स्तोत्र 129 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 129:1-8

स्तोत्र 129

आराधना के लिए यात्रियों का गीत.

1“मेरे बचपन से वे मुझ पर घोर अत्याचार करते आए हैं,”

इस्राएल राष्ट्र यही कहे;

2“मेरे बचपन से वे मुझ पर घोर अत्याचार करते आए हैं,

किंतु वे मुझ पर प्रबल न हो सके हैं.

3हल चलानेवालों ने मेरे पीठ पर हल चलाया है,

और लम्बी-लम्बी हल रेखाएं खींच दी हैं.

4किंतु याहवेह युक्त है;

उन्हीं ने मुझे दुष्टों के बंधनों से मुक्त किया है.”

5वे सभी, जिन्हें ज़ियोन से बैर है,

लज्जित हो लौट जाएं.

6उनकी नियति भी वही हो, जो घर की छत पर उग आई घास की होती है,

वह विकसित होने के पूर्व ही मुरझा जाती है;

7किसी के हाथों में कुछ भी नहीं आता,

और न उसकी पुलियां बांधी जा सकती हैं.

8आते जाते पुरुष यह कभी न कह पाएं,

“तुम पर याहवेह की कृपादृष्टि हो;

हम याहवेह के नाम में तुम्हारे लिए मंगल कामना करते हैं.”