स्तोत्र 115 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 115:1-18

स्तोत्र 115

1हमारी नहीं, याहवेह, हमारी नहीं,

परंतु आपकी ही महिमा हो,

आपके करुणा-प्रेम115:1 करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द का अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये शामिल हैं और आपकी सच्चाई के निमित्त.

2अन्य जनता यह क्यों कह रहे हैं,

“कहां है उनका परमेश्वर?”

3स्वर्ग में हैं हमारे परमेश्वर और वह वही सब करते हैं;

जिसमें उनकी चाहत है.

4किंतु इन राष्ट्रों की प्रतिमाएं मात्र स्वर्ण और चांदी हैं,

मनुष्यों की हस्तकृति मात्र.

5हां, उनका मुख अवश्य है, किंतु ये बोल नहीं सकतीं,

उनकी आंखें अवश्य हैं, किंतु ये देख नहीं सकतीं.

6उनके कान हैं, किंतु ये सुन नहीं सकतीं,

नाक तो है, किंतु ये सूंघ नहीं सकती.

7इनके हाथ हैं, किंतु ये स्पर्श नहीं कर सकतीं,

पैर भी हैं, किंतु ये चल फिर नहीं सकतीं,

न ही ये अपने कण्ठ से कोई स्वर ही उच्चार सकती हैं.

8इनके समान ही हो जाएंगे इनके निर्माता,

साथ ही वे सभी, जो इन पर भरोसा करते हैं.

9इस्राएल के वंशजो, याहवेह पर भरोसा करो;

वही हैं तुम्हारे सहायक तथा रक्षक.

10अहरोन के वंशजो, याहवेह पर भरोसा करो;

वही हैं तुम्हारे सहायक तथा रक्षक.

11याहवेह के भय माननेवालो, याहवेह में भरोसा रखो,

याहवेह सहारा देता है और अपने अनुयायियों की रक्षा करता है.

12याहवेह को हमारा स्मरण रहता है, हम पर उनकी कृपादृष्टि रहेगी:

याहवेह अपने लोग इस्राएल को आशीर्वाद देंगे,

उनकी कृपादृष्टि अहरोन के वंश पर रहेगी.

13उनकी कृपादृष्टि उन सभी पर रहेगी, जिनमें याहवेह के प्रति श्रद्धा है—

चाहे वे साधारण हों अथवा विशिष्ट.

14याहवेह तुम्हें ऊंचा करें,

तुम्हें और तुम्हारी संतान को.

15याहवेह की कृपादृष्टि तुम पर स्थिर रहे,

जो स्वर्ग और पृथ्वी के रचनेवाले हैं.

16सर्वोच्च स्वर्ग के स्वामी याहवेह हैं,

किंतु पृथ्वी उन्होंने मनुष्य को सौंपी है.

17वे मृतक नहीं हैं, जो याहवेह का स्तवन करते हैं,

न ही जो चिर-निद्रा में समा जाते हैं;

18किंतु जहां तक हमारा प्रश्न है, हम याहवेह का गुणगान करते रहेंगे,

इस समय तथा सदा-सर्वदा.

याहवेह का स्तवन हो.