2 शमुएल 18 – HCV & CCBT

Hindi Contemporary Version

2 शमुएल 18:1-33

1दावीद ने अपने साथियों की गिनती की, और इसमें उन्होंने हज़ारों और सैकड़ों के ऊपर प्रधान बना दिए. 2तब उन्होंने सेना को तीन भागों में बांटकर एक तिहाई भाग योआब के नेतृत्व में, दूसरी तिहाई भाग ज़ेरुइयाह के पुत्र और योआब के भाई अबीशाई के नेतृत्व में और तीसरी तिहाई भाग गाथी इत्तई के नेतृत्व में भेज दिया. राजा ने सेना के सामने यह घोषित किया, “मैं स्वयं तुम्हारे साथ चलूंगा.”

3मगर सैनिकों ने विरोध किया, “नहीं, आपका हमारे साथ जाना सही नहीं है. यदि हमें भागना ही पड़ जाए, तो उन्हें तो हमारी कोई परवाह नहीं है. यदि हम आधे मार दिये जाए तो भी अबशालोम के सैनिक परवाह नहीं करेंगे. मगर आपका महत्व हम जैसे दस हज़ार के बराबर है. तब इस स्थिति में ठीक यही है कि आप नगर में रहते हुए ही हमारा समर्थन करें.”

4यह सुन राजा ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं वही करूंगा जो तुम्हारी दृष्टि में सही है.”

तब राजा नगर फाटक के पास खड़े हो गए और सारी सेना सौ-सौ और हज़ार के समान समूहों में उनके पास से निकलते चले गए. 5राजा ने योआब, अबीशाई और इत्तई को आदेश दिया, “मेरे हित का ध्यान रखते हुए इस युवा अबशालोम के साथ दया दिखाना.” राजा द्वारा अबशालोम के विषय में सारे प्रधानों को दिए गए इस आदेश को सारी सेना ने भी सुना.

6तब यह सेना इस्राएल से युद्ध करने मैदान में जा पहुंची, और यह युद्ध एफ्राईम के वन में छिड़ गया. 7दावीद के सैनिकों ने इस्राएल की सेना को हरा दिया. उस दिन की मार बहुत ही भयानक थी जिसमें 20,000 सैनिक मारे गये. 8यह युद्ध पूरे देश में फैल गया था. तलवार की अपेक्षा वन के घनत्व ने ही अधिकतर सैनिकों के प्राण ले लिए.

9संयोगवश, अबशालोम की भेंट दावीद के सैनिकों से हो गई. उस समय अबशालोम अपने खच्चर पर चढ़ा हुआ था. खच्चर एक विशालकाय बांज वृक्ष के नीचे से भागने लगा. परिणामस्वरूप, अबशालोम का सिर बांज वृक्ष की डालियों में मजबूती से जा फंसा. उसका खच्चर तो आगे बढ़ गया मगर वह स्वयं भूमि और आकाश के बीच लटका रह गया.

10किसी ने अबशालोम को इस स्थिति में देख लिया और जाकर योआब को इसकी सूचना दे दी, “सुनिए, मैंने अबशालोम को बांज वृक्ष से लटके हुए देखा है.”

11योआब ने उस व्यक्ति से कहा, “अच्छा! तुमने उसे सचमुच देखा है? तब तुमने उसे मारकर भूमि पर क्यों न गिरा दिया? इसके लिए मैं तुम्हें खुशी से दस चांदी के सिक्‍के और योद्धा का एक कमरबंध भी दे देता.”

12मगर उस व्यक्ति ने योआब को उत्तर दिया, “यदि मेरे हाथ पर हज़ार चांदी के सिक्‍के भी रख दिए जाते, मेरा हाथ राजकुमार पर नहीं उठ सकता था; क्योंकि स्वयं हमने राजा को आपको, अबीशाई को और इत्तई को यह आदेश देते हुए सुन रखा है, ‘मेरे हित का ध्यान रखते हुए उस युवा अबशालोम को सुरक्षित रखना.’ 13इसके अलावा यदि मैंने उसके प्राण लेकर राजा के प्रति विश्वासघात किया भी होता, तो आप तो मुझसे स्वयं को पूरी तरह अलग ही कर लेते, जबकि राजा से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता.”

14इस पर योआब ने कहा, “व्यर्थ है तुम्हारे साथ समय नष्ट करना.” उन्होंने तीन भाले लिए और बांज वृक्ष में लटके हुए जीवित अबशालोम के हृदय में भोंक दिए. 15उसके बाद दस सैनिकों ने, जो योआब के हथियार उठानेवाले थे, अबशालोम को घेरकर उस पर वार कर उसे घात कर दिया.

16यह होने के बाद योआब ने युद्ध समाप्‍ति की तुरही फूंकी, और सैनिक इस्राएल का पीछा करना छोड़ लौट आए, युद्ध समापन योआब का आदेश था. 17उन्होंने अबशालोम के शव को वन में एक गहरे गड्ढे में डालकर उसके ऊपर पत्थरों का बहुत विशाल ढेर लगा दिया. सभी इस्राएली सैनिक भाग गये, हर एक अपने-अपने तंबू में.

18जब अबशालोम जीवित ही था, उसने राजा की घाटी नामक स्थान पर अपने लिए एक स्मारक खंभा बनवा दिया था. उसका विचार था, “मेरे नाम की याद स्थायी रखने के लिए, क्योंकि मेरे कोई पुत्र नहीं है.” इस स्मारक स्तंभ को उसने अपना ही नाम दिया. आज तक यह अबशालोम स्मारक के नाम से जाना जाता है.

अबशालोम की मृत्यु और दावीद

19यह सब होने पर सादोक के पुत्र अहीमाज़ ने विचार किया, “मैं दौड़कर राजा को यह संदेश दूंगा कि याहवेह ने उन्हें उनके शत्रुओं के सामर्थ्य से छुड़ाया है.”

20मगर योआब ने उससे कहा, “आज तुम कोई भी संदेश नहीं ले जाओगे. तुम किसी दूसरे दिन संदेश ले जाना, लेकिन तुम्हें आज ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह राजकुमार की मृत्यु का समाचार है.”

21वहां कूश18:21 कूश नील नदी का ऊपरी क्षेत्र देश का एक निवासी था. योआब ने आदेश दिया, “तुमने जो कुछ देखा है, उसकी सूचना जाकर राजा को दे दो.” कूश देशवासी ने झुककर योआब का अभिवंदन किया और दौड़ पड़ा.

22सादोक के पुत्र अहीमाज़ ने योआब से दोबारा विनती की, “कुछ भी हो, मुझे भी उस कूश देश निवासी के पीछे जाने दीजिए.”

योआब ने उससे पूछा, “मेरे पुत्र, तुम क्यों जाना चाह रहे हो? इस समाचार को प्रेषित करने का तुम्हें कोई पुरस्कार तो मिलेगा नहीं.”

23“कुछ भी हो,” उसने उत्तर दिया, “मैं तो जाऊंगा.”

तब योआब ने उसे उत्तर दिया, “जाओ!” तब अहीमाज़ दौड़ पड़ा और मैदान में से दौड़ता हुआ उस कूश देश निवासी से आगे निकल गया.

24दावीद दो द्वारों के मध्य बैठे हुए थे. प्रहरी दीवार से चढ़कर द्वार पर बने छत पर पहुंच गया. जब उसने दृष्टि की तो उसे एक अकेला व्यक्ति दौड़ता हुआ नजर आया. 25प्रहरी ने पुकारते हुए राजा को इसकी सूचना दी.

राजा ने उससे कहा, “यदि वह अकेला व्यक्ति है तो उसके मुख से आनंददायक संदेश ही सुना जाएगा.” वह व्यक्ति निकट-निकट आता गया.

26तब प्रहरी ने एक और व्यक्ति को दौड़ते हुए आते देखा. प्रहरी ने पुकारते हुए द्वारपाल को सूचित किया, “देखो, देखो, एक और व्यक्ति अकेला दौड़ा आ रहा है!”

राजा कहने लगा, “वह भी आनंददायक संदेश ही ला रहा है.”

27प्रहरी ने उन्हें बताया, “मेरे विचार से प्रथम व्यक्ति के दौड़ने के ढंग से ऐसा लग रहा है कि वह सादोक का पुत्र अहीमाज़ है.”

यह सुन राजा ने कहा, “वह एक अच्छा व्यक्ति है. वह अवश्य ही शुभ संदेश ला रहा है.”

28अहीमाज़ ने पुकारकर राजा से कहा, “सब कुछ कुशल है.” तब वह राजा के समक्ष भूमि पर दंडवत हो गया, उसने आगे कहा, “स्तुत्य हैं याहवेह, आपके परमेश्वर जिन्होंने महाराज मेरे स्वामी के शत्रुओं को पराजित कर दिया है!”

29राजा ने उससे पूछा, “क्या युवा अबशालोम सकुशल है?”

अहीमाज़ ने उत्तर दिया, “जब योआब ने आपके सेवक को महाराज के लिए संदेश के साथ प्रेषित किया था, तब मैंने वहां बड़ी अव्यवस्था देखी, मगर मुझे यह ज्ञात नहीं कि वह सब क्या था.”

30तब राजा ने उसे आदेश दिया, “आकर यहां खड़े रहो.” तब वह जाकर वहां खड़ा हो गया.

31तब वह कूश देशवासी भी वहां आ पहुंचा. उसने सूचना दी, “महाराज, मेरे स्वामी के लिए खुशखबरी है! आज याहवेह ने आपको विद्रोहियों पर जयंत किया है.”

32यह सुनने के बाद राजा ने कूश देशवासी से प्रश्न किया, “युवा अबशालोम तो सकुशल है न?”

कूशवासी ने उत्तर दिया, “महाराज मेरे स्वामी के शत्रुओं की और उन सभी की नियति, जो आपके हानि के कटिबद्ध हो जाते हैं, वही हो, जो उस युवा की हुई है.”

33भावना से अभिभूत राजा नगर द्वार के ऊपर बने हुए कक्ष में जाकर शोक करने लगे. जब वह वहां जा रहे थे, उनके द्वारा उच्चारे गए ये शब्द सुने गए, “मेरे पुत्र अबशालोम, मेरे पुत्र, मेरे पुत्र अबशालोम! उत्तम तो यह होता, तुम्हारे स्थान पर मेरी ही मृत्यु हो जाती, अबशालोम, मेरे पुत्र—मेरे पुत्र!”

Chinese Contemporary Bible (Traditional)

撒母耳記下 18:1-33

押沙龍之死

1大衛召集軍隊,設立了千夫長和百夫長率領他們。 2他兵分三隊,一隊由約押率領,一隊由洗魯雅的兒子、約押的兄弟亞比篩率領,一隊由迦特以太率領。大衛對部下說:「我必與你們一同出戰」。 3他們卻說:「請我王不要出戰。因為如果我們敗逃,敵方不會放在心上;即使我們一半人陣亡,敵方也不會放在心上。你一人比我們一萬人更寶貴。你還是留在城中支援我們吧。」 4王說:「你們認為怎樣好,我就怎樣做。」於是,大衛王站在城門旁邊,軍兵百人一隊、千人一隊地按次序出城了。 5大衛王吩咐約押亞比篩以太說:「你們要看在我的份上對年輕的押沙龍手下留情。」全體的軍兵都聽見了大衛吩咐眾將領的話。

6大衛的軍隊在以法蓮的樹林裡跟以色列人交戰。 7以色列人被大衛的部下打敗,傷亡慘重,有兩萬人陣亡。 8戰事蔓延到整個郊野,那天死在樹林裡的人比死在刀下的人還多。 9押沙龍碰巧遇見大衛的部下。他騎著騾子逃走,騾子從一棵大橡樹的茂密枝條下經過,押沙龍的頭髮被樹枝纏住,整個人吊在半空中,胯下的騾子也跑了。 10大衛的一個部下看見,就向約押稟告說:「我看見押沙龍正吊在橡樹上。」 11約押對那報信的說:「什麼!你看見他吊在樹上,為什麼不把他殺掉呢?要是你把他殺了,我會賞你十塊銀子和一條腰帶。」 12他卻答道:「就是你賞我一千塊銀子,我也不敢加害王的兒子啊!我們曾聽見王吩咐你、亞比篩以太不可傷害年輕的押沙龍13如果我膽敢殺死押沙龍,王遲早會查出真相,到時你就撒手不管了。」 14約押說:「我不跟你浪費時間。」趁著押沙龍還吊在橡樹上,他拿起三杆矛槍剌入了他的心臟。 15十個為約押拿兵器的年輕人圍上去將押沙龍殺死。 16隨後,約押吹起收兵的號角,部下便停止追趕以色列人。 17他們把押沙龍的屍體丟在林中的一個坑裡,在上面堆了一大堆石頭。以色列人都各自逃回家去了。 18押沙龍生前沒有兒子為他留名,所以他曾在王谷立了一根石柱,以自己的名字命名,稱為「押沙龍柱」,沿用至今。

19撒督的兒子亞希瑪斯約押說:「請讓我跑回去向王稟告,讓王知道耶和華已從仇敵手中救了他。」 20約押對他說:「你今天不要去報信,改天再報吧。你不要今天去,因為王的兒子死了。」 21約押吩咐一個古示人:「你去把所看見的稟報給王。」那人就拜別了約押,馬上跑回去報信。 22撒督的兒子亞希瑪斯再次對約押說:「求你讓我與古示人一同去吧!」約押說:「我的孩子,你何必要去呢?你報這個消息是不會得到賞賜的。」 23他說:「無論怎樣,我想跑去報信。」約押答應了。亞希瑪斯沿平原的路跑,跑到了古示人的前面。

24那時,大衛王正坐在內城門和外城門中間。有一個守衛爬上城門樓頂觀望,看見一個人獨自跑來。 25守衛就大聲向大衛稟告。王說:「如果他是單獨一個人,他帶來的一定是好消息。」那人越來越近了。 26這時候,守衛又看見另一個人跑來,就大聲對守城門的說:「又有一個人獨自跑來了!」王說:「他也一定是傳好消息的。」 27守衛又說:「從跑的姿勢看,那跑在前面的人好像撒督的兒子亞希瑪斯。」王說:「他是個好人,他一定帶來了好消息。」

28亞希瑪斯高聲對王說:「一切都好!」他在王面前俯伏叩拜,說:「你的上帝耶和華當受稱頌,祂已經消滅了那些攻擊我主我王的敵人。」 29王問道:「年輕的押沙龍平安嗎?」亞希瑪斯答道:「約押派僕人來的時候,僕人看見一陣大騷動,但不知道是什麼事。」 30王說:「你先退到一邊去。」亞希瑪斯就退下,站在一邊。

31這時,古示人也到了,他說:「我有好消息向我主我王稟告,今日耶和華已經從一切反叛之人手中救了我主我王。」 32王問古示人:「年輕的押沙龍平安嗎?」古示人答道:「願我主我王的仇敵和一切要加害我王的人,下場都與那青年一樣。」 33王聽了十分難過,就走上城門樓去痛哭,邊走邊說:「我兒押沙龍啊!我兒,我兒押沙龍啊!我恨不得可以替你死!押沙龍,我兒啊!我兒!」