1 शमुएल 3 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

1 शमुएल 3:1-21

शमुएल का आह्वान

1उस समय बालक शमुएल एली के सामने याहवेह की सेवा कर रहा था. उन दिनों याहवेह का वचन दुर्लभ था; और दर्शन कम मिलते थे.

2यह वह स्थिति थी, जब एली के आंखों की रोशनी कम हो रही थी; तब वह स्पष्ट देखने में असमर्थ था, उस समय वह अपने कमरे में लेटा हुआ था. 3शमुएल भी याहवेह के मंदिर में विश्राम कर रहा था. वही परमेश्वर का संदूक था और परमेश्वर का दीप अब तक बुझा नहीं था. 4याहवेह ने शमुएल को पुकारा.

शमुएल ने उत्तर दिया, “आज्ञा दीजिए, मैं यहां हूं.” 5और वह दौड़कर एली के पास जा पहुंचे और कहने लगे, “आपने मुझे पुकारा है, मैं हूं यहां.”

मगर एली ने उन्हें उत्तर दिया, “नहीं तो; मैंने तुम्हें नहीं पुकारा. जाओ सो जाओ.” शमुएल जाकर सो गए.

6तब याहवेह ने शमुएल को पुनः पुकारा, “शमुएल!” तब शमुएल उठकर एली के पास गए और कहा, “आपने मुझे पुकारा है, मैं यहां हूं.”

मगर एली ने उससे कहा, “मैंने तुम्हें नहीं पुकारा, मेरे पुत्र जाओ, जाकर सो जाओ.”

7शमुएल को अब तक याहवेह का अनुभव नहीं था, और न ही अब तक उन पर याहवेह के संदेश का कोई प्रकाशन ही हुआ था.

8अब याहवेह ने तीसरी बार पुकारा, “शमुएल!” तब वह उठा और उठकर एली के पास गया और उनसे कहा, “मैं आ गया; आपने मुझे पुकारा है.”

तब एली को यह अहसास हुआ कि यह याहवेह है, जो शमुएल को पुकार रहे हैं. 9तब एली ने शमुएल से कहा, “जाकर सो जाओ. जब वह तुम्हें पुकारे तो कहना, ‘याहवेह, आप कहिए. आपका सेवक सुन रहा है.’ ” तब शमुएल अपने बिछौने पर जाकर लेट गए.

10तब याहवेह आए, शमुएल के निकट खड़े हुए और पहले जैसे पुकारा, “शमुएल! शमुएल!”

शमुएल ने उत्तर दिया, “आप कहिए, आपका सेवक सुन रहा है.”

11याहवेह ने शमुएल से कहा, “सुनो, मैं इस्राएल राष्ट्र में कुछ ऐसा करने पर हूं, कि जो कोई उसके विषय में सुनेगा, उसके दोनों कान झनझना उठेंगे. 12उस दिन मैं एली के विरुद्ध शुरू से लेकर अंत तक वह सब करूंगा, जो मैंने उसके परिवार के विषय में कहा है. 13क्योंकि मैं उसे यह सूचित कर चुका हूं, कि जिस अपराध के विषय में उसे पूरा ज्ञान था, उसके लिए मैं उसके परिवार को स्थायी दंड दूंगा; क्योंकि उसके पुत्र परमेश्वर का अपमान करते रहे हैं; फिर भी एली ने उन्हें नहीं रोका. 14तब एली के परिवार के संबंध में मैंने यह शपथ ली है, कि एली के परिवार का अपराध का प्रायश्चित कभी भी, न तो किसी बलि से, और न किसी भेंट से हो सकेगा.”

15शमुएल प्रातःकाल तक अपने बिछौने पर लेटा रहा. फिर उसने याहवेह के भवन के द्वार खोल दिया. रात के दिव्य दर्शन के विषय में एली को बताने में उसे भय लग रहा था, 16मगर एली ने उसे पुकारा, “शमुएल, मेरे पुत्र.”

शमुएल ने उत्तर दिया, “आज्ञा दीजिए, मैं यहां हूं.”

17“क्या कहा याहवेह ने?” एली ने उससे पूछा. “मुझसे कुछ भी न छुपाना. जो उन्होंने तुमसे कहा है उसमें से यदि तुम मुझसे कुछ भी छिपाओ, परमेश्वर तुम्हें कठोर से कठोर दंड दें.” 18तब शमुएल ने उन्हें सब कुछ बता दिया, कुछ भी नहीं छिपाया. यह सब सुन एली ने कहा, “वह याहवेह हैं; जो कुछ उन्हें सही लगे, करें.”

19शमुएल विकास होता गया; उस पर याहवेह की विशेष कृपादृष्टि थी तब उसका कोई भी वक्तव्य कभी निरर्थक सिद्ध नहीं हुआ. 20दान प्रदेश से लेकर बेअरशेबा तक सारा इस्राएल राष्ट्र को यह पता चल गया कि शमुएल याहवेह द्वारा समर्थित भविष्यद्वक्ता हैं. 21एक बार फिर याहवेह ने शीलो नगर में अपना दर्शन दिया, क्योंकि शीलो नगर में ही याहवेह ने अपने वचन द्वारा स्वयं को शमुएल पर प्रकाशित किया था.

Ketab El Hayat

صموئيل الأول 3:1-21

دعوة الله لصموئيل

1وَخَدَمَ الصَّبِيُّ صَمُوئِيلُ الرَّبَّ بِإِشْرَافِ عَالِي. وَكَانَتْ رَسَائِلُ الرَّبِّ نَادِرَةً فِي تِلْكَ الأَيَّامِ، وَالرُّؤَى عَزِيزَةً. 2وَحَدَثَ أَنَّ عَالِي كَانَ مُضْطَجِعاً فِي مَكَانِهِ الْمُعْتَادِ وَقَدْ كَلَّ بَصَرُهُ فَعَجَزَ عَنِ النَّظَرِ. 3وَبَيْنَمَا كَانَ صَمُوئِيلُ رَاقِداً فِي هَيْكَلِ الرَّبِّ الَّذِي فِيهِ تَابُوتُ اللهِ، وَلَمْ يَكُنْ سِرَاجُ اللهِ قَدِ انْطَفَأَ بَعْدُ، 4دَعَا الرَّبُّ صَمُوئِيلَ، فَأَجَابَ: «نَعَمْ». 5وَهَرْوَلَ نَحْوَ عَالِي قَائِلاً: «هَا أَنَا قَدْ جِئْتُ لأَنَّكَ اسْتَدْعَيْتَنِي». فَقَالَ عَالِي: «إِنَّنِي لَمْ أَدْعُكَ. عُدْ وَاضْطَجِعْ». فَرَجَعَ صَمُوئِيلُ وَرَقَدَ. 6ثُمَّ دَعَا الرَّبُّ صَمُوئِيلَ مَرَّةً ثَانِيَةً، فَنَهَضَ صَمُوئِيلُ وَمَضَى إِلَى عَالِي قَائِلاً: «هَا أَنَا جِئْتُ لأَنَّكَ دَعَوْتَنِي». فَأَجَابَهُ: «إِنَّنِي لَمْ أَدْعُكَ يَا ابْنِي، عُدْ وَاضْطَجِعْ». 7وَلَمْ يَكُنْ صَمُوئِيلُ قَدَ عَرَفَ الرَّبَّ بَعْدُ، وَلا تَلَقَّى مِنْهُ أَيَّةَ رِسَالَةٍ. 8وَدَعَا الرَّبُّ صَمُوئِيلَ مَرَّةً ثَالِثَةً، فَقَامَ وَذَهَبَ إِلَى عَالِي قَائِلاً: «هَا أَنَا قَدْ جِئْتُ لأَنَّكَ دَعَوْتَنِي». فَأَدْرَكَ عَالِي آنَئِذٍ أَنَّ الرَّبَّ هُوَ الَّذِي يَدْعُو الصَّبِيَّ، 9فَقَالَ عَالِي لِصَمُوئِيلَ: «اذْهَبْ وَارْقُدْ، وَإذَا دَعَاكَ الرَّبُّ فَقُلْ: تَكَلَّمْ يَا رَبُّ لأَنَّ عَبْدَكَ سَامِعٌ». فَذَهَبَ صَمُوئِيلُ وَرَقَدَ فِي مَكَانِهِ.

10وَدَعَا الرَّبُّ كَمَا حَدَثَ فِي الْمَرَّاتِ السَّابِقَةِ: «صَمُوئِيلُ، صَمُوئِيلُ». فَأَجَابَ صَمُوئِيلُ: «تَكَلَّمْ لأَنَّ عَبْدَكَ سَامِعٌ» 11فَقَالَ الرَّبُّ لِصَمُوئِيلَ: «هَا أَنَا مُزْمِعٌ أَنْ أُجْرِيَ أَمْراً فِي إِسْرَائِيلَ تَطِنُّ أُذُنَا كُلِّ مَنْ يَسْمَعُ بِهِ. 12إِذْ أُوْقِعُ بِعَالِي كُلَّ مَا تَوَعَّدْتُ بِهِ بَيْتَهُ مِنْ أَوَّلِهِ إِلَى آخِرِهِ. 13وَقَدْ أَنْبَأْتُهُ بِأَنَّنِي سَأَدِينُ بَيْتَهُ إِلَى الْأَبَدِ، عَلَى الشَّرِّ الَّذِي يَعْلَمُ أَنَّ ابْنَيْهِ قَدْ أَوْجَبَا بِهِ اللَّعْنَةَ عَلَى نَفْسَيْهِمَا، فَلَمْ يَرْدَعْهُمَا. 14لِهَذَا أَقْسَمْتُ أَنْ لَا يُكَفَّرَ عَنْ إِثْمِ بَيْتِ عَالِي بِذَبِيحَةٍ أَوْ تَقْدِمَةٍ إِلَى الأَبَدِ».

15وَنَامَ صَمُوئِيلُ إِلَى الصَّبَاحِ، ثُمَّ قَامَ وَفَتَحَ أَبْوَابَ بَيْتِ الرَّبِّ. وَخَافَ أَنْ يُطْلِعَ عَالِي عَلَى الرُّؤْيَا. 16فَاسْتَدْعَى عَالِي إِلَيْهِ صَمُوئِيلَ. 17وَسَأَلَهُ: «بِمَاذَا خَاطَبَكَ الرَّبُّ؟ لَا تُخْفِ عَنِّي. لِيُضَاعِفِ الرَّبُّ عِقَابَكَ إِنْ أَخْفَيْتَ عَنِّي كَلِمَةً مِمَّا خَاطَبَكَ بِهِ الرَّبُّ». 18فَأَطْلَعَهُ صَمُوئِيلُ عَلَى جَمِيعِ الْكَلامِ، وَلَمْ يُخْفِ عَنْهُ شَيْئاً. فَقَالَ عَالِي: «إِنَّهُ الرَّبُّ، وَهُوَ يَفْعَلُ مَا يَشَاءُ».

19وَكَبُرَ الصَّبِيُّ. وَكَانَ الرَّبُّ مَعَهُ. لَمْ يَخْذُلْهُ قَطُّ. 20وَعَرَفَ جَمِيعُ بَنِي إِسْرَائِيلَ مِنْ دَانٍ إِلَى بِئْرِ سَبْعَ أَنَّ الرَّبَّ قَدِ ائْتَمَنَ صَمُوئِيلَ ليَكُونَ لَهُ نَبِيًّا. 21وَظَلَّ الرَّبُّ يَتَجَلَّى فِي شِيلُوهَ حَيْثُ كَانَ يُعْلِنُ ذَاتَهُ لِصَمُوئِيلَ مِنْ خِلالِ رَسَائِلِهِ الَّتِي كَانَ صَمُوئِيلُ يُبَلِّغُهَا لِجَمِيعِ الشَّعْبِ.