स्तोत्र 10 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 10:1-18

स्तोत्र 10

1याहवेह, आप दूर क्यों खड़े हैं?

संकट के समय आप स्वयं को क्यों छिपा लेते हैं?

2दुर्जन अपने अहंकार में असहाय निर्धन को खदेड़ते हैं,

दुर्जन अपनी ही रची गई युक्तियों में फंसकर रह जाएं.

3दुर्जन की मनोकामना पूर्ण होती जाती है, तब वह इसका घमंड करता है;

लालची पुरुष याहवेह की निंदा करता तथा उनसे अलग हो जाता है.

4दुष्ट अपने अहंकार में परमेश्वर की कामना ही नहीं करता;

वह अपने मन में मात्र यही विचार करता रहता है: परमेश्वर है ही नहीं.

5दुष्ट के प्रयास सदैव सफल होते जाते हैं;

उसके सामने आपके आदेशों का कोई महत्व है ही नहीं;

उसके समस्त विरोधी उसके सामने तुच्छ हैं.

6वह स्वयं को आश्वासन देता रहता है: “मैं विचलित न होऊंगा,

मेरी किसी भी पीढ़ी में कोई भी विपदा नहीं आ सकती.”

7उसका मुख शाप, छल तथा अत्याचार से भरा रहता है;

उसकी जीभ उत्पात और दुष्टता छिपाए रहती है.

8वह गांवों के निकट घात लगाए बैठा रहता है;

वह छिपकर निर्दोष की हत्या करता है.

उसकी आंखें चुपचाप असहाय की ताक में रहती हैं;

9वह प्रतीक्षा में घात लगाए हुए बैठा रहता है, जैसे झाड़ी में सिंह.

घात में बैठे हुए उसका लक्ष्य होता है निर्धन-दुःखी,

वह उसे अपने जाल में फंसा घसीटकर ले जाता है.

10वह दुःखी दब कर झुक जाता;

और उसकी शक्ति के सामने पराजित हो जाता है.

11उस दुष्ट की यह मान्यता है, “परमेश्वर सब भूल चुके हैं;

उन्होंने अपना मुख छिपा लिया है, वह यह सब कभी नहीं देखेंगे.”

12याहवेह, उठिए, अपना हाथ उठाइये, परमेश्वर!

इन दुष्टों को दंड दीजिए, दुःखितों को भुला न दीजिए.

13दुष्ट परमेश्वर का तिरस्कार करते हुए

अपने मन में क्यों कहता रहता है,

“परमेश्वर इसका लेखा लेंगे ही नहीं”?

14किंतु निःसंदेह आपने सब कुछ देखा है, आपने यातना और उत्पीड़न पर ध्यान दिया है;

आप स्थिति को अपने नियंत्रण में ले लें. दुःखी और

लाचार स्वयं को आपके हाथों में सौंप रहे हैं;

क्योंकि आप ही सहायक हैं अनाथों के.

15कुटिल और दुष्ट का भुजबल तोड़ दीजिए;

उसकी दुष्टता का लेखा उस समय तक लेते रहिए

जब तक कुछ भी दुष्टता शेष न रह जाए.

16सदा-सर्वदा के लिए याहवेह महाराजाधिराज हैं;

उनके राज्य में से अन्य जनता मिट गए हैं.

17याहवेह, आपने विनीत की अभिलाषा पर दृष्टि की है;

आप उनके हृदय को आश्वासन प्रदान करेंगे,

18अनाथ तथा दुःखित की रक्षा के लिए,

आपका ध्यान उनकी वाणी पर लगा रहेगा

कि मिट्टी से बना मानव अब से पुनः आतंक प्रसारित न करे.