स्तोत्र 109 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 109:1-31

स्तोत्र 109

संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना. एक स्तोत्र.

1परमेश्वर, मेरे स्तुति पात्र,

निष्क्रिय और चुप न रहिए.

2दुष्ट और झूठे पुरुषों ने मेरी निंदा

करना प्रारंभ कर दिया है;

वे जो कुछ कहकर मेरी निंदा कर रहे हैं, वह सभी झूठ है.

3उन्होंने मुझ पर घिनौने शब्दों की बौछार कर दी;

अकारण ही उन्होंने मुझ पर आक्रमण कर दिया है.

4उन्होंने मेरी मैत्री के बदले मुझ पर आरोप लगाये,

किंतु मैं प्रार्थना का आदमी109:4 प्रार्थना का आदमी अर्थात् निरंतर प्रार्थना करनेवाला व्यक्ति हूं!

5उन्होंने मेरे हित का प्रतिफल बुराई में दिया है,

तथा मेरी मैत्री का प्रतिफल घृणा में.

6आप उसका प्रतिरोध करने के लिए किसी दुष्ट पुरुष को ही बसा लीजिए;

उसके दायें पक्ष पर कोई विरोधी खड़ा हो जाए.

7जब उस पर न्याय चलाया जाए तब वह दोषी पाया जाए,

उसकी प्रार्थनाएं उसके लिए दंड-आज्ञा हो जाएं.

8उसकी आयु कम हो जाए;

उसके पद को कोई अन्य हड़प ले.

9उसकी संतान पितृहीन हो जाए

तथा उसकी पत्नी विधवा.

10उसकी संतान भटकें और भीख मांगें;

वे अपने उजड़े घर से दूर जाकर भोजन के लिए तरस जाएं.

11महाजन उसका सर्वस्व हड़प लें;

उसके परिश्रम की संपूर्ण निधि परदेशी लोग लूट लें.

12उसे किसी की भी कृपा प्राप्‍त न हो

और न कोई उसकी पितृहीन संतान पर करुणा प्रदर्शित करे.

13उसका वंश ही मिट जाए,

आगामी पीढ़ी की सूची से उनका नाम मिट जाए.

14याहवेह के सामने उसके पूर्वजों का अपराध स्मरण दिलाया जाए;

उसकी माता का पाप कभी क्षमा न किया जाए.

15याहवेह के सामने उन सभी के पाप बने रहें,

कि वह उन सबका नाम पृथ्वी पर से ही मिटा दें.

16करुणाभाव उसके मन में कभी आया ही नहीं,

वह खोज कर निर्धनों,

दीनों तथा खेदितमनवालों की हत्या करता है.

17शाप देना उसे अत्यंत प्रिय है,

वही शाप उस पर आ पड़े.

किसी की हितकामना करने में उसे कोई आनंद प्राप्‍त नहीं होता—

उत्तम यही होगा कि हित उससे ही दूर-दूर बना रहे.

18उसके लिए वस्त्र धारण करने जैसे ही हो गया शाप देना;

जैसा जल शरीर का अंश होता है; वैसे ही हो गया शाप,

हां, जैसे तेल हड्डियों का अंश हो जाता है!

19शाप ही उसका वस्त्र बन जाए,

कटिबंध समान, जो सदैव समेटे रहता है.

20याहवेह की ओर से मेरे विरोधियों के लिए यही प्रतिफल हो,

उनके लिए, जो मेरी निंदा करते रहते हैं.

21किंतु आप, सर्वसत्ताधारी याहवेह,

अपनी महिमा के अनुरूप मुझ पर कृपा कीजिए;

अपने करुणा-प्रेम के कारण मेरा उद्धार कीजिए.

22मैं दीन और दरिद्र हूं,

और मेरा हृदय घायल है.

23संध्याकालीन छाया-समान मेरा अस्तित्व समाप्‍ति पर है;

मुझे ऐसे झाड़ दिया जाता है मानो मैं अरबेह टिड्डी हूं.

24उपवास के कारण मेरे घुटने दुर्बल हो चुके हैं;

मेरा शरीर क्षीण और कमजोर हो गया है.

25मेरे विरोधियों के लिए मैं घृणास्पद हो चुका हूं;

मुझे देखते ही वे सिर हिलाने लगते हैं.

26याहवेह मेरे परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए;

अपने करुणा-प्रेम के कारण मेरा उद्धार कीजिए.

27उनको यह स्पष्ट हो जाए कि, वह आपके बाहुबल के कारण ही हो रहा है,

यह कि याहवेह, यह सब आपने ही किया है.

28वे शाप देते रहें, किंतु आप आशीर्वचन ही कहें;

तब जब वे, आक्रमण करेंगे, उन्हें लज्जित होना पड़ेगा,

यह आपके सेवक के लिए आनंद का विषय होगा.

29मेरे विरोधियों को अनादर के वस्त्रों के समान धारण करनी होगी,

वे अपनी ही लज्जा को कंबल जैसे लपेट लेंगे.

30मेरे मुख की वाणी याहवेह के सम्मान में उच्चतम धन्यवाद होगी;

विशाल जनसमूह के सामने मैं उनका स्तवन करूंगा,

31क्योंकि याहवेह दुःखितों के निकट दायें पक्ष पर आ खड़े रहते हैं,

कि वह उनके जीवन को उन सबसे सुरक्षा प्रदान करें, जिन्होंने उसके लिए मृत्यु दंड निर्धारित किया था.