स्तोत्र 37 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 37:1-40

स्तोत्र 37

दावीद की रचना

1दुष्टों के कारण मत कुढ़ो,

कुकर्मियों से डाह मत करो;

2क्योंकि वे तो घास के समान शीघ्र मुरझा जाएंगे,

वे हरे पौधे के समान शीघ्र नष्ट हो जाएंगे.

3याहवेह में भरोसा रखते हुए वही करो, जो उपयुक्त है;

कि तुम सुरक्षित होकर स्वदेश में खुशहाल निवास कर सको.

4तुम्हारा आनंद याहवेह में मगन हो,

वही तुम्हारे मनोरथ पूर्ण करेंगे.

5याहवेह को अपने जीवन की योजनाएं सौंप दो;

उन पर भरोसा करो और वे तुम्हारे लिए ये सब करेंगे:

6वे तुम्हारी धार्मिकता को सबेरे के सूर्य के समान

तथा तुम्हारी सच्चाई को मध्याह्न के सूर्य समान चमकाएंगे.

7याहवेह के सामने चुपचाप रहकर

धैर्यपूर्वक उन पर भरोसा करो;

जब दुष्ट पुरुषों की युक्तियां सफल होने लगें

अथवा जब वे अपनी बुराई की योजनाओं में सफल होने लगें तो मत कुढ़ो!

8क्रोध से दूर रहो, कोप का परित्याग कर दो;

कुढ़ो मत! इससे बुराई ही होती है.

9कुकर्मी तो काट डाले जाएंगे,

किंतु याहवेह के श्रद्धालुओं के लिए भाग आरक्षित है.

10कुछ ही समय शेष है जब दुष्ट का अस्तित्व न रहेगा;

तुम उसे खोजने पर भी न पाओगे.

11किंतु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे,

वे बड़ी समृद्धि में आनंदित रहेंगे.

12दुष्ट धर्मियों के विरुद्ध बुरी युक्ति रचते रहते हैं,

उन्हें देख दांत पीसते रहते हैं;

13किंतु प्रभु दुष्ट पर हंसते हैं,

क्योंकि वह जानते हैं कि उसके दिन समाप्‍त हो रहे हैं.

14दुष्ट तलवार खींचते हैं

और धनुष पर डोरी चढ़ाते हैं

कि दुःखी और दीन दरिद्र को मिटा दें,

उनका वध कर दें, जो सीधे हैं.

15किंतु उनकी तलवार उन्हीं के हृदय को छेदेगी

और उनके धनुष टूट जाएंगे.

16दुष्ट की विपुल संपत्ति की अपेक्षा

धर्मी की सीमित राशि ही कहीं उत्तम है;

17क्योंकि दुष्ट की भुजाओं का तोड़ा जाना निश्चित है,

किंतु याहवेह धर्मियों का बल हैं.

18याहवेह निर्दोष पुरुषों की आयु पर दृष्टि रखते हैं,

उनका निज भाग सर्वदा स्थायी रहेगा.

19संकट काल में भी उन्हें लज्जा का सामना नहीं करना पड़ेगा;

अकाल में भी उनके पास भरपूर रहेगा.

20दुष्टों का विनाश सुनिश्चित है:

याहवेह के शत्रुओं की स्थिति घास के वैभव के समान है,

वे धुएं के समान विलीन हो जाएंगे.

21दुष्ट ऋण लेकर उसे लौटाता नहीं,

किंतु धर्मी उदारतापूर्वक देता रहता है;

22याहवेह द्वारा आशीषित पुरुष पृथ्वी के भागी होंगे,

याहवेह द्वारा शापित पुरुष नष्ट कर दिए जाएंगे.

23जिस पुरुष के कदम याहवेह द्वारा नियोजित किए जाते हैं,

उसके आचरण से याहवेह प्रसन्‍न होते हैं;

24तब यदि वह लड़खड़ा भी जाए, वह गिरेगा नहीं,

क्योंकि याहवेह उसका हाथ थामे हुए हैं.

25मैंने युवावस्था देखी और अब मैं प्रौढ़ हूं,

किंतु आज तक मैंने न तो धर्मी को शोकित होते देखा है

और न उसकी संतान को भीख मांगते.

26धर्मी सदैव उदार ही होते हैं तथा उदारतापूर्वक देते रहते हैं;

आशीषित रहती है उनकी संतान.

27बुराई से परे रहकर परोपकार करो;

तब तुम्हारा जीवन सदैव सुरक्षित बना रहेगा.

28क्योंकि याहवेह को सच्चाई प्रिय है

और वे अपने भक्तों का परित्याग कभी नहीं करते.

वह चिरकाल के लिए सुरक्षित हो जाते हैं;

किंतु दुष्ट की सन्तति मिटा दी जाएगी.

29धर्मी पृथ्वी के भागी होंगे

तथा उसमें सर्वदा निवास करेंगे.

30धर्मी अपने मुख से ज्ञान की बातें कहता है,

तथा उसकी जीभ न्याय संगत वचन ही उच्चारती है.

31उसके हृदय में उसके परमेश्वर की व्यवस्था बसी है;

उसके कदम फिसलते नहीं.

32दुष्ट, जो धर्मी के प्राणों का प्यासा है,

उसकी घात लगाए बैठा रहता है;

33किंतु याहवेह धर्मी को दुष्ट के अधिकार में जाने नहीं देंगे

और न ही न्यायालय में उसे दोषी प्रमाणित होने देंगे.

34याहवेह की सहायता की प्रतीक्षा करो

और उन्हीं के सन्मार्ग पर चलते रहो.

वही तुमको ऐसा ऊंचा करेंगे, कि तुम्हें उस भूमि का अधिकारी कर दें;

दुष्टों की हत्या तुम स्वयं अपनी आंखों से देखोगे.

35मैंने एक दुष्ट एवं क्रूर पुरुष को देखा है

जो उपजाऊ भूमि के हरे वृक्ष के समान ऊंचा था,

36किंतु शीघ्र ही उसका अस्तित्व समाप्‍त हो गया;

खोजने पर भी मैं उसे न पा सका.

37निर्दोष की ओर देखो, खरे को देखते रहो;

उज्जवल होता है शांत पुरुष का भविष्य.

38किंतु समस्त अपराधी नाश ही होंगे;

दुष्टों की सन्तति ही मिटा दी जाएगी.

39याहवेह धर्मियों के उद्धार का उगम स्थान हैं;

वही विपत्ति के अवसर पर उनके आश्रय होते हैं.

40याहवेह उनकी सहायता करते हुए उनको बचाते हैं;

इसलिये कि धर्मी याहवेह का आश्रय लेते हैं,

याहवेह दुष्ट से उनकी रक्षा करते हुए उनको बचाते हैं.