ヤコブの手紙 2 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

ヤコブの手紙 2:1-26

2

えこひいきはいけない

1愛する皆さん。人をえこひいきし、相手が金持ちか貧しいかによって態度を変えていながら、どうして臆面もなく、「私は主イエス・キリストを信じています」などと言えるでしょう。 2たとえば教会に、金の指輪をはめたりっぱな身なりの金持ちと、みすぼらしい身なりの貧しい人が入って来たとします。 3その時、金持ちには気を遣い、「こちらの良い席へどうぞ」と言って案内し、貧しい人には、「そこで立っているか、床にでも座っていなさい」と言ったとしたら、どうでしょう。 4そのような態度は、クリスチャンとしての信仰を根本から疑わせるもので、悪い考えで人を差別し、さばいている証拠です。

5皆さん、よく聞いてください。神は貧しい人を選んで、豊かな信仰を持つ者としてくださいました。神の国は、そういう人のものです。神の国は、神を愛する者に約束されたものだからです。 6それなのに、あなたがたは貧しい人を軽蔑したのです。あなたがたをひどい目に会わせ、裁判所に訴えるのは、裕福な人たちではありませんか。 7また、あなたがたが仕えるイエス・キリストの尊い御名をあざ笑うのも、彼らではありませんか。 8あなたがたがほんとうに、「あなたの隣人をあなた自身のように愛しなさい」レビ19・18という最高の律法を守っているならりっぱなことです。 9しかし、もし人をえこひいきしているなら、あなたがたは罪を犯していることになります。 10律法全体を注意深く守っていても、一点ででもつまずけば、その人はすべてを破った者となるのです。 11なぜなら、「他人の妻と通じてはならない」出エジプト20・14と言われた神は、「殺してはならない」出エジプト20・13とも求められるのです。ですから、性的な罪を犯さなくても、だれかを殺せば律法の違反者になります。そして、罪ある者として神の前に立たせられます。

12あなたがたは、キリストの命令を守る者にふさわしく語り、行動しなさい。 13思いやりのない人には、思いやりのないさばきが下ります。しかし、あわれみ深い人には、神のあわれみがあるのです。

本物の信仰は行いを伴う

14愛する皆さん。自分には信仰があると言っても、それを行動で表さなかったら、どうしてその信仰を実証できるでしょう。そのような信仰が、人を救うことができるでしょうか。 15あなたがたの仲間に、着る物もなく、その日の食べ物にも事欠いている人がいて、 16その人に、「それはお困りですね。でも神様が祝福してくださいますよ。暖かくして、お腹いっぱい食べてください」と言うだけで、必要なものを何もあげないなら、何の役に立つでしょう。 17このように、信仰に行いが伴わなければ、その信仰は死んだも同然です。

18さらに、こう言う人もいるかもしれません。「行いのないあなたの信仰の正しさを見せてください。私は、私の行いによって、自分の信仰を見せましょう。」 19あなたは、神はただひとりだと信じています。それはりっぱなことです。しかし、悪魔もそう信じて、神を恐れているのです。

20ああ、あなたは、なんと愚かであわれな人でしょう。みことばを実行しなければ、信じることなどむなしいことを、いつになったら悟るのですか。行いを伴って初めて本物と言えるのです。 21先祖アブラハムでさえ、その行いによって神の前に正しい者と認められたではありませんか。彼は、息子イサクを供え物として祭壇にささげよと神に命令された時、いさぎよく従いました。 22アブラハムは心から神を信じていたので、どんなおことばにも喜んで従ったのです。こうしてアブラハムの信仰は、実際の行動によって完全なものと認められました。 23ですから、「アブラハムは神を信じた。それで神の目に正しい者と認められた」創世15・6という聖書のことばどおり、彼は、「神の友」と呼ばれるまでになったのです。 24人は信仰だけでなく、行いによって神に正しいと認められることがわかるでしょう。 25売春婦ラハブも同様です。彼女はイスラエルの使者たちをかくまい、別の道から安全に逃がしてやりましたヨシュア2章)。この行為によって、彼女は神に認められたのです。 26たましいのない体が死んだものであるように、行いのない信仰は死んだも同然です。

Hindi Contemporary Version

याकोब 2:1-26

पक्षपात मान्य नहीं

1प्रिय भाई बहनो, तुम हमारे महिमामय प्रभु येशु मसीह के शिष्य हो इसलिये तुममें पक्षपात का भाव न हो. 2तुम्हारी सभा में यदि कोई व्यक्ति सोने के छल्ले तथा ऊंचे स्तर के कपड़े पहने हुए प्रवेश करे और वहीं एक निर्धन व्यक्ति भी मैले कपड़ों में आए, 3तुम ऊंचे स्तर के वस्त्र धारण किए हुए व्यक्ति का तो विशेष आदर करते हुए उससे कहो, “आप इस आसन पर विराजिए” तथा उस निर्धन से कहो, “तू जाकर वहां खड़ा रह” या “यहां मेरे पैरों के पास नीचे बैठ जा,” 4क्या तुमने यहां भेद-भाव प्रकट नहीं किया? क्या तुम बुरे विचार से न्याय करनेवाले न हुए?

5सुनो! मेरे प्रिय भाई बहनो, क्या परमेश्वर ने संसार के निर्धनों को विश्वास में सम्पन्‍न होने तथा उस राज्य के वारिस होने के लिए नहीं चुन लिया, जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने उनसे की है, जो उनसे प्रेम करते हैं? 6किंतु तुमने उस निर्धन व्यक्ति का अपमान किया है. क्या धनी ही वे नहीं, जो तुम्हारा शोषण कर रहे हैं? क्या ये ही वे नहीं, जो तुम्हें न्यायालय में घसीट ले जाते हैं? 7क्या ये ही उस सम्मान योग्य नाम की निंदा नहीं कर रहे, जो नाम तुम्हारी पहचान है?

8यदि तुम पवित्र शास्त्र के अनुसार इस राजसी व्यवस्था को पूरा कर रहे हो, “अपने पड़ोसी से तुम इस प्रकार प्रेम करो, जिस प्रकार तुम स्वयं से करते हो,” तो तुम उचित कर रहे हो.2:8 लेवी 19:18 9किंतु यदि तुम्हारा व्यवहार भेद-भाव से भरा है, तुम पाप कर रहे हो और व्यवस्था द्वारा दोषी ठहरते हो. 10कारण यह है कि यदि कोई पूरी व्यवस्था का पालन करे किंतु एक ही सूत्र में चूक जाए तो वह पूरी व्यवस्था का दोषी बन गया है 11क्योंकि जिन्होंने यह आज्ञा दी, “व्यभिचार मत करो,” उन्हीं ने यह आज्ञा भी दी है, “हत्या मत करो.” यदि तुम व्यभिचार नहीं करते किंतु किसी की हत्या कर देते हो, तो तुम व्यवस्था के दोषी हो गए.2:11 निर्ग 20:14; व्यव 5:18

12इसलिये तुम्हारी कथनी और करनी उनके समान हो, जिनका न्याय स्वतंत्रता की व्यवस्था के अनुसार किया जाएगा, 13जिसमें दयाभाव नहीं, उसका न्याय भी दयारहित ही होगा. दया न्याय पर जय पाती है.

विश्वास तथा अच्छे काम

14प्रिय भाई बहनो, क्या लाभ है यदि कोई यह दावा करे कि उसे विश्वास है किंतु उसका स्वभाव इसके अनुसार नहीं? क्या ऐसा विश्वास उसे उद्धार प्रदान करेगा? 15यदि किसी के पास पर्याप्‍त वस्त्र न हों, उसे दैनिक भोजन की भी ज़रूरत हो 16और तुममें से कोई उससे यह कहे, “कुशलतापूर्वक जाओ, ठंड से बचना और खा-पीकर संतुष्ट रहना!” जब तुम उसे उसकी ज़रूरत के अनुसार कुछ भी नहीं दे रहे तो यह कहकर तुमने उसका कौन सा भला कर दिया? 17इसी प्रकार यदि वह विश्वास, जिसकी पुष्टि कामों के द्वारा नहीं होती, मरा हुआ है.

18कदाचित कोई यह कहे, “चलो, विश्वास तुम्हारा और काम मेरा.”

तुम अपना विश्वास बिना काम के प्रदर्शित करो, और मैं अपना विश्वास अपने काम के द्वारा. 19यदि तुम्हारा यह विश्वास है कि परमेश्वर एक हैं, अति उत्तम! दुष्टात्माएं भी यही विश्वास करती है और भयभीत हो कांपती हैं.

20अरे निपट अज्ञानी! क्या अब यह भी साबित करना होगा कि काम बिना विश्वास व्यर्थ है? 21क्या हमारे पूर्वज अब्राहाम को, जब वह वेदी पर यित्सहाक की बलि भेंट करने को थे, उनके काम के आधार पर धर्मी घोषित नहीं किया गया? 22तुम्हीं देख लो कि उनके काम के साथ उनका विश्वास भी सक्रिय था. इसलिये उनके काम के फलस्वरूप उनका विश्वास सबसे उत्तम ठहराया गया था 23और पवित्र शास्त्र का यह लेख पूरा हो गया, “अब्राहाम ने परमेश्वर में विश्वास किया और उनका यह काम उनकी धार्मिकता मानी गई,”2:23 उत्प 15:6 और वह परमेश्वर के मित्र कहलाए. 24तुम्हीं देख लो कि व्यक्ति को उसके काम के द्वारा धर्मी माना जाता है, मात्र विश्वास के आधार पर नहीं.

25इसी प्रकार क्या राहाब वेश्या को भी धर्मी न माना गया, जब उसने उन गुप्‍तचरों को अपने घर में शरण दी और उन्हें एक भिन्‍न मार्ग से वापस भेजा? 26ठीक जैसे आत्मा के बिना शरीर मरा हुआ है, वैसे ही काम बिना विश्वास भी मरा हुआ है.