सूक्ति संग्रह 5 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 5:1-23

व्यभिचार के विरुद्ध चेतावनी

1मेरे पुत्र, मेरे ज्ञान पर ध्यान देना,

अपनी समझदारी के शब्दों पर कान लगाओ,

2कि तुम्हारा विवेक और समझ स्थिर रहे

और तुम्हारी बातों में ज्ञान सुरक्षित रहे.

3क्योंकि व्यभिचारिणी की बातों से मानो मधु टपकता है,

उसका वार्तालाप तेल से भी अधिक चिकना होता है;

4किंतु अंत में वह चिरायते सी कड़वी

तथा दोधारी तलवार-सी तीखी-तीक्ष्ण होती है.

5उसका मार्ग सीधा मृत्यु तक पहुंचता है;

उसके पैर अधोलोक के मार्ग पर आगे बढ़ते जाते हैं.

6जीवन मार्ग की ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता;

उसके चालचलन का कोई लक्ष्य नहीं होता और यह वह स्वयं नहीं जानती.

7और अब, मेरे पुत्रो, ध्यान से मेरी शिक्षा को सुनो;

मेरे मुख से बोले शब्दों से कभी न मुड़ना.

8तुम उससे दूर ही दूर रहना,

उसके घर के द्वार के निकट भी न जाना,

9कहीं ऐसा न हो कि तुम अपना सम्मान किसी अन्य को सौंप बैठो

और तुम्हारे जीवन के दिन किसी क्रूर के वश में हो जाएं,

10कहीं अपरिचित व्यक्ति तुम्हारे बल का लाभ उठा लें

और तुम्हारे परिश्रम की सारी कमाई परदेशी के घर में चली जाए.

11और जीवन के संध्याकाल में तुम कराहते रहो,

जब तुम्हारी देह और स्वास्थ्य क्षीण होता जाए.

12और तब तुम यह विचार करके कहो, “क्यों मैं अनुशासन तोड़ता रहा!

क्यों मैं ताड़ना से घृणा करता रहा!

13मैंने शिक्षकों के शिक्षा की अनसुनी की,

मैंने शिक्षाओं पर ध्यान ही न दिया.

14आज मैं विनाश के कगार पर,

सारी मण्डली के सामने, खड़ा हूं.”

15तुम अपने ही जलाशय से जल का पान करना,

तुम्हारा अपना कुंआ तुम्हारा सोता हो.

16क्या तुम्हारे सोते की जलधाराएं इधर-उधर बह जाएं,

क्या ये जलधाराएं सार्वजनिक गलियों के लिए हैं?

17इन्हें मात्र अपने लिए ही आरक्षित रखना,

न कि तुम्हारे निकट आए अजनबी के लिए.

18आशीषित बने रहें तुम्हारे सोते,

युवावस्था से जो तुम्हारी पत्नी है, वही तुम्हारे आनंद का सोता हो.

19वह हिरणी सी कमनीय और मृग सी आकर्षक है.

उसी के स्तन सदैव ही तुम्हें उल्लास से परिपूर्ण करते रहें,

उसका प्रेम ही तुम्हारा आकर्षण बन जाए.

20मेरे पुत्र, वह व्यभिचारिणी भली क्यों तुम्हारे आकर्षण का विषय बने?

वह व्यभिचारिणी क्यों तुम्हारे सीने से लगे?

21पुरुष का चालचलन सदैव याहवेह की दृष्टि में रहता है,

वही तुम्हारी चालों को देखते रहते हैं.

22दुष्ट के अपराध उन्हीं के लिए फंदा बन जाते हैं;

बड़ा सशक्त होता है उसके पाप का बंधन.

23उसकी मृत्यु का कारण होती है उसकी ही शिक्षा,

उसकी अतिशय मूर्खता ही उसे भटका देती है.