1प्राचीन की ओर से,
चुनी हुई महिला और उसकी संतान को, जिनसे मुझे वास्तव में प्रेम है—न केवल मुझे परंतु उन सबको भी जिन्होंने सच को जान लिया है. 2यह उस सच के लिए है, जिसका हमारे भीतर वास है तथा जो हमेशा हमारे साथ रहेगा.
3परमेश्वर पिता और मसीह येशु की ओर से, जो पिता के पुत्र हैं, अनुग्रह, कृपा और शांति हमारे साथ सच तथा प्रेम में बनी रहेगी.
4इसे देखना मेरे लिए बहुत ही खुशी का विषय है कि सच्चाई में तुम्हारी संतानों में अनेक चलते हैं. यह ठीक वैसा ही है जैसा हमारे लिए पिता की आज्ञा है. 5हे स्त्री, मेरी तुमसे विनती है: हममें आपस में प्रेम हो. यह मैं तुम्हें किसी नई आज्ञा के रूप में नहीं लिख रहा हूं परंतु यह वही आज्ञा है, जो हमें प्रारंभ ही से दी गई है. 6प्रेम यही है कि हम उनकी आज्ञा के अनुसार स्वभाव करें. यह वही आज्ञा है, जो तुमने प्रारंभ से सुनी है, ज़रूरी है कि तुम उसका पालन करो.
7संसार में अनेक धूर्त निकल पड़े हैं, जो मसीह येशु के शरीर धारण करने को नकारते हैं. ऐसा व्यक्ति धूर्त है और मसीह विरोधी भी. 8अपने प्रति सावधान रहो, कहीं तुम हमारी उपलब्धियों को खो न बैठो, परंतु तुम्हें सारे पुरस्कार प्राप्त हों. 9हर एक, जो भटक कर दूर निकल जाता है और मसीह की शिक्षा में स्थिर नहीं रहता, उसमें परमेश्वर नहीं; तथा जो शिक्षा में स्थिर रहता है, उसने पिता तथा पुत्र दोनों ही को प्राप्त कर लिया है. 10यदि कोई तुम्हारे पास आकर यह शिक्षा नहीं देता, तुम न तो उसका अतिथि-सत्कार करो, न ही उसको नमस्कार करो; 11क्योंकि जो उसको नमस्कार करता है, वह उसकी बुराई में भागीदार हो जाता है.
12हालांकि लिखने योग्य अनेक विषय हैं किंतु मैं स्याही व लेखन-पत्रक इस्तेमाल नहीं करना चाहता; परंतु मेरी आशा है कि मैं तुम्हारे पास आऊंगा तथा आमने-सामने तुमसे बातचीत करूंगा कि हमारा आनंद पूरा हो जाए.
13तुम्हारी चुनी हुई बहन की संतान तुम्हें नमस्कार करती है.
1مِنْ يُوحَنَّا الشَّيْخِ، إِلَى السَّيِّدَةِ الَّتِي اخْتَارَهَا اللهُ، وَإِلَى أَوْلادِهَا الَّذِينَ أُحِبُّهُمْ جَمِيعاً بِالْحَقِّ، وَلَسْتُ أَنَا وَحْدِي أُحِبُّهُمْ، بَلْ أَيْضاً جَمِيعُ الَّذِينَ عَرَفُوا الْحَقَّ.
2بِمَا أَنَّ الْحَقَّ ثَابِتٌ فِي قُلُوبِنَا، وَلابُدَّ أَنْ يُرَافِقَنَا إِلَى الأَبَدِ، 3فَإِنَّ النِّعْمَةَ وَالرَّحْمَةَ وَالسَّلامَ سَتَكُونُ مَعَنَا، مِنْ عِنْدِ اللهِ الآبِ وَالرَّبِّ يَسُوعَ الْمَسِيحِ ابْنِ الآبِ، بِالْحَقِّ وَالْمَحَبَّةِ.
4فَرِحْتُ جِدّاً حِينَ وَجَدْتُ بَعْضَ أَوْلادِكِ يَسْلُكُونَ بِحَسَبِ الْحَقِّ، وَفْقاً لِمَا أَوْصَانَا بِهِ الآبُ. 5وَالآنَ، أَيَّتُهَا السَّيِّدَةُ، لِي رَجَاءٌ أَطْلُبُهُ مِنْكِ، وَلا تَعْتَبِرِيهِ وَصِيَّةً جَدِيدَةً. وَإِنَّمَا هُوَ تِلْكَ الْوَصِيَّةُ الْمَوْجُودَةُ عِنْدَنَا مُنْذُ الْبَدَايَةِ: أَنْ يُحِبَّ بَعْضُنَا بَعْضاً.
6هَذِهِ هِيَ الْمَحَبَّةُ: أَنْ نَسْلُكَ وَفْقاً لِوَصَايَاهُ. وَهَذِهِ هِيَ الْوَصِيَّةُ، كَمَا سَمِعْتُمْ مُنْذُ الْبَدَايَةِ: أَنْ تَسْلُكُوا فِي الْمَحَبَّةِ!
7إِنَّ الْعَالَمَ أَصْبَحَ مَلِيئاً بِالْمُضَلِّلِينَ الَّذِينَ لَا يَعْتَرِفُونَ أَنَّ يَسُوعَ الْمَسِيحَ جَاءَ إِلَى الأَرْضِ بِجِسْمٍ بَشَرِيٍّ. هَذَا هُوَ رُوحُ المُضِلِّ وَضِدُّ الْمَسِيحِ!
8فَانْتَبِهُوا لأَنْفُسِكُمْ، لِكَيْ لَا يَضِيعَ الْجَهْدُ الَّذِي بَذَلْنَاهُ فِي سَبِيلِكُمْ، بَلْ لِتَنَالُوا أَجْرَكُمْ كَامِلاً. 9لأَنَّ مَنْ تَعَدَّى تَعْلِيمَ الْمَسِيحِ وَلَمْ يَثْبُتْ فِيهِ، فَلَيْسَ اللهُ مِنْ نَصِيبِهِ. أَمَّا مَنْ يَثْبُتُ فِي هَذَا التَّعْلِيمِ، فَلَهُ الآبُ وَالابْنُ مَعاً.
10إِنْ جَاءَكُمْ أَحَدٌ بِغَيْرِ هَذَا التَّعْلِيمِ، فَلا تَسْتَقْبِلُوهُ فِي بَيْتِكُمْ، وَلا تُبَادِلُوهُ التَّحِيَّةَ. 11لأَنَّ مَنْ يُسَلِّمُ عَلَيْهِ، يُشَارِكُهُ فِي أَعْمَالِهِ الشِّرِّيرَةِ.
12كَانَ عِنْدِي أُمُورٌ كَثِيرَةٌ أَكْتُبُهَا إِلَيْكُمْ إِلّا أَنِّي مَا أَرَدْتُ أَنْ أَكْتُبَهَا هُنَا بِالْحِبْرِ وَالْوَرَقِ. فَأَنَا آمُلُ أَنْ أَزُورَكُمْ شَخْصِيًّا فَنَتَكَلَّمَ مُوَاجَهَةً. وَعِنْدَئِذٍ يَكْتَمِلُ فَرَحُنَا. 13يُسَلِّمُ عَلَيْكِ أَوْلادُ أُخْتِكِ الَّتِي اخْتَارَهَا اللهُ.