हबक्कूक 3 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

हबक्कूक 3:1-19

हबक्कूक की प्रार्थना

1हबक्कूक भविष्यद्वक्ता की एक प्रार्थना. शिगयोनोथ की शैली में.

2हे याहवेह, मैंने आपके प्रसिद्धि के बारे सुना है;

हे याहवेह, मैं आपके कामों को देखकर भय खाता हूं.

हमारे दिनों में उन कामों को फिर से करिये,

हमारे समय में उन कामों को हमें बताईये;

अपने कोप में भी हम पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखिए.

3परमेश्वर तेमान से आये,

परम पवित्र का आगमन पारान पर्वत से हुआ.

उसकी महिमा से आकाश ढंक गया

और उसकी स्तुति से पृथ्वी भर गई.

4उनकी शोभा सूर्योदय के समान थी;

उनके हाथ से किरणें निकलती थी,

जहां उनका सामर्थ्य छिपा हुआ था.

5उनके आगे-आगे महामारी चलती थी;

तथा पीछे-पीछे घातक रोग.

6खड़े होकर उन्होंने पृथ्वी को हिला दिया;

उन्होंने देखा, और जाति-जाति के लोग कांप उठे.

पुराने पर्वत टुकड़े-टुकड़े होकर गिर गये

और पुरानी पहाड़ियां ढह गईं,

पर वे हमेशा से ही आगे बढ़ते रहते हैं.

7मैंने कूशान के तंबुओं में रहनेवालों को कष्ट में,

और मिदियान के रहनेवालों को बहुत पीड़ा में देखा.

8हे याहवेह, क्या आप नदियों पर क्रोधित हुए थे?

क्या आपका कोप पानी के सोतों पर था?

क्या आप समुद्र पर क्रोधित हुए

जब आपने जय पाने के लिये अपने घोड़ों

और अपने रथों पर सवारी की?

9आपने अपने धनुष को खोल से निकाला,

आपने बहुत सारे तीरों को मंगाया.

आपने नदियों के द्वारा पृथ्वी को बांट दिया;

10पर्वत आपको देखकर थर्रा उठे.

पानी का तेज प्रवाह होने लगा;

गहरे समुद्र गरज उठे

और उसमें से ऊंची-ऊंची लहरें उठने लगी.

11आपके उड़ते हुए तीरों के चमक से,

आपके चमकते भाले के तेज से

सूर्य और चंद्रमां आकाश में स्थिर हो गए.

12क्रोध में आप धरती पर पैर पटकते हुए निकल गए

और गुस्से में आपने जाति-जाति के लोगों को रौंद दिया.

13आप अपने लोगों के छुटकारे,

और अपने अभिषिक्त जन को बचाने के लिये बाहर निकले.

आपने दुष्ट राष्ट्र के अगुआ को कुचल दिया,

और उसको सिर से लेकर पांव तक नंगा कर दिया.

14आपने उसी के भाले से उसके सिर को छेदा है,

जब उसके योद्धा हमें तितर-बितर करने के लिये हम पर टूट पड़े,

वे ऐसे घूर रहे थे मानो छिपे हुए दुष्ट लोगों को

नष्ट करनेवाले हों.

15आपने पानी के बड़े भंडार को मथते हुए

समुद्र को अपने घोड़ों से रौंदा.

16मैंने सुना और मेरे दिल के टुकड़े-टुकड़े हो गये,

उस आवाज को सुनकर मेरे ओंठ कांपने लगे;

मेरी हड्डियां सड़ने लगीं,

और मेरे पैर कांपने लगे.

फिर भी मैं धीरज के साथ उस जाति के लोगों पर विपत्ति के दिन के आने

का इंतजार करूंगा जो हम पर आक्रमण कर रहे हैं.

17चाहे अंजीर के पेड़ में कलियां न खिलें

और दाखलता में अंगूर न फलें,

चाहे जैतून के पेड़ में फल न आएं

और खेतों में कोई अन्‍न न उपजे,

चाहे भेड़शाला में कोई भेड़ न हो

और गौशाला में कोई पशु न हो,

18फिर भी मैं याहवेह में आनंद मनाऊंगा,

मैं अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर में आनंदित रहूंगा.

19परम याहवेह मेरे बल के स्रोत हैं;

वे मेरे पांवों को हिरण के पांवों के समान चपलता देते हैं,

वे मुझे ऊंचाइयों पर चलने के योग्य बनाते हैं.