2 शमुएल 13 – HCV & CCBT

Hindi Contemporary Version

2 शमुएल 13:1-39

अम्मोन और तामार

1दावीद के अबशालोम नामक पुत्र की अत्यंत रूपवती बहन थी, जिसका नाम तामार था. अम्मोन नामक दावीद के अन्य पुत्र को तामार से प्रेम हो गया.

2अम्मोन अपनी बहन के कारण इतना अधिक निराश हो गया कि वह रोगी रहने लगा. उसके साथ कुछ करना अम्मोन को कठिन जान पड़ता था. तामार अब तक कुंवारी थी.

3दावीद के भाई सिमअह का योनादाब नामक पुत्र था, जो अम्मोन का मित्र था. वह एक चतुर व्यक्ति था. 4उसने अम्मोन से कहा, “ओ राजा के सपूत, तुम दिन-प्रतिदिन ऐसे मुरझाए हुए मुंह के क्यों हुए जा रहे हो? मुझे बताओ, हुआ क्या है?”

अम्मोन ने उसे उत्तर दिया, “मुझे मेरे भाई अबशालोम की बहन तामार से प्रेम हो गया है.”

5योनादाब ने उससे कहा, “ऐसा करो, जाकर अपने बिछौने पर सो जाओ मानो तुम रोगी हो. जब तुम्हारे पिता तुम्हें देखने आएं तो उनसे कहना, ‘मेरी बहन तामार को भेज दीजिए कि वह यही आकर मेरे देखते हुए भोजन तैयार करे कि मैं उसकी के हाथ से भोजन करूं.’ ”

6तब अम्मोन ऐसे सो गया मानो वह रोगी था. जब राजा उसे देखने आए, अम्मोन ने राजा से कहा, “कृपया मेरी बहन तामार को भेज दीजिए कि वह यहां आकर मेरे सामने मेरे लिए भोजन बनाए, कि मैं उसी के हाथ से भोजन कर सकूं.”

7तब दावीद ने तामार के घर पर यह संदेश भेजा, “अपने भाई अम्मोन के घर पर चली जाओ और उसके लिए भोजन तैयार कर दो.” 8तब तामार अपने भाई अम्मोन के घर पर चली गई, जहां वह लेटा हुआ था. उसने वहां आटा गूंधा और उसके देखते हुए रोटियां बनाई. 9इसके बाद उसने बर्तन में से भोजन निकालकर अम्मोन को परोस दिया, मगर अम्मोन ने खाना न चाहा.

उसने आदेश दिया, “अन्य सभी व्यक्ति उस कमरे से बाहर भेज दिए जाएं.” तब सभी वहां से बाहर चले गए. 10तब अम्मोन ने तामार से कहा, “भोजन यहां इस कमरे में लाया जाए, कि मैं तुम्हारे हाथ से भोजन कर सकूं.” तब तामार अपने द्वारा तैयार किया हुआ भोजन अपने भाई अम्मोन के निकट ले गई. 11जैसे ही वह उसके भोजन उसके निकट लेकर गई, अम्मोन ने उसे पकड़ लिया और उससे कहा, “मेरी बहन, आओ, मेरे साथ सोओ.”

12उसने उत्तर दिया, “नहीं, मेरे भाई! मुझे विवश न करो! इस्राएल राष्ट्र में ऐसा नहीं किया जाता; मत करो यह अनाचार! 13और फिर मेरे विषय में विचार करो. मैं इस लज्जा को कैसे धोती फिरूंगी? और अपने विषय में भी विचार करो. तुम तो इस्राएल में दुष्ट मूर्ख के रूप में कुख्यात हो जाओगे. सही होगा कि तुम इस विषय में राजा से आग्रह करो. वह मेरे विषय में तुम्हारा आग्रह अस्वीकार न करेंगे.” 14मगर अम्मोन ने उसकी एक न सुनी. तामार की अपेक्षा बलवान होने के कारण वह उस पर प्रबल हो गया, और उसने उसके साथ बलात्कार किया.

15इसके होते ही अम्मोन तामार के प्रति ऐसी घृणा से भर गया, जो बहुत बड़ी घृणा थी. उसकी यह घृणा उसके प्रति उसके प्रेम से कहीं अधिक भयंकर थी. तब अम्मोन ने तामार से कहा, “चलो उठो और निकल जाओ यहां से!”

16मगर तामार ने उससे कहा, “नहीं, मेरे भाई, तुम्हारा मुझे इस प्रकार भेजना मेरे साथ किए गए इस कुकर्म से भी ज्यादा गलत बात होगी.”

मगर अम्मोन ने उसकी एक न सुनी. 17उसने अपने युवा सेवक को बुलाकर उसे आदेश दिया, “इसी समय इस स्त्री को मेरी उपस्थिति से दूर ले जाओ, और फिर यह द्वार बंद कर दो.” 18तामार एक लंबा वस्त्र धारण किए हुए थी. इस वस्त्र में लंबी बांहें थी. राजा की कुंवारी कन्याएं इसी प्रकार का वस्त्र पहना करती थी. उस सेवक ने उसे कमरे से बाहर निकालकर द्वार बंद कर दिया. 19तामार ने अपने सिर पर भस्म डाल अपने लंबी बांह युक्त वस्त्र को फाड़ दिया, जिसे उसने इस समय पहना था. वह इस स्थिति में अपने मस्तक पर हाथ रखे हुए उच्च स्वर में रोती हुई लौट गई.

20तामार के भाई अबशालोम ने उससे पूछा, “क्या, तुम अपने भाई अम्मोन के यहां से आ रही हो? मेरी बहन, अब शांत हो जाओ. वह भाई है तुम्हारा. इसे अपने हृदय से निकाल दो.” तब तामार अपने भाई अबशालोम के आवास में असहाय स्त्री होकर रहने लगी.

21इस घटना का समाचार सुनकर राजा दावीद बहुत क्रुद्ध हो गए. 22अबशालोम ने अम्मोन से भला-बुरा कुछ भी न कहा. अम्मोन ने उसकी बहन को भ्रष्‍ट किया था, इसलिए अबशालोम अम्मोन से घृणा करने लगा.

तामार के लिए अबशालोम का प्रतिशोध

23इस घटना के बाद दो वर्ष पूर्ण होने पर अबशालोम ने राजा के सारे पुत्रों को बाल-हाज़ोर नामक स्थान पर आमंत्रित किया. यह स्थान एफ्राईम के निकट था. यहीं अबशालोम के भेड़ के ऊन कतरनेवाले चुने गए थे. 24अबशालोम ने राजा के निकट जाकर उनसे विनती की, “कृपा कर सुनिए: आपके सेवक ने भेड़ के ऊन कतरनेवाले चुने हैं. कृपया महाराज और उनके सेवक मेरे साथ वहां पधारे.”

25मगर राजा ने अबशालोम को उत्तर दिया, “नहीं मेरे पुत्र, हम सबका वहां जाना सही न होगा. हम सब तुम्हारे लिए बोझ बन जाएंगे.” अबशालोम विनती करता रहा मगर राजा मना करते रहे. हां, राजा ने अबशालोम को आशीर्वाद अवश्य दिया.

26इस स्थिति में अबशालोम ने अपने पिता से कहा, “अच्छा, यदि आप नहीं जा सकते तो हमारे साथ मेरे भाई अम्मोन को ही जाने दे.”

इस पर राजा ने प्रश्न किया, “क्यों? वह क्यों जाएगा तुम्हारे साथ?” 27मगर जब अबशालोम विनती करता ही रहा, दावीद ने अम्मोन और सारे राजपुत्रों को उसके साथ जाने की आज्ञा दे दी.

28अबशालोम ने अपने सेवकों को आदेश दे रखा था, “देखते रहना! जब अम्मोन दाखमधु से नशे में हो जाए, और जब मैं तुम्हें आदेश दूं, ‘अम्मोन पर वार करो,’ तब तुम उसे घात कर देना. ज़रा भी न झिझकना. स्वयं मैं तुम्हें यह आदेश दे रहा हूं; साहस बनाए रखना और वीरता दिखाना.” 29अबशालोम के सेवकों ने इस आदेश का पूरा-पूरा पालन किया. वह होते ही सभी राजपुत्र अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो भाग गए.

30जब वे सब मार्ग में ही थे, दावीद को यह समाचार इस प्रकार भेजा गया: “अबशालोम ने सभी राजपुत्रों का संहार कर दिया है; एक भी जीवित शेष न रहा है.” 31यह सुनकर राजा ने शोक में अपने वस्त्र फाड़ दिए, और उठकर भूमि पर जा लेटे. उनके निकट सभी सेवकों ने भी अपने वस्त्र फाड़ दिए.

32मगर दावीद के भाई सिमअह के पुत्र योनादाब ने आश्वासन दिया, “मेरे प्रभु, यह न मान लें कि उन्होंने सारे युवा राजपुत्रों का संहार कर दिया है. वध मात्र अम्मोन का ही किया गया है. इसका निश्चय अबशालोम ने उसी दिन कर लिया था, जिस दिन अम्मोन ने अपनी बहन तामार से बलात्कार किया था. 33मेरे स्वामी महाराज, इस विचार से उदास न हों, कि सारे राजपुत्रों का संहार किया जा चुका है, क्योंकि सिर्फ अम्मोन का ही संहार किया गया है.”

34इसी बीच अबशालोम वहां से भाग निकला.

वहां नियुक्त युवा पहरेदार ने दृष्टि की, तो देखा कि उसके पीछे के मार्ग से पर्वत की एक ओर से अनेक लोग चले आ रहे थे.

35योनादाब ने राजा से कहा, “देखिए राजपुत्र लौट आए हैं! ठीक वैसा ही हुआ है, जैसे आपके सेवक ने आपको कहा था.”

36वह यह कह ही रहा था, कि राजपुत्र आ पहुंचे और ऊंची आवाज में रोने लगे. उनके साथ राजा और सारे सेवक भी फूट-फूटकर रोने लगे.

37इस समय अबशालोम कूच करके गेशूर के राजा अम्मीहूद के पुत्र तालमाई की शरण में जा पहुंचा. राजा दावीद अपने पुत्र के लिए हर रोज़ रोते रहे.

38अबशालोम भागकर गेशूर नामक स्थान पर गया और वहां तीन साल तक रहता रहा. 39राजा दावीद का हृदय अबशालोम से मिलने के लिए व्याकुल रहता था. अब उन्हें अम्मोन मृत्यु के विषय में शांति प्राप्‍त हो चुकी थी.

Chinese Contemporary Bible 2023 (Traditional)

撒母耳記下 13:1-39

暗嫩玷污她瑪

1後來,大衛的兒子暗嫩愛上了美麗的她瑪她瑪大衛的兒子押沙龍的妹妹。 2她仍是處女,住在深宮裡,暗嫩無法接近她,相思成病。 3暗嫩有一個朋友名叫約拿達,是大衛長兄示米亞的兒子,生性狡猾。 4他問暗嫩:「王子,你為什麼一天比一天消沉?能告訴我嗎?」暗嫩答道:「我愛上了我兄弟押沙龍的妹妹她瑪。」 5約拿達說:「你回去躺在床上裝病,你父親來探望你的時候,你就請求他叫你妹妹她瑪來,在你面前預備食物,請她親手遞給你吃。」 6暗嫩就躺在床上裝病。王來看他的時候,他便對王說:「請你叫我妹妹她瑪來這裡,在我面前做兩個餅,請她親自遞給我吃。」

7大衛便派人進宮對她瑪說:「你去你哥哥暗嫩房裡為他預備食物吧。」 8她瑪到了哥哥暗嫩的家,暗嫩正躺在床上裝病。她拿了麵團在他面前揉麵做餅,把餅烤熟了。 9她拿著鍋在他面前把餅倒出來,但暗嫩卻不肯吃。暗嫩命令僕人:「你們全都出去吧!」僕人就都退下了。 10暗嫩她瑪說:「你把食物拿到我的臥房來,親手遞給我吃。」她瑪便拿著餅進了她哥哥暗嫩的臥房裡, 11上前給他吃,暗嫩卻抓住她,說:「妹妹,與我同寢吧!」 12她瑪說:「哥哥,不要,不要玷污我!在以色列不應當發生這種事,不要做這種惡事。 13你這樣叫我怎麼見人呢?你在以色列也必遭人唾棄。你可以請求王,他會同意把我許配給你。」 14暗嫩卻充耳不聞,因為他力氣比她瑪大,就把她強姦了。

15事後暗嫩非常憎恨她瑪,對她的恨比以前對她的愛還強烈。他對她瑪說:「你起來走吧!」 16她瑪哀求道:「不要這樣對我!你趕我走是更大的惡行。」暗嫩卻不聽, 17他吩咐隨從:「把這女人趕出去,隨後鎖上門。」 18他的隨從就把她瑪趕出去,隨後鎖上了門。那時,她瑪穿著彩色的長衣,沒有出嫁的公主都穿這種衣服。 19她瑪把灰塵撒在頭上,撕破身上的彩衣,雙手抱著頭,一面走一面哭。 20她的哥哥押沙龍問她:「是不是你哥哥暗嫩污辱了你?妹妹,不要聲張,他是你哥哥,不要把這件事放在心上。」於是她瑪就憂憂鬱鬱地住在押沙龍家裡。

21大衛王聽見了這件事以後,非常生氣。 22押沙龍好話壞話都沒有對暗嫩說一句話,只是心裡暗暗地恨他,因為他玷污了妹妹她瑪

押沙龍為妹妹報仇

23兩年後,押沙龍的工人在以法蓮附近的巴力·夏瑣剪羊毛,押沙龍邀請王的眾子去那裡。 24他去見王,說:「工人正在為僕人剪羊毛,請王和眾臣僕跟僕人一起去吧。」 25王說:「我兒,我們不必都去打擾你。」押沙龍再三邀請,王還是推辭了,但他為押沙龍祝福。 26押沙龍說:「王若不去,請讓我兄弟暗嫩跟我們去吧。」大衛說:「何必要他同去呢?」 27押沙龍再三懇求,王就讓暗嫩和其他王子一同去了。 28押沙龍吩咐僕人說:「你們要留意,當暗嫩喝得正高興的時候,我叫你們動手,你們就要殺他。不要害怕,要剛強勇敢!因為這是我的命令。」 29押沙龍的僕人就照命令把暗嫩殺了。王的眾子都起來騎上騾子逃走了。

30他們還在路上的時候,有人稟告大衛說:「押沙龍把王子都殺了,無一倖免!」 31王便站起來撕裂衣服,躺在地上。眾臣僕也都撕裂衣服,站在旁邊。 32大衛的長兄示米亞的兒子約拿達說:「我主不要以為所有的王子都被殺了,其實只有暗嫩一人死了。自從暗嫩姦污押沙龍的妹妹她瑪以來,押沙龍便決定要報仇了。 33所以,我主我王啊,不要相信這消息,不是所有的王子都死了,只有暗嫩一人死了。」

34此時,押沙龍已經逃走了。守望的人舉目瞭望,見有一大群人從西面山坡的路上下來。 35約拿達對王說:「請看,王子們都回來了!正如僕人所言。」 36話剛說完,眾王子已經來到他們跟前放聲大哭,王和眾臣僕也哀痛不已。

37-38押沙龍逃到了亞米忽的兒子基述達買那裡,在那裡住了三年。大衛王天天為他兒子暗嫩悲傷, 39後來心情恢復平靜,開始想念押沙龍