም ሆነ። 25እግዚአብሔር (ኤሎሂም) የዱር እንስሳትን እንደየወገናቸው፣ ከብቶችን እንደየወገናቸው፣ እንዲሁም በምድር ላይ የሚሳቡ ፍጡራንን እንደየወገናቸው አደረገ። እግዚአብሔርም (ኤሎሂም) ይህ መልካም እንደ ሆነ አየ።

26እግዚአብሔር (ኤሎሂም)፣ “ሰውን በመልካችን፣ በአምሳላችን እንሥራ፤ በባሕር ዓሦች፣ በሰማይ ወፎች፣ በከብቶች፣ በምድር1፥26 ዕብራይስጡም እንደዚሁ ሲሆን ሱርስቱ ግን የዱር እንስሳት ሁሉ ይለዋል። ሁሉ ላይ፣ እንዲሁም በምድር በሚሳቡ ፍጡራን ሁሉ ላይ ሥልጣን ይኑራቸው” አለ።

27ስለዚህ እግዚአብሔር (ኤሎሂም) ሰውን በራሱ መልክ ፈጠረው፤

በእግዚአብሔር (ኤሎሂም) መልክ ፈጠረው፤

ወንድና ሴት አድርጎ ፈጠራቸው።

28እግዚአብሔርም (ኤሎሂም)፣ “ብዙ ተባዙ፤ ምድርን ሙሏት፤ ግዟትም፤ የባሕርን ዓሦች፣ የሰማይን ወፎች፣ እንዲሁም በምድር ላይ የሚንቀሳቀሱትን ሕያዋን ፍጡራንን ሁሉ ግዟቸው” ብሎ ባረካቸው።

29እግዚአብሔርም (ኤሎሂም) እንዲህ አለ፤ “በምድር ላይ ያሉትን ዘር የሚሰጡ ተክሎችን ሁሉ፣ በፍሬያቸው ውስጥ ዘር ያለባቸውን ዛፎች ሁሉ ምግብ ይሆኑላችሁ ዘንድ ሰጥቻችኋለሁ። 30እንዲሁም ለምድር አራዊት ሁሉ፣ ለሰማይ ወፎች ሁሉ፣ በምድር ላይ ለሚንቀሳቀሱ ሕያዋን ፍጡራን ሁሉ ማንኛውም ለምለም ተክል ምግብ እንዲሆናቸው ሰጥቻለሁ” እንዳለውም ሆነ።

31እግዚአብሔርም (ኤሎሂም) ያደረገውን ሁሉ አየ፤ እነሆም፣ እጅግ መልካም ነበረ። መሸ፤ ነጋም፤ ስድስተኛ ቀን።

Hindi Contemporary Version

उत्पत्ति 1:1-31

सृष्टि

1आदि में परमेश्वर ने आकाश एवं पृथ्वी को रचा. 2पृथ्वी बिना आकार के तथा खाली थी, और पानी के ऊपर अंधकार था तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मंडरा रहा था.

3उसके बाद परमेश्वर ने कहा, “प्रकाश हो जाए,” और प्रकाश हो गया. 4परमेश्वर ने प्रकाश को देखा कि अच्छा है. परमेश्वर ने प्रकाश को अंधकार से अलग किया. 5परमेश्वर ने प्रकाश को “दिन” तथा अंधकार को “रात” कहा और शाम हुई, फिर सुबह हुई—इस प्रकार पहला दिन हो गया.

6फिर परमेश्वर ने कहा, “जल के बीच ऐसा विभाजन हो कि जल दो भागों में हो जाए.” 7इस प्रकार परमेश्वर ने नीचे के जल और ऊपर के जल को अलग किया. यह वैसा ही हो गया. 8परमेश्वर ने इस अंतर को “आकाश” नाम दिया. और शाम हुई, फिर सुबह हुई—इस प्रकार दूसरा दिन हो गया.

9फिर परमेश्वर ने कहा, “आकाश के नीचे का पानी एक जगह इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे” और वैसा ही हो गया. 10परमेश्वर ने सूखी भूमि को “धरती” तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको “सागर” कहा और परमेश्वर ने देखा कि वह अच्छा है.

11फिर परमेश्वर ने कहा, “पृथ्वी से हरी घास तथा पेड़ उगने लगें: और पृथ्वी पर फलदाई वृक्षों में फल लगने लगें.” और वैसा हो गया. 12पृथ्वी हरी-हरी घास, बीजयुक्त पौधे, जिनमें अपनी-अपनी जाति का बीज होता है तथा फलदाई वृक्ष, जिनके फलों में अपनी-अपनी जाति के बीज होते हैं, उगने लगे. परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है. 13फिर शाम हुई, फिर सुबह हुई—इस प्रकार तीसरा दिन हो गया.

14फिर परमेश्वर ने कहा, “दिन को रात से अलग करने के लिए आकाश में ज्योतियां हों, और ये चिन्हों, समयों, दिनों एवं वर्षों के लिए होगा. 15और आकाश में ज्योतियां हों, जिससे पृथ्वी को प्रकाश मिले,” और ऐसा ही हो गया. 16परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियां बनाई—बड़ी ज्योति को दिन में तथा छोटी ज्योति को रात में राज करने हेतु बनाया. और परमेश्वर ने तारे भी बनाये. 17इन सभी को परमेश्वर ने आकाश में स्थिर किया कि ये पृथ्वी को रोशनी देते रहें, 18ताकि दिन और रात अपना काम पूरा कर सकें और रोशनी अंधकार से अलग हो. और परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है. 19और शाम हुई, फिर सुबह हुई—इस प्रकार चौथा दिन हो गया.

20फिर परमेश्वर ने कहा, “पानी में पानी के जंतु और आकाश में उड़नेवाले पक्षी भर जायें.” 21परमेश्वर ने बड़े-बड़े समुद्री-जीवों तथा सब जातियों के जंतुओं को भी बनाया, और समुद्र को समुद्री-जीवों से भर दिया तथा सब जाति के पक्षियों की भी सृष्टि की और परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है. 22इन्हें परमेश्वर ने यह कहकर आशीष दी, “समुद्र में सभी जंतु, तथा पृथ्वी में पक्षी भर जायें.” 23तब शाम हुई, फिर सुबह हुई—पांचवां दिन हो गया.

24फिर परमेश्वर ने कहा, “पृथ्वी से प्रत्येक जाति के जीवित प्राणी उत्पन्‍न हों: पालतू पशु, रेंगनेवाले जंतु तथा हर एक जाति के वन पशु उत्पन्‍न हों.” 25परमेश्वर ने हर एक जाति के वन-पशुओं को, हर एक जाति के पालतू पशुओं को तथा भूमि पर रेंगनेवाले हर एक जाति के जीवों को बनाया. और परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है.

26फिर परमेश्वर ने कहा, “हम अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में मनुष्य की रचना करें कि वे सागर की मछलियों, आकाश के पक्षियों, पालतू पशुओं, भूमि पर रेंगनेवाले हर एक जीव तथा सारी पृथ्वी पर राज करें.”

27इसलिये परमेश्वर ने अपने स्वरूप में मनुष्य को बनाया,

परमेश्वर के ही स्वरूप में परमेश्वर ने उन्हें बनाया;

नर और नारी करके उसने उन्हें बनाया.

28परमेश्वर ने उन्हें यह आशीष दी, “फूलो फलो और संख्या में बढ़ो और पृथ्वी में भर जाओ और सब पर अधिकार कर लो. सागर की मछलियों, आकाश के पक्षियों व पृथ्वी के सब रेंगनेवाले जीव-जन्तुओं पर तुम्हारा अधिकार हो.”

29तब परमेश्वर ने उनसे कहा, “मैंने तुम्हारे खाने के लिए बीज वाले पौधे और बीज वाले फल के पेड़ आदि दिये हैं जो तुम्हारे भोजन के लिये होंगे. 30और पृथ्वी के प्रत्येक पशुओं, आकाश के सब पक्षियों और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जीव-जन्तुओं को—प्रत्येक प्राणी को जिसमें जीवन का श्वास है—मैं प्रत्येक हरे पौधे भोजन के लिये देता हूं.” और वैसा ही हो गया.

31परमेश्वर ने अपनी बनाई हर चीज़ को देखा, और वह बहुत ही अच्छी थी. और शाम हुई, फिर सुबह हुई—इस प्रकार छठवां दिन हो गया.