स्तोत्र 105 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 105:1-45

स्तोत्र 105

1याहवेह के प्रति आभार व्यक्त करो, उनको पुकारो;

सभी जनताओं के सामने उनके द्वारा किए कार्यों की घोषणा करो.

2उनकी प्रशंसा में गाओ, उनका गुणगान करो;

उनके सभी अद्भुत कार्यों का वर्णन करो.

3उनके पवित्र नाम पर गर्व करो;

उनके हृदय, जो याहवेह के खोजी हैं, उल्‍लसित हों.

4याहवेह और उनकी सामर्थ्य की खोज करो;

उनकी उपस्थिति के सतत खोजी बने रहो.

5उनके द्वारा किए अद्भुत कार्य स्मरण रखो

तथा उनके द्वारा हुईं अद्भुत बातें एवं निर्णय भी,

6उनके सेवक अब्राहाम के वंश,

उनके द्वारा चुने हुए याकोब की संतान.

7वह याहवेह हैं, हमारे परमेश्वर;

समस्त पृथ्वी पर उनके द्वारा किया गया न्याय स्पष्ट है.

8उन्हें अपनी वाचा सदैव स्मरण रहती है,

वह आदेश जो उन्होंने हजार पीढ़ियों को दिया,

9वह वाचा, जो उन्होंने अब्राहाम के साथ स्थापित की,

प्रतिज्ञा की वह शपथ, जो उन्होंने यित्सहाक से खाई थी,

10जिसकी पुष्टि उन्होंने याकोब से अधिनियम स्वरूप की,

अर्थात् इस्राएल से स्थापित अमर यह वाचा:

11“कनान देश तुम्हें मैं प्रदान करूंगा.

यह वह भूखण्ड है, जो तुम निज भाग में प्राप्‍त करोगे.”

12जब परमेश्वर की प्रजा की संख्या अल्प ही थी, जब उनकी संख्या बहुत ही कम थी,

और वे उस देश में परदेशी थे,

13जब वे एक देश से दूसरे देश में भटकते फिर रहे थे,

वे एक राज्य में से होकर दूसरे में यात्रा कर रहे थे,

14परमेश्वर ने किसी भी राष्ट्र को उन्हें दुःखित न करने दिया;

उनकी ओर से स्वयं परमेश्वर उन राजाओं को डांटते रहे:

15“मेरे अभिषिक्तों का स्पर्श तक न करना;

मेरे भविष्यवक्ताओं को कोई हानि न पहुंचे!”

16तब परमेश्वर ने उस देश में अकाल की स्थिति उत्पन्‍न कर दी.

उन्होंने ही समस्त आहार तृप्‍ति नष्ट कर दी;

17तब परमेश्वर ने एक पुरुष, योसेफ़ को,

जिनको दास बनाकर उस देश में पहले भेज दिया.

18उन्होंने योसेफ़ के पैरों में बेड़ियां डालकर उन पैरों को ज़ख्मी किया था,

उनकी गर्दन में भी बेड़ियां डाल दी गई थीं.

19तब योसेफ़ की पूर्वोक्ति सत्य प्रमाणित हुई, उनके विषय में,

याहवेह के वक्तव्य ने उन्हें सत्य प्रमाणित कर दिया.

20राजा ने उन्हें मुक्त करने के आदेश दिए,

प्रजा के शासक ने उन्हें मुक्त कर दिया.

21उसने उन्हें अपने भवन का प्रधान

तथा संपूर्ण संपत्ति का प्रशासक बना दिया,

22कि वह उनके प्रधानों को अपनी इच्छापूर्ति के निमित्त आदेश दे सकें

और उनके मंत्रियों को सुबुद्धि सिखा सकें.

23तब इस्राएल ने मिस्र में पदार्पण किया;

तब हाम की धरती पर याकोब एक प्रवासी होकर रहने लगे.

24याहवेह ने अपने चुने हुओं को अत्यंत समृद्ध कर दिया;

यहां तक कि उन्हें उनके शत्रुओं से अधिक प्रबल बना दिया,

25जिनके हृदय में स्वयं परमेश्वर ने अपनी प्रजा के प्रति घृणा उत्पन्‍न कर दी,

वे परमेश्वर के सेवकों के विरुद्ध बुरी युक्ति रचने लगे.

26तब परमेश्वर ने अपने चुने हुए सेवक मोशेह को उनके पास भेजा,

और अहरोन को भी.

27उन्होंने परमेश्वर की ओर से उनके सामने आश्चर्य कार्य प्रदर्शित किए,

हाम की धरती पर उन्होंने अद्भुत कार्य प्रदर्शित किए.

28उनके आदेश ने सारे देश को अंधकारमय कर दिया;

क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के आदेशों की अवहेलना की.

29परमेश्वर ही के आदेश से देश का समस्त जल रक्त में बदल गया,

परिणामस्वरूप समस्त मछलियां मर गईं.

30उनके समस्त देश में असंख्य मेंढक उत्पन्‍न हो गए,

यहां तक कि उनके न्यायियों के शयनकक्ष में भी पहुंच गए.

31परमेश्वर ने आदेश दिया और मक्खियों के समूह देश पर छा गए,

इसके साथ ही समस्त देश में मच्छर भी समा गए.

32उनके आदेश से वर्षा ने ओलों का रूप ले लिया,

समस्त देश में आग्नेय विद्युज्ज्वाला बरसने लगी.

33तब परमेश्वर ने उनकी द्राक्षालताओं तथा अंजीर के वृक्षों पर भी आक्रमण किया,

और तब उन्होंने उनके देश के वृक्षों का अंत कर दिया.

34उनके आदेश से अरबेह टिड्डियों ने आक्रमण कर दिया,

ये यालेक टिड्डियां असंख्य थीं;

35उन्होंने देश की समस्त वनस्पति को निगल लिया,

भूमि की समस्त उपज समाप्‍त हो गई.

36तब परमेश्वर ने उनके देश के हर एक पहलौठे की हत्या की,

उन समस्त पहिलौठों का, जो उनके पौरुष का प्रमाण थे.

37परमेश्वर ने स्वर्ण और चांदी के बड़े धन के साथ इस्राएल को मिस्र देश से बचाया,

उसके समस्त गोत्रों में से कोई भी कुल नहीं लड़खड़ाया.

38मिस्र निवासी प्रसन्‍न ही थे, जब इस्राएली देश छोड़कर जा रहे थे,

क्योंकि उन पर इस्राएल का आतंक छा गया था.

39उन पर आच्छादन के निमित्त परमेश्वर ने एक मेघ निर्धारित कर दिया था,

और रात्रि में प्रकाश के लिए अग्नि भी.

40उन्होंने प्रार्थना की और परमेश्वर ने उनके निमित्त आहार के लिए बटेरें भेज दीं;

और उन्हें स्वर्गिक आहार से भी तृप्‍त किया.

41उन्होंने चट्टान को ऐसे खोल दिया, कि उसमें से उनके निमित्त जल बहने लगा;

यह जल वन में नदी जैसे बहने लगा.

42क्योंकि उन्हें अपने सेवक अब्राहाम से

की गई अपनी पवित्र प्रतिज्ञा स्मरण की.

43आनंद के साथ उनकी प्रजा वहां से बाहर लाई गई,

उनके चुने हर्षनाद कर रहे थे;

44परमेश्वर ने उनके लिए अनेक राष्ट्रों की भूमि दे दी,

वे उस संपत्ति के अधिकारी हो गए जिसके लिए किसी अन्य ने परिश्रम किया था.

45कि वे परमेश्वर के अधिनियमों का पालन कर सकें

और उनके नियमों को पूरा कर सकें.

याहवेह का स्तवन हो.