2 कोरिंथ 6 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

2 कोरिंथ 6:1-18

1परमेश्वर के सहकर्मी होने के कारण हमारी तुमसे विनती है कि तुम उनसे प्राप्‍त हुए अनुग्रह को व्यर्थ न जाने दो, 2क्योंकि परमेश्वर का कहना है:

“अनुकूल अवसर पर मैंने तुम्हारी पुकार सुनी,

उद्धार के दिन मैंने तुम्हारी सहायता की.”6:2 यशा 49:8

सुनो! यही है वह अनुकूल अवसर; यही है वह उद्धार का दिन!

पौलॉस के कष्ट

3हमारा स्वभाव किसी के लिए किसी भी क्षेत्र में बाधा नहीं बनता कि हमारी सेवकाई पर दोष न हो. 4इसलिये हम हर एक परिस्थिति में स्वयं को परमेश्वर के सुयोग्य सेवक के समान प्रस्तुत करते हैं: धीरज से पीड़ा सहने में, दरिद्रता में, कष्ट में, 5सताहट में, जेल में, उपद्रव में, अधिक परिश्रम में, अपर्याप्‍त नींद में, उपवास में, 6शुद्धता में, ज्ञान में, धीरज में, सहृदयता में, पवित्र आत्मा में, निश्छल प्रेम में, 7सच के संदेश में, परमेश्वर के सामर्थ्य में, वार तथा बचाव दोनों ही पक्षों के लिए परमेश्वर की धार्मिकता के हथियारों से जो दाहिने और बाएं हाथों में हैं, 8आदर-निरादर में और निंदा और प्रशंसा में; हमें भरमानेवाला समझा जाता है, जबकि हम सत्यवादी हैं; 9हम प्रसिद्ध हैं; फिर भी अप्रसिद्ध माने जाते हैं, हम जीवित तो हैं, पर मरे हुए समझे जाते हैं! हमें दंड तो दिया जाता है किंतु हमारे प्राण नहीं लिए जा सकते. 10हम कष्ट में भी आनंदित रहते हैं. हालांकि हम स्वयं तो कंगाल हैं किंतु बाकियों को धनवान बना देते हैं. हमारी निर्धनता में हम धनवान हैं.

11कोरिन्थवासीयो! हमने पूरी सच्चाई में तुम पर सच प्रकट किया है—हमने तुम्हारे सामने अपना हृदय खोलकर रख दिया है. 12हमने तुम पर कोई रोक-टोक नहीं लगाई; रोक-टोक स्वयं तुमने ही अपने मनों पर लगाई है. 13तुम्हें अपने बालक समझते हुए मैं तुमसे कह रहा हूं: तुम भी अपने हृदय हमारे सामने खोलकर रख दो.

विश्वासियों और अविश्वासियों में मेल-जोल असंभव

14अविश्वासियों के साथ असमान संबंध में न जुड़ो. धार्मिकता तथा अधार्मिकता में कैसा मेल-जोल या ज्योति और अंधकार में कैसा संबंध? 15मसीह और शैतान में कैसा मेल या विश्वासी और अविश्वासी में क्या सहभागिता? 16या परमेश्वर के मंदिर तथा मूर्तियों में कैसी सहमति? हम जीवित परमेश्वर के मंदिर हैं. जैसा कि परमेश्वर का कहना है:

मैं उनमें वास करूंगा,

उनके बीच चला फिरा करूंगा,

मैं उनका परमेश्वर बनूंगा,

और वे मेरी प्रजा.6:16 लेवी 26:12; येरे 32:38; यहेज 37:27

17इसलिये,

“उनके बीच से निकल आओ

और अलग हो जाओ,

यह प्रभु की आज्ञा है.

उसका स्पर्श न करो, जो अशुद्ध है,

तो मैं तुम्हें स्वीकार करूंगा.”6:17 यशा 52:11; यहेज 20:34, 41

18और,

“मैं तुम्हारा पिता बनूंगा

और तुम मेरी संतान.

यही है सर्वशक्तिमान प्रभु का कहना.”6:18 2 शमु 7:14; 7:8