स्तोत्र 11 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 11:1-7

स्तोत्र 11

संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना

1मैंने याहवेह में आश्रय लिया है,

फिर तुम मुझसे यह क्यों कह रहे हो:

“पंछी के समान अपने पर्वत को उड़ जा.

2सावधान! दुष्ट ने अपना धनुष साध लिया है;

और उसने धनुष पर बाण भी चढ़ा लिया है,

कि अंधकार में

सीधे लोगों की हत्या कर दे.

3यदि आधार ही नष्ट हो जाए,

तो धर्मी के पास कौन सा विकल्प शेष रह जाता है?”

4याहवेह अपने पवित्र मंदिर में हैं;

उनका सिंहासन स्वर्ग में बसा है.

उनकी दृष्टि सर्वत्र मनुष्यों को देखती है;

उनकी सूक्ष्मदृष्टि हर एक को परखती रहती है.

5याहवेह की दृष्टि धर्मी एवं दुष्ट दोनों को परखती है,

याहवेह के आत्मा हिंसा

प्रिय पुरुषों से घृणा करते हैं.

6दुष्टों पर वह फन्दों की वृष्टि करेंगे,

उनके प्याले में उनका अंश होगा अग्नि;

गंधक तथा प्रचंड हवा.

7याहवेह युक्त हैं,

धर्मी ही उन्हें प्रिय हैं;

धर्मी जन उनका मुंह देखने पाएंगे.