2 शमुएल 12 – HCV & CCBT

Hindi Contemporary Version

2 शमुएल 12:1-31

नाथान की फटकार

1फिर याहवेह ने नाथान को दावीद के पास भेजा. नाथान ने आकर दावीद से कहा, “किसी नगर में दो व्यक्ति थे, एक धनी और दूसरा निर्धन. 2धनी व्यक्ति अनेक पशुओं और भेड़ों का स्वामी था, 3मगर निर्धन के पास सिर्फ एक ही छोटी भेड़ थी, जिसे उसने मोल लिया था, और वह उसका पालन पोषण कर रहा था. यह भेड़ उसके बालकों के साथ ही बड़ी हो रही थी. वह उसी व्यक्ति के साथ भोजन करती थी, उसी के प्याले से पीती थी और उसके साथ बिछौने में सोया करती थी. वह उसके लिए उसकी पुत्री समान थी.

4“उस धनी के पास एक यात्री आया हुआ था. उस धनिक ने उस यात्री के सत्कार के लिए अपनी भेड़ों में से कोई भेड़ न ली, बल्कि उस निर्धन की भेड़ लेकर उस यात्री के लिए भोजन तैयार कर लिया.”

5यह सुनते ही उस धनी व्यक्ति के प्रति दावीद का क्रोध भड़क उठा. उन्होंने नाथान से कहा, “जीवित याहवेह की शपथ, जिस व्यक्ति ने यह किया है, मृत्यु दंड के योग्य है! 6इसलिये कि उसने ऐसा किया है, इसलिये कि वह ऐसा निर्दयी है, उसे उस भेड़ की चौगुनी भरपाई करनी होगी.”

7नाथान ने दावीद को उत्तर दिया, “आप हैं वह व्यक्ति! याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का वचन यह है: ‘इस्राएल पर मैंने तुम्हें राजा बनाया; शाऊल के वारों से मैंने तुम्हारी रक्षा की. 8तुम्हारे स्वामी का घर मैंने ही तुम्हें दे दिया है, मैंने ही तुम्हारे स्वामी की पत्नियां तुम्हारे अधिकार में कर दी हैं, और तुम्हें इस्राएल और यहूदिया के वंश का अधिकारी बना दिया है. यदि यह सब तुम्हारे विचार से बहुत कम था, मैं तुम्हें इतना ही और दे देता. 9तुमने याहवेह के वचन को क्यों तुच्छ समझा कि तुमने वही किया, जो उनकी दृष्टि में गलत है? तुमने हित्ती उरियाह पर तलवार चलाई, और उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया है. तुमने उरियाह को अम्मोनियों की तलवार से घात किया है. 10अब तलवार तुम्हारे परिवार का पीछा कभी न छोड़ेगी. तुमने मुझसे घृणा की है, और हित्ती उरियाह की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया है.’ याहवेह का यह कथन है:

11“यह देखना, कि मैं तुम्हारे ही परिवार में से तुम्हारे विरुद्ध बुराई उत्पन्‍न करूंगा. मैं तुम्हारे देखते-देखते तुम्हारी पत्नियों को लेकर तुम्हारे साथी को दे दूंगा कि वह तुम्हारे देखते-देखते तुम्हारी पत्नियों से दिन के प्रकाश में कुकर्म करे. 12तुमने तो यह गुप्‍त में किया, मगर मैं यह पूरे इस्राएल के सामने करूंगा और वह भी सूर्य प्रकाश में.”

13दावीद ने नाथान से कहा, “मैंने याहवेह के विरुद्ध पाप किया है.”

नाथान ने दावीद से कहा, “तुम्हारा पाप याहवेह ने दूर कर दिया है. तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी. 14फिर भी इस काम के द्वारा तुमने याहवेह का तिरस्कार किया है, उस पुत्र की, जिसका जन्म होने पर है, मृत्यु हो जाएगी.”

15इसके बाद नाथान अपने घर चले गए, उरियाह की पत्नी से दावीद का जो शिशु पैदा हुआ, याहवेह ने उस पर वार किया और शिशु गंभीर रूप से रोगी हो गया. 16दावीद ने अपने शिशु के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की. इस समय दावीद ने न कुछ खाया न पिया और वह जाकर सारी रात भूमि पर ही पड़े रहे. 17घर के सारे पुरनिए उनके निकट इस प्रतीक्षा में ठहरे रहे कि कब उन्हें भूमि पर से उठाएं, मगर दावीद ने उठना अस्वीकार किया. उन्होंने उनके साथ भोजन भी न किया.

18सातवें दिन शिशु की मृत्यु हो गई. दावीद को इसकी सूचना देने में सेवक झिझक रहे थे कि शिशु की मृत्यु हो चुकी थी. उनका कहना था, “देखो, जब शिशु जीवित था और हम उन्हें मना रहे थे, उन्होंने हमारी न सुनी. तब भला हम उन्हें कैसे बताएं कि शिशु की मृत्यु हो गई? कहीं वह अपनी ही कोई हानि न कर लें.”

19जब दावीद ने ध्यान दिया कि सेवक परस्पर दबे स्वर में बातचीत कर रहे थे, दावीद समझ गए कि शिशु की मृत्यु हो चुकी. दावीद ने सेवकों से प्रश्न किया, “क्या शिशु की मृत्यु हो गई?”

“जी हां,” उन्होंने उत्तर दिया.

20तब दावीद भूमि से उठे, स्‍नान कर तेल लगाया और अपने वस्त्र बदले. इसके बाद याहवेह के भवन में जाकर उन्होंने उनकी वंदना की और अपने घर चले गए. उन्होंने भोजन मांगा, सेवकों ने उनके साम्हने भोजन परोस दिया और राजा ने वह खाया.

21इस पर सेवकों ने दावीद से पूछा, “हमें समझ नहीं आया आपने यह क्या किया? जब शिशु जीवित था आप भूखे रहे और रोते रहे, मगर जब शिशु की मृत्यु हो गई, आपने उठकर भोजन किया!”

22दावीद ने उत्तर दिया, “जब तक शिशु जीवित था, मैं उपवास करते हुए रोता रहा, ‘क्योंकि मैं विचार कर रहा था, किसे पता याहवेह मुझ पर कृपा करें और शिशु जीवित रह जाए.’ 23मगर अब, जब शिशु की मृत्यु हो चुकी है, क्या अर्थ है मेरे उपवास का? क्या इससे मैं उसे लौटा ला सकता हूं? मैं उससे जा मिलूंगा, लौटकर वह मेरे पास न आएगा.”

24दावीद अपनी पत्नी बैथशेबा को सांत्वना देते रहे. वह उसके निकट रहे और उसमें संबंध बना. उन्हें एक पुत्र पैदा हुआ, जिसे दावीद ने शलोमोन नाम दिया. वह याहवेह का प्रिय हुआ; 25भविष्यद्वक्ता नाथान के द्वारा याहवेह ने एक संदेश भेजा. तब याहवेह की आज्ञा पर उन्होंने उसे येदीदियाह12:25 येदीदियाह अर्थ याहवेह का प्रिय नाम दिया.

26योआब ने अम्मोनियों के रब्बाह नगर से युद्ध छेड़ दिया और इस राजधानी को अपने अधीन कर लिया. 27तब योआब ने दूतों द्वारा दावीद को यह संदेश भेजा, “मैंने रब्बाह नगर से युद्ध किया है, और मैंने जल नगर पर अधिकार भी कर लिया है. 28अब आप बाकी सैनिकों को इकट्ठा कर नगर की घेराबंदी कर लीजिए और इसे अपने अधिकार में कर लीजिए. ऐसा न हो कि मैं इस पर अधिकार कर लूं और यह मेरी संपत्ति के रूप में प्रख्यात हो जाए.”

29तब दावीद ने सैनिक इकट्ठा किए और रब्बाह नगर पर हमला किया और उसे अपने अधिकार में कर लिया. 30तत्पश्चात उन्होंने उनके राजा के सिर से उसका मुकुट ले लिया. इस स्वर्ण मुकुट का वजन एक तालन्त12:30 करीब 34 कि. ग्राम था. एक अमूल्य रत्न भी इसमें जड़ित था. यह मुकुट दावीद के सिर पर रखा गया. दावीद इस नगर से अत्यंत भारी मात्रा में लूटी हुई सामग्री अपने साथ ले गए. 31इस नगर से दावीद-नगर निवासी भी अपने साथ ले गए, जिन्हें उन्होंने श्रमिक बनाकर उन्हें आरी, कुदाली, कुल्हाड़ी से संबंधित कार्यों में लगा दिया और उन्हें ईंट निर्माण की भट्ठियों में भी संलग्न कर दिया. यही उन्होंने अम्मोनियों के सारे नगरों के साथ किया. इसके बाद दावीद और सारे सैनिक येरूशलेम लौट गए.

Chinese Contemporary Bible 2023 (Traditional)

撒母耳記下 12:1-31

拿單斥責大衛

1耶和華派拿單先知去見大衛拿單大衛說:「一座城裡有兩個人,一個富有,一個貧窮。 2富人擁有許多牛羊, 3窮人除了自己買來養活的一隻母羊羔外,什麼也沒有。他讓牠跟自己的兒女一起長大。他吃什麼,羊也吃什麼,他喝什麼,羊也喝什麼,甚至讓牠睡在自己懷裡,就像他女兒一樣。 4一天,富人家中來了客人,他捨不得拿自己的牛羊款待客人,卻宰了窮人的羊給客人吃。」 5大衛聽後非常憤怒,對拿單說:「我憑永活的耶和華起誓,做這事的人實在該死! 6他這樣做真是沒有半點憐憫之心,他必須償還那窮人四倍!」

7拿單大衛說:「那人就是你!以色列的上帝耶和華這樣說,『我膏立你做以色列的王,從掃羅手中救你, 8將你主人的家業和妻妾交給你,把以色列猶大的國權賜給你。倘若還不夠,我會再加倍地賜給你。 9你為什麼蔑視我的命令,做出我視為可憎的事呢?你藉亞捫人的刀殺了烏利亞,把他的妻子據為己有。 10因為你藐視我,把烏利亞的妻子據為己有,從今以後,殺戮流血的事必永不離開你的家。』 11耶和華說,『我要在你家中降下災禍,我要當著你的面把你的妻妾交給你的近臣,他必在光天化日之下與她們行淫。 12你在暗地裡做這惡事,我要讓這樣的惡事當著以色列人的面在光天化日之下臨到你。』」 13大衛拿單說:「我得罪了耶和華。」拿單說:「耶和華已經赦免了你的罪,使你不致死亡。 14但你做的醜事給了仇敵大肆褻瀆耶和華的機會,所以你這個孩子必定死。」 15拿單說完,便回家去了。

耶和華擊打烏利亞的妻子給大衛生的孩子,使他患重病。 16大衛為這孩子向上帝哀求,並且禁食,他進到裡面,整夜躺在地上。 17宮裡的老臣在旁邊伺候,想要扶他起來,他卻不肯,也不肯與他們一同吃飯。 18到了第七日,孩子死了。大衛的臣僕都不敢把這消息告訴他,因為他們心裡想:「孩子還活著的時候,我們勸他,他尚且不聽,若告訴他孩子死了,他會怎樣折磨自己呢?」 19大衛看見他們交頭接耳,知道孩子死了,便問他們:「孩子死了?」他們答道:「是的,他死了。」 20大衛聽後,便從地上起來,沐浴更衣,抹上香膏,然後到耶和華的殿去敬拜。他回宮以後,吩咐人擺上食物,自己開始用膳。 21他的臣僕詫異地問他:「你這是什麼意思?孩子還活著的時候,你禁食、哀哭。孩子死了,你反倒起來進食。」 22大衛說:「不錯,孩子活著的時候我禁食、哀哭,因為我想也許耶和華會向我開恩,讓他活命。 23但現在他既然死了,我禁食又有什麼用呢?能讓他起死回生嗎?我必去他那裡,他卻不能返回我這裡了。」

24大衛安慰妻子拔示巴,與她同房,她便生了一個兒子。大衛給孩子取名叫所羅門。耶和華喜愛這孩子, 25祂差遣拿單先知去賜給他一個名字,叫耶底底亞,意思是耶和華喜愛他。

大衛打敗亞捫人

26那時,約押正攻打亞捫人的拉巴,佔領了王城。 27他派使者去向大衛稟告說:「我攻打拉巴,已經佔領了城的水源。 28請你趕快帶領其餘的兵馬前來圍攻並佔領這城,免得我攻取這城以後,人們用我的名字為這城命名。」 29於是,大衛便召集了所有的人去攻打拉巴,攻陷了那城, 30奪取了亞捫王頭上的金冠。這金冠重達三十四公斤,上面還鑲著寶石,人們將它戴在大衛頭上。大衛從城裡獲得許多戰利品, 31又把城裡的人帶出來,讓他們從事鋸木、耕田、砍樹的工作,還讓他們製作磚。他用同樣的方式對待亞捫其他城邑的居民。之後,大衛和全軍返回耶路撒冷