स्तोत्र 35 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 35:1-28

स्तोत्र 35

दावीद की रचना

1याहवेह, आप उनसे न्याय-विन्याय करें, जो मुझसे न्याय-विन्याय कर रहे हैं;

आप उनसे युद्ध करें, जो मुझसे युद्ध कर रहे हैं.

2ढाल और कवच के साथ;

मेरी सहायता के लिए आ जाइए.

3उनके विरुद्ध, जो मेरा पीछा कर रहे हैं,

बर्छी और भाला उठाइये.

मेरे प्राण को यह आश्वासन दीजिए,

“मैं हूं तुम्हारा उद्धार.”

4वे, जो मेरे प्राणों के प्यासे हैं,

वे लज्जित और अपमानित हों;

जो मेरे विनाश की योजना बना रहे हैं,

पराजित हो भाग खड़े हों.

5जब याहवेह का दूत उनका पीछा करे,

वे उस भूसे समान हो जाएं, जिसे पवन उड़ा ले जाता है;

6उनका मार्ग ऐसा हो जाए, जिस पर अंधकार और फिसलन है.

और उस पर याहवेह का दूत उनका पीछा करता जाए.

7उन्होंने अकारण ही मेरे लिए जाल बिछाया

और अकारण ही उन्होंने मेरे लिए गड्ढा खोदा है,

8उनका विनाश उन पर अचानक ही आ पड़े,

वे उसी जाल में जा फंसे, जो उन्होंने बिछाया था,

वे स्वयं उस गड्ढे में गिरकर नष्ट हो जाएं.

9तब याहवेह में मेरा प्राण उल्‍लसित होगा

और उनके द्वारा किया गया उद्धार मेरे हर्षोल्लास का विषय होगा.

10मेरी हड्डियां तक कह उठेंगी,

“कौन है याहवेह के तुल्य?

आप ही हैं जो दुःखी को बलवान से,

तथा दरिद्र और दीन को लुटेरों से छुड़ाते हैं.”

11क्रूर साक्ष्य मेरे विरुद्ध उठ खड़े हुए हैं;

वे मुझसे उन विषयों की पूछताछ कर रहे हैं, जिनका मुझे कोई ज्ञान ही नहीं है.

12वे मेरे उपकार का प्रतिफल अपकार में दे रहे हैं,

मैं शोकित होकर रह गया हूं.

13जब वे दुःखी थे, मैंने सहानुभूति में शोक-वस्त्र धारण किए,

यहां तक कि मैंने दीन होकर उपवास भी किया.

जब मेरी प्रार्थनाएं बिना कोई उत्तर के मेरे पास लौट आईं,

14मैं इस भाव में विलाप करता चला गया

मानो मैं अपने मित्र अथवा भाई के लिए विलाप कर रहा हूं.

मैं शोक में ऐसे झुक गया

मानो मैं अपनी माता के लिए शोक कर रहा हूं.

15किंतु यहां जब मैं ठोकर खाकर गिर पड़ा हूं, वे एकत्र हो आनंद मना रहे हैं;

इसके पूर्व कि मैं कुछ समझ पाता, वे मुझ पर आक्रमण करने के लिए एकजुट हो गए हैं.

वे लगातार मेरी निंदा कर रहे हैं.

16जब वे नास्तिक जैसे मेरा उपहास कर रहे थे, उसमें क्रूरता का समावेश था;

वे मुझ पर दांत भी पीस रहे थे.

17याहवेह, आप कब तक यह सब चुपचाप ही देखते रहेंगे?

उनके विनाशकारी कार्य से मेरा बचाव कीजिए,

सिंहों समान इन दुष्टों से मेरी रक्षा कीजिए.

18महासभा के सामने मैं आपका आभार व्यक्त करूंगा;

जनसमूह में मैं आपका स्तवन करूंगा.

19जो अकारण ही मेरे शत्रु बन गए हैं,

अब उन्हें मेरा उपहास करने का संतोष प्राप्‍त न हो;

अब अकारण ही मेरे विरोधी बन गए

पुरुषों को आंखों ही आंखों में मेरी निंदा में निर्लज्जतापूर्ण संकेत करने का अवसर प्राप्‍त न हो.

20उनके वार्तालाप शांति प्रेरक नहीं होते,

वे शांति प्रिय नागरिकों के लिए

झूठे आरोप सोचने में लगे रहते हैं.

21मुख फाड़कर वे मेरे विरुद्ध यह कहते हैं, “आहा! आहा!

हमने अपनी ही आंखों से सब देख लिया है.”

22याहवेह, सत्य आपकी दृष्टि में है; अब आप शांत न रहिए.

याहवेह, अब मुझसे दूर न रहिए.

23मेरी रक्षा के लिए उठिए!

मेरे परमेश्वर और मेरे स्वामी, मेरे पक्ष में न्याय प्रस्तुत कीजिए.

24याहवेह, मेरे परमेश्वर, अपनी सच्चाई में मुझे निर्दोष प्रमाणित कीजिए;

मेरी स्थिति से उन्हें कोई आनंद प्राप्‍त न हो.

25वे मन ही मन यह न कह सकें, “देखा, यही तो हम चाहते थे!”

अथवा वे यह न कह सकें, “हम उसे निगल गए.”

26वे सभी, जो मेरी दुखद स्थिति पर आनंदित हो रहे हैं,

लज्जित और निराश हो जाएं;

वे सभी, जिन्होंने मुझे नीच प्रमाणित करना चाहा था

स्वयं निंदा और लज्जा में दब जाएं.

27वे सभी, जो मुझे दोष मुक्त हुआ देखने की कामना करते रहे,

आनंद में उल्‍लसित हो जय जयकार करें;

उनका स्थायी नारा यह हो जाए, “ऊंची हो याहवेह की महिमा,

वह अपने सेवक के कल्याण में उल्‍लसित होते हैं.”

28मेरी जीभ सर्वदा आपकी धार्मिकता की घोषणा,

तथा आपकी वंदना करती रहेगी.