2 राजा 19 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

2 राजा 19:1-37

यशायाह द्वारा हिज़किय्याह को दिया गया आश्वासन

1जब राजा हिज़किय्याह ने यह सब सुना, उसने अपने वस्त्र फाड़ दिए, टाट पहन लिया और याहवेह के भवन में चला गया. 2राजा ने गृह प्रबंधक एलियाकिम, सचिव शेबना, पुरनियों और पुरोहितों को, जो टाट धारण किए हुए थे, आमोज़ के पुत्र भविष्यद्वक्ता यशायाह के पास भेजा. 3उन्होंने जाकर यशायाह से विनती की, “हिज़किय्याह की यह विनती है, ‘आज का दिन संकट, फटकार और अपमान का दिन है. प्रसव का समय आ पहुंचा है, मगर प्रसूता में प्रसव के लिए शक्ति ही नहीं रह गई. 4संभव है याहवेह, आपके परमेश्वर प्रमुख सेनापति द्वारा कहे गए सभी शब्द सुन लें, जो उसके स्वामी, अश्शूर के राजा ने जीवित परमेश्वर की निंदा में उससे कहलवाए थे. संभव है इन शब्दों को सुनकर याहवेह, आपके परमेश्वर उसे फटकार लगाएं. इसलिये कृपा कर यहां प्रजा के बचे हुओं के लिए आकर प्रार्थना कीजिए.’ ”

5जब राजा हिज़किय्याह के सेवक यशायाह के पास पहुंचे, 6यशायाह ने उनसे कहा, “अपने स्वामी से कहना, ‘याहवेह का संदेश यह है, उन शब्दों के कारण जो तुमने सुने हैं, जिनके द्वारा अश्शूर के राजा के सेवकों ने मेरी निंदा की है, तुम डरना मत. 7तुम देख लेना मैं उसमें एक ऐसी आत्मा ड़ाल दूंगा कि उसे उड़ते-उड़ते समाचार सुनाई देने लगेंगे और वह अपने देश को लौट जाएगा और ऐसा कुछ करूंगा कि वह अपने ही देश में तलवार का कौर हो जाएगा.’ ”

8जब प्रमुख सेनापति येरूशलेम से लौटा, उसने पाया कि अश्शूर राजा लाकीश छोड़कर जा चुका था, और वह लिबनाह से युद्ध कर रहा था.

9जब उसने कूश19:9 कूश नील नदी का ऊपरी क्षेत्र के राजा तिरहाकाह से यह सुना कि, वह उससे युद्ध करने निकल पड़ा है, तब उसने अपने संदेशवाहकों को हिज़किय्याह के पास यह कहकर भेजा, 10“तुम यहूदिया के राजा हिज़किय्याह से यह कहना, ‘जिस परमेश्वर पर तुम भरोसा करते हो, वह तुमसे यह प्रतिज्ञा करते हुए छल न करने पाए, कि येरूशलेम अश्शूर के राजा के अधीन नहीं किया जाएगा. 11तुम यह सुन ही चुके हो, कि अश्शूर के राजाओं ने सारी राष्ट्रों को कैसे नाश कर दिया है. क्या तुम बचकर सुरक्षित रह सकोगे? 12जब मेरे पूर्वजों ने गोज़ान, हारान, रेत्सेफ़ और तेलास्सार में एदेन की प्रजा को खत्म कर डाला था, क्या उनके देवता उनको बचा सके थे? 13कहां है हामाथ का राजा, अरपाद का राजा, सेफरवाइम नगर का राजा और हेना और इव्वाह के राजा?’ ”

हिज़किय्याह की प्रार्थना

14इसके बाद हिज़किय्याह ने पत्र ले आने वालों से वह पत्र लेकर उसे पढ़ा, और याहवेह के भवन को चला गया, और उस पत्र को खोलकर याहवेह के सामने रख दिया. 15हिज़किय्याह ने याहवेह से यह प्रार्थना की: “सर्वशक्तिमान याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर, आप, जो करूबों के बीच सिंहासन पर विराजमान हैं, परमेश्वर आप ही ने स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया. 16अपने कान मेरी ओर कीजिए, याहवेह, मेरी प्रार्थना सुन लीजिए. अपनी आंखें खोल दीजिए और याहवेह, देख लीजिए और उन शब्दों को सुन लीजिए, जो सेनहेरीब ने जीवित परमेश्वर का मज़ाक उड़ाते हुए कहे हैं.

17“याहवेह, यह सच है कि अश्शूर के राजाओं ने जनताओं को और उनकी भूमि को उजाड़ कर छोड़ा है. 18और उनके देवताओं को आग में डाल दिया है, सिर्फ इसलिये कि वे देवता थे ही नहीं, वे तो सिर्फ मनुष्य के बनाए हुए थे, सिर्फ लकड़ी और पत्थर. इसलिये वे नाश कर दिए गए. 19अब, हे याहवेह, हमारे परमेश्वर, हमें उनके हाथ से बचा ताकि पूरी पृथ्वी को यह मालूम हो जाए कि याहवेह, केवल आप ही परमेश्वर हैं.”

यशायाह द्वारा याहवेह का प्रत्युत्तर

20तब आमोज़ के पुत्र यशायाह ने हिज़किय्याह से कहा, “याहवेह, इस्राएल का परमेश्वर, यों कहते हैं: इसलिये कि तुमने अश्शूर के राजा सेनहेरीब के संबंध में मुझसे विनती की, 21उसके विरुद्ध कहे गए याहवेह के शब्द ये है:

“ ‘ज़ियोन की कुंवारी

कन्या ने तुम्हें तुच्छ समझा है, तुम्हारा मज़ाक उड़ाया है.

येरूशलेम की पुत्री

पलायन करनेवाले तुम्हारी पीठ देखकर सिर हिलाती है.

22तुमने किसका अपमान और किसकी निंदा की है?

किसके विरुद्ध तुमने आवाज ऊंची की है?

और किसके विरुद्ध तुम्हारी दृष्टि घमण्ड़ से उठी है?

इस्राएल के महा पवित्र की ओर!

23तुमने अपने दूतों के द्वारा

याहवेह की निंदा की है.

तुमने कहा,

“अपने रथों की बड़ी संख्या लेकर

मैं पहाड़ों की ऊंचाइयों पर चढ़ आया हूं,

हां, लबानोन के दुर्गम, दूर के स्थानों तक;

मैंने सबसे ऊंचे देवदार के पेड़ काट गिराए हैं,

इसके सबसे उत्तम सनोवरों को भी;

मैंने इसके दूर-दूर के घरों में प्रवेश किया,

हां, इसके घने वनों में भी.

24मैंने कुएं खोदे

और परदेश का जल पिया,

अपने पांवों के तलवों से

मैंने मिस्र की सभी नदियां सुखा दीं.”

25“ ‘क्या तुमने सुना नहीं?

इसका निश्चय मैंने बहुत साल पहले कर लिया था?

इसकी योजना मैंने बहुत पहले ही बना ली थी,

जिसको मैं अब पूरा कर रहा हूं,

कि तुम गढ़ नगरों को

खंडहरों का ढेर बना दो.

26जब नगरवासियों का बल जाता रहा,

उनमें निराशा और लज्जा फैल गई.

वे मैदान की वनस्पति

और जड़ी-बूटी के समान हरे हो गए.

वैसे ही, जैसे छत पर उग आई घास

बढ़ने के पहले ही मुरझा जाती है.

27“ ‘मगर तुम्हारा उठना-बैठना मेरी दृष्टि में है,

तुम्हारा भीतर आना और बाहर जाना भी;

और मेरे विरुद्ध तुम्हारा तेज गुस्सा भी!

28मेरे विरुद्ध तुम्हारे तेज गुस्से के कारण

और इसलिये कि मैंने तुम्हारे घमण्ड़ के विषय में सुन लिया है,

मैं तुम्हारी नाक में अपनी नकेल डालूंगा,

और तुम्हारे मुख में लगाम

और तब मैं तुम्हें मोड़कर उसी मार्ग पर चलाऊंगा

जिससे तुम आए थे.’

29“तब हिज़किय्याह, तुम्हारे लिए यह चिन्ह होगा:

“इस साल तुम्हारा भोजन उस उपज का होगा, जो अपने आप उगती है;

अगले साल वह, जो इसी से उपजेगी;

तीसरे साल तुम बीज बोओगे, उपज काटोगे,

अंगूर के बगीचे लगाओगे और उनके फल खाओगे.

30तब यहूदाह गोत्र का बचा हुआ भाग दोबारा अपनी जड़ें भूमि में

गहरे जाकर मजबूत करता जाएगा, और ऊपर वृक्ष फलवंत होता जाएगा.

31क्योंकि येरूशलेम से एक बचा हुआ भाग ही विकसित होगा,

ज़ियोन पर्वत से जो भागे हुए लोग.

सेनाओं के याहवेह के जलन ही यह सब करेगा.

32“इसलिये अश्शूर के राजा के बारे में मेरा यह संदेश है;

“ ‘वह न तो इस नगर में प्रवेश करेगा,

न वह वहां बाण चलाएगा.

न वह इसके सामने ढाल लेकर आएगा,

और न ही वह इसकी घेराबंदी के लिए ढलान ही बना पाएगा.

33वह तो उसी मार्ग से लौट जाएगा जिससे वह आया था.

वह इस नगर में प्रवेश ही न करेगा.

यह याहवेह का संदेश है.

34क्योंकि अपनी और अपने सेवक दावीद की

महिमा के लिए मैं इसके नगर की रक्षा करूंगा.’ ”

35उसी रात ऐसा हुआ कि याहवेह के एक दूत ने अश्शूरी सेना के शिविर में जाकर एक लाख पचासी हज़ार सैनिकों को मार दिया. सुबह जागने पर लोगों ने पाया कि सारे सैनिक मर चुके थे. 36यह होने पर अश्शूर का राजा सेनहेरीब अपने देश लौट गया, और नीनवेह नगर में रहने लगा.

37एक बार, जब वह अपने देवता निसरोक के मंदिर में उसकी उपासना कर रहा था, उसी के पुत्रों, अद्राम्मेलेख और शारेज़र ने तलवार से उस पर वार किया और वे अरारात प्रदेश में जाकर छिप गए. उसके स्थान पर उसके पुत्र एसारहद्दन ने शासन करना शुरू किया.